कर्मयोगी

- महेश कुमार बसेडिया
उस लोक के बारे में प्रसिद्ध था- वहाँ इंसान को अपने कर्मों के हिसाब से ही पद मिलते हैं, क्योंकि वहाँ के कर्ताधर्ता स्वयं प्रभु थे। एक बार मृत्युलोक से मृत्युगामी होकर एक मनुष्य उस लोक में पहुँचा और कुछ समय में ही वहाँ छा गया। यह बात उस लोक के पुराने कर्मवादियों को नगवार गुजरी। उन्होने प्रभु से षिकायत की- 'प्रभु यह मनुष्य कोई कर्म किये बिना ही मोक्षपद प्राप्त करने की राह पर है, क्यों?'
प्रभु ने कहा- 'इस मनुष्य का कर्म चमचागिरी है।'
संपर्क: एकलव्य, मालाखेडी, होशंगाबाद(म.प्र.)461001
उस लोक के बारे में प्रसिद्ध था- वहाँ इंसान को अपने कर्मों के हिसाब से ही पद मिलते हैं, क्योंकि वहाँ के कर्ताधर्ता स्वयं प्रभु थे। एक बार मृत्युलोक से मृत्युगामी होकर एक मनुष्य उस लोक में पहुँचा और कुछ समय में ही वहाँ छा गया। यह बात उस लोक के पुराने कर्मवादियों को नगवार गुजरी। उन्होने प्रभु से षिकायत की- 'प्रभु यह मनुष्य कोई कर्म किये बिना ही मोक्षपद प्राप्त करने की राह पर है, क्यों?'
प्रभु ने कहा- 'इस मनुष्य का कर्म चमचागिरी है।'
संपर्क: एकलव्य, मालाखेडी, होशंगाबाद(म.प्र.)461001
Labels: महेश कुमार बसेडिया, लघुकथा
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