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Jan 19, 2009

इन्हें क्यों नहीं आती शर्म?

इन्हें क्यों नहीं आती शर्म?
-वी. एन. किशोर

हमारे बड़े बुजूर्ग कहते हैं कि अपने गुस्से को काबू में रखना चाहिए। लेकिन उस समय आप क्या करेंगे जब राह चलते हुए कोई पच्च से थूक दें और उसके छींटे आपके ऊपर पड़े।

मेरी आपबीती सुनकर हो सकता है आपको भी लगे कि हां ऐसा तो मेरे साथ भी हुआ है - घर से ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर निकलते निकलते देर हो ही गई। जल्दी से अपनी स्कूटर निकाला और ऑफिस की ओर चल पड़ा। रास्ते में भीड़ थी, कार, स्कूटर, सीटी बस, आटो रिक्शा रफ्तार से धूल उड़ाते दौड़ रहे थे। तभी मेरे आगे चल रहे एक मोटर साईकिल सवार ने पान की पीक यूं शान से थूकी मानों वह कोई नवाब हो और सडक़ उसकी शाही पीकदान। मेरे कपड़ों में छींटे तो पड़े ही साथ ही मेरे हाथों व चेहरे पर भी। जाहिर है मुझे गुस्सा आया, एक तो देर हो रही थी ऊपर से यह नई मुसीबत, मैंने तुरंत अपनी स्कूटर की स्पीड बढ़ाई और उसके बराबर चलते हुए गुस्से से उबलते हुए बोला 'सडक़ को आपने पीकदान समझ रखा है क्या? आपके थूक के छींटे जो मेरे चेहरे और कपड़ों पर पड़ें हैं उसका क्या?' इतना सुनकर जनाब ने मुझे घूर कर ऐसे देखा मानों मैंने उसकी शान में कोई गुस्ताखी कर दी हो। उस पर मेरे गुस्से का कोई असर ही नहीं हुआ। मैंने उसकी इस ठंडी प्रतिक्रिया पर फिर कहा मैं आपसे ही कह रहा हूं जनाब, आपने सुना नहीं। तब उसने सॉरी शब्द ऐसे कहा मानो अहसान कर रहा हो और अपनी गाड़ी भगा दी।

मेरी हालत खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली सी हो गई थी, क्योंकि मेरे आस- पास चलने वाले लोग मुझे इस तरह देख रहे थे जैसे मैंने उस थूकने वाले पर आपत्ति करके कोई गुनाह कर दिया हो। कुछ तो ऐसे मुस्कुरा रहे थे मानों कह रहे हों -बेकार ही फालतू सी बात पर उलझ गया।

दो पहिया वाहन पर चलने वालों के साथ अक्सर इस तरह के कडुवे अनुभव होते हैं। पान और गुटका खाने की लत वाले सडक़ पर चलते हुए चाहे वे कार में सफर कर रहे हों या बस में या फिर दोपहिया वाहन में, थूकना उनकी आदत में शुमार होता है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि राह चलते थूकते हुए वह लोगों के कपड़े खराब करते हुए, गंदगी तो फैलाता ही है साथ ही असंख्य कीटाणु भी छोड़ते हुए चलता है। कई लोगों की तो बिना पान गुटका खाए ही थूकते रहने की आदत होती है कुछ अपनी बीमारी के चलते कफ निकाल कर सडक़ पर ही थूकते चलते हैं। जो भी हो है तो यह बहुत ही बुरी आदत।

अब सवाल यह उठता है कि इनके साथ ऐसा क्या करें कि वे थूकना बंद कर दें?

हमारी सरकारें बीच- बीच में पान- गुटका का ठेला लगाने वालों पर प्रतिबंध तो लगाती है, पर इन थूकने वालों पर कब सख्ती बरती जाएगी? थूकने वालों ने तो अस्पताल जैसी जगह को भी नहीं छोड़ा है। आप किसी भी सरकारी अस्पताल में चले जाईए सीढिय़ों के कोने पान की पीक से भरे हुए मिलेंगे। इसी तरह दफ्तरों के क्या हाल रहते हैं बताने की जरूरत नहीं। आखिर सरकारी संपत्ति हमारी अपनी संपत्ति जो ठहरी। जहां जहां थूकना मना है लिखा होता है वहीं पान- गुटका के दाग उस सूचना पटल का मुंह चिढ़ाते से प्रतीत होते हैं।

तो क्या हम इस बात पर सिर्फ गुस्सा करके ही चुप बैठ जाएं या कि इससे छुटकारा पाने के लिए भी कुछ सोचें। मैं तो सडक़ पर चिल्ला कर ऐसा करने वालों पर गुस्सा करता हूं और दो बात भी सुनाता हूं। लेकिन अपने आपको सभ्य, पढ़ा- लिखा कहने वाले, जो कहीं भी, कभी भी, बिना आगा-पीछा देखे थूक देना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते है को, क्या कभी अपनी इस असभ्यता पर शर्म आएगी?

-कॉटन मार्केट नागपूर से

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