उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Feb 28, 2011

दिमाग साफ तो नदी भी साफ

- अनुपम मिश्र
हम लोग अपने स्कूलों में अक्सर किताबों में देशप्रेम, संविधान, भूगोल जैसे विषय पढ़ते हैं। कुछ समझते हैं और कुछ- कुछ रटते भी हैं, क्योंकि हमें परीक्षा में इन बातों के बारे में कुछ लिखना ही होता है।
लेकिन, मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर के भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन- सा पहाड़ या कौन- सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहां से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है? ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक, भुज से लेकर त्रिपुरा तक इस देश में कोई 14 बड़ी नदियों का ढांचा प्रकृति ने बनाया है। इन 14 बड़ी नदियों में सैकड़ों सहायक नदियां और उन सहायक नदियों की भी सहायक नदियां मिलती हैं। देश में एक दौर ऐसा आया कि हमारे बड़े लोगों ने नदियों के पानी की चिंता करना छोड़ दिया और देखते- देखते आज हर छोटी- बड़ी नदी कचराघर की तरह बना दी गई है।
अपने घर में जिस घड़े में, फ्रिज में, बोतलों में पीने का पानी रखते हैं क्या उसमें हम कचरा मिलाते हैं? हमारे बड़े लोगों ने बिना सोचे- समझे शुद्ध पानी देने वाली नदियों में शहरों से निकलने वाला कचरा, उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गंदगी मिला दी है। कहने को सरकारों ने दिल्ली से लेकर हर राज्य में नदियों की सफाई के लिए बड़े अच्छे कानून बनाए हैं, लेकिन बात यह है कि इन्हें लागू नहीं किया जाता। नदियों पर इन्हें सजावटी तोरण की तरह टांग देने से कुछ नहीं होगा। जब आज हमारे बड़े लोगों ने इनकी सफाई के लिए कुछ खास नहीं किया है तो क्या अब यह सब भारी जिम्मेदारी छोटे बच्चों के नाजुक कंधों पर होना चाहिए?
अभी तो मुझे लगता है कि हम सबको इसके बारे में सोचना, समझना, पढऩा और लिखना चाहिए। हम अपने शहर से बहने वाली नदी, तालाब के बारे में जितना जान सकते हैं, उतनी कोशिश करना चाहिए। आज हमारा दिमाग इस सवाल पर थोड़ा- सा हो जाए तो हमारी नदियां और तालाब भी जरूर साफ हो सकेंगे।
ये बहुत कठिन काम नहीं है। पिछले वर्षों में राजस्थान के अलवर जिले में कोई 40 किमी लंबी अरवरी नाम की एक नदी देश की बाकी नदियों की तरह लगभग दम तोड़ चुकी थी, लेकिन फिर वहां पर तरुण भारत संघ ने अरवरी के दोनों किनारों पर बसे गांव को संगठित किया। लोगों ने बड़े धीरज से चुपचाप नदी के दोनों किनारों की पहाडिय़ों पर छोटे- छोटे कई तालाब बनाए। पहले वर्षा का जो पानी पहाडिय़ों पर गिरकर सीधे नदी में बहकर दो दिन की बाढ़ और फिर साल भर का अकाल लाता था, अब वह बरसात पहले इन छोटे- छोटे तालाबों में रुकता है। इससे नदी में बाढ़ नहीं आती और इन तालाबों की रिसन से निकला पानी साल भर नदी को जीवन देता रहता है।
अब ऐसा ही प्रयोग इसी जिले में नंदुवाली नदी के साथ भी किया गया है। दूर केरल में भी जहां खूब पानी गिरता है, लेकिन नदियां सूख जाती हैं- वहां भी ऐसे ही प्रयोग एक नदी को पूरी तरह से हरा कर चुके हैं। इन नदियों पर लोगों ने बिना किसी बड़ी सरकारी योजना के अपना पसीना बहाया है और इसलिए आज इनमें पानी बह रहा है।
पता- संपादक, गांधी मार्ग, गांधी शांति प्रतिष्ठान,
दीनदयाल उपाध्याय रोड (आईटीओ) नई दिल्ली 110 001,
मो.-01123237491, फोन: 23236734

No comments: