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May 10, 2011

पाकिस्तान + ओसामा बिन लादेन = 65,000 करोड़ रुपए का धंधा !


पाकिस्तान + ओसामा बिन लादेन = 65,000 करोड़ रुपए का धंधा !

- डॉ. रत्ना वर्मा
अलकायदा का संस्थापक, संचालक ओसामा बिन लादेन 11 सितम्बर 2001 को न्यूयार्क में वल्र्ड टे्रड सेंटर टॉवर्स पर आतंकवादी हमले से हजारों निरीह मनुष्यों की निर्मम हत्या करके गर्व से मुस्कुराया था। उसी दिन अमरीकी राष्ट्रपति ने अमरीकी नागरिकों से वादा किया था कि विश्व के सबसे निमर्म और बर्बर आतंकवादी ओसामा को ढूंढकर उचित दंड अवश्य दिया जायेगा। 2 मई को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के निकट वहां के प्रमुख फौजी ठिकाने ऐबटाबाद में पाकिस्तानी फौज के संरक्षण में कई वर्षों से अपने परिवार के साथ चैन से रह रहे ओसामा बिन लादेन को अमरीकी नौसैनिकों ने हेलीकॉप्टर से उतरकर मार गिराया। अपने राष्ट्रपति के आदेश का पूर्ण रूप से पालन करने के सबूत के रूप में अमरीकी नौसैनिक ओसामा की लाश भी अपने साथ हेलीकॉप्टर में रखकर ले गए। अमरीकी राष्ट्रपति ने जो वादा किया था वो निभाया। कृतज्ञ अमरीकी नागरिकों ने पूरे देश में दिन- रात वैसा ही विजयोत्सव मनाया जैसा द्वितीय विश्वयुद्ध में एटमबम की विनाशलीला से ध्वस्त होकर जापान द्वारा बिना शर्त घुटने टेक देने पर विजयोत्सव मनाया था।
विश्व के अधिकांश देशों की तरह भारत ने भी इस भयानक आतंकवादी के विनाश का स्वागत किया। परंतु उसके पाकिस्तान की राजधानी के निकट कैन्टूनमेन्ट में वर्षों से सुरक्षित निवास करने पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। वास्तविकता तो यह है कि अमरीकी सेना द्वारा दस वर्ष पहले अफगानिस्तान की तोरा- बोरा पहाडिय़ों की गुफाओं से भगाए जाने के बाद से ही भारत में यह आम विश्वास था कि ओसामा बिन लादेन तब से पाकिस्तानी सेना द्वारा बेशकीमती खजाने की तरह सुरक्षित रखा जा रहा था। ठीक भी था क्योंकि आर्थिक रूप से पूर्णतया दीवालिया पाकिस्तान के लिए तो ओसामा बिन लादेन सोने की अंडा देने वाली मुर्गी ही था। अमेरिका के ओसामा बिन लादेन तथा अलकायदा के विनाश अभियान में उनका प्रमुख सहयोगी बनने का झूठा आश्वासन देकर पाकिस्तान ने 2001 से 2009 के बीच अमेरिका से 65 हजार करोड़ रुपयों (45 हजार करोड़ रुपए सैनिक हथियारों के लिए और 20 हजार करोड़ रुपए असैनिक कार्यों के लिए) से अधिक की रकम वसूली है। स्वाभाविक ही था कि पाकिस्तानी सेना ओसामा को ऐबटाबाद जैसी स्वस्थ जलवायु वाले कैन्टूनमेंट में वर्षों से सुरक्षित छुपाए रखकर अमेरिका को दुहता रहा। धोखेबाजी हमेशा से पाकिस्तान की विदेश नीति का मूलमंत्र रही है।
पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन को संरक्षण दिए जाने ने इस तथ्य की मजबूती से पुष्टि कर दी है कि पाकिस्तान ही विश्व में आतंकवादियों के प्रशिक्षण, संरक्षण और निर्यात का मुख्य केंद्र है। अतएव पूरे विश्व में पाकिस्तान की पहचान एक आतंकवादी देश के रूप में है। अमेरिका ने पिछले 10 वर्षों में अलकायदा के खिलाफ अभियान चलाकर अलकायदा को काफी कमजोर कर दिया है। परंतु इन्हीं 10 वर्षों में अलकायदा जैसे कई आतंकवादी संगठनों जैसे- जैशे मोहम्मद, लश्करे तैबा, तालिबान इत्यादि को पाकिस्तान ने राष्ट्रीय नीति के अंतर्गत पाल- पोसकर खड़ा किया है। पाकिस्तान में दर्जनों आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं जिनमें हजारों नवयुवक आतंकवादी बनने का प्रशिक्षण पा रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा तैयार की जा रही इस आतंकवादी फौज का एक मात्र उद्देश्य भारत पर 26 सितंबर वाले मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले जैसे हमले करते रहना है। अतएव ओसामा की मृत्यु से आतंकवाद में कोई कमी नहीं आनी है।
ओसामा बिन लादेन के विनाश में भारत के लिए भी कई संदेश हैं। अमरीकी राष्ट्रपति जो एक संवैधानिक संस्था है, ने अमरीकी जनता से किए गए वायदे को पूरा करने में दस वर्ष लगाए। परंतु वायदे को पूरा कर दिखाया। यही कारण है कि अमेरिका में वहां का राष्ट्रपति एक बहुत ही सम्मानित संस्था है। जनतांत्रिक देशों में संवैधानिक संस्थाएं सरकार के स्तंभ होती हैं। अतएव ये बहुत जरूरी है कि संवैधानिक संस्थाएं जनता की निगाह में विश्वसनीय बनी रहें।
ओसामा बिन लादेन के ठिकाने पर अमरीकी हमले के बारे में दुनिया में किसी को भी कानोंकान भनक तक न लगी थी। इस संदर्भ में भारत में कुछ हफ्तों में मीडिया में बेहद बचकानी चर्चा सुनी गई जिसमें सार्वजनिक रूप से यह पता लगाने की कोशिश हो रही थी कि क्या भारतीय सेना भी अमेरिका जैसी कार्रवाई कर सकती है। ये कुछ वैसी ही आपत्तिजनक हरकत थी जैसे मुम्बई पर 26/11 के आतंकवादी हमले के समय सुरक्षा सैनिकों की कार्रवाई पल- पल दिखाकर मीडिया ने वास्तव में (अनजाने में) आतंकवादियों की ही मदद की थी। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में मीडिया को विवेक और संयम से निर्णय लेना चाहिए।
सबसे बड़ा संदेश है कि आतंकवाद से छुटकारा हमें सिर्फ अपने ही बलबूते पर पाना होगा। अमेरिका या कोई भी अन्य देश इस मामले में हमारी सार्थक मदद नहीं करेगा। ये हम भलीभांति जानते हैं कि राष्ट्र में आतंकवाद से निर्णायक रूप में छुटकारा पाने की पूर्ण क्षमता है। परंतु इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। जो अभी दिखलाई नहीं पड़ रही है। शायर ने ठीक ही कहा है -
जहां ऊसूलों पर आँच आए, वहाँ टकराना जरूरी है,
जिन्दा हो, तो जिन्दा दिखना जरूरी है।



1 comment:

लोकेन्द्र सिंह said...

१. अंक बहुत ही शानदार रहा.... खासकर बाघों को लेकर जो सार्थक लेखों को शामिल किया गया है वो बहुत पसंद आया....
२. सुभाष नीरव जी की लघु कथाएँ..
३. जहीर कुरैशी जी की गजल...
४. नवनीत कुमार गुप्ता की पानी को लेकर चिंता....
और संपादक डॉ. रत्ना वर्मा जी अनकही में सब कह गईं....