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Jan 20, 2016

पहला पाठ

नर हो न निराश
करो मन को

पहला पाठ

- रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

सन् 1973 की बात है। मैं कलसिया ( सहारनपुर) के एक हाई स्कूल में शिक्षण कार्य के साथ अपनी एम ए की पढ़ाई भी कर रहा था। जब भी कोई खाली क्लास होतामैं अपने अध्ययन में जुट जात। छोटा स्कूलछोटी जगह। सबको सबके बारे में छोटी-मोटी जानकारी रहती। मेरे छात्र भी मेरी पढ़ाई के बारे में अवगत थे। सभी छात्रों को कक्षा से बाहर भी कुछ समझ में न आए तो पूछने की छूट थी। सबसे युवा शिक्षक होने के कारण  और हर समय छात्रों की समस्याओं का निवारण करने के कारण छात्रों को उल्लू गधा आदि विशेषण देने वाले अपने साथियों की आँखों  में खटकता था। सीधा-सपाट बोलने की आदत भी इसका कारण थी। छात्रों में मेरी लोकप्रियता ने इस ईर्ष्या को और बढ़ावा दिया था। अपनी ईर्ष्या के कारण एक दो साथी कुछ न कुछ खुराफ़ात करते रहते, जिसके कारण मैं आहत होता रहता था। इसी कारण स्कूल के खाली समय में मेरी पढ़ाई बाधित होने लगी। कई दिन तक ऐसा हुआ कि मैं पढ़ाई न करके चुपचाप बैठा रहता। मुझे नहीं पता था कि मेरे छात्रों की नजऱ मेरी इस उदासीनता पर है। स्कूल की छुट्टी के समय कुछ छात्र-छात्राएँ मुझे नमस्कार करने के लिए आते और कुछ पाँव छूकर (मेरे मना करने पर भी) जाते ।कक्षा आठ की  अनिता माहेश्वरी भी उनमें एक थी। वह मेरा बहुत सम्मान करती थी । एक दिन नमस्कार करने के बाद वह रुक गई । आसपास किसी को न देखकर बोली- 'गुरु जीआपसे एक बात कहना चाहती हूँ। आप मेरी बात का बुरा नहीं मानेंगे।
'कहिए मैं बुरा नहीं मानूँगा।
'मैं कई दिन से देख रही हूँ कि आप खाली पीरियड में चुपचाप बैठे रहते हैं। अपनी एमए की तैयारी नहीं करते हैं। मैं यह भी जानती हूँ कि हमारे कुछ शिक्षक आपके खिलाफ़ दुष्प्रचार करते रहते हैं। शायद इसीलिए आपका मन पढ़ाई में नहीं रहता।
'हाँतुम्हारी यह बात सही है।
'आपके इस तरह पढ़ाई छोड़ देने से किसका नुकसान हैसिर्फ़ आपका! आप नर हो न निराश करो मन को’ कविता हमको पढ़ाते रहे हैं और सबकी हिम्मत बढ़ाते रहे हैंलेकिन आप खुद क्या कर रहे हैं’- कहकर वह उसने सिर झुका लिया ।
मेरा चेहरा तमतमा गया। किसी विद्यार्थी की इतनी हिम्मत ! मैंने अपने आवेश को सँभाला और अनिता से कहा-'आज के बाद तुम मुझे खाली समय में चुपचाप बैठा नहीं देखोगी।’
उसने हाथ जोड़े –'मेरी बात बुरी लगी हो तो माफ़ कर देंगे! कहकर वह चली गई ।
अप्रैल का महीना था। स्कूल की छुट्टी 12 बजे हो जाती। मैं उसके बाद घर न जाकर पढ़ाई में जुट जाता। नोट्स बनाने शुरू कर दिए। छह बजे शाम के बाद घर  की तरफ़ चल देता। छह किलोमीटर का रास्ता कुछ न कुछ पढ़ते हुए पूरा करता। अब तक जो मेरे नम्बर आए थे वे कम थे। प्रथम श्रेणी लाने के लिए  इस सेमेस्टर में 70 प्रतिशत अंक लाने ज़रूरी थे।  कालिज में पढऩे वाले मेरे साथियों का कहना था कि प्राइवेट में क्या, नियमित छात्रों की भी हिन्दी में प्रथम श्रेणी नहीं मिलती। मैंने साथियों की इस अवधारणा को झटक दिया। मेरे ऊपर भूत सवार था अपनी पूरी शक्ति से मेहनत करने का। मई में परीक्षाएँ हुईं। इस सत्र में जयशंकर प्रसाद  तथा प्राकृत-अपभ्रंश भाषाएँ मेरे विशिष्ट विषय थे। सत्तर प्रतिशत अंक आ गए और मुझे प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में प्रथम श्रेणी मिल गई। इस श्रेणी के कारणबी एड में प्राथमिकता में पहला नम्बर होने के कारण प्रवेश मिला। केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षक और प्राचार्य के रूप में इस उपलब्धि ने मेरा मार्ग सरल किया।
अनिता माहेश्वरी के इस योगदान को मेरा रोमरोम  आज भी महसूस करता है। मैं उस गुरु के दिए इस पहले  पाठ को कभी नहीं भूला। जब भी कोई संकट आयामेरी इस छात्रा का वह पाठ- ‘नर हो न निराश करो मन को मुझे चट्टान जैसे मज़बूती दे गया। ऐसे गुरु को मेरा कोटिश: नमन !

लेखक परिचय: 19 मार्च 1949बेहट जिला सहारनपुर जन्मएम.ए.( हिन्दी)बी.एडकेन्द्रीय विद्यालय हजऱतपुरफ़ोरोज़ाबाद (उ.प्र.) में प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्तमाटीपानी और हवाअंजुरी भर आसीसकुकड़ कूँहुआ सवेरा, मैं घर लौटा (कविता संग्रह), मेरे सात जनम, माटी की नाव (हाइकु-संग्रह), झरे हरसिंगार (ताँका-संग्रह), धरती के आँसू (उपन्यास) दीपादूसरा सवेरा(लघु उपन्यास), खूँटी पर टँगी आत्मा (व्यंग्य-संग्रह), भाषा-चन्द्रिका (व्याकरण), असभ्य नगर(लघुकथा संग्रह) रोचक बालकथाएँ,  फुलिया और मुनिया (बालकथा-हिन्दी–अंग्रेज़ी), 30 पुस्तकों का सम्पादनब्लॉग- सहज साहित्यवेब- लघुकथा डॉट कॉम। सम्पर्क: टॉवर एफ़, 305 छठातलमैक्सहाइट, सैक्टर-62, डाकघर– पी एस राई131029, सोनीपत (हरियाणा)  मो.09313727493Email - rdkamboj49@gmail.com

6 comments:

Unknown said...

बहुत प्रेरणादाई संस्मरण

Sudershan Ratnakar said...

जो हौंसला आपको मिला वही आप सब को देते हैं आपकी शिष्या को सबसे बड़ा tribute .सलाम।

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

sahi hai bhaiya jindgi me kab kis mod par kaun guru ban jata hai pata nhi chalta ..prarna kahi se bhi prakat ho sakti hai :)

Sp Sudhesh said...

आज पता चला कि आप की जन्म स्थली बेहट हैं । मैं अपनी बहन की ससुराल बाबैल बज़ुर्ग में जाया करता था , जो बेहट के पास है । वहाँ गया भी । मेरा पैतृक स्थान सहारनपुर के पास गाँव भलसवा ईसापुर है। आप के संस्मरण नें मुझे वहाँ पहुँचा दिया ।

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut sikashaprda...pahle bhi tippani ki thi jane kanha gayi?vahut bahut badhai kamboj ji bahut achha likha aapne..

प्रियंका गुप्ता said...

कोई नहीं जानता कि ज़िंदगी के किसी अहम् पाठ को पढ़ाने कब कौन किस रूप में मिले...| पर ऐसे गुरू से अधिक मेरे विचार से आदरणीय काम्बोज जी बधाई और साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने अपने बड़े होने के विचार को अपने ऊपर हावी किए बिना एक शिक्षा ग्रहण की...|
ऐसी गुरू और उसके ऐसे शिष्य को मेरा सादर प्रणाम...|