मानव के सपनों को आदर्श कहते हैं। ये आदर्श सभी धर्मशास्त्रों में, धर्म गुरुओं और नेताओं के प्रवचनों, भाषणों और पोस्टरों में प्रचुरता से पाए जाते हैं। ये पढऩे और सुनने में बहुत सुंदर लगते हैं। परंतु सपने तो फिर सपने ही होते हैं। अधिकांश सपनों का यथार्थ से- असली जिंदगी में- कुछ लेना देना नहीं होता है। आदर्श की श्रेणी में आने वाले सपनों का तो वास्तविक जीवन से कोई संबंध होता ही नहीं। ऐसा ही हमारे समाज का अत्यंत लोकप्रिय आदर्श वाक्य है 'यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते...'। जिसका जमीनी हकीकत से कभी कोई वास्ता नहीं रहा है। जब इस आदर्श को रचा गया तब द्रौपदी का चीरहरण राजसभा में होता था और आज भी हालत बहुत कुछ वैसे ही हैं।
8 मार्च को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन सरकारी आयोजनों में महिलाओं की सामाजिक प्रगति के बारे में बढ़- चढ़ के बातें की जाती हंै। सुनहरे ख्वाब दिखाए जाते हंै। अर्थात महिलाओं की समाज में वास्तविक स्थिति से कोई भी संबंध न रखने वाली बातें। प्रमाण चाहिए? तो लीजिए। इसी 8 मार्च को देश की राजधानी दिल्ली में सुबह 10 बजे एक 20 वर्षीय छात्रा की उसी के कालेज के सामने भीड़ भरे रास्ते में गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्यारा सैकड़ों व्यक्तियों के बीच आराम से टहलता हुआ चला गया और भीड़ तमाशा देखती रही। किसी ने उसको रोकने या पकडऩे की हिम्मत नहीं की। 8 मार्च को ही शाम को दिल्ली के एक संभ्रांत आवासीय कालोनी में 79 वर्षीया वृद्धा की उसके घर के अंदर गला घोंटकर हत्या कर दी गई। उसी दिन देश के अन्य नगरों से भी स्त्रियों के साथ बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों और अन्य प्रकार के शारीरिक उत्पीडऩ तथा यौन अपराधों के अनगिनत समाचार आए।
दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री से जब 8 मार्च को छात्रा की दिन दहाड़े हत्या के बारे में सवाल पूछा गया कि पुलिस स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करने में इतनी बेरुखी क्यों दिखाती है। उनका जवाब था कि ये जिम्मेदारी तो जनता की है। अर्थात उनका इशारा था कि स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करना पुलिस का काम नहीं है। ठीक भी है क्योंकि सरकार के मुताबिक पुलिस की सर्वोच्च प्राथमिकता मंत्रियों और नेताओं (जिनमें बड़ी संख्या में भ्रष्ट अपराधी होते हैं) को सुरक्षा प्रदान करना है।
आज देश में राष्ट्रपति, शासक राजनीतिक दल की अध्यक्ष, लोकसभा की अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तथा देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री महिलाएं ही हैं। परंतु ये तो आसमान में चमकते सितारों की तरह हैं जिनका जमीनी हकीकत से कोई संबंध नहीं है। लाखों गांवों और हजारों कस्बों और छोटे शहरों में बसने वाले विशाल भारत में पुरुष प्रभुत्व का बोलबाला है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति बोझ ढोने वाले मूक पशु जैसी ही है। देश की राजधानी में महिलाएं बेहद असुरक्षित महसूस करती हंै। रात की कौन कहे दिन में भी स्त्रियों के विरुद्ध हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों के समाचारों से अखबार और टीवी के समाचार बुलेटिन नित्य भरे रहते हैं। वास्तव में तो स्त्रियों की धड़ल्ले से हत्या, जन्म से पहले ही होने लगती है। हरियाणा, पंजाब और दिल्ली जैसे देश के समृद्ध क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या बेधड़क होती है। इसी क्षेत्र में परिवार की इज्जत के नाम पर स्वतंत्र निर्णय लेने की जुर्रत करने वाली युवतियों की हत्या उन्हीं के पिता या भाई के हाथों होना आम बात है।
कटु यथार्थ ये है कि पुरुष प्रभुत्व में मजबूती से पकड़े हुए विशाल भारतीय समाज में मानवाधिकारों के पैमाने पर स्त्रियों की स्थिति अभी भी अत्यंत दयनीय है।
बड़ी चिंता की बात तो यह है कि जो कुछ हुआ है उसके गर्भ में से उससे ज्यादा अकल्पनीय भयानक संकट किसी भी क्षण प्रकट हो सकता है। जापान में आणविक ऊर्जा से बिजली बनाने वाले 54 बिजली घर हैं जिसमें से 11 आणविक बिजलीघर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इनमें विस्फोट होने लगे हंै। जिनसे होने वाले विकिरण (रेडियेशन) के खतरे के कारण इन बिजली घरों के आसपास 30 किमी के घेरे से मनुष्यों को घर- बार छोड़कर बाहर निकाल दिया जाएगा। इनसे संभावित खतरों की कल्पना मात्र से पूरे विश्व में विशेषतया अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे विकसित देशों के वैज्ञानिकों और सरकारों की नींद हराम हो गई है।
इस अभूतपूर्व भयानक संकट की घड़ी में जहां एक ओर हमारी पूरी सहानुभूति जापान के नागरिकों के साथ है वहीं दूसरी ओर हमें याद आती है कवि प्रदीप की छह दशक पूर्व फिल्म जागृति के लिए लिखे गीत की भविष्यवाणी। जिससे सिद्ध होता है कि कवि वास्तव में भविष्यदृष्टा होते हैं। कवि प्रदीप ने सरल शब्दों में चेतावनी दी थी-
एटम बमों के जोर पर ऐंठी है ये दुनिया
बारूद के ढेर पर बैठी है ये दुनिया
हर कदम उठाना जरा देखभाल के...
आणविक ऊर्जा के रूप में मानव ने वास्तव में एक भस्मासुर पैदा कर दिया है। ये भस्मासुर क्या कर सकता है यह भी दिखाई पडऩे लगा है। क्या हमारे वैज्ञानिक और सरकार इससे चेतेंगे।
8 मार्च को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन सरकारी आयोजनों में महिलाओं की सामाजिक प्रगति के बारे में बढ़- चढ़ के बातें की जाती हंै। सुनहरे ख्वाब दिखाए जाते हंै। अर्थात महिलाओं की समाज में वास्तविक स्थिति से कोई भी संबंध न रखने वाली बातें। प्रमाण चाहिए? तो लीजिए। इसी 8 मार्च को देश की राजधानी दिल्ली में सुबह 10 बजे एक 20 वर्षीय छात्रा की उसी के कालेज के सामने भीड़ भरे रास्ते में गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्यारा सैकड़ों व्यक्तियों के बीच आराम से टहलता हुआ चला गया और भीड़ तमाशा देखती रही। किसी ने उसको रोकने या पकडऩे की हिम्मत नहीं की। 8 मार्च को ही शाम को दिल्ली के एक संभ्रांत आवासीय कालोनी में 79 वर्षीया वृद्धा की उसके घर के अंदर गला घोंटकर हत्या कर दी गई। उसी दिन देश के अन्य नगरों से भी स्त्रियों के साथ बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों और अन्य प्रकार के शारीरिक उत्पीडऩ तथा यौन अपराधों के अनगिनत समाचार आए।
दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री से जब 8 मार्च को छात्रा की दिन दहाड़े हत्या के बारे में सवाल पूछा गया कि पुलिस स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करने में इतनी बेरुखी क्यों दिखाती है। उनका जवाब था कि ये जिम्मेदारी तो जनता की है। अर्थात उनका इशारा था कि स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करना पुलिस का काम नहीं है। ठीक भी है क्योंकि सरकार के मुताबिक पुलिस की सर्वोच्च प्राथमिकता मंत्रियों और नेताओं (जिनमें बड़ी संख्या में भ्रष्ट अपराधी होते हैं) को सुरक्षा प्रदान करना है।
आज देश में राष्ट्रपति, शासक राजनीतिक दल की अध्यक्ष, लोकसभा की अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तथा देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री महिलाएं ही हैं। परंतु ये तो आसमान में चमकते सितारों की तरह हैं जिनका जमीनी हकीकत से कोई संबंध नहीं है। लाखों गांवों और हजारों कस्बों और छोटे शहरों में बसने वाले विशाल भारत में पुरुष प्रभुत्व का बोलबाला है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति बोझ ढोने वाले मूक पशु जैसी ही है। देश की राजधानी में महिलाएं बेहद असुरक्षित महसूस करती हंै। रात की कौन कहे दिन में भी स्त्रियों के विरुद्ध हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों के समाचारों से अखबार और टीवी के समाचार बुलेटिन नित्य भरे रहते हैं। वास्तव में तो स्त्रियों की धड़ल्ले से हत्या, जन्म से पहले ही होने लगती है। हरियाणा, पंजाब और दिल्ली जैसे देश के समृद्ध क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या बेधड़क होती है। इसी क्षेत्र में परिवार की इज्जत के नाम पर स्वतंत्र निर्णय लेने की जुर्रत करने वाली युवतियों की हत्या उन्हीं के पिता या भाई के हाथों होना आम बात है।
कटु यथार्थ ये है कि पुरुष प्रभुत्व में मजबूती से पकड़े हुए विशाल भारतीय समाज में मानवाधिकारों के पैमाने पर स्त्रियों की स्थिति अभी भी अत्यंत दयनीय है।
क्रोधित प्रकृति
11 मार्च को मानव द्वारा बेरहम शोषण से गंभीर रूप से आहत धरती माता ने जरा सी करवट ली कि विश्व के तीन सबसे समृद्ध तथा तकनीकी और औद्योगिक प्रगति में उच्चतम स्तर पर पहुंचे हुए देश जापान को इतिहास में सबसे भयानक भूकंप और सुनामी का सम्मिलित महाविनाशकारी प्रकोप झेलना पड़ा। पलक झपकते ही अत्याधुनिक तकनीक के बलबूते पर मकानों में स्वर्ग जैसी सुविधाओं से युक्त कर देने का दंभ रखने वाले जापान में अनेक घनी आबादी वाले शहर और गांव नक्शे से लुप्त हो गए । 30 से 60 फुट ऊंची सुनामी की लहरों पर धू- धू जलते मकान, कारें, बसें, विशालकाय ट्रक, टे्रन के डिब्बे और पानी के जहाज माचिस की खाली डिबियों की तरह तैरते हुए अपने स्थान से बीसों किलोमीटर दूर खेतों में कूड़ा- करकट के ढेर बन गए। हजारों स्त्री पुरुष मारे गए, हजारों गायब हो गए और लाखों बेघर भटक रहे हैं। इस आपदा के प्रारंभ होने के कुछ घंटों में ही टीवी पर विनाशलीला के जो चित्र आ रहे हैं वे कठोर से कठोर हृदय वाले को भी दहला देने वाले हंै। बीतने वाले प्रत्येक घंटे के साथ इस अभूतपूर्व आपदा की विकरालता और विशालता सुरसा के बदन के समान बढ़ती जा रही है और इसकी भयावहता का चित्र उजागर होने में कई दिन लगेंगे।बड़ी चिंता की बात तो यह है कि जो कुछ हुआ है उसके गर्भ में से उससे ज्यादा अकल्पनीय भयानक संकट किसी भी क्षण प्रकट हो सकता है। जापान में आणविक ऊर्जा से बिजली बनाने वाले 54 बिजली घर हैं जिसमें से 11 आणविक बिजलीघर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इनमें विस्फोट होने लगे हंै। जिनसे होने वाले विकिरण (रेडियेशन) के खतरे के कारण इन बिजली घरों के आसपास 30 किमी के घेरे से मनुष्यों को घर- बार छोड़कर बाहर निकाल दिया जाएगा। इनसे संभावित खतरों की कल्पना मात्र से पूरे विश्व में विशेषतया अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे विकसित देशों के वैज्ञानिकों और सरकारों की नींद हराम हो गई है।
इस अभूतपूर्व भयानक संकट की घड़ी में जहां एक ओर हमारी पूरी सहानुभूति जापान के नागरिकों के साथ है वहीं दूसरी ओर हमें याद आती है कवि प्रदीप की छह दशक पूर्व फिल्म जागृति के लिए लिखे गीत की भविष्यवाणी। जिससे सिद्ध होता है कि कवि वास्तव में भविष्यदृष्टा होते हैं। कवि प्रदीप ने सरल शब्दों में चेतावनी दी थी-
एटम बमों के जोर पर ऐंठी है ये दुनिया
बारूद के ढेर पर बैठी है ये दुनिया
हर कदम उठाना जरा देखभाल के...
आणविक ऊर्जा के रूप में मानव ने वास्तव में एक भस्मासुर पैदा कर दिया है। ये भस्मासुर क्या कर सकता है यह भी दिखाई पडऩे लगा है। क्या हमारे वैज्ञानिक और सरकार इससे चेतेंगे।
-डॉ.रत्ना वर्मा
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