लिबास
बहुत पुरानी बात है। मिस्र देश में एक सूफी संत रहते थे जिनका नाम जुन्नुन था। एक नौजवान ने उनके पास आकर पूछा, 'मुझे समझ में नहीं आता कि आप जैसे लोग सिर्फ एक चोगा ही क्यों पहने रहते हैं? बदलते वक्त के साथ यह जरूरी है कि लोग ऐसे लिबास पहनें जिनसे उनकी शख्सियत सबसे अलहदा दिखे और देखने वाले वाहवाही करें'।
जुन्नुन मुस्कुराये और अपनी उंगली से एक अंगूठी निकालकर बोले, 'बेटे, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब जरूर दूंगा लेकिन पहले तुम मेरा एक काम करो। इस अंगूठी को सामने बाजार में एक अशर्फी में बेचकर दिखाओ'।
नौजवान ने जुन्नुन की सीधी- सादी सी दिखनेवाली अंगूठी को देखकर मन ही मन कहा, 'इस अंगूठी के लिए सोने की एक अशर्फी!? इसे तो कोई चांदी के एक दीनार में भी नहीं खरीदेगा!'
'कोशिश करके देखो, शायद तुम्हें वाकई कोई खरीददार मिल जाए', जुन्नुन ने कहा। नौजवान तुरंत ही बाजार को रवाना हो गया। उसने वह अंगूठी बहुत से सौदागरों, परचूनियों, साहूकारों, यहाँ तक कि हज्जाम और कसाई को भी दिखाई पर उनमें से कोई भी उस अंगूठी के लिए एक अशर्फी देने को तैयार नहीं हुआ। हारकर उसने जुन्नुन को जा कहा, 'कोई भी इसके लिए चांदी के एक दीनार से ज्यादा रकम देने के लिए तैयार नहीं है'।
जुन्नुन ने मुस्कुराते हुए कहा, 'अब तुम इस सड़क के पीछे सुनार की दुकान पर जाकर उसे यह अंगूठी दिखाओ। लेकिन तुम उसे अपना मोल मत बताना, बस यही देखना कि वह इसकी क्या कीमत लगाता है'।
नौजवान बताई गयी दुकान तक गया और वहां से लौटते वक्त उसके चेहरे पर कुछ और ही बयाँ हो रहा था। उसने जुन्नुन से कहा, 'आप सही थे। बाजार में किसी को भी इस अंगूठी की सही कीमत का अंदाजा नहीं है। सुनार ने इस अंगूठी के लिए सोने की एक हजार अशर्फियों की पेशकश की है। यह तो आपकी माँगी कीमत से भी हजार गुना है!'
जुन्नुन ने मुस्कुराते हुए कहा, 'और वही तुम्हारे सवाल का जवाब है। किसी भी इन्सान की कीमत उसके लिबास से नहीं आंको, नहीं तो तुम बाजार के उन सौदागरों की मानिंद बेशकीमती नगीनों से हाथ धो बैठोगे। अगर तुम उस सुनार की आँखों से चीजों को परखने लगोगे तो तुम्हें मिट्टी और पत्थरों में सोना और जवाहरात दिखाई देंगे। इसके लिए तुम्हें दुनियावी नजर पर पर्दा डालना होगा और दिल की निगाह से देखने की कोशिश करनी होगी। बाहरी दिखावे और बयानबाजी के परे देखो, तुम्हें हर तरफ हीरे- मोती ही दिखेंगे'।
(www.hindizen.com से)
बहुत पुरानी बात है। मिस्र देश में एक सूफी संत रहते थे जिनका नाम जुन्नुन था। एक नौजवान ने उनके पास आकर पूछा, 'मुझे समझ में नहीं आता कि आप जैसे लोग सिर्फ एक चोगा ही क्यों पहने रहते हैं? बदलते वक्त के साथ यह जरूरी है कि लोग ऐसे लिबास पहनें जिनसे उनकी शख्सियत सबसे अलहदा दिखे और देखने वाले वाहवाही करें'।
जुन्नुन मुस्कुराये और अपनी उंगली से एक अंगूठी निकालकर बोले, 'बेटे, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब जरूर दूंगा लेकिन पहले तुम मेरा एक काम करो। इस अंगूठी को सामने बाजार में एक अशर्फी में बेचकर दिखाओ'।
नौजवान ने जुन्नुन की सीधी- सादी सी दिखनेवाली अंगूठी को देखकर मन ही मन कहा, 'इस अंगूठी के लिए सोने की एक अशर्फी!? इसे तो कोई चांदी के एक दीनार में भी नहीं खरीदेगा!'
'कोशिश करके देखो, शायद तुम्हें वाकई कोई खरीददार मिल जाए', जुन्नुन ने कहा। नौजवान तुरंत ही बाजार को रवाना हो गया। उसने वह अंगूठी बहुत से सौदागरों, परचूनियों, साहूकारों, यहाँ तक कि हज्जाम और कसाई को भी दिखाई पर उनमें से कोई भी उस अंगूठी के लिए एक अशर्फी देने को तैयार नहीं हुआ। हारकर उसने जुन्नुन को जा कहा, 'कोई भी इसके लिए चांदी के एक दीनार से ज्यादा रकम देने के लिए तैयार नहीं है'।
जुन्नुन ने मुस्कुराते हुए कहा, 'अब तुम इस सड़क के पीछे सुनार की दुकान पर जाकर उसे यह अंगूठी दिखाओ। लेकिन तुम उसे अपना मोल मत बताना, बस यही देखना कि वह इसकी क्या कीमत लगाता है'।
नौजवान बताई गयी दुकान तक गया और वहां से लौटते वक्त उसके चेहरे पर कुछ और ही बयाँ हो रहा था। उसने जुन्नुन से कहा, 'आप सही थे। बाजार में किसी को भी इस अंगूठी की सही कीमत का अंदाजा नहीं है। सुनार ने इस अंगूठी के लिए सोने की एक हजार अशर्फियों की पेशकश की है। यह तो आपकी माँगी कीमत से भी हजार गुना है!'
जुन्नुन ने मुस्कुराते हुए कहा, 'और वही तुम्हारे सवाल का जवाब है। किसी भी इन्सान की कीमत उसके लिबास से नहीं आंको, नहीं तो तुम बाजार के उन सौदागरों की मानिंद बेशकीमती नगीनों से हाथ धो बैठोगे। अगर तुम उस सुनार की आँखों से चीजों को परखने लगोगे तो तुम्हें मिट्टी और पत्थरों में सोना और जवाहरात दिखाई देंगे। इसके लिए तुम्हें दुनियावी नजर पर पर्दा डालना होगा और दिल की निगाह से देखने की कोशिश करनी होगी। बाहरी दिखावे और बयानबाजी के परे देखो, तुम्हें हर तरफ हीरे- मोती ही दिखेंगे'।
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