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अप्रैल अंक में प्रकाशित हिमांशु जी के हाइकु भावपूर्ण और कवितामयी रस लिए हुए हैं, हाइकु कविता का एक बहुत छोटा रूप है जिसमें अपनी बात कहना 'गागर में सागर' भरने जैसा कार्य है। हिमांशु जी ने सचमुच अपने हाइकु में 'गागर में सागर' भरने का सद्प्रयास किया है और वे सफल भी रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये भावहीन और शुष्क नहीं हैं बल्कि कविता का रस लिए हुए हैं।
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काव्य में भावना प्रधान होना बहुत जरूरी होता है ताकि मधुरता बनी रहे भले ही रचना शिक्षाप्रद हो, आशावादी हो या फिर व्यथा या पीड़ा के भाव लिए हुए हों। काव्य में सदैव कोमल शब्द और भाव होते हैं जो मन को छू जाते हैं। हिमांशुजी की सभी हाइकु बहुत अच्छे लगे, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
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जाऊं पिया के देस ओ रसिया...
उपरोक्त शीर्षक से प्रकाशित संस्मरण ने पुरानी यादें ताजा कर दीं। 1965 में हमारे गाँव में भी रेडियो आया था। चौपाल में सब चुपचाप होकर सुनते थे। देहाती कार्यक्रम में जब प्रस्तोता राम- राम कहते थे तो श्री अमोलक सिंह (जिनका रेडियो था) बड़ी जोर से 'राम-राम भाई राम-राम' कहते थे। एक बार किसी ने पूछ लिया कि ताऊ रेडियो कितने बैण्ड का है? उनका उत्तर आज तक मन ही मन मुस्काने को मजबूर करता है-'अरै भाई इसमैं तो बहर भित्तर बैण्ड ही बैण्ड हैं।' विकिरण का अभिशाप -लेख में बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है। कुछ सुखों के लिए हम अपना अमन- चैन खोने को तैयार हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो बढ़ती सुविधाएँ ही हमारे विनाश का कारण बनती जा रही हैं। हम आदिम युग से भी ज्यादा बर्बर हो रहे हैं। कुछ वर्षों के सुख के लिए आने वाली पीढिय़ों को नरक में झोंकने को तैयार हैं।
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उदंती का अंक मिला। आपकी पत्रिका बहुत ही सुन्दर छपती है। नेट पर इसका ले आउट अलग होता है लेकिन छपी प्रति ज्यादा अच्छी लगती है।
जवाहर चौधरी, इंदौर
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अद्भुत रंग
आसमान में कलाबाजी करते परिन्दे के जरिए सीजर सेनगुप्त ने रंग बिरंगे पक्षियों से परिचय तो करवाया ही है साथ ही सात ताल व पंगोट की सैर करने की इच्छा भी जगा दी। हिन्दी की यादगार कहानियों के माध्यम से परदेशीराम वर्मा उन कहानियों से परिचय करवा रहे हैं जो चर्चित व प्रसिद्ध रही हैं। पिछले अंक में श्रीकांत वर्मा की कहानी शवयात्रा में प्रेम का एक अद्भुत रंग पढऩे को मिला। शिव की नगरी ताला की जानकारी भी अच्छी लगी।
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