- टेरेसा रहमान
जब 26 वर्षीय, पौपी बोरगोहाइन, जोश में बताती है कि उनके कुरकुरे सुनहरे- भूरे बिस्कुट खाते समय अंदर से इतने खस्ता और अलग क्यों होते हैं, हवा में ताजे बने केक और बिस्कुटों की खुशबू फैल जाती है। पौपी को बेक करना (सेंक कर पकाना) बेहद पसंद है। वो तब सबसे ज्यादा खुश होती है जब वह किचन में अलग- अलग सामग्रियों के साथ काम करती है, नई चीजें बनाती है और मीठी या कुरकुरी खाने की चीजें बना रही होती है।
युवा पौपी जिसने काफी बुरे दिन देखें हैं, के जीवन में बेकिंग एक नया चाव है। जब पौपी केवल सात साल की थी उसके शरीर के एक हिस्से में लकवा मार गया था और जब वह दसवीं की परीक्षा में फेल हुई, वो बहुत ही दुखी थी और उसे अपने भविष्य के बारे में कोई खबर नहीं थी। वो और उसका परिवार, खासकर उसकी गृहणी माँ अनीता को उसकी अक्षमता को स्वीकारने में बहुत मुश्किल हो रही थी। अनीता कहती हैं, 'मेरी इच्छा होती कि मेरी बेटी कुछ ढंग का काम करे और आत्मनिर्भर बने। मैं नहीं चाहती थी कि वो खाली बैठी रहे।' इसी समय पौपी ने गौहाटी में बहु-अक्षमता वाले युवाओं के पुनर्वास और प्रशिक्षण देने वाले एक केंद्र शिशु सरोथी द्वारा केटरिंग, हाउसकीपिंग और फूड प्रोसेसिंग में एक वर्ष के व्यवसायिक कोर्स के बारे में सुना। फाउंडेशन फॉर सोशल ट्राँसफॉरमेशन (एफ.एस.टी.) द्वारा समर्थित और शहर के जाने माने संस्थानों दि इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, केटरिंग टेक्नॉलजी एण्ड अप्लाइड न्यूट्रिशन (आई.एच.एम.) और दि नार्थ ईस्ट होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (एन.ई.एचएमआई.) के प्राध्यापकों के साथ केंद्र विभिन्न अक्षमता- पोलिया और सेरेब्रल पालिसी से लेकर मल्टीपल स्केलेरोसिस और लोकोमोटर डिस्फंगक्शन- वाले युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है।
जब से पौपी और उसके दस सहपाठियों- जिसमें से नौ लड़कियाँ का परिचय बेकिंग से हुआ है, उनकी जिंदगी लगभग पूरी तरह से हल्की और मीठी हो गई है, बिल्कुल खाने की उन चीजों की तरह जो वे क्लास में बनाती हैं। उनमें से अधिकाँश के लिए बेकिंग कुछ नया है क्योंकि शिशु सरोथी में आने से पहले उन्होंने कभी ओवन देखा भी नहीं था। अब, जाहिर है ओवन के बिना वो रोजमर्रा की जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकतीं। पौपी, जो बैसाखियों के सहारे चलती फिरती है, अपने भविष्य के बारे में उत्साहित है और उसकी माँ भी जिन्हें उसके बनाए बिस्कुट बाजार में मिलने वाले बिस्कुटों से ज्यादा स्वादिष्ट लगते हैं। अब पौपी को गौहाटी के किसी बड़े होटल के बेकरी विभाग में नौकरी मिलने की उम्मीद है। पौपी की तरह, 20 वर्ष की व्हील चेयर इस्तेमाल करने वाली सिलसिला दास जिसे बचपन में पोलियो हो गया था, अपने बेंकिग के पाठों का मजा लेती है। वो जल्दी जल्दी उन चीजों के नाम गिनाती है जो वो आसानी से बना सकती है- केक, पेस्ट्री, बन, पीजा, ब्रेड और बिस्कुट। वो मुस्कुरा कर कहती है- 'उम्मीद है मैं किसी दिन अपनी बेकरी शुरू कर सकूंगी'। शिशु सरोथी में प्रोजेक्ट की कॉडिनेटर, रश्मि बरुआ, पौपी और सिलसिला जैसी लड़कियों की आकाँक्षाओं को समझती हैं।
वे जानती हैं कि पोलियो और अन्य अवस्थाओं के कारण अक्षमता से प्रभावित होना इनमें से कुछ बच्चों का दुर्भाग्य था, जबकि कुछ जन्म से अक्षम थे। वे यह भी समझती हैं कि ये बच्चे भी अपने अन्य सक्षम साथियों के समान हकदार हैं लेकिन उनमें से केवल कुछ को ही समान शिक्षा और प्रशिक्षण अवसरों का लाभ मिला है। एक अक्षम महिला के लिए जीवन और भी अधिक चुनौती भरा होता है। इसीलिए शिशु सरोथी में किया जाने वाला कार्य और भी महत्वपूर्ण है। रश्मि कहती हैं, 'हमारा उद्देश्य भिन्न- क्षमताओं वाले युवाओं को कुशल, आत्मनिर्भर और समाज के उत्पादक सदस्य बनने में सशक्त बनाना है। यह कार्यक्रम शैक्षिक विभाजन को पाटने, बहु अवसर और भेदभाव समाप्त करने के लिए है।' इस प्रयास में ट्रेनियों को केटरिंग तकनीक के उप-क्षेत्रों पर काम होते हुए दिखाने के लिए आई.एच.एम. ले जाया जाता है। सिलसिला को खासतौर पर अभ्यास सत्रों में आनंद आता है जहाँ वह फलों के रस, चटनी, अचार वगैरह के साथ बिस्कुट, ब्रेड, केक, पेस्ट्री, मफिन, बन, पीजा और सेंडविच जैसी अलग- अलग चीजें बनाने की कोशिश करती है। वह गर्व से कहती है, 'अभ्यास के दौरान बनाई गई ये चीजें वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों को बेची जाती हैं और उनसे होने वाली आमदनी का इस्तेमाल अभ्यास सत्रों के लिए कच्चा सामान और सामग्री खरीदने के लिए किया जाता है। हम पार्टियों और मीटिंगों के लिए भी आर्डर लेते हैं और सफल रूप से उन्हें पूरा भी करते आ रहे हैं। अब वो क्रिसमस केकों के लिए आर्डर लेने की आशा लगाए हैं।' भिन्न- क्षमताओं वाले युवाओं के समूह के साथ काम करना प्रशिक्षकों के लिए भी एक चुनौती रहा। बरुआ कहती हैं, 'हमारी सबसे बड़ी बाधा चलने- फिरने और बोलने में सीमितता वाले, अधिक सामान्य सामाजिक कौशल और व्यवहार न रखने वाले, कमजोर याददाश्त वाले और कम सक्रियता स्तर के भिन्न- क्षमताओं वाले युवाओं के समूह के साथ काम करना रही है। कभी कभी, हमें पाठ दोहराने पड़ते हैं। लेकिन ये छात्र बहुत अच्छी तरह से सीख रहे हैं।'
झरना सिन्हा, एक बेकरी की प्रशिक्षिका आज एक संतुष्ट महिला हैं। वे कहती हैं 'पहले मैंने गृहणियों, दुल्हन बनने वाली लड़कियों और पेशेवरों को सिखाया है। लेकिन यह भिन्न क्षमताओं वाले भिन्न छात्रों का अलग समूह है। कुछ लिख नहीं सकते तो कुछ वजन नहीं कर सकते। लेकिन मिलजुल कर वे अपनी इनकमियों को पूरा कर लेते हैं।' मैं उनकी प्रगति से वाकई खुश हूँ।
राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा 'महिलाओं के रोजगार या अक्षमता अधिकार' पर प्रोयाजित और दिल्ली स्थित सोसाइटी फॉर डिएबिलिटि एण्ड रिहैबिलिटेशन स्टडीज द्वारा संपन्न अध्ययन, उल्लेख करता है कि जनगणना 2001 के अनुसार, भारत में अक्षमता वाले 2.19 करोड़ लोग हैं जो कुल जनसंख्या का 2.13 प्रतिशत हिस्सा हैं। इनमेंं देखने, सुनने, बोलने, चलने-फिरने और मानसिक अक्षमता वाले व्यक्ति शामिल हैं। अक्षमताओं के साथ 75 प्रतिशत व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, 49 प्रतिशत अक्षम जनसंख्या साक्षर है और केवल 34 प्रतिशत किसी न किसी रोजगार में हैं। जनगणना 2001 के अनुसार 93.01 लाख महिलाएँ अक्षमताओं के साथ हैं, जो करीब- करीब कुल अक्षम जनसंख्या का आधा (42.46 प्रतिशत) हिस्सा हैं। अक्षमता वाली महिलाओं को शोषण और दुव्र्यवहार से सुरक्षा की आवश्यकता होती है। चूंकि ऐसी महिलाओं के लिए उत्पादक कार्य या अर्थपूर्ण रोजगार के बहुत कम अवसर मौजूद हैं, वे अपनी तरह के पुरुष के मुकाबले अपने परिवार के लिए और भी बड़े बोझ के तौर पर देखी जाती हैं। उनकी मजबूरी में वित्तीय निर्भरता के साथ, वे एक बहुत अधिक कमजोर समूह बन जाती हैं। इसी कारण शिशु सिरोथी के भूतपूर्व छात्रों द्वारा दिया गया संदेश इतना महत्वपूर्ण है।
सिन्हा इंगित करती हैं कि हो सकता है कि उनके कुछ छात्रों के लिए सामान्य बेकरी में काम करना मुश्किल हो लेकिन कांउटर पर बिक्री, दस्तावेजीकरण, उद्यमियों और सुपरवाइजरों के तौर पर वे जरूर अच्छा काम कर सकते हैं। वे कहती हैं, 'उन्हें बेकिंग में विभिन्न प्रक्रियाओं की बुनयादी जानकारी है। मुझे पूरा विश्वास है कि उनके कौशलों को किसी भी बेकरी में सराहा जाएगा। अंतत: बेकरी एक व्यापार ही है- और फायदा मायने रखता है। ज्ञान और काम के साथ सम्मान मिलता है। यदि एक अक्षम व्यक्ति ईमानदारी से काम कर सकता है, तो वे निश्चय ही इस क्षेत्र में संपत्ति बन सकते हैं।' इसी दौरान, शिशु सिरोथी पर आकर्षक खाने की चीजें बनाने का प्रशिक्षण पाने वाली महिलाएँ अपने भविष्य की योजना बना सकती हैं कि वे अपना खुद का काम करना चाहती हैं, चलती-फिरती दुकान चलाना चाहती हैं या किसी सामान्य बेकरी में काम करना चाहती हैं। उनके प्रशिक्षण के साथ वो ऑफिसों और संस्थानों में नाश्ता/खाना देने के साथ साथ शाम के समारोहों के लिए चीजें बनाने का काम भी कर सकती हैं। सिन्हा आगे यह भी कहती हैं, 'कुछ घर पर चीजें बनाना और विभिन्न होटलों और दुकानों में देने का काम भी चुन सकती हैं। बाकी घर पर सिखाने का काम कर सकते हैं। बहुत सारे अवसर हैं बस चुन जाने के इंतजार में हैं।' (विमेन्स फीचर सर्विस)
पौपी और उसके साथियों का परिचय जब से बेकिंग से हुआ है, उनकी जिंदगी लगभग पूरी तरह से हल्की और मीठी हो गई है, बिल्कुल खाने की उन चीजों की तरह जो वे क्लास में बनाती हैं। उनमें से अधिकाँश के लिए बेकिंग कुछ नया है क्योंकि क्लास में आने से पहले उन्होंने कभी ओवन देखा भी नहीं था।
युवा पौपी जिसने काफी बुरे दिन देखें हैं, के जीवन में बेकिंग एक नया चाव है। जब पौपी केवल सात साल की थी उसके शरीर के एक हिस्से में लकवा मार गया था और जब वह दसवीं की परीक्षा में फेल हुई, वो बहुत ही दुखी थी और उसे अपने भविष्य के बारे में कोई खबर नहीं थी। वो और उसका परिवार, खासकर उसकी गृहणी माँ अनीता को उसकी अक्षमता को स्वीकारने में बहुत मुश्किल हो रही थी। अनीता कहती हैं, 'मेरी इच्छा होती कि मेरी बेटी कुछ ढंग का काम करे और आत्मनिर्भर बने। मैं नहीं चाहती थी कि वो खाली बैठी रहे।' इसी समय पौपी ने गौहाटी में बहु-अक्षमता वाले युवाओं के पुनर्वास और प्रशिक्षण देने वाले एक केंद्र शिशु सरोथी द्वारा केटरिंग, हाउसकीपिंग और फूड प्रोसेसिंग में एक वर्ष के व्यवसायिक कोर्स के बारे में सुना। फाउंडेशन फॉर सोशल ट्राँसफॉरमेशन (एफ.एस.टी.) द्वारा समर्थित और शहर के जाने माने संस्थानों दि इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, केटरिंग टेक्नॉलजी एण्ड अप्लाइड न्यूट्रिशन (आई.एच.एम.) और दि नार्थ ईस्ट होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (एन.ई.एचएमआई.) के प्राध्यापकों के साथ केंद्र विभिन्न अक्षमता- पोलिया और सेरेब्रल पालिसी से लेकर मल्टीपल स्केलेरोसिस और लोकोमोटर डिस्फंगक्शन- वाले युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है।
जब से पौपी और उसके दस सहपाठियों- जिसमें से नौ लड़कियाँ का परिचय बेकिंग से हुआ है, उनकी जिंदगी लगभग पूरी तरह से हल्की और मीठी हो गई है, बिल्कुल खाने की उन चीजों की तरह जो वे क्लास में बनाती हैं। उनमें से अधिकाँश के लिए बेकिंग कुछ नया है क्योंकि शिशु सरोथी में आने से पहले उन्होंने कभी ओवन देखा भी नहीं था। अब, जाहिर है ओवन के बिना वो रोजमर्रा की जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकतीं। पौपी, जो बैसाखियों के सहारे चलती फिरती है, अपने भविष्य के बारे में उत्साहित है और उसकी माँ भी जिन्हें उसके बनाए बिस्कुट बाजार में मिलने वाले बिस्कुटों से ज्यादा स्वादिष्ट लगते हैं। अब पौपी को गौहाटी के किसी बड़े होटल के बेकरी विभाग में नौकरी मिलने की उम्मीद है। पौपी की तरह, 20 वर्ष की व्हील चेयर इस्तेमाल करने वाली सिलसिला दास जिसे बचपन में पोलियो हो गया था, अपने बेंकिग के पाठों का मजा लेती है। वो जल्दी जल्दी उन चीजों के नाम गिनाती है जो वो आसानी से बना सकती है- केक, पेस्ट्री, बन, पीजा, ब्रेड और बिस्कुट। वो मुस्कुरा कर कहती है- 'उम्मीद है मैं किसी दिन अपनी बेकरी शुरू कर सकूंगी'। शिशु सरोथी में प्रोजेक्ट की कॉडिनेटर, रश्मि बरुआ, पौपी और सिलसिला जैसी लड़कियों की आकाँक्षाओं को समझती हैं।
वे जानती हैं कि पोलियो और अन्य अवस्थाओं के कारण अक्षमता से प्रभावित होना इनमें से कुछ बच्चों का दुर्भाग्य था, जबकि कुछ जन्म से अक्षम थे। वे यह भी समझती हैं कि ये बच्चे भी अपने अन्य सक्षम साथियों के समान हकदार हैं लेकिन उनमें से केवल कुछ को ही समान शिक्षा और प्रशिक्षण अवसरों का लाभ मिला है। एक अक्षम महिला के लिए जीवन और भी अधिक चुनौती भरा होता है। इसीलिए शिशु सरोथी में किया जाने वाला कार्य और भी महत्वपूर्ण है। रश्मि कहती हैं, 'हमारा उद्देश्य भिन्न- क्षमताओं वाले युवाओं को कुशल, आत्मनिर्भर और समाज के उत्पादक सदस्य बनने में सशक्त बनाना है। यह कार्यक्रम शैक्षिक विभाजन को पाटने, बहु अवसर और भेदभाव समाप्त करने के लिए है।' इस प्रयास में ट्रेनियों को केटरिंग तकनीक के उप-क्षेत्रों पर काम होते हुए दिखाने के लिए आई.एच.एम. ले जाया जाता है। सिलसिला को खासतौर पर अभ्यास सत्रों में आनंद आता है जहाँ वह फलों के रस, चटनी, अचार वगैरह के साथ बिस्कुट, ब्रेड, केक, पेस्ट्री, मफिन, बन, पीजा और सेंडविच जैसी अलग- अलग चीजें बनाने की कोशिश करती है। वह गर्व से कहती है, 'अभ्यास के दौरान बनाई गई ये चीजें वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों को बेची जाती हैं और उनसे होने वाली आमदनी का इस्तेमाल अभ्यास सत्रों के लिए कच्चा सामान और सामग्री खरीदने के लिए किया जाता है। हम पार्टियों और मीटिंगों के लिए भी आर्डर लेते हैं और सफल रूप से उन्हें पूरा भी करते आ रहे हैं। अब वो क्रिसमस केकों के लिए आर्डर लेने की आशा लगाए हैं।' भिन्न- क्षमताओं वाले युवाओं के समूह के साथ काम करना प्रशिक्षकों के लिए भी एक चुनौती रहा। बरुआ कहती हैं, 'हमारी सबसे बड़ी बाधा चलने- फिरने और बोलने में सीमितता वाले, अधिक सामान्य सामाजिक कौशल और व्यवहार न रखने वाले, कमजोर याददाश्त वाले और कम सक्रियता स्तर के भिन्न- क्षमताओं वाले युवाओं के समूह के साथ काम करना रही है। कभी कभी, हमें पाठ दोहराने पड़ते हैं। लेकिन ये छात्र बहुत अच्छी तरह से सीख रहे हैं।'
झरना सिन्हा, एक बेकरी की प्रशिक्षिका आज एक संतुष्ट महिला हैं। वे कहती हैं 'पहले मैंने गृहणियों, दुल्हन बनने वाली लड़कियों और पेशेवरों को सिखाया है। लेकिन यह भिन्न क्षमताओं वाले भिन्न छात्रों का अलग समूह है। कुछ लिख नहीं सकते तो कुछ वजन नहीं कर सकते। लेकिन मिलजुल कर वे अपनी इनकमियों को पूरा कर लेते हैं।' मैं उनकी प्रगति से वाकई खुश हूँ।
राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा 'महिलाओं के रोजगार या अक्षमता अधिकार' पर प्रोयाजित और दिल्ली स्थित सोसाइटी फॉर डिएबिलिटि एण्ड रिहैबिलिटेशन स्टडीज द्वारा संपन्न अध्ययन, उल्लेख करता है कि जनगणना 2001 के अनुसार, भारत में अक्षमता वाले 2.19 करोड़ लोग हैं जो कुल जनसंख्या का 2.13 प्रतिशत हिस्सा हैं। इनमेंं देखने, सुनने, बोलने, चलने-फिरने और मानसिक अक्षमता वाले व्यक्ति शामिल हैं। अक्षमताओं के साथ 75 प्रतिशत व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, 49 प्रतिशत अक्षम जनसंख्या साक्षर है और केवल 34 प्रतिशत किसी न किसी रोजगार में हैं। जनगणना 2001 के अनुसार 93.01 लाख महिलाएँ अक्षमताओं के साथ हैं, जो करीब- करीब कुल अक्षम जनसंख्या का आधा (42.46 प्रतिशत) हिस्सा हैं। अक्षमता वाली महिलाओं को शोषण और दुव्र्यवहार से सुरक्षा की आवश्यकता होती है। चूंकि ऐसी महिलाओं के लिए उत्पादक कार्य या अर्थपूर्ण रोजगार के बहुत कम अवसर मौजूद हैं, वे अपनी तरह के पुरुष के मुकाबले अपने परिवार के लिए और भी बड़े बोझ के तौर पर देखी जाती हैं। उनकी मजबूरी में वित्तीय निर्भरता के साथ, वे एक बहुत अधिक कमजोर समूह बन जाती हैं। इसी कारण शिशु सिरोथी के भूतपूर्व छात्रों द्वारा दिया गया संदेश इतना महत्वपूर्ण है।
सिन्हा इंगित करती हैं कि हो सकता है कि उनके कुछ छात्रों के लिए सामान्य बेकरी में काम करना मुश्किल हो लेकिन कांउटर पर बिक्री, दस्तावेजीकरण, उद्यमियों और सुपरवाइजरों के तौर पर वे जरूर अच्छा काम कर सकते हैं। वे कहती हैं, 'उन्हें बेकिंग में विभिन्न प्रक्रियाओं की बुनयादी जानकारी है। मुझे पूरा विश्वास है कि उनके कौशलों को किसी भी बेकरी में सराहा जाएगा। अंतत: बेकरी एक व्यापार ही है- और फायदा मायने रखता है। ज्ञान और काम के साथ सम्मान मिलता है। यदि एक अक्षम व्यक्ति ईमानदारी से काम कर सकता है, तो वे निश्चय ही इस क्षेत्र में संपत्ति बन सकते हैं।' इसी दौरान, शिशु सिरोथी पर आकर्षक खाने की चीजें बनाने का प्रशिक्षण पाने वाली महिलाएँ अपने भविष्य की योजना बना सकती हैं कि वे अपना खुद का काम करना चाहती हैं, चलती-फिरती दुकान चलाना चाहती हैं या किसी सामान्य बेकरी में काम करना चाहती हैं। उनके प्रशिक्षण के साथ वो ऑफिसों और संस्थानों में नाश्ता/खाना देने के साथ साथ शाम के समारोहों के लिए चीजें बनाने का काम भी कर सकती हैं। सिन्हा आगे यह भी कहती हैं, 'कुछ घर पर चीजें बनाना और विभिन्न होटलों और दुकानों में देने का काम भी चुन सकती हैं। बाकी घर पर सिखाने का काम कर सकते हैं। बहुत सारे अवसर हैं बस चुन जाने के इंतजार में हैं।' (विमेन्स फीचर सर्विस)
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