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Apr 20, 2010

खाप पंचायतों के तालिबानी फैसले

कैथल के करोड़ा गांव में तीन साल पहले मनोज और बबली ने जब अपने प्रेम को पूर्णता देने के लिए शादी करके नई दुनिया बसानी चाही थी तब उस गांव के लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि शीरी फरहाद की तरह मनोज और बबली की इस दुखभरी प्रेम कहानी के जरिए हरियाणा का उनका यह छोटा सा गांव दुनिया भर में सुर्खियों पर आ जाएगा। प्रेम की खातिर कुर्बान हुए इस आधुनिक शीरी फरहाद को न सिर्फ करनाल की अदालत से न्याय मिला है बल्कि उन खाप पंचायतों की भी हार हुई है जो प्रथा और परंपरा के नाम पर कानून को अपने हाथ में रख कर मनमानी करते हुए मौत का फरमान जारी करते हैं, लेकिन इज्जत के नाम पर की जाने वाली इन हत्याओं के मामले में पहली बार दोषी लोगों को दंडित किया गया है।
इस आनर किलिंग (इज्जत की खातिर हत्या) मामले में करनाल की अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 5 परिजनों (भाई सतीश और सुरेश, चचेरे भाई गुरुदेव, मामा बारूराम और चाचा राजेंद्र) को फांसी, लड़की के दादा तथा खाप पंचायत के एक सदस्य गंगाराम को उम्रकैद और टैक्सी चालक मंदीप को सात साल की सजा दी गई है। मामले में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अफसरों पर भी अदालत ने कार्रवाई के आदेश दिए हैं। इस तरह बेटे- बहू की हत्या के बाद इंसाफ के लिए लड़ रही मनोज की दुखियारी मां को थोड़ी राहत जरूर मिली है।
हरियाणा के कैथल जिले के गांव करोड़ा में रहने वाले मनोज- बबली ने 18 मई 2007 को घर से भागकर शादी कर ली थी लेकिन जैसे ही इस शादी की खबर खाप पंचायत (खाप पंचायत क्या है इस पर विस्तृत जानकारी इसी अंक में अलग से दी जा रही है) को लगी तो पूरे गांव में भूचाल आ गया। पंचायत ने मनोज के परिवार का सामाजिक बहिष्कार यह कहकर किया कि मनोज और बबली एक ही गोत्र के हैं इसलिए ये भाई- बहन हैं तथा इनकी शादी को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। मामले को गरम होते देख इस प्रेमी जोड़े ने, परिजनों द्वारा जान से मारने की धमकी मिलने पर हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार भी लगाई थी। तब हाईकोर्ट ने उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करवा दी थी। परंतु मनोज और बबली का प्रेम तो इतिहास के पन्नों पर जगह पाने के लिए ही पनपा था। 15 जून को उनके ही परिजनों ने उनका अपहरण कर लिया तथा 10 दिन बाद उनकी हत्या कर दी। दोनों के शव नारनौंद के पास एक नहर में मिले थे। अफसोस अदालत के आदेश के बाद भी पुलिस ने मनोज और बबली को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दी बल्कि कत्ल के बाद दोनों की लाश को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार भी कर दिया था।
आज जबकि हम अपने आपको आधुनिक और शिक्षित होने का दंभ भरते है तब देश के सबसे सम्पन्न कहे जाने वाले हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश गांवों में खाप पंचायत का दबदबा क्यों कायम है? तथा इस पंचायत के फैसले को आंख मूंद कर मानने के लिए गांव वाले क्यों बाध्य हैं? सबसे दुखद पहलू यह है कि जो प्रदेश विकास की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं उन्हीं प्रदेशों में पिछले कुछ वर्षों में खाप पंचायतों से संबंधित हिंसा और हत्या के मामले सबसे अधिक सामने आ रहे हैं?
सच तो यही है कि शासन और प्रशासन की ऊंची गद्दी पर बैठने वाले भी तो इसी समाज का हिस्सा होते हैं जो स्वयं भी इस तरह की रुढिय़ों में जकड़े होते हैं। अत: यह भी जरूरी है कि इस महकमें में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की समझ विकसित हो तथा गांव या क्षेत्र के प्रभावशाली समझे जाने वाले व्यक्तियों की कैद से आजाद हों। यह भी सच है कि इस तरह के गोत्र विवाद सामने आने पर ज्यादातर राजनीतिक दल मौन धारण कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें वोट बैंक के खिसकने का डर रहता है। ऐसे मामलों में अक्सर देखा यही गया है कि जब खाप पंचायतें किसी प्रेमी युगल और उनके परिजनों के खिलाफ कोई फरमान जारी करती हैं तो पुलिस- प्रशासन इसे घरेलू या पारिवारिक मामला है कहकर चुप्पी साध लेती है और कानूनी कदम उठाने के बजाय अधिकांश मामलों में वह सुलह कराने के फेर में रहती है।
अब जबकि एक कठोर फैसला सामने आया है क्या खाप पंचायतें कानून को अपने हाथ में लेने से डरेंगी? ऐसा लगता तो नहीं क्योंकि ताजा समाचार के अनुसार खाप पंचायत ने मनोज बबली मामले में अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए लोगों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है, इतना ही नहीं खाप पंचायत सजा पाए सभी को समाज के लिए आदर्श मानती है और उन्होंने चंदा अभियान शुरु कर दिया है ताकि वे एकत्र धन से सजा पाए व्यक्तियों के परिवारों को आर्थिक सहायता दे सकें। खाप ने यह प्रस्ताव भी पास किया है कि सरकार हिन्दु कोड बिल में संशोधन करे और एक ही गोत्र के विवाह को अवैधानिक घोषित करे। इन सबके साथ उन्होंने यह घोषणा भी कर दी है कि जो राजनीतिक पार्टियां खाप के विरूद्ध होंगी उन्हें वे वोट नहीं देंगे।
यह भी सत्य है कि सिर्फ कानून और पुलिस के जरिए किसी भी रूढि़वादी परंपरा को खत्म नहीं किया जा सकता। जिस दिन मनोज और बबली की हत्या के मुकदमे में उपरोक्त फैसला आया उसी दिन पंजाब में वैसे ही मामले में एक प्रेमी युगल की हत्या कर दी गई। हफ्ते भर बाद हरियाणा में ही एक 16 वर्षीय युवती को पड़ोसी युवक से प्रेम करने के अपराध में उसके बड़े भाई द्वारा फांसी पर लटका दिया गया! अत: ऐसी किसी भी रुढि़ को जड़ से उखाडऩे के लिए समाज की मानसिकता में बदलाव जरुरी है। इसके लिए अत्यावश्यक है कि सामाजिक संगठन एवं राजनीतिक दल सामने आएं। कुछ सामाजिक संगठन तो समाज में फैली इन कुरीतियों के विरुद्ध देश में काम कर रही हैं पर अफसोस की बात है कि हमारे देश में राजनीतिक दल इस प्रकार का कोई कार्य नहीं करते। इस सच्चाई को हम सब स्वीकार करते हैं कि जिस प्रकार से हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में एक बड़ा वर्ग गोत्र संबंधी रूढिय़ों से ग्रसित है उसी तरह देश के अन्य हिस्सों में भिन्न- भिन्न तरह की कई कुरीतियां व्याप्त हैं, ऐसी ही अंधविश्वास जनित एक अत्यंत बर्बर एवं शर्मनाक प्रथा है टोनही जो छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में व्याप्त है, इसके चलते निरीह असहाय स्त्रियों को धूर्तों द्वारा टोनही घोषित कर दिया जाता है और उसकी निर्मम हत्या कर दी जाती है। ऐसी ही एक निर्मम परंपरा है कन्या भ्रूण हत्या। इस अत्यंत अमानवीय और लज्जा जनक कुप्रथा का सबसे ज्यादा प्रभाव पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे देश के सबसे समृद्ध क्षेत्र में देखा जाता है। वैसे तो इन सभी रूढिय़ों, कुरीतियों के खिलाफ नियम- कानून बने हुए हैं, लेकिन वे कितने प्रभावी हैं यह हम सभी जानते हैं। अत: जरुरत है राजनीतिक दलों द्वारा भी समाज सुधार के कार्यक्रमों को अपने राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल करना चाहिए।

- रत्ना वर्मा

2 comments:

राजेश उत्‍साही said...

रत्‍ना जी विडम्‍बना तो यह है कि खाप पंचायत के कर्ताधर्ताओं पर अभी भी कोई असर नहीं पड़ा है। उन्‍होंने पंचायत करके यह फैसला किया है कि वे कोर्ट के फैसले को नहीं मानेंगे। यह विचारणीय है कि क्‍या हम सचमुच 21 वीं सदी में हैं।

छत्तीसगढ़ पोस्ट said...

बेहतरीन रिपोर्ट..शुभकामनाएं..