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Apr 19, 2010

मुआयना

मुआयना- हरदर्शन सहगल
तो आप हैं इंचार्ज साहब, यह काली- काली बैट्रियां कमरे में कितनी भद्दा लग रही हैं। इन्हें बाहर खिड़की के पास रखवाइए।
चोरी हो जाने का डर है।
हूं चोरी! कोई मजाक है। तब मैं अपनी जेब से रकम भर दूंगा।
फिर मुआयना।
मुझे तुम्हारा तार मिला। तो करवा दी चोरी। वाह मैंने कहा था, रकम भर दूंगा। खूब, तुम सबने मिलकर सचमुच बैट्रियां चोरी करवा दीं। हर रोज एक आदमी की पेशी होगी।
दसवें रोज।
तुम लोगों को अब क्या पुलिस की पेशियां करवाऊं। आखिर स्टाफ बच्चों के समान होता है। यह लो सात सौ रुपए। खरीद लाओ नई बैट्रियां। लिख दूंगा, दूसरे दफ्तर वाले बिना बताए ले गए थे। मिल गई। वार्निंग ईशू कर दी।
मुआयना खत्म हुआ। साहब का टीए- डीए छब्बीस सौ से कुछ ऊपर बैठा था।
आश्वस्त
'तो अब मैं चलूं?'
'ठीक है, परसों अपने कागज ले जाइएगा।'
'काम हो जाएगा ना? '
'आप घुमाफिराकर यही बात और कितनी बार पूछेंगे।'
'आप बुरा मत मानिए साहब, बस जरा...'
'यकीन नहीं होता, यही ना...'
'विश्वास तो सभी पर रखना पड़ता है, पर...'
'कह तो दिया आपका काम हो जाएगा। अब आप ही बताइए आपको कैसे विश्वास दिलाऊं? '
'बस, आप जरा पचास का यह नोट रख लीजिए।'
गम
शहर के जाने माने पत्रकार बल बलादुर सिंह ने अखबार के लिए एक दिलेराना (बोल्ड) लेख लिखा।
इन दिनों, माफियाओं ने अंधेर मचा रखा था। यह लोग दलित वर्ग की ज़मीनें हड़पने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे थे। सामंत गरीब स्त्रियों की इज्ज़त लूट रहे थे।
बल बलादुर सिंह ने ऐसी घटनाओं का ब्यौरा आंकड़ों सहित लिख डाला। जिन माफियाओं ने आग लगवाई थी, और जिन लोगों ने औरतों को बेइज्ज़त किया था, उन सबके नाम भी लिख डाले थे।
किंतु यह सब लिख चुकने के बाद, बल बलादुर घबरा गए। इसलिए अपना नाम लिखने की बजाए उन्होंने एक सामान्य- फ र्जी नाम चुन लिया। रामचंद सोनगरा। बस्ती का नाम सच्चा। लेखक का नाम झूठा।
लेख छपते ही तहलका मच गया। फर्जी नाम का जीवित प्राणी रामचंद सोनगरा गुंडों के कहर का शिकार हुआ। वह बहुतेरा कहता रहा कि उसने ये लेख नहीं लिखा। पर पिटाई- ठुकाई होती रही। तब उसने कहा, कर लो, क्या कर लोगे। मैंने ही लिखा है। जान से मार डालोगे। मार डालो। इसमें झूठ क्या है।
इतने में कुछ लोगों और पुलिस का हस्तक्षेप हुआ। रामचंद सोनगरा को अस्पताल में दाखिल कराया गया। उसके बहुत चोटें लगी थीं। स्थानीय नेताओं के प्रभाव से कुछ गिरफ्तारियां भी हुई थीं।
दूसरे दिन के समाचार पत्र में यह विवरण पढ़कर बल बलादुर सिंह को खुशी हुई।
शहर के पिछड़े वर्ग के समर्थन में कुछ और लोग आए। एक समिति का गठन हुआ। सभी ने एक मत से रामचंद सोनगरा को उस समिति का अध्यक्ष चुना।
अन्याय, अत्याचारों के विरुद्ध किए जाने वाले क्रियाकलाप की सूचनाएं आने लगीं। संगोष्ठियां होने लगीं। दलितों की बहुत सारी ज़मीनें मुक्त करा ली गईं वे सार्वजनिक नलों से पानी भरने लगे। यह सब रामचंद के कुशल नेतृत्व में हो रहा था।
आठ माह बाद राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा हुई, दलित मुक्ति संघर्ष के लिए रामचंद सोनगरा को 51 हजार रुपए का पुरस्कार मिला।
पढ़कर बल बलादुर सिंह ने माथा पीट लिया।
संपर्क - 5-ई संवाद, डुप्लेक्स कॉलोनी , बीकानेर -334003 (राजस्थान)

1 comment:

राजेश उत्‍साही said...

हरदर्शन जी की आश्‍वस्‍त लघुकथा सही मायने में लघुकथा है,जो अंत में ले जाकर पाठक को चौंकाती है। बधाई। पहली और तीसरी लघुकथाएं कमजोर हैं।तीसरी को और मारक बनाया जा सकता है।