- राजीव कुमार
आज
क्यों हर तरफ सूखा है,
भीतर-बाहर
सब कुछ रुखा-रुखा है
बादल भी हो रहे हैं सफेद
इन्सान की कौन कहे
पेड़ों ने भी नहीं ओढ़ी है,
हरे पत्तों की चटक शाल
उतरा हुआ है
खेतों का भी रंग,
इस बार
आने दो वसंत
छाने दो हरियाली
चारो ओर,
भर जाने दो
नदियों में पानी,
कल-कल, कल-कल
बहने दो झरनों को
झर-झर, झर-झर
झरने दो।
खिल जाने दो खेतों में
सरसों के पीले-पीले फूल,
चुन लेने दो तितलियों को
मनचाहे फूल,
भवरों को झूम लेने दो
पीकर मकरंद।
बिछ जाने दो
हरियाली की चादर
चारो ओर
बह लेने दो
एक बार फिर
मंद- मंद
सिहरन भरा समीर।
घुल जाने
दो हवाओं में भंग,
छा जाने दो
चतुर्दिक उमंग।
शेमल के फूलों से
चुरा कर लाल रंग
बना लो गुलाल,
खेलो होली
एक- दूजे के संग।
रंग दो
मन का कोना- कोना,
अंग- अंग,
दो रिश्तों को
नया जीवन,
वसंत को आने का अवसर
बार- बार, बार- बार।
- कैलाशचंद्र शर्मा
सरसों के खिले फूल,
ओढ़े पीला दुकूल,
हरियाली नाच रही, आया वसंत है
प्रियतम हैं आन मिले,
मन के सब द्वार खुले,
तन- मन में नाच रहा जैसे अनंग है।
हिरणी सा मन चंचल,
गिरता सिर से आंचल,
बार बार तके द्वार, आया न कन्त है।
पढ़ती बार- बार पाती,
क्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है
सरसों का पीलापन,
चहरे पर आया छन,
हो गये कपोल पीत, कैसा वसंत है।
कोयल की मधुर कूक,
उर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुं ओर,
कहाँ पर वसंत है ?
क्यों हर तरफ सूखा है,
भीतर-बाहर
सब कुछ रुखा-रुखा है
बादल भी हो रहे हैं सफेद
इन्सान की कौन कहे
पेड़ों ने भी नहीं ओढ़ी है,
हरे पत्तों की चटक शाल
उतरा हुआ है
खेतों का भी रंग,
इस बार
आने दो वसंत
छाने दो हरियाली
चारो ओर,
भर जाने दो
नदियों में पानी,
कल-कल, कल-कल
बहने दो झरनों को
झर-झर, झर-झर
झरने दो।
खिल जाने दो खेतों में
सरसों के पीले-पीले फूल,
चुन लेने दो तितलियों को
मनचाहे फूल,
भवरों को झूम लेने दो
पीकर मकरंद।
बिछ जाने दो
हरियाली की चादर
चारो ओर
बह लेने दो
एक बार फिर
मंद- मंद
सिहरन भरा समीर।
घुल जाने
दो हवाओं में भंग,
छा जाने दो
चतुर्दिक उमंग।
शेमल के फूलों से
चुरा कर लाल रंग
बना लो गुलाल,
खेलो होली
एक- दूजे के संग।
रंग दो
मन का कोना- कोना,
अंग- अंग,
दो रिश्तों को
नया जीवन,
वसंत को आने का अवसर
बार- बार, बार- बार।
पता: वरिष्ठ अनुवादक,
रसायन और उर्वरक मंत्रालय,
रसायन और पेट्रो- रसायन विभाग
भारत सरकार, नई दिल्ली
http://ghonsla.blogspot.com
रसायन और उर्वरक मंत्रालय,
रसायन और पेट्रो- रसायन विभाग
भारत सरकार, नई दिल्ली
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कोयल की मधुर कूक- कैलाशचंद्र शर्मा
सरसों के खिले फूल,
ओढ़े पीला दुकूल,
हरियाली नाच रही, आया वसंत है
प्रियतम हैं आन मिले,
मन के सब द्वार खुले,
तन- मन में नाच रहा जैसे अनंग है।
हिरणी सा मन चंचल,
गिरता सिर से आंचल,
बार बार तके द्वार, आया न कन्त है।
पढ़ती बार- बार पाती,
क्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है
सरसों का पीलापन,
चहरे पर आया छन,
हो गये कपोल पीत, कैसा वसंत है।
कोयल की मधुर कूक,
उर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुं ओर,
कहाँ पर वसंत है ?
पता: HU- 44, Vishakha Enclave,
itampura (Uttari), Delhi- 110088
itampura (Uttari), Delhi- 110088
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