मेरे छत पर बना है डिजाइनर वॉटर टैंक
अगर आप जालंधर- लुघियाना हाइवे पर ट्रेवल कर रहे हैं तो घरों की छत पर बने दिलकश आकार के वॉटर टैंक्स आपका ध्यान अपनी ओर जरूर आकर्षित करेंगे। जी हां यहां लोगों ने अपने घरों पर फुटबॉल, एयरोप्लेन, हाथी, घोड़े आदि की शेप में वाटर टैंक्स बनवाए हैं।
अगर आप जालंधर- लुघियाना हाइवे पर ट्रेवल कर रहे हैं तो घरों की छत पर बने दिलकश आकार के वॉटर टैंक्स आपका ध्यान अपनी ओर जरूर आकर्षित करेंगे। जी हां यहां लोगों ने अपने घरों पर फुटबॉल, एयरोप्लेन, हाथी, घोड़े आदि की शेप में वाटर टैंक्स बनवाए हैं।
पानी स्टोर करने के लिए सभी घरों की छतों पर वॉटर टैंक बनवाए जाते हैं। लेकिन घर को नया रूप देने और उसे आकर्षक बनाने के लिए जालंधर के लोगों ने नायाब तरीका ढूंढा है। लोग घर की छतों पर डिजाइनर आकार में वॉटर टैंक बना रहे है, जो न केवल उनके घर की सुंदरता को बढ़ाते है बल्कि आम टैंक से ज्यादा पानी भी स्टोर करते हैं। ये टैंक हर राहगीर के लिए अजूबे की तरह हैं और ये शहर की खूबसूरती को भी बढ़ा रहे हैं।
पिछले दिनों इन टैंक्स पर फीफा फीवर भी देखने को मिला। गत वर्ष जितने भी नए मकान बने उनमें सबसे ज्यादा टैंक्स फुटबॉल की शेप में नजर आए। इसके अलावा ईगल, एयरोप्लेन, कार, घोड़े, हाथी, शेर, अंब्रेला, बड्र्स आदि आकार तो हैं ही। इतना ही नहीं इसे बहुत ही सुंदर तरीके से रंगों से डिजाइन कर सजावट भी की गई है।
ये टैंक्स घर के मालिकों के लिए लैंडमार्क की तरह भी काम कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि अब किसी को भी घर का रास्ता बताना आसान हो गया है। बस कहना पड़ता है कि नीले हाथी वाला, मोर वाला या फुटबाल वाला घर मेरा है।
इस नए चलन को लेकर ग्रामीण और शहर दोनों ही क्षेत्रों के लोगों में खासा क्रेज देखने को मिल रहा है। लम्बारन, दोआबा, करतारपुरा, शाहकोट, मालसिया आदि जगाहों पर ऐसे अनेक टैंक्स लोगों ने बनाए हैं। टैंक्स बनाने का सिलसिला केवल शहर और गांवों तक ही सीमित नहीं है। यहां जालंधर- लुघियाना हाइवे पर एयरोप्लेन शेप, पखवाड़ा- चंडीगढ़ बाईपास पर लाल रंग की कार, बांगा से दस किलोमीटर पहले हॉक की शेप और इससे थोड़ा आगे ही बहुत बड़े शेर की शेप के टैंक भी देखे जा सकते हैं।
दोआबा क्षेत्र में वॉटर टैंक बनाने वाले लोग बहुत कम हैं, जिसकी वजह से नकोदर रोड और जंडियाला रोड के सब-अर्बन और रूरल एरिया के मेन्यूफेक्चरर्स को रोजगार मिल रहा है। टैंक मेन्यूफेक्चरर अवतार सिंह कहते हैं कि इन दिनों हमारे पास इस तरह के टैंक बनाने के ऑर्डर पूरे राज्य से आ रहे हैं।
टैंक बनाने वाले कुलबीर सिंह कहते हैं कि इन टैंक्स को बनाने में थोड़ा वक्त लगता है, क्योंकि इन्हें दो हिस्सों में बनाया जाता है। दोनों हिस्सों को अलग से तैयार कर उसकी फिनीशिंग की जाती है और फिर बाहर से इन्हें जोड़ा जाता है। यह जोड़ इतना परफेक्ट होता है कि न तो इससे पानी रिसता और न ही कोई आसानी से पता लगा सकता कि जोड़ कहां लगाया गया है। इन टैंकों की खासियत यह होती है कि निर्माण के समय उपयोग की गई सामग्री की वजह से इस टैंक का पानी अन्य टैंकों की अपेक्षा अधिक ठंडा रहता है।
पिछले दिनों इन टैंक्स पर फीफा फीवर भी देखने को मिला। गत वर्ष जितने भी नए मकान बने उनमें सबसे ज्यादा टैंक्स फुटबॉल की शेप में नजर आए। इसके अलावा ईगल, एयरोप्लेन, कार, घोड़े, हाथी, शेर, अंब्रेला, बड्र्स आदि आकार तो हैं ही। इतना ही नहीं इसे बहुत ही सुंदर तरीके से रंगों से डिजाइन कर सजावट भी की गई है।
ये टैंक्स घर के मालिकों के लिए लैंडमार्क की तरह भी काम कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि अब किसी को भी घर का रास्ता बताना आसान हो गया है। बस कहना पड़ता है कि नीले हाथी वाला, मोर वाला या फुटबाल वाला घर मेरा है।
इस नए चलन को लेकर ग्रामीण और शहर दोनों ही क्षेत्रों के लोगों में खासा क्रेज देखने को मिल रहा है। लम्बारन, दोआबा, करतारपुरा, शाहकोट, मालसिया आदि जगाहों पर ऐसे अनेक टैंक्स लोगों ने बनाए हैं। टैंक्स बनाने का सिलसिला केवल शहर और गांवों तक ही सीमित नहीं है। यहां जालंधर- लुघियाना हाइवे पर एयरोप्लेन शेप, पखवाड़ा- चंडीगढ़ बाईपास पर लाल रंग की कार, बांगा से दस किलोमीटर पहले हॉक की शेप और इससे थोड़ा आगे ही बहुत बड़े शेर की शेप के टैंक भी देखे जा सकते हैं।
दोआबा क्षेत्र में वॉटर टैंक बनाने वाले लोग बहुत कम हैं, जिसकी वजह से नकोदर रोड और जंडियाला रोड के सब-अर्बन और रूरल एरिया के मेन्यूफेक्चरर्स को रोजगार मिल रहा है। टैंक मेन्यूफेक्चरर अवतार सिंह कहते हैं कि इन दिनों हमारे पास इस तरह के टैंक बनाने के ऑर्डर पूरे राज्य से आ रहे हैं।
टैंक बनाने वाले कुलबीर सिंह कहते हैं कि इन टैंक्स को बनाने में थोड़ा वक्त लगता है, क्योंकि इन्हें दो हिस्सों में बनाया जाता है। दोनों हिस्सों को अलग से तैयार कर उसकी फिनीशिंग की जाती है और फिर बाहर से इन्हें जोड़ा जाता है। यह जोड़ इतना परफेक्ट होता है कि न तो इससे पानी रिसता और न ही कोई आसानी से पता लगा सकता कि जोड़ कहां लगाया गया है। इन टैंकों की खासियत यह होती है कि निर्माण के समय उपयोग की गई सामग्री की वजह से इस टैंक का पानी अन्य टैंकों की अपेक्षा अधिक ठंडा रहता है।
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