
गुड़ाखू के गुलाम पढ़ा अच्छा लगा। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अपने 11 वर्ष के प्रवास में मैं भी इसका दुरुपयोग देख चुका हूं। जागृति न होने के कारण न जाने कितने मासूम इसका खमियाजा भुगतेंगे। इसके लिए जनजागरण की नितान्त आवश्यकता है ।
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उदंती का नया अंक देखा। हमेशा की तरह बहुत सुन्दर है । पीपली लाइव पर तो इस समय दुनिया भर की निगाह है। आपने नए ढंग से प्रकाश डाला है। चोला माटी के ... पूरा पढ़ कर आनंद आया। अन्य सामग्री में डिजायनर टंकी अच्छी लगी। चित्रकार महेशचंद्र शर्मा का काम बहुत सुन्दर है। बधाई।
jc.indore@gmail.com
उदंती जैसी पत्रिका रायपुर से निकल रही है और आज तक मेरी आंखों के आगे से नहीं गुजरी इसका दुख है। बहुत ही आकर्षक कलात्मक एवं सुरूचिपूर्ण एवं पर्यावरण से ओतप्रोत रचनाएं हैं। कुल मिलाकर हमारे राज्य को गौरवान्वित करने की सजग क्षमता। वैज्ञानिक सोच को रेखांकित करने वाला ऐसा प्रयास मैंने नहीं देखा। हां पत्रिका का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक एप्रोच थोड़ा कमजोर लगा।
कानून के जंगल में न्याय का अकाल पढ़कर अच्छा लगा। आपने बहुत ही सार्थक सवाल को उठाएं हैं। न्याय के अभाव में सार्थक विकास संभव नहीं हो पाता और ईमान के आभाव में कानून सार्थक नहीं हो पाते। विडंबनाओं के इस मकडज़ाल पर चिंता के लिए आप को साधुवाद।
sureshyadav55@gmail.com
उदंती का अंक पहली बार देखने का अवसर मिला और सहसा विश्वास नहीं हुआ कि अपने शहर से इतनी बेहतरीन पत्रिका निकल रही है। कहानी एक और द्रौपदी हाल ही में घटी सत्य घटना है इसे कहानी कहकर समाज के निकृष्ट कार्य को कहानी का छद्म आवरण देने की कोई जरूरत नहीं थी जो विषय की गंभीरता को कमजोर कर देता है। पता नहीं क्यों लेखक इसे सत्य घटना के रूप में प्रस्तुत करने से हिचक गया। छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक स्थलों का वर्णन प्रदेश की संपदा को उद्घाटित तो करता ही है आमंत्रित भी करता है प्रकृति प्रेमी सैलानियों को। हां संपादकीय अवश्य कुछ हथियार डालते हुए सैनिक सा लगा। पत्रिका की कीर्ति समूचे साहित्य जगत में पहुंचे, ऐसी कामना करता हूं।
हिमांशु जी की छोटे बड़े सपने और कट्टरपंथी दोनों ही अच्छी लघुकथाएं हैं। बधाई। उदंती पहली बार नेट पर देखने को मिली। कुछ नए पुराने अंक भी देखे। गरीबों का मसीहा लघुकथा में अच्छा व्यंग्य किया गया है। दूसरी लघुकथाएं और अन्य सामग्री भी अच्छी हैं। कुल मिलाकर एक सम्पूर्ण पत्रिका है उदंती।
दोनों लघु-कथाएं एक से बढ़कर एक हंै। बच्चों के सपने बच्चों जैसे ही मासूम होते हैं। काश इन जैसे बच्चों के ऐसे सपने पूरे हो जाएं! दूसरी लघुकथा पढ़ते- पढ़ते मेरी तो जैसे सांस ही रुक गई कि आगे क्या होने वाला है... इससे बढ़कर और इन्सानियत क्या होगी ?
shabdonkaujala@gmail.com
पहली नजर में अंक पढऩे की उत्सुकता बढ़ाता है। विषयों में विविधता है।
इतनी सार्थक और प्रासंगिक सामग्री उदंती में देने के लिए धन्यवाद। पीपली लाइव के बहाने फिल्म के बारे में रोचक जानकारी मिली, राहुल सिंह को धन्यवाद, शुभकामनाओं सहित।
sudhaarora@gmail.com
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