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Jan 19, 2009

सुनीता वर्मा -रंग मुझे अपनी ओर बुलाते हैं

सुनीता वर्मा -रंग मुझे अपनी ओर बुलाते हैं
सुनीता वर्मा के चित्रों को देखना यानी प्रकृति से साक्षात्कार करना है। चटख रंग उनकी पेंटिंग की खासियत है। वे जीवन के किसी भी पक्ष को अपने केनवास पर उतार रहीं हों, फूल- पत्तियां, पेड़- पौधे, सूरज, चंद्रमा, नदी पहाड़, चिडिय़ा उनके आस-पास विचरते रहते हैं। छत्तीसगढ़ की बेटी होने के नाते वे अपनी लोक संस्कृति के भी बहुत करीब हैं। उनके चित्रों में लोक की गमक बखूबी नजर आती है- राऊत नाचा, सुआ नृत्य, मेले मड़ई आदि तीज त्योहारों का चित्रांकन।
सुनीता वर्मा अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से रंग और प्रकृति के साथ पारंपरिक दृश्य एवं लोक जीवन को एक नया रूप तो देती ही हैं लेकिन वे किसी एक 'फ्रेम' या शैली में बंधकर काम करने वाली चित्रकार नहीं हं। पिछले दो दशक से पेंटिंस की दुनिया से जुड़ी सुनीता इन दिनों अपनी नौकरी से चुराए हुए वक्त का पूरा इस्तेमाल पेंटिंग्स बनाने में करती हैं। उनके घर में चारो ओर बिखरे रंग ब्रश और केनवास किसी चित्रशाला का आभास देते हैं।
चित्रकला में अपनी दिलचस्पी को बताते हुए सुनीता अपने बचपन के दिनों में खो जाती हैं- मेरे जमाने में हायर सेकेन्ड्री के बाद अच्छी पढ़ाई का मतलब डॉक्टर या इंजीनियर ही बनना होता था, माता पिता चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं। तभी मुझे अपनी दोस्त के साथ खैरागढ़ के इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय जाने का मौका मिला, वहां के कलात्मक और संगीतमय माहौल को देखकर मुझे लगा कि कला के क्षेत्र में भी पढ़ाई की जा सकती है, कैरियर बनाया जा सकता है। मैं वहां संगीत और कला के माहौल से अभिभूत हो गई, मुझे महसूस हुआ मानो यहां से मेरी आत्मा का कुछ जुड़ाव है।
प्रकृति के बहुत करीब सुनीता की प्रत्येक पेंटिंग कुछ न कुछ कहने का प्रयास करती हैं। वे कहती हैं कि - मैं बताना चाहती हूं कि अनेक विसंगतियों के बाद भी जीवन खूबसूरत है। मैं अपनी हर पेंटिंग में एक ऐसा स्पेस रखती हूं जहां व्यक्ति अपने को महसूस कर सकें। अपनी 'विंडोज' (खिडक़ी) शृंखला पेंटिंग के माध्यम से उन्होंने इस स्पेस को बखूबी अभिव्यक्त किया है। 'विंडोज' शृंखला के बारे में उनकी बड़ी गहरी सोच है- विंडोका सीरीज मेरे अंदर तब जन्मा जब मुझे लगा कि मैं दुनिया को एक कोने से जाकर नहीं देख सकती, तब मैंने सोचा कि उसे इस खिडक़ी से देखना होगा। विंडो मेरे लिए एक तरह से विद्रोह का प्रतीक भी है, कि मुझे इस खिडक़ी से झांक कर दुनिया की खूबसूरती देखना है।

सुनीता के चित्रों के प्रत्येक रंग कुछ कहते हुए मालूम पड़ते हैं- मेरी पेंटिंग में रंग थीम के साथ आते जाते है। यदि मैं रात की पेंटिंग बना रही हूं तो अपने आप रात के कलर पेंटिंग में ढलते जाते हैं और दिन का दृश्य बना रही हूं तो उजले रंग उसमें समाते जाते हैं। पेंटिंग चाहे रात का हो या दिन का सुनीता उनमें चटख रंगों का इस्तेमाल करती हैं। सुनीता कहती हैं कि- मैं ज्यादातर एक्रिलिक रंगों का प्रयोग करती हूं और मुझे जलरंग (वाटर कलर्स) ज्यादा पसंद हैं क्योंकि यह बहता हुआ रंग है और प्रकृति के बहुत करीब भी, इसमें आप तय नहीं कर सकते कि क्या बनना है। इसमें मुझे रंगों से खेलने का आनंद मिलता है। ये रंग मुझे अपनी ओर बुलाते हुए से प्रतीत होते हैं और यह मुझे अपने स्वभाव के अनुकूल लगता है।

सुनीता अपने गुरूओं को धन्यवाद देना कभी नहीं भूलतीं जिनकी वजह से आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया। खैरागढ़ में पढ़ाई के दौरान वख्यात चित्रकार के. के. हेब्बार चित्रकला विभाग के निमंत्रण पर विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आए हुए थे, मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। भारत भवन भोपाल में आर्टिस्ट फार आर्टिस्ट स्कालरशिप के दौरान जे. स्वामीनाथन जैसे प्रख्यात चित्रकार के साथ काम करने का अवसर मिला। इनके अलावा के.एस.कुलकर्णी, वाय.के. शुक्ला, दिलीपदास गुप्ता, विकास भट्टाचार्य, महेश चंद्र शर्मा आदि गुणी कलाकारों ने चित्रकला की बारिकियों को समझने में मेरी मदद की।
सुनीता के पसंदीदा चित्रकारों में अमृता शेरगिल, सूजा , रजा, अर्पणा कौर, अर्पिता सिंह जैसे चित्रकार शामिल हैं। सुनीता को जब भी कोई बात बेचैन करती है वह रंग और ब्रश लेकर रंगों से बातें करते हुए अपनी इस बेचैनी को दूर कर लेती हैं। उनका विश्वास है कि हर पेंटिंग सुख- दुख के भाव से मुक्त कर देती है और मन में उमड़ती- घुमड़ती भावनाएं किसी कहानी की तरह उतरती चली जाती है। सच भी है उनकी हर पेंटिंग एक पूरी कहानी है। (उदंती फीचर्स)

परिचयः जन्म: 1964, छत्तीसगढ़ राजनांदगांव में
शिक्षा : इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स।
पुरस्कार : मध्य दक्षिणी सांस्कृतिक केंद्र नागपुर में फोक एंड ट्राइबल पेंटिंग पुरस्कार।
अखिल भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला में कालिदास पुरस्कार तथा कई राज्य स्तरीय सम्मान। प्रदर्शनी : पांच एकल प्रदर्शनी, पहली प्रदर्शनी 1982 में इंदौर में, इसके बाद रायपुर, भिलाई, भोपाल, जबलपुर, उज्जैन के साथ देश के सभी बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, केरल, कोलकाता, कोचीन, नागपुर आदि में समूह प्रर्दशनी। साथ ही कई राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी प्रतियोगिता एवं चित्रशाला में भागीदारी।
सम्प्रति : दिल्ली पब्लिक स्कूल भिलाई में आर्ट टीचर।
पता : 8-सी, सडक़ नं. 76, सेक्टर-6, भिलाई - 490006
मोबाईल: 098279 34904

1 comment:

pritima vats said...

all paintings are very nice. Sunita ji you are a real artist.
thanks