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Apr 27, 2009

वे अपने खर्च कम कर रही हैं

वे अपने खर्च कम कर रही हैं
- रमेश मेनन
मंदी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है, दुर्भाग्यवश बुरा दौर अभी आना है ! ये बात कई कामकाजी महिलाओं के बीच चिंता का विषय बनी हुई है।
क्या लगता है कि ये मंदी का दौर कब तक रहेगा? ये सवाल हर कोई पूछ रहा है। विशेषज्ञ इस बारे में कुछ पक्का नहीं पक्का नहीं बता पा रहे हैं, पर उनका कहना है कि मंदी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है, दुर्भाग्यवश बुरा दौर अभी आना है! ये बात कई कामकाजी महिलाओं के बीच चिंता का विषय बनी हुई है, उनमें से कई अपने ऑफिस में मंदी का असर देख रही हैं। ज्यादातर महिलाओं के लिए ये समस्या बिल्कुल नई है और वे इससे सख्ती से निबटना सीख रही हैं। इसके लिए वे अपने खर्चे कम कर रही हैं, अपनी जीवनशैली को बदल रही हैं, ऐसा शायद उन्होंने पहले कभी न किया हो।
भारत उन देशों में से है जिन पर वैश्विक आर्थिक संकट का असर कम पड़ा है- पश्चिम में अर्थव्यवस्था पहले ही मंदी झेल रही हैं - पर लाखों परिवारों ने तुरंत स्थिति को समझते हुए अपने खर्चों को कम कर दिया।
बेशक, इस नई प्रवृति का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं, जिन्हें घर खर्च चलाना होता है। कई महिलाओं ने गैर-जरुरी खर्चों को टाल दिया है।
इस नए माहौल में महिलाएं अपने पतियों को नए काम में हाथ डालने से बचने की सलाह दे रही हैं। वे परिवार का पैसा पुराने व भरोसेमंद बैंकों में निवेश कर रही हैं और मंहगी छुट्टियों की योजना को उन्होंने फिलहाल टाल दिया है। कईयों ने तो मनोरंजन, बाहर खाना खाने और नए कपड़े खरीदने जैसे पारिवारिक खर्चों को कतर दिया है। इसके अलावा बिजली व ईंधन के गैर-जिम्मेदराना इस्तेमाल से बचने पर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है।
दिल्ली में रह रहीं 46 वर्षीय श्रीदेवी सुंदराजन एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ में पब्लिक रिलेशन एक्सीक्यूटिव हैं, वे कहती हैं, 'मंदी और नौकरियों में कटौती के बाद भाविष्य को लेकर काफी अनिश्चितता बनी हुई है। मैंने किसी भी बड़े खर्चे को रोक दिया है। मुझे अपने घर का नवीकरण कराना था, ये काम काफी समय से लटका हुआ था और इसके लिए मैंने अलग से पैसा बचा रखा था, पर अब मैं इंतजार करुंगी। अब मैं अपने घर- खर्च का हिसाब करुंगी ये देखने के लिए कि कहां कटौती की जा सकती है। अब मैं हर चीज में सस्ते विकल्प तलाशती रहती हूं, हालांकि परिवार में हम सिर्फ दो लोग ही हैं।'
अचानक, भारतीय मध्यम वर्ग के सपने महज सपने ही लगने लगे हैं। हर साल कर्मचारी अपनी वार्षिक वेतन वृद्घि का इंतजार करते हैं। इस साल परिस्थितियां कुछ अलग हैं। छोटे व्यवसाय से लेकर बड़े उद्योग तक में वेतन में कटौती एक आम बात हो गई है। हाल ही में एक टीवी चैनल के हैड ने अपने कर्मचारियों को लिखा कि टॉप मैनेजमेंट अपने वेतन में 20 प्रतिशत की कटौती के लिए राजी हो गया है। इसका मतलब ये था कि अब बाकी कर्मचारियों को भी इसके लिए तैयार रहना होगा।
इस संकट का एक और असर पड़ा वो ये था कि महिलाएं इस बार साल के अंत में होने वाली सेल की तरफ आकर्षित नहीं हुईं - आमतौर पर ये त्योहार के मौसम और नए साल का मुख्य आकर्षण होता है। आर्थिक अनुशासन एक ऐसा सिद्घांत है जिसे बहुत से लोग आने वाले कठिन समय को ध्यान में रखते हुए दृढ़ता से अपना रहे हैं।
पूना की एक रियल एस्टेट कंपनी नाइट फ्रेंक में सीनियर मैनेजर 27 वर्षीय रजनी प्रधान ने अब सेलफोन से ज्यादा लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है। उन्होंने बाहर खाना खाने, लोगों से मिलने-जुलने पर होने वाले खर्चें कम कर दिए हैं, कुक को हटा दिया है।
रजनी के कहने पर अब उनके पति अपने व्यवसाय से जुड़े लोगों को खाने के लिए किसी रेस्त्रां में ले जाने की बजाय घर पर डिनर कराते हैं, और इस तरह उन्होंने अपने खर्चों में कटौती की। उनके पति आलोक के पास तीन -तीन मोबाइल फोन थे, उनमें से दो फोन वे शायद ही कभी इस्तेमाल करते थे, पर हर महीने उनका बिल आता था। रजनी ने अब उन दोनों फोनों से छुटकारा पा लिया। रजनी कहती हैं, 'हालांकि , कुक से छोडऩे के लिए कहना इतना आसान नहीं था, क्योंकि इससे मेरे ऊपर और जिम्मेदारियां आ जाती, पर हमें इनसे निबटना सीखना होगा।'
और ऐसा नहीं है कि रजनी मंदी से सिर्फ घर पर ही लड़ रही हैं, ऑफिस में भी वे इस बात का ख्याल रखती हैं कि अगर कंप्यूटर्स का इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो वे बंद हों। इसके अलावा अपनी कुशलता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कई जिम्मेदारियां संभाल ली हैं, और सबसे अहम बात, ऐसा वे अपनी नौकरी बचाने के लिए कर रही हैं। इसके अलावा और भी कई छोटे-मोटे बदलाव किए हैं, जैसे अब अगर उन्हें काम के सिलसिले में मुंबई जाना होता है तो वे आरामदायक टैक्सी की बजाय बस या ट्रेन से जाती हैं ।
नई दिल्ली में बतौर मीडिया एंड ब्रांड कंसल्टैंट कार्यरत 44 वर्षीय सुलीना मेनन को अपने कई दोस्तों की नौकरी जाते देख बुरा लगता है, चूंकि लागत में कटौती का दौर चल रहा है। वे जानती हैं कि ये सिर्फ समय की बात है और इसका असर उस पर भी पड़ सकता है। वे एक फ्रीलंासर के तौर पर काम कर रही हैं और हो सकता है आने वाले समय में उन्हें भी प्रोजेक्ट मिलने कम हो जाएं। वे चेतावनी देती हैं, 'हम सभी को इसके लिए कमर कस लेनी चाहिए।'
अमेरिका में कुछ महीने पहले नील्सन कंज्यूमर रिसर्च ने द नील्सन ऑनलाइन ग्लोबल कंस्यूमर सर्वे किया, जिसमें 28, 663 इंटरनेट उपभोक्ताओं में से 27 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में सिर्फ 11 प्रतिशत महिलाओं को लगा कि मंदी जल्दी समाप्त हो जाएगी। भारत में ऐसा कोई सर्वे नहीं किया गया, पर यहां हालात कुछ अलग नहीं हैं। महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा चिंतित दिखती हैं।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में की गई एक स्टडी बताती है कि अगर उच्च पदों पर ज्यादातर महिलाएं होतीं तो वैश्विक आर्थिक संकट का फैलाव और असर शायद कम होता। 'मैनेजिंग रैडिकल चैंज' की लेखिका डा. गीता पिरामल इस बात से सहमत होंगी : 'गहराई से सोचना, सच्चा होना, अपने हाथ गंदे करने और आगे आकर किसी भी चीज का सामना करना, पोषण करना व संभालना, ये एक औरत की पारंपरिक विशेषताएं हैं, पर ये संकट के समय में उभर कर आती हैं।
महिलाएं जीवनशैली में कई बदलाव ला रही हैं और जानती हैं कि वेतन में कमी कभी भी हो सकती है। फिर भी घबराने की कोई बात नहीं है। वे जानती हैं कि पैसे के संकट से बचने के लिए आर्थिक अनुशासन जरुरी है, निवेश करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेनी होगी और व्यावसायिक कुशलता को बढ़ाना होगा जिससे कि वे ऑफिस में 'अतिरिक्त' की श्रेणी में न आएं।
श्रीदेवी की तरह कुछ लोग स्मार्ट तरीके से निवेश करके मंदी से फायदा उठा रही हैं। तेजी के दौर में वे किसी ब्लू चिप कंपनी के शेयर नहीं खरीद पाई , चूंकि अब कीमतें काफी कम हैं इसलिए श्रीदेवी के कहने पर उनके पति बेहतर शेयर खरीदने के लिए रिसर्च कर रहे हैं । (विमेन्स फीचर)

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