खाप पंचायत की सबसे खास बात यह है कि औरतें इसमें शामिल नहीं की जातीं, ये केवल पुरुषों की पंचायत होती है तथा सारे फैसले पुरुष ही लेते हैं। इसी तरह दलित इनकी पंचायत में या तो मौजूद ही नहीं होते और यदि होते भी हैं तो वे स्वतंत्र तौर पर अपनी बात किस हद तक रख सकते हैं।
भारत के गांव में जब भी किसी परिवार की इज्जत के नाम पर हत्या होती है तो जाति पंचायत या खाप पंचायत का जिक्र आता है। किसी परिवार को यदि किसी शादी के मामले में परेशानी होती है तो मामला खाप पंचायत तक पहुंचता है और इस खाप पंचायत को पूरा अधिकार होता है कि वह किसी ऐसी शादी को अमान्य कर दें जो उनकी नजर में सामाजिक नियम कायदों के अनुकूल न हो, जैसे विवाहित जोड़ें को अलग कर दें तथा संबंधित परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर उसे गांव से ही बाहर कर दे। बात इतने से भी नहीं बनती तो कई मामलों में युवक या युवती की हत्या तक क ा फैसला यह खाप पंचायत सुना
सकती है।
मीडिया द्वारा लगातार ऐसे विषयों से संबंधित समाचारों को प्रकाशित- प्रसारित करने के बाद भी बहुतों के मन में सवाल उठता है कि आखिर यह खाप पंचायत है क्या बला-
खाप पंचायतों पर गहन शोध करने वाले डॉक्टर प्रेम चौधरी का कहना है कि खाप पंचायतें पारंपरिक पंचायतें होती हैं। जिसपर प्रभावशाली लोगों या गोत्र का दबदबा रहता है। जो गोत्र जिस इलाके में ज़्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज़्यादा प्रभाव होता है। कम जनसंख्या वाले गोत्र भी यद्यपि पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है। गांव के सभी निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएं या न आएं ...और जो भी फ़ैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला माना जाता है और वह सभी पर लागू होता है।
इस खाप पंचायत की सबसे खास बात यह है कि औरतें इसमें शामिल नहीं की जातीं, ये केवल पुरुषों की पंचायत होती है तथा सारे फ़ैसले पुरुष ही लेते हैं। इसी तरह दलित इनकी पंचायत में या तो मौजूद ही नहीं होते और यदि होते भी हैं तो वे स्वतंत्र तौर पर अपनी बात किस हद तक रख सकते हैं, युवा वर्ग को भी खाप पंचायत की बैठकों में बोलने का हक नहीं होता। जबकि ये आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त पंचायतें नहीं हैं बल्कि पारंपरिक पंचायत हैं। सबसे पहली खाप पंचायतें जाटों की ही बताई जाती है। विशेष तौर पर पंजाब- हरियाणा के देहाती इलाकों में जाटों के पास बहुत अधिक भूमि है, प्रशासन और राजनीति में भी इनका बोलबाला है।
डॉक्टर प्रेम चौधरी का इस बारे में मत है कि- आज एक राज्य से दूसरे राज्य में और साथ ही एक ही राज्य के भीतर भी बड़ी संख्या में लोगों का आना-जाना बढ़ा है। इससे किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या का स्वरूप बदला है। साथ ही एक गांव जहां पांच गोत्र थे, आज वहां 15 या 20 गोत्र वाले लोग हैं। यदि पहले पांच गोत्रों में शादी- ब्याह करने पर प्रतिबंध था तो अब इन गोत्रों की संख्या बढ़कर 20-25 हो गई है।
आसपास के गांवों में भी भाईचारे के तहत शादी नहीं की जाती है। ऐसे हालात में जब लड़कियों की जनसंख्या पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले से ही कम है और लड़कों की संख्या ज़्यादा है, तो शादी की संस्था पर ख़ासा दबाव बन गया है।
पिछले कुछ वर्षों में इन प्रदेशों से जो किस्से सामने आए हैं वे केवल भागकर शादी करने के नहीं हैं। उनमें से अनेक मामले तो माता-पिता की रज़ामंदी के साथ शादी के भी हैं पर पंचायत ने गोत्र के आधार पर इन्हें नामंज़ूर कर दिया।
जैसे सात साल पहले जौणदी गांव में रिसाल सिंह ने खाप पंचायत में रहते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और गोत्र विवाद को लेकर गांव के सात परिवारों को गांव से निकलने का हुक्म सुनाया था। आज उसी रिसाल के पोते रविंद्र सिंह और उनकी पत्नी शिल्पा की शादी को लेकर उनके पूरे परिवार को गांव छोडऩे का दबाव झेलना पड़ रहा है।
मामला कुछ इस प्रकार है- रविंद्र जब पांच साल का था उसकी बुआ उसको लेकर दिल्ली के सुल्तानपुर डबास गांव ले आई थी। उसकी शादी भी उधर ही कर दी गई। शादी के कुछ महीने बाद जब दोनों अपने पुश्तैनी गांव ढराणा गए तब वहां की महिलाओं ने शिल्पा से उसका गांव और गोत्र पूछ लिया। जैसे ही उन्हें पता चला कि शिल्पा कादियान गोत्र की है, परिवार पर गाज गिर पड़ा। कादियान खाप ने पंचायत बुलाई और फैसला सुना दिया कि या तो रविंद्र और शिल्पा की शादी तोड़ दी जाए या वह परिवार गांव छोड़ दे। रविंद्र शिल्पा को नहीं छोडऩा चाहता। रविंद्र ने पंचायत को वचन भी दिया है कि वह अपने पुश्तैनी गांव ढराणा में कभी कदम नहीं रखेगा पर पंचायत फिर भी अड़ी है कि रिसाल सिंह के परिवार को गांव छोडऩा ही होगा।
ऐसे कई और मामले है जो खाप पंचायत के शिकार हुए हैं - रोहतक के गांव खेड़ी महम में एक दंपती को भाई- बहन की तरह रहने का आदेश जारी किया गया था, क्योंकि दोनों एक ही गोत्र के हैं। इस दंपती की तीन साल पूर्व शादी हुई थी। उनका एक साल का बच्चा भी है।
इसी प्रकार राज्य के कैथल जिले के मटौर गांव के वेदपाल ने पिछले वर्ष नौ मार्च को जींद के सिंघवाल गांव की सोनिया से प्रेम विवाह किया था। उनका भी कसूर था कि दोनों एक ही गोत्र के थे। इस मामले में तो लगभग पांच सौ लोगों की भीड़ ने वेदपाल को दौड़ा- दौड़ाकर पीटा, और, तब तक पीटते रहे जब तक कि उसकी जान नहीं चली गई। बाद में उसके शव को सड़क पर फेंक दिया गया। हैरानी की बात है कि वह युवक अकेला नहीं था उसके साथ हाईकोर्ट के वारंट अफसर और पुलिस के पंद्रह जवान भी थे।
इसी तरह करनाल जिले के बल्ला गांव में नौ मई 2008 को सुनीता और जसबीर की हत्या कर दी गई। उन दोनों ने भी प्रेम विवाह किया था। (उदंती फीचर्स)
सकती है।
मीडिया द्वारा लगातार ऐसे विषयों से संबंधित समाचारों को प्रकाशित- प्रसारित करने के बाद भी बहुतों के मन में सवाल उठता है कि आखिर यह खाप पंचायत है क्या बला-
खाप पंचायतों पर गहन शोध करने वाले डॉक्टर प्रेम चौधरी का कहना है कि खाप पंचायतें पारंपरिक पंचायतें होती हैं। जिसपर प्रभावशाली लोगों या गोत्र का दबदबा रहता है। जो गोत्र जिस इलाके में ज़्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज़्यादा प्रभाव होता है। कम जनसंख्या वाले गोत्र भी यद्यपि पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है। गांव के सभी निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएं या न आएं ...और जो भी फ़ैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला माना जाता है और वह सभी पर लागू होता है।
इस खाप पंचायत की सबसे खास बात यह है कि औरतें इसमें शामिल नहीं की जातीं, ये केवल पुरुषों की पंचायत होती है तथा सारे फ़ैसले पुरुष ही लेते हैं। इसी तरह दलित इनकी पंचायत में या तो मौजूद ही नहीं होते और यदि होते भी हैं तो वे स्वतंत्र तौर पर अपनी बात किस हद तक रख सकते हैं, युवा वर्ग को भी खाप पंचायत की बैठकों में बोलने का हक नहीं होता। जबकि ये आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त पंचायतें नहीं हैं बल्कि पारंपरिक पंचायत हैं। सबसे पहली खाप पंचायतें जाटों की ही बताई जाती है। विशेष तौर पर पंजाब- हरियाणा के देहाती इलाकों में जाटों के पास बहुत अधिक भूमि है, प्रशासन और राजनीति में भी इनका बोलबाला है।
डॉक्टर प्रेम चौधरी का इस बारे में मत है कि- आज एक राज्य से दूसरे राज्य में और साथ ही एक ही राज्य के भीतर भी बड़ी संख्या में लोगों का आना-जाना बढ़ा है। इससे किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या का स्वरूप बदला है। साथ ही एक गांव जहां पांच गोत्र थे, आज वहां 15 या 20 गोत्र वाले लोग हैं। यदि पहले पांच गोत्रों में शादी- ब्याह करने पर प्रतिबंध था तो अब इन गोत्रों की संख्या बढ़कर 20-25 हो गई है।
आसपास के गांवों में भी भाईचारे के तहत शादी नहीं की जाती है। ऐसे हालात में जब लड़कियों की जनसंख्या पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले से ही कम है और लड़कों की संख्या ज़्यादा है, तो शादी की संस्था पर ख़ासा दबाव बन गया है।
पिछले कुछ वर्षों में इन प्रदेशों से जो किस्से सामने आए हैं वे केवल भागकर शादी करने के नहीं हैं। उनमें से अनेक मामले तो माता-पिता की रज़ामंदी के साथ शादी के भी हैं पर पंचायत ने गोत्र के आधार पर इन्हें नामंज़ूर कर दिया।
जैसे सात साल पहले जौणदी गांव में रिसाल सिंह ने खाप पंचायत में रहते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और गोत्र विवाद को लेकर गांव के सात परिवारों को गांव से निकलने का हुक्म सुनाया था। आज उसी रिसाल के पोते रविंद्र सिंह और उनकी पत्नी शिल्पा की शादी को लेकर उनके पूरे परिवार को गांव छोडऩे का दबाव झेलना पड़ रहा है।
मामला कुछ इस प्रकार है- रविंद्र जब पांच साल का था उसकी बुआ उसको लेकर दिल्ली के सुल्तानपुर डबास गांव ले आई थी। उसकी शादी भी उधर ही कर दी गई। शादी के कुछ महीने बाद जब दोनों अपने पुश्तैनी गांव ढराणा गए तब वहां की महिलाओं ने शिल्पा से उसका गांव और गोत्र पूछ लिया। जैसे ही उन्हें पता चला कि शिल्पा कादियान गोत्र की है, परिवार पर गाज गिर पड़ा। कादियान खाप ने पंचायत बुलाई और फैसला सुना दिया कि या तो रविंद्र और शिल्पा की शादी तोड़ दी जाए या वह परिवार गांव छोड़ दे। रविंद्र शिल्पा को नहीं छोडऩा चाहता। रविंद्र ने पंचायत को वचन भी दिया है कि वह अपने पुश्तैनी गांव ढराणा में कभी कदम नहीं रखेगा पर पंचायत फिर भी अड़ी है कि रिसाल सिंह के परिवार को गांव छोडऩा ही होगा।
ऐसे कई और मामले है जो खाप पंचायत के शिकार हुए हैं - रोहतक के गांव खेड़ी महम में एक दंपती को भाई- बहन की तरह रहने का आदेश जारी किया गया था, क्योंकि दोनों एक ही गोत्र के हैं। इस दंपती की तीन साल पूर्व शादी हुई थी। उनका एक साल का बच्चा भी है।
इसी प्रकार राज्य के कैथल जिले के मटौर गांव के वेदपाल ने पिछले वर्ष नौ मार्च को जींद के सिंघवाल गांव की सोनिया से प्रेम विवाह किया था। उनका भी कसूर था कि दोनों एक ही गोत्र के थे। इस मामले में तो लगभग पांच सौ लोगों की भीड़ ने वेदपाल को दौड़ा- दौड़ाकर पीटा, और, तब तक पीटते रहे जब तक कि उसकी जान नहीं चली गई। बाद में उसके शव को सड़क पर फेंक दिया गया। हैरानी की बात है कि वह युवक अकेला नहीं था उसके साथ हाईकोर्ट के वारंट अफसर और पुलिस के पंद्रह जवान भी थे।
इसी तरह करनाल जिले के बल्ला गांव में नौ मई 2008 को सुनीता और जसबीर की हत्या कर दी गई। उन दोनों ने भी प्रेम विवाह किया था। (उदंती फीचर्स)
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