
- डॉ. सुनीता वर्मा
अमूर्त चित्रों में रंगो का करिश्मा करते चित्रकार डॉ. महेशचंद्र शर्मा 'शिरा' कला समीक्षक, कला विशेषज्ञ के रुप में एक राष्ट्रीय शख्सियत हैं। वे इन दिनों इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के 'दृश्य कला संकाय के प्रोफेसर तथा चित्रकला विभाग के अध्यक्ष के रूप में कायर्रत हैं।
संगीत और कला को समर्पित इस विश्वविद्यालय का शिक्षण वातावरण आज भी गुरू शिष्य परंपरा से स्पंदित है। इस परंपरा ने खैरागढ़ की चित्रकला संभावनाओं को आत्मविश्वास से भरपूर विकास और ऊंचाइयां प्रदान की है। 'शिरा' समकालीन कला के समुचित विकास के लिए देश प्रदेश में कला का वातावरण बनाने के लिए पिछले ढाई दशक से सक्रिय हैं। उनका प्रयास अब छत्तीसगढ़ में ललित कला अकादमी की स्थापना करना है। उन्होनें देश भर में सक्रियता से कार्य करते अनेक कलाकारों की फौज खड़ी की है जो विभिन्न प्रदेशों में फैले हैं।
छत्तीसगढ़ का गौरव, देश का एकमात्र कला एवं संगीत विश्वविद्यालय शान्त, खामोश इलाका है। प्रकृति वहां चारो ओर मुखर है निष्कपट, नि:श्पाप, सात्विक। इस परिसर में प्रवेश करते ही स्वर लहरियां, नृत्य रत नृत्यांगना के नुपुरों की छम-छम, इजल पर कैनवास रंगों में लीन अभ्यास करता कोई विद्यार्थी चुपचाप किसी कोने में दिख जायेगा। इसी परिसर में जब शिरा के निवास में प्रवेश करते हैं तो बैठक की दीवारों पर 10 से 15 पेन्टिग लगी हुई मिल जाएंगी। जहां गुरू को घेरे हुए 5-6 चित्रकला छात्र और शोधार्थी मिल जाएंगे। शिरा की पत्नी डा. मंजुशर्मा रसोई में या तो चाय बनाती मिलेंगी या खाना खिलाने की व्यवस्था में व्यस्त। शिरा दम्पति बाहर से आये पढऩे वाले छात्र- छात्राओं के संरक्षक या धर्म माता-पिता की तरह उनकी व्यक्तिगत असुविधाओं को सुलझाने तक के काम में लगे होते हैं। विश्वविद्यालय की कार्यालयीन अनेक जिम्मेदारियां तो होती ही हैं। इन सारी गतिविधियों के बीच वे चित्र बना रहे हैं और प्रदशर्नियां भी।
सृष्टि के पंच तत्व में आकाश, अग्नि, जल, पृथ्वी पर पेड़, पौधे, फूल, पक्षी पहाड़ आदि को अपने कैनवास पर विषय वस्तु के रूप में प्रस्तुत करते समय 'शिरा' मानव तथा प्रकृति की आंतरिक एकात्मकता के जीवन दर्शन को उद्घाटित करते हैं।
खैरागढ़ में उनके निवास की किसी भी खिड़की से दिखते अनंत पेड़ों के समूह पहाड़ी पर मंदिर, मंदिर की मुंडेर पर लहराती लाल सफेद पताकाओं ने उनके अंन्तमर्न को बहुत गहराई से प्रभावित किया है। साथ ही लोककला, पुरातत्व आदि ने उनकी कला समझ और दृष्टि पर पर्याप्त प्रभाव डाला है।
प्रसिद्ध चित्रकार मुश्ताक ने शिरा के चित्रों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि 'शिरा के चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी रंगों का तीव्र संवेदन और समझ है। वे रंगों का पड़ोस इस तरह चुनते हैं कि उन रंगों के विरोधी स्वभाव उनके आपसी अन्र्तद्वंद्व को उजागर करते हुए भी एक दूसरे को समृद्ध करते हैं।
जल रंग हो
या तैल रंग या एक्रेलिक रंग या अन्य कोई भी माध्यम हो, वे हमेशा ही नई संभावनाओं को तलाशते नजर आते हैं। इस तलाश में वे अपनी बनी हुई शैली के वजूद को बरकरार रखते हुए आगे बढ़ते हैं।
रंगों के बारे में स्वयं 'शिरा' का कहना है- 'मेरे चित्रों में रंगों को लाल, पीला, नीला कह देने से बात नहीं बनती। रंग सीधे आत्मा से जुड़ते हैं। चित्रों में ताजे रंगों को पूरी आजादी से स्वच्छ रूप से घूमते टहलते दौड़ते और एक दूसरे से मिलते हुए भी देख सकते हैं। यह मिलना सिर्फ रंगों का मिलना भर नहीं है बल्कि दो इंसानों की तरह मिलना है। यह मिलना हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। नई सृष्टि के लिए भी और लगातार बढ़ती हुई दूरियों को कम करने के लिये भी। '
'शिरा' के काम की दूसरी विशेषता टैक्सचर है। इन चित्रों को जब आंखे छू रही होती हैं तो स्पर्श सुख के लिये हाथ स्वाभाविक रूप से कैनवास को छूने के लिए मचलने लगते हैं। ये टैक्सचर बचपन की उस स्मृति को भी ताजा करते हैं जब मैं धूल भरी धरती पर उंगलियों या काड़ी से खुरच कर चित्र बनाया करती थी। इन टैक्सचर को उत्पन्न करने के लिये वे कागज या कैनवास की सतह पर मोटा इम्पेस्टो करते हैं, उसके बाद रंगों को फैलाकर, फाड़कर, पोंछकर और कभी-कभी ब्लेड से घिस कर अनेक प्रभावों से अपना संसार सिरजते हैं।
उनके कैनवास पर एक और महत्वपूर्ण तत्व है 'ब्रश के स्ट्रोक्स'। कैनवास पर सफेद लयात्मक, गतिमान, प्रवाहपूर्ण शक्तिशाली स्ट्रोक्स को देखकर ऐसा लगता है जैसे ब्रश का खेल किसी सूफी नृत्य, गीत की लय में होता है, शांत, मौन,मध्यम, आध्यात्मिक ध्यान में लीन, जहां यात्रा पर निकली आंखे कुछ देर आराम करती हैं। कहीं ये उत्तेजना से भरे हैं कहीं ओजपूर्ण हैं कहीं बेचैनी को भी अभिव्यक्त करते हैं। इन कैनवास के साथ घंटों रहा जा सकता है। यह हर एक दर्शक की कल्पनाओं के लिये स्पेस और बिम्ब की रचना करती है। ये अमूर्त चित्र उस बीज जैसा है जिसमें से जीवन प्रस्फुटित, पल्लवित, पुष्पित होता है। यह विशाल वृक्ष बनने की प्रक्रिया में है उसमें से नया बीज फिर बनेगा।
'शिरा' के चित्रों को देखें तो पिन्सेन्ट वानगांग की यह उक्ति बरबस याद आ जाती है- 'चित्रकार का काम जीवन के उस परिदृश्य की रचना करना है जिसे देखा जाना चाहिये। लेकिन लोग उसे नहीं जानते।'
शिरा के अनेक चित्र आकाश में बने दिखाई देते हैं। उनपर रूपाकार आकाश से धरती की ओर बढ़ते मालूम पड़ते हैं। कहीं आकाश और पानी मिलते हैं, कहीं धरती और आकाश तो कहीं धरती आकाश पानी, फूल, मंदिर, चिडिय़ा, पहाड़ सब। सिक्किम में बर्फ के पर्वत, चंगू लेक, स्वच्छ पवित्र आकाश के बीच बिताया समय शिरा के चित्र में दिखाई देते हंै।
शिरा ने विश्व प्रसिद्ध चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के चित्रांकन एवं जीवन पर शोध प्रबंध लिखा है। लगता है स्वामीनाथन की चिडिय़ा से शिरा को भी लगाव हो गया है। शिरा की चिडिय़ा स्थिर नहीं है वे उडऩा चाहती है, शांति के प्रतीक के रूप में, जैसे वे विश्व को तनावमुक्त करने को आतुर हैं। धरती पर रहने वालों के लिए दूर आकाश रहस्यमयी लगता है। शिरा के पक्षी इसी रहस्य की पड़ताल करते समूचे आकाश को गतिशील दुनिया में बदलकर रख देते हैं।
साढ़े तीन दशक की कला यात्रा तय कर चुके शिरा के अमूर्त चित्रों पर एक स्थूल दृष्टि डालने पर लगता है चित्र में लाल- पीला हरा नीला भूरा सफेद रंग किसी ने यूं ही फैला दिया हो। यह फैलाना पूरी सजगता और संयम से की गई है। यह स्वछंदता मन को ज्यादा भाती है क्योंकि यह प्रकृति के बेहद नजदीक लगती है। लगता है प्रकृति में यत्र- तत्र मिट्टी में उगे ये पौधे सावन की फुहार पड़ते ही पूरी पृथ्वी को अपने सुन्दर आंचल में छुपा लेगी। ये रंग कोरे कैनवास को श्रृंगार से भर देते हैं। 'शिरा' के अमूर्त चित्र मन की फैन्टेसी के अनेक द्वार खोलते हैं।'
'शिरा के अमूर्त चित्रों में प्रकृति जैसे साक्षात उतर आई है। गर्मी की उमस से राहत देते उनके चित्र में पहाड़, पेड़- पौधे, फूल, पक्षी आधार हैं किन्तु यह मात्र फूल- पौधों का चित्र नहीं है इसमें फूल की कोमलता है, फूल का रंग है, फूल जैसी पवित्रता है, फूल की शीतलता है।'
प्रसिद्ध कला समीक्षक श्री मनमोहन सरल द्वारा जहांगीर आर्ट गैलरी बंबई में उनकी छठी एकल प्रदशर्नी के अवसर पर की गई उक्त टिप्पणी आज भी प्रासंगिक है।
उनके एक चित्र में घास पर खिले फूलों को देखकर जोश की पंक्तियां बरबस आ जाती हैं -
'गूचें तेरी किस्मत पे दिल हिलता है
बस एक तबस्सुम के लिये तू खिलता है
गूचें ने हंसकर कहा बाबा, ये तबस्सुम भी किसे मिलता है।'
उपरोक्त जीवन दर्शन को घास में खिले फूल के द्वारा अपनी ऊर्जा और प्यार डालकर 'शिरा' ने लंबा जीवन दे दिया।
पता: क्वा।नं. 8/सी, सड़क- 76, सेक्टर- 6, भिलाईजिला- दुर्ग (छ.ग.) 490006
मोबाइल: 09827934904, फोन: 0788-2223512
परिचय...
15 जुलाई सन् 1955 को शहवाजपुर उत्तरप्रदेश में जन्में महेशचंद्र शर्मा 'शिरा' की कलात्म
क अभिरूचि को लखीमपुर के कला अध्यापक ब्रजमोहन लाल वर्मा ने प्रोत्साहन दिया, उन्होंने इस क्षेत्र में आगे बढऩे का रास्ता भी बताया। उनके कहने पर शिरा ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पांच वर्षीय बी.एफ.ए. की उपाधि प्राप्त की और फिर एम.एफ.ए. भी बीएचयू. से किया। पी.एच.डी. उन्होंने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से किया। उन्हें उत्तरप्रदेश सरकार की छात्रवृत्ति मिलने के साथ, उत्तरप्रदेश राज्य कला प्रदर्शनी, मध्य प्रदेश राज्य कला प्रदर्शनी, कालीदास अकादमी उज्जैन का राष्ट्रीय पुरस्कार तथा अखिल भारतीय कला प्रदशर्नी महाकोशल कला परिषद, रायपुर आदि से भी अनेक पुरस्कार मिले हैं।
डा. महेशचंद्र शर्मा की एक चित्र प्रदशर्नी 13 से 19 मई 2010 को जहांगीर आर्ट गैलरी मुम्बई में लगाई गई थी। उन्होंने देश के विभिन्न महानगारों में 16 एकल प्रदर्शनियां की हैं जिनमें से 8 प्रदर्शनी मुंबई में ही लगाई गई। उनके चित्र देश विदेश के अनेक महत्वपूर्ण संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अनेक नेशनल पेन्टर्स केम्प में भागीदारी की है। कला विषय पर उनके कई लेख प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध पत्र का पाठन एवं महत्वपूर्ण वक्ता के रूप में कला पर व्याख्यान दिये हैं। चित्रकारों पर लिखे उनके लेखों में यामिनी राय, अमृता शेरगिल, के.के. हेब्बार, एस.एच. रजा तथा जगदीश स्वामीनाथन प्रमुख हैं।
अमूर्त चित्रों में रंगो का करिश्मा करते चित्रकार डॉ. महेशचंद्र शर्मा 'शिरा' कला समीक्षक, कला विशेषज्ञ के रुप में एक राष्ट्रीय शख्सियत हैं। वे इन दिनों इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के 'दृश्य कला संकाय के प्रोफेसर तथा चित्रकला विभाग के अध्यक्ष के रूप में कायर्रत हैं।
संगीत और कला को समर्पित इस विश्वविद्यालय का शिक्षण वातावरण आज भी गुरू शिष्य परंपरा से स्पंदित है। इस परंपरा ने खैरागढ़ की चित्रकला संभावनाओं को आत्मविश्वास से भरपूर विकास और ऊंचाइयां प्रदान की है। 'शिरा' समकालीन कला के समुचित विकास के लिए देश प्रदेश में कला का वातावरण बनाने के लिए पिछले ढाई दशक से सक्रिय हैं। उनका प्रयास अब छत्तीसगढ़ में ललित कला अकादमी की स्थापना करना है। उन्होनें देश भर में सक्रियता से कार्य करते अनेक कलाकारों की फौज खड़ी की है जो विभिन्न प्रदेशों में फैले हैं।
छत्तीसगढ़ का गौरव, देश का एकमात्र कला एवं संगीत विश्वविद्यालय शान्त, खामोश इलाका है। प्रकृति वहां चारो ओर मुखर है निष्कपट, नि:श्पाप, सात्विक। इस परिसर में प्रवेश करते ही स्वर लहरियां, नृत्य रत नृत्यांगना के नुपुरों की छम-छम, इजल पर कैनवास रंगों में लीन अभ्यास करता कोई विद्यार्थी चुपचाप किसी कोने में दिख जायेगा। इसी परिसर में जब शिरा के निवास में प्रवेश करते हैं तो बैठक की दीवारों पर 10 से 15 पेन्टिग लगी हुई मिल जाएंगी। जहां गुरू को घेरे हुए 5-6 चित्रकला छात्र और शोधार्थी मिल जाएंगे। शिरा की पत्नी डा. मंजुशर्मा रसोई में या तो चाय बनाती मिलेंगी या खाना खिलाने की व्यवस्था में व्यस्त। शिरा दम्पति बाहर से आये पढऩे वाले छात्र- छात्राओं के संरक्षक या धर्म माता-पिता की तरह उनकी व्यक्तिगत असुविधाओं को सुलझाने तक के काम में लगे होते हैं। विश्वविद्यालय की कार्यालयीन अनेक जिम्मेदारियां तो होती ही हैं। इन सारी गतिविधियों के बीच वे चित्र बना रहे हैं और प्रदशर्नियां भी।
सृष्टि के पंच तत्व में आकाश, अग्नि, जल, पृथ्वी पर पेड़, पौधे, फूल, पक्षी पहाड़ आदि को अपने कैनवास पर विषय वस्तु के रूप में प्रस्तुत करते समय 'शिरा' मानव तथा प्रकृति की आंतरिक एकात्मकता के जीवन दर्शन को उद्घाटित करते हैं।
खैरागढ़ में उनके निवास की किसी भी खिड़की से दिखते अनंत पेड़ों के समूह पहाड़ी पर मंदिर, मंदिर की मुंडेर पर लहराती लाल सफेद पताकाओं ने उनके अंन्तमर्न को बहुत गहराई से प्रभावित किया है। साथ ही लोककला, पुरातत्व आदि ने उनकी कला समझ और दृष्टि पर पर्याप्त प्रभाव डाला है।
प्रसिद्ध चित्रकार मुश्ताक ने शिरा के चित्रों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि 'शिरा के चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी रंगों का तीव्र संवेदन और समझ है। वे रंगों का पड़ोस इस तरह चुनते हैं कि उन रंगों के विरोधी स्वभाव उनके आपसी अन्र्तद्वंद्व को उजागर करते हुए भी एक दूसरे को समृद्ध करते हैं।
जल रंग हो

रंगों के बारे में स्वयं 'शिरा' का कहना है- 'मेरे चित्रों में रंगों को लाल, पीला, नीला कह देने से बात नहीं बनती। रंग सीधे आत्मा से जुड़ते हैं। चित्रों में ताजे रंगों को पूरी आजादी से स्वच्छ रूप से घूमते टहलते दौड़ते और एक दूसरे से मिलते हुए भी देख सकते हैं। यह मिलना सिर्फ रंगों का मिलना भर नहीं है बल्कि दो इंसानों की तरह मिलना है। यह मिलना हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। नई सृष्टि के लिए भी और लगातार बढ़ती हुई दूरियों को कम करने के लिये भी। '
'शिरा' के काम की दूसरी विशेषता टैक्सचर है। इन चित्रों को जब आंखे छू रही होती हैं तो स्पर्श सुख के लिये हाथ स्वाभाविक रूप से कैनवास को छूने के लिए मचलने लगते हैं। ये टैक्सचर बचपन की उस स्मृति को भी ताजा करते हैं जब मैं धूल भरी धरती पर उंगलियों या काड़ी से खुरच कर चित्र बनाया करती थी। इन टैक्सचर को उत्पन्न करने के लिये वे कागज या कैनवास की सतह पर मोटा इम्पेस्टो करते हैं, उसके बाद रंगों को फैलाकर, फाड़कर, पोंछकर और कभी-कभी ब्लेड से घिस कर अनेक प्रभावों से अपना संसार सिरजते हैं।
उनके कैनवास पर एक और महत्वपूर्ण तत्व है 'ब्रश के स्ट्रोक्स'। कैनवास पर सफेद लयात्मक, गतिमान, प्रवाहपूर्ण शक्तिशाली स्ट्रोक्स को देखकर ऐसा लगता है जैसे ब्रश का खेल किसी सूफी नृत्य, गीत की लय में होता है, शांत, मौन,मध्यम, आध्यात्मिक ध्यान में लीन, जहां यात्रा पर निकली आंखे कुछ देर आराम करती हैं। कहीं ये उत्तेजना से भरे हैं कहीं ओजपूर्ण हैं कहीं बेचैनी को भी अभिव्यक्त करते हैं। इन कैनवास के साथ घंटों रहा जा सकता है। यह हर एक दर्शक की कल्पनाओं के लिये स्पेस और बिम्ब की रचना करती है। ये अमूर्त चित्र उस बीज जैसा है जिसमें से जीवन प्रस्फुटित, पल्लवित, पुष्पित होता है। यह विशाल वृक्ष बनने की प्रक्रिया में है उसमें से नया बीज फिर बनेगा।
'शिरा' के चित्रों को देखें तो पिन्सेन्ट वानगांग की यह उक्ति बरबस याद आ जाती है- 'चित्रकार का काम जीवन के उस परिदृश्य की रचना करना है जिसे देखा जाना चाहिये। लेकिन लोग उसे नहीं जानते।'
शिरा के अनेक चित्र आकाश में बने दिखाई देते हैं। उनपर रूपाकार आकाश से धरती की ओर बढ़ते मालूम पड़ते हैं। कहीं आकाश और पानी मिलते हैं, कहीं धरती और आकाश तो कहीं धरती आकाश पानी, फूल, मंदिर, चिडिय़ा, पहाड़ सब। सिक्किम में बर्फ के पर्वत, चंगू लेक, स्वच्छ पवित्र आकाश के बीच बिताया समय शिरा के चित्र में दिखाई देते हंै।
शिरा ने विश्व प्रसिद्ध चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के चित्रांकन एवं जीवन पर शोध प्रबंध लिखा है। लगता है स्वामीनाथन की चिडिय़ा से शिरा को भी लगाव हो गया है। शिरा की चिडिय़ा स्थिर नहीं है वे उडऩा चाहती है, शांति के प्रतीक के रूप में, जैसे वे विश्व को तनावमुक्त करने को आतुर हैं। धरती पर रहने वालों के लिए दूर आकाश रहस्यमयी लगता है। शिरा के पक्षी इसी रहस्य की पड़ताल करते समूचे आकाश को गतिशील दुनिया में बदलकर रख देते हैं।

साढ़े तीन दशक की कला यात्रा तय कर चुके शिरा के अमूर्त चित्रों पर एक स्थूल दृष्टि डालने पर लगता है चित्र में लाल- पीला हरा नीला भूरा सफेद रंग किसी ने यूं ही फैला दिया हो। यह फैलाना पूरी सजगता और संयम से की गई है। यह स्वछंदता मन को ज्यादा भाती है क्योंकि यह प्रकृति के बेहद नजदीक लगती है। लगता है प्रकृति में यत्र- तत्र मिट्टी में उगे ये पौधे सावन की फुहार पड़ते ही पूरी पृथ्वी को अपने सुन्दर आंचल में छुपा लेगी। ये रंग कोरे कैनवास को श्रृंगार से भर देते हैं। 'शिरा' के अमूर्त चित्र मन की फैन्टेसी के अनेक द्वार खोलते हैं।'
'शिरा के अमूर्त चित्रों में प्रकृति जैसे साक्षात उतर आई है। गर्मी की उमस से राहत देते उनके चित्र में पहाड़, पेड़- पौधे, फूल, पक्षी आधार हैं किन्तु यह मात्र फूल- पौधों का चित्र नहीं है इसमें फूल की कोमलता है, फूल का रंग है, फूल जैसी पवित्रता है, फूल की शीतलता है।'
प्रसिद्ध कला समीक्षक श्री मनमोहन सरल द्वारा जहांगीर आर्ट गैलरी बंबई में उनकी छठी एकल प्रदशर्नी के अवसर पर की गई उक्त टिप्पणी आज भी प्रासंगिक है।
उनके एक चित्र में घास पर खिले फूलों को देखकर जोश की पंक्तियां बरबस आ जाती हैं -
'गूचें तेरी किस्मत पे दिल हिलता है
बस एक तबस्सुम के लिये तू खिलता है
गूचें ने हंसकर कहा बाबा, ये तबस्सुम भी किसे मिलता है।'
उपरोक्त जीवन दर्शन को घास में खिले फूल के द्वारा अपनी ऊर्जा और प्यार डालकर 'शिरा' ने लंबा जीवन दे दिया।
पता: क्वा।नं. 8/सी, सड़क- 76, सेक्टर- 6, भिलाईजिला- दुर्ग (छ.ग.) 490006
मोबाइल: 09827934904, फोन: 0788-2223512
परिचय...
15 जुलाई सन् 1955 को शहवाजपुर उत्तरप्रदेश में जन्में महेशचंद्र शर्मा 'शिरा' की कलात्म

डा. महेशचंद्र शर्मा की एक चित्र प्रदशर्नी 13 से 19 मई 2010 को जहांगीर आर्ट गैलरी मुम्बई में लगाई गई थी। उन्होंने देश के विभिन्न महानगारों में 16 एकल प्रदर्शनियां की हैं जिनमें से 8 प्रदर्शनी मुंबई में ही लगाई गई। उनके चित्र देश विदेश के अनेक महत्वपूर्ण संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अनेक नेशनल पेन्टर्स केम्प में भागीदारी की है। कला विषय पर उनके कई लेख प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध पत्र का पाठन एवं महत्वपूर्ण वक्ता के रूप में कला पर व्याख्यान दिये हैं। चित्रकारों पर लिखे उनके लेखों में यामिनी राय, अमृता शेरगिल, के.के. हेब्बार, एस.एच. रजा तथा जगदीश स्वामीनाथन प्रमुख हैं।
1 comment:
Thanks to Dr. Sunita Varma for introducing such great personality.The way she has introduced, it seems she too is a great artist and writter
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