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Jun 11, 2013

आपके पत्र मेल बॉक्स

सदाबहार कलात्मकता
उदंती के मई अंक में प्रकाशित धरोहर में छतीसगढ़ के गहनों  पर सचित्र फीचर सामयिक है। आपने ठीक ही लिखा है- आज से तीस वर्ष पहले मैंने छत्तीसगढ़ यात्रा में देखा था, तब आदिवासी समाज समृद्ध संतुष्ट और गहनों से सज्जित नज़र आता था। बदलते दौर में गहने और परंपरागत वस्त्र और रहन-सहन के तरीके सभी बदल रहे हैं। गोदना भले ही आदिवासी मनोवृत्ति का आभूषण समझा जाता रहा है , पर अमेरिका और उसकी देखा-देखी भारत के युवक गोदना के शौकीन होते जा रहे हैं ; इसे क्या कहा जाए?
अमृत राय की कहानी व्यथा का सरगम, जहीर कुरेशी की दोनों ग़ज़लें व अरोड़ा जी की कविता बरगद की छाँव  भी मन को आंदोलित करती हैं। यद्यपि इनमें से प्रत्येक का रूप विधान और शिल्प अलग अलग तरीके का है। उदंती की कलात्मकता तो सदाबहार है ही।
 - ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव ग्वालियर, brijshrivastava@rediffmail.com

 हवा बदलेगी... लाजवाब
अनकही हवा बदलेगी... विज्ञापन तो बेहतरीन है ही... मगर आपने उस दृष्टिकोण को अपने विचारों का पंख लगाकर जो उड़ान भरी है, वाकई लाजवाब है! मैंने प्रिंट पत्रिका तो नहीं देखी मगर ई- पत्रिका, रचनाओं का चयन और पत्रिका का ले- आउट देखते ही बनता है।
परम आदरणीय सरस्वती प्रसाद जी के दर्शन करने का सौभाग्य मुझे मिला है । संस्मरण कैसे लिखा जाएँ यह (मई अंक में उनका संस्मरण- सीधी माँग) एक मिसाल है!मेरा उन्हें नमन।
         -पंकज त्रिवेदी, editornawya@gmail.com

मीठी यादें
संस्मरण सीधी माँग के हर शब्द से झाँकती एक मीठी याद जो मुस्कान बन सजीव सी हो उठी... अच्छा लगा पढ़कर।आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए।    -सदा

सुंदर प्रस्तुति
मई अंक में बहुत ही अच्छे आलेख और रचनाएँ हैं। प्रस्तुति भी सुंदर है।  डॉ. दीक्षित द्वारा रचित हाइकु माँ की ममता तथा जहीर कुरेशी जी की दोनों ही ग़ज़लें अनुपम भाव प्रदर्शित कर रही हैं !               - अनुराग त्रिवेदी एहसास, ehsaascreation@gmail.com

 
सराहनीय प्रयास
वर्तमान में मैं अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग जिले  में कार्यरत हूँ, परंतु मेरा मूल निवास छतीसगढ़ का बैकुंठपुर नगर है , जो कोरिया जिले का मुख्यालय है। इंटरनेट के माध्यम से उदंती पढऩे का अवसर मिला। इसका कलेवर व सामग्री बहुत अच्छे लगे। अरुणाचल में स्तरीय हिन्दी पत्रिकाओं का नितांत अभाव है; अत: इंटरनेट के माध्यम से ही पत्रिकाएँ उपलब्ध हो पाती हैं। उदंती को इंटरनेट पर उपलब्ध करने का आपका प्रयास सराहनीय है।
  -पद्मनाभ गौतम, अरुणाचल प्रदेश, pmishra_geo@yahoo.co.in

उत्कृष्ट सामग्री
उदंती का अंक मैंने पहले भी देखा है... मई अंक की सभी सामग्री बहुत ही उत्कृष्ट हैं ...डॉ. मिथिलेश जी के हाइकु, विजय अरोड़ा जी की कविताएँ, ज़हीर कुरेशी जी की गज़लें सभी अच्छे लगे। बधाई...!
        -हरकीरत 'हीर harkirathaqeer@gmail.com

तो बात बन जाए...
उदंती लगातार अपने स्तर में सुधार करते हुए आगे बढ़ रही है। साहित्य को समाहित करके आपने इसे एक सम्पूर्ण पत्रिका का रूप देने का प्रयास किया है। यदि इसमें खेल, फिल्म और बच्चों के लिए भी कुछ रचनाएँ शामिल हो जाएँ तो बात बन जाए...
            - सुरभि रॉय

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