- प्रिया आनंद
खजियार ... ऊंचे देवदार वृक्षों से घिरा हरियाली से सजा एक गोल मैदान और मैदान के बीच तश्तरी जैसी नीली झील....। इस झील में देवदार के वृक्ष झांकते दिखते हैं और पानी में बतखें शरारतें करती नजर आती हैं।
हिमाचल के बारे में एक आम सी बात है कि अगर आप यहां पर्यटन की दृष्टि से भी आते हैं तो आपका पर्यटन अपने आप धार्मिक पर्यटन हो जाएगा। यानी एक पंथ दो काज, पर कुछ एक जगहें ऐसी भी हैं जिन्हें शुद्ध पर्यटन की श्रेणी में रखा जा सकता है, यह अलग बात है कि मंदिर वहां भी होते हैं परंतु वहां पर्यटन का महत्व अधिक होता है ऐसा ही एक स्थान है खजियार जो पर्यटन के संदर्भ में मिनी स्विट्रलैंड का खिताब पा चुका है। स्विट्जरलैंड... हिमाचल में, और वह भी डलहौजी चंबा के बेहद करीब...? यह एक ऐसा सवाल है जो रोमानी अनुभूति देता है। सच तो यह है डलहौजी या चंबा का पर्यटन बिना खजियार के पूरा ही नहीं होता।
समुद्र तल से 6400 फुट की ऊंचाई पर स्थिति धरती का यह सुंदर छोटा सा टुकड़ा नैसर्गिक आकर्षण रखता है ... वह भी कुछ ऐसा कि यहां कदम रखते ही आप अपनी सारी थकान भूल जाते हैं। कह सकते हैं कि खजियार के बिना न तो डलहौजी की कल्पना की जा सकती है, न ही चंबा का पर्यटन इसके बिना पूरा होता है।
खजियार ... ऊंचे देवदार वृक्षों से घिरा हरियाली से सजा एक गोल मैदान और मैदान के बीच तश्तरी जैसी नीली झील....। इस झील में देवदार के वृक्ष झांकते दिखते हैं और पानी में बतखें शरारतें करती नजर आती हैं। खजियार को देखकर ही लार्ड कर्जन के होठों से बेसाख्ता निकल गया था ....
नेस्लिंग एमंगस्ट दि हायर हिल्स
सराउंडेड बाइ दि स्नोज
चंबा मिसेस हाफ अवर इल्स
एंड आल अवर लेसर वोज
ए जेंटल राजा रूल्स दि लैंड
विथ फर्म बट जेंटल हैंड्स
ओह हू कुड विश ए बेटर फेट
दैन चंबा, ज हिल हिड लैंड्स
खजियार की खूबसूरती अनुपम है, लोकेशन अच्छी होने के कारण अकसर फिल्म वाले भी इधर रूख करते हैं। जब बर्फबारी का मौसम हो तो इसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं। देवदारों पर जमी हुई बर्फ धीरे- धीरे उतरती है, ऐसे समय खजियार सैलानियों को किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता। जहां इतिहासकारों ने इसकी तुलना पहलगाम से की है वहीं इसे मिनी स्विट्जरलैंड के खिताब से भी नवाजा गया है।
चंबा और डलहौजी के लोगों का नियम सा है कि वे अकसर वीकएंड मनाने खजियार चले जाते हैं और सारा दिन वहां बिताकर शाम को घर वापस लौट आते हैं। उनके लिए यह आउटिंग बेहद सस्ती पड़ती है। यहां धूप धीरे- धीरे उतरती है और आहिस्ते से पूरे मैदान पर फैल जाती है...।
सैलानियों के लिए यहां बहुत कुछ है ... मैदान के किनारे लगी खूबसूरत रंगीन बैंचे, बच्चों के लिए झूले, घुड़सवारी करना हो तो घोड़े किराए पर लीजिए और पूरे मैदान का चक्कर लगाइए... और अगर आपकी धर्म में आस्था हो तो खज्जीनाग मंदिर में जाकर पूजा अर्चना कर सकते हैं। देवदार के पर्वतीय जंगलों से घिरे मैदान और उसकी गोद में ठहरी, नन्हीं नीली तश्तरी जैसी झील में ही इस धरती की खूबसूरती का तिलिस्म है। यहां पूरे दिन रह कर ही इस जगह का पूरा आनंद लिया जा सकता है। यह एक तथ्यपरक बात है कि सुबह खजियार की सुंदरता कुछ और होती है, दोपहर कुछ और तथा शाम इन सबसे अलग होती है। जैसे- जैसे शाम की परछाइयां मैदान पर उतरती हैं, यहां का पूरा वातावरण रहस्यमय होता जाता है। ढलती शाम में तरह- तरह की रहस्यमय कहानियां सुनाने वाले लोग भी मिल जाएंगे। वह भी कुछ इस तरह कि यहां बने यूरोपीय शैली के दोनों रेस्ट हाउसेज में से एक में भूतों का डेरा है सच यही है कि ऐसा कुछ भी नहीं है, पर अगर आपको काल्पनिक भूतों से मिलने का शौक हो तो, बेशक यहां रात को रूककर भूतों का इंतजार कर सकते हैं। फिलहाल भूत मिलें या न मिलें, पर गहराती रात में इस जगह की खूबसूरती आपको मोहित कर जाएगी। यह एक ऐसा अनुभव होगा जिसे आप जिंदगी भर नहीं भूल सकेंगे। प्रकृति अपने दिव्यतम रूप में यहां स्थित है और इसका साक्षात्कार आप तभी कर सकते हैं, जब यहां रूक कर पूरे इत्मीनान से प्रकृति के सान्निध्य में अपना वक्त गुजारेंगे। यह एक खूबसूरत नन्हा सा स्वर्ग है।
समुद्र तल से इतनी ऊंचाई पर स्थित यह गोल मैदान हरे नगीने सा तो लगता ही है, किसी आदर्श गोल्फ कोर्स की तरह भी लगता है। डलहौजी जीपीओ स्क्वायर से मात्र 22 किमी की दूरी पर स्थित खजियार तक सड़क सुविधा है। हरियाली से भरपूर यह मैदान 1.6 किमी लंबा और 0.9 किमी चौड़ा हैं ऊंचे देवदारों, चीड़ वृक्षों से घिरे खजियार के ऊपर नीले आकाश का सुंदर चंदोवा तना है जिसमें रात होते ही सलमें सितारे टक जाते हैं। यहां की झील में पहले एक फ्लोटिंग आइलैंड भी था जो पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण रखता था। हरे देवदारों के बीच से ही चंबा के लिए रास्ता जाता है, जहां चंबा के एक हजार साल पुराने मंदिर है।
खजियार का दुर्भाग्य यह है कि इसके बारे में भ्रामक प्रचार कर दिया गया है। जैसे कि वहां खाने को कुछ नहीं मिलता इसलिए वहां रुकना भी बेकार है। इस तरह की बातों का नतीजा यह होता है कि लोग डलहौजी रुकते हैं और वहां से पैक्ड लंच लाते हैं। टूरिस्ट बसें यहां आने ही नहीं दी जातीं और टैक्सी वालों की चांदी रहती है। इस तरह देखें तो यहां का पर्यटन सरकारी बसों के हवाले हो कर रह गया है। खजियार का सबसे खूबसूरत मौसम जाड़ों का होता है, जब घनी बर्फ धीरे-धीरे उतरती है... सारे पेड़ चांदी जैसी बर्फ से सज जाते हैं... तब इस गोल मैदान की हरियाली बर्फ की सफेदी से ढकी और भी सुंदर लगती है।
खजियार का एक खूबसूरत आकर्षण और भी है बशर्ते इसे समझा जा सके, यहां से सोलह किमी की दूरी पर एक जगह ऐसी है जहां से मणिमहेश कैलाश के साक्षात दर्शन होते हैं। अगर इसे धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से लिया जाए तो भारी पर्यटक खींचा जा सकता है। रास्ते में कालाटोप अभ्यारण्य भी पड़ता है। यहां कितने ही ऐसे होटल हैं जिनमें अच्छी व्यवस्था है। मिनी स्विस, कंट्री रिजोर्ट, होटल देवदार, शाइनिंग स्टार, बाम्बे पैलेस जैसे होटल हैं। इनके अलावा छोटे गेस्ट हाउस हैं जिनके रेट्स कम हैं और आम पर्यटक की जेब के अनुकूल भी ... साथ ही मंदिर में धर्मशाला है। यहां से थोड़ी ही दूर पलवानी माता का स्थान है जहां से पंजाब की पांचों नदियों देखी जा सकती हैं आज तक इस जगह के बारे में भी अच्छी तरह प्रचार नहीं किया गया।
खजियार की खूबसूरती जाड़ों के मौसम में देखने वाली होती है। चारों तरफ होती है, बस बर्फ की सफेदी... एक ऐसा नयनाभिराम दृश्य जिसे देखते आंखें नहीं थकतीं। यह नजारा हफ्ते भर यूं ही बना रहता है। ... भूले भटके जो पर्यटक यहां आ जाते हैं वे यह सुंदरता देखकर हतप्रभ रह जाते हैं।
पर कुछ एक कमियां हैं, जैसे कि अगर भारी बर्फ गिर जाए तो रास्ते से बर्फ हटाने के लिए स्नोकटर का इंतजाम नहीं है इसलिए पर्यटक जिस मुश्किल से गुजरते हैं उसके बाद आने का नाम ही नहीं लेते। सबसे कमी, सही प्रचार की है अन्यथा यह सचमुच अपना स्विट्जरलैंड नाम सार्थक करता है। प्रशासन इसके लिए कोशिश करे तो खजियार उसके कमाऊ पर्यटक स्थलों में आ सकता है। यहां का सुंदर गोल मैदान गंदगी का ढेर बन कर रह गया है ... वह सुंदर झील जिसका जिक्र किताबों में है, अब एक गंदा तालाब बन कर रह गया है। खजियार को प्रकृति ने सौंदर्य दिया है, पर इसकी जितनी उपेक्षा हुई है, उसने इसे घातक स्थिति में ला खड़ा किया है।
सुरक्षा के मामले में भी खजियार को असुरक्षित ही कहा जाएगा क्योंकि यहां पुलिस चौकी तक नहीं है। सबसे बड़ी समस्या बिजली की है एक बार गई तो आनी मुश्किल होती है। टेलीफोन सेवा भी बाधित रहती है। हालांकि मोबाइल की वजह से आधी परेशानी तो दूर हो गई है, पर हमने पर्यटकों के लिए क्या व्यवस्था की है इसी से पता चल जाता है। यही कारण है कि कुल पर्यटन का सीजन 15 अप्रैल से 15 जुलाई तक सिमट कर रह गया है। खजियार की बर्फबारी कितनी खूबसूरत होती है ... पर्यटक इसे देख सकें तो कितने खुश होंगे पर उनके लिए सुविधाएं कौन मुहैय्या करेगा? सड़क तंग है, लेबर कम है इसलिए स्नोकटर से रास्ता साफ करने के प्रक्रिया चलानी मुश्किल हो जाती है। हां सरकार अगर सारी सुविधाएं दे देती है तो यहां का पर्यटन चमक जाएगा।
खजियार का वातावरण और लोकेशन पैराग्लाइडिंग के लिए आदर्श है, पर इस व्यवसाय को भी यहां काफी निराशा ही मिली है। इस सब के बावजूद देखें तो खजियार एक नन्हा सा स्वर्ग है... इसलिए जब भी आप हिमाचल की हवाओं का रूख करते हैं तो खजियार जाना न भूलिएगा. यहां पहुंचने के लिए करीबी हवाई अड्डा गगल एयरपोर्ट है। नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। यहां तक आने के बाद खजियार के लिए बस मिल जाती है।
खजियार चंबा का आश्चर्य है ... जहां पहुंच कर प्रकृति से सीधा साक्षात्कार होता है। मई-जून के महीने में भी यहां आने के लिए हल्के गर्म वस्त्र जरूरी हैं क्योंकि अचानक आई बारिश के बाद मौसम का ठंडा हो जाना आम बात है अन्यथा मौसम सुहावना ही रहता है।
संपर्क -दिव्य हिमाचल, पुराना मटौर कार्यालय, कांगड़ा पठानकोट मार्ग, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)176001
मोबाइल- 09816164058
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