कौन ये तूफान रोके
कौन ये तूफान रोके
-हरिवंश राय बच्चन
हिल उठे जिनसे समुन्दर...
हिल उठे दिशी और अम्बर...
हिल उठे जिस्से घर के...
वन सघन कर सब्द हर हर...
उस बवंडर के झकोरे
किस तरह इंसान रोके
किस तरह इंसान रोके
कौन यह तूफान रोके...
उठ गया लो पांव मेरा
छुट गया लो ठांव मेरा
छुट गया लो ठांव मेरा
अलविदा ऐ साथ वालों
और मेरा पंथ डेरा...
Labels: कविता, हरिवंश राय बच्चन
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