रक्तचाप को नियंत्रण में रखेगा
लहसुन से होने वाले लाभ और इसके चिकित्सीय गुण सदियों पुराने हैं। शोध और अध्ययन बताते हैं कि आज से 5000 वर्ष पहले भी भारत में लहसुन का इस्तेमाल उपचार के लिए किया जाता था। आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के एक दल ने तो परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की इस मान्यता की पुष्टि भी कर दी है कि उच्च रक्तचाप पर काबू पाने में लहसुन का इस्तेमाल कारगर हो सकता है। एडिलेड विश्वविद्यालय के डा. कैरेन रीड की टीम ने तीन महीने तक उच्च रक्तचाप से पीडि़त 50 मरीजों का अध्ययन करने के बाद यह नतीजा निकाला है। डा. रीड ने कहा कि लहसुन का सत्व उच्च रक्तचाप पर काबू पाने वाली दवाइयों के साथ लेने पर अधिक असर दिखाता है। लहसुन का इस्तेमाल उच्च रक्तचाप के रोगी के लिए एकमात्र दवा के तौर पर नहीं किया जा सकता है लेकिन अगर दवाओं के साथ इसे लिया जाए तो बेहद शानदार नतीजे देखने को मिलेंगे।
हालांकि उच्च रक्तचाप रोकने में लहसुन के उपयोगी होने के बारे में आयुर्वेद हजारों साल से कहता आ रहा है। लेकिन डा. रीड का दावा है कि उन्होंने पुराने लहसुन के सत्व को रक्तचाप नियंत्रित करने में कारगर पाया है और यही उनके अध्ययन को अनूठा बनाता है। डा. रीड के अनुसार लहसुन को कच्चा- ताजा अथवा पाउडर के रूप में इस्तेमाल करने पर उसका असर एक जैसा नहीं होता है। अगर आप खाना बनाते समय ताजे लहसुन का इस्तेमाल करते हैं तो उसमें रक्तचाप नियंत्रित करने वाले अवयव नष्ट हो जाते हैं। जबकि पुराने लहसुन का सत्व यह काम बखूबी करता है।
कोलेस्ट्रॉल पर भी काबू
नीदरलैंड्स में भी हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार लहसुन की दो कलियों के नियमित सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल के बढ़े हुए स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाने पर हृदय संबंधी रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बारिश के दिनों और जाड़े के मौसम में लहसुन का नियमित सेवन करने पर सर्दी- जुकाम से भी राहत मिलती है।
...और जोड़ों का दर्द
भोजन में लहसुन, प्याज और हरे प्याज के पर्याप्त सेवन से गठिया का खतरा भी कम हो सकता है। लंदन के किंग्स कॉलेज और युनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के अनुसंधानकर्ताओं ने खुराक और जोड़ों के दर्दनाक रोग के बीच सम्बंधों का पता लगाया है। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि लहसुन परिवार की सब्जियों का अधिक सेवन करने वाली महिलाओं में कमर में ऑस्टियोआर्थराइटिस की आशंका कम होती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस वयस्कों में गठिया का बेहद आम रूप है। ब्रिटेन में इस बीमारी से लगभग 80 लाख लोग पीडि़त हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस बीमारी की ज्यादा आशंका होती है।
यह बीमारी मध्यम आयु वर्ग और बुजुर्गो में कूल्हे, घुटने और रीढ़ को प्रभावित कर दर्द और अपंगता पैदा करती है। मौजूदा समय में दर्द निवारक और जोड़ों की शल्य चिकित्सा के अलावा इस बीमारी का और कोई प्रभावी इलाज नहीं है। शरीर के वजन और ऑस्टियोआर्थराइटिस के बीच सम्बंध जगजाहिर है, लेकिन यह पहला अध्ययन है जो यह बताता है कि खुराक से ऑस्टियोआर्थराइटिस का विकास और रोकथाम कितना और किस तरह प्रभावित हो सकता है।
हालांकि उच्च रक्तचाप रोकने में लहसुन के उपयोगी होने के बारे में आयुर्वेद हजारों साल से कहता आ रहा है। लेकिन डा. रीड का दावा है कि उन्होंने पुराने लहसुन के सत्व को रक्तचाप नियंत्रित करने में कारगर पाया है और यही उनके अध्ययन को अनूठा बनाता है। डा. रीड के अनुसार लहसुन को कच्चा- ताजा अथवा पाउडर के रूप में इस्तेमाल करने पर उसका असर एक जैसा नहीं होता है। अगर आप खाना बनाते समय ताजे लहसुन का इस्तेमाल करते हैं तो उसमें रक्तचाप नियंत्रित करने वाले अवयव नष्ट हो जाते हैं। जबकि पुराने लहसुन का सत्व यह काम बखूबी करता है।
कोलेस्ट्रॉल पर भी काबू
नीदरलैंड्स में भी हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार लहसुन की दो कलियों के नियमित सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल के बढ़े हुए स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाने पर हृदय संबंधी रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बारिश के दिनों और जाड़े के मौसम में लहसुन का नियमित सेवन करने पर सर्दी- जुकाम से भी राहत मिलती है।
...और जोड़ों का दर्द
भोजन में लहसुन, प्याज और हरे प्याज के पर्याप्त सेवन से गठिया का खतरा भी कम हो सकता है। लंदन के किंग्स कॉलेज और युनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के अनुसंधानकर्ताओं ने खुराक और जोड़ों के दर्दनाक रोग के बीच सम्बंधों का पता लगाया है। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि लहसुन परिवार की सब्जियों का अधिक सेवन करने वाली महिलाओं में कमर में ऑस्टियोआर्थराइटिस की आशंका कम होती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस वयस्कों में गठिया का बेहद आम रूप है। ब्रिटेन में इस बीमारी से लगभग 80 लाख लोग पीडि़त हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस बीमारी की ज्यादा आशंका होती है।
यह बीमारी मध्यम आयु वर्ग और बुजुर्गो में कूल्हे, घुटने और रीढ़ को प्रभावित कर दर्द और अपंगता पैदा करती है। मौजूदा समय में दर्द निवारक और जोड़ों की शल्य चिकित्सा के अलावा इस बीमारी का और कोई प्रभावी इलाज नहीं है। शरीर के वजन और ऑस्टियोआर्थराइटिस के बीच सम्बंध जगजाहिर है, लेकिन यह पहला अध्ययन है जो यह बताता है कि खुराक से ऑस्टियोआर्थराइटिस का विकास और रोकथाम कितना और किस तरह प्रभावित हो सकता है।
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