हमारी दुनिया अद्भुत जैव विविधताओं से भरी पड़ी है, हम अपने चारों ओर विभिन्न प्रकार के पक्षी, जानवर और पेड़ पौधों से घिरे हुए हैं। जैव विविधता के संतुलन के लिए हाथी जितने महत्त्वपूर्ण हैं उतनी ही महत्त्वपूर्ण चींटियाँ हैं।
यह विविधता पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी तो है ही, साथ ही स्वास्थ्य पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए तथा हमारे जीवन की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी उतने ही महत्त्वपूर्ण है।
इनमें से किसी एक की भी कमी हमारे जीवन को किस हद तक प्रभावित कर सकती है यह हम जानते हुए भी या तो इस बात को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं या फिर मतलबपरस्त मनुष्य प्रगतिशीलता में इतने खो गया है कि चाह कर भी नहीं सोच पाने के लिए विवश हो गया है।
आज हम अक्सर सुनते हैं कि फलाँ- फलाँ जीव लुप्त हो चुके हैं या लुप्तप्राय के कगार पर हैं। कुछ जीवों की कुछ प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं और कुछ ही बची हैं। ।
ऐसे ही लुप्तप्राय जीवों में तितलियों की कुछ प्रजातियाँ भी शामिल हैं। यह मुद्दा नजरअंदाज करने का नहीं है; बल्कि सोचनीय है।सोचिए कि जिन तितलियों के पीछे भागते हुए हमारा बचपन बीता है। अब उनमें से कुछ दिखाई नहीं देती हैं, तो कुछ प्रजातियाँ ही खत्म हो गई हैं। क्या हम हमारे बच्चें या आने वाली पीढ़ियों को अधूरा पर्यावरण या एक असंतुलित पारिस्थितिकी तंत्र सौंपेंगे? ज़रा सोचिए!
क्योंकि इनके लुप्तप्राय होने के पीछे हम मानव और हमारी विकराल रूप से बढ़ती हुई जनसंख्या है। बढ़ती जनसंख्या और मानवीय अतृप्त आवश्यकताओं ने इस कदर अपनी बाहें फैला दी कि धरती पर दूसरे जीवों के हक़ का भी ध्यान नहीं रखा है। इंसानों के बढ़ते हस्तक्षेप के बेहिसाब जंगलों का कटना, शहरों का विकास, कीटनाशकों का प्रयोग, बेतरतीब वाहन से निकलते प्रदूषण, नदियों में मिलते खतरनाक रासायनिक पदार्थ आदि ने अनेकों जीव के आवास को क्षतिग्रस्त किया। आवास के अभाव में कई जीवों में प्रजनन क्षमता प्रभावित होते होते लुप्तप्राय के कगार पर पहुँच गए हैं।
तितलियाँ सिर्फ हमारे मनोरंजन के लिए, घर में सजाने या खेलने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
यह बात हम और आप सब जानते होंगे कि कि बगैर परागकण के पौधे फल तथा बीज नहीं दे सकते।
यह पारितंत्र की दूसरी सेवा है जो मधुमक्खी, गुंज, मक्षिका, पक्षी और चमगादड़ के अलावा तितलियों जैसे परागकणकारियों द्वारा की जाती है।
क्या आपने कभी सोचा है कि अगर यह नहीं होंगे तो परागण कौन करेगा?इनकी अनुपस्थिति में कृत्रिम परागण की लागत कितनी आएगी?
शायद हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। फिर भी जरूर सोचिए।
इसके अलावा हम प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सुन्दर तितलियों के मनमोहक रंगों और आकर्षक सौंदर्य प्रकृति का आनंद उठाते हैं। उद्यानों और वनों में घूमते हुए तरह- तरह के नायाब चीजों को देखते हैं। वसंत ऋतु में पेड़ों पर लदे हुए फूलों में इठलाती, मँडराती तितलियों को निहारते हुए, हम जिस अनुभूति से गुजरते हैं वह अवर्णनीय है। क्या इस अनुभव और आनंद की कीमत कोई लगा सकता है? शायद कभी नहीं।
वेबदुनिया.काम की एक रिपोर्ट में भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण के अनुसार भारत में तितलियों की 1,318 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईसीयूएन) के अनुसार भारत में तितलियों की 35 प्रजातियाँ अपने अस्तित्व के लिहाज से गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।
अगर तितलियाँ पृथ्वी से खत्म हो जाएँ, तो सेब से लेकर कॉफी तक कई खाद्य फसलों के स्वाद से हम वंचित हो जाएँगे। तितलियाँ जब फूलों का रस पीकर परागण करती हैं तो फूलों का रूपांतरण फल में संभव हो पाता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार दुनिया की 75 फीसदी खेती परागण पर निर्भर करती है। पर्यावरणविदों का मानना है कि तितलियों के खत्म होने का असर दूसरे जीवों पर भी पड़ सकता है; क्योंकि उनके अंडे से बने लार्वा और प्यूपा कई दूसरे जीवों का भोजन होते हैं।पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार हमारे आवास को रहने योग्य बनाने के लिए आसपास के वातवरण का इकोसिस्टम को बनाए रखना जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कीट- पतंग, तितलियाँ, मकड़ियाँ जैसे कीड़े-मकोड़ों का होना। इसलिए दूसरे देशों की तरह हमारे देश में भी तितली उद्यान बनाए जा रहे हैं, ताकि स्थिर तथा निष्पक्ष इकोलॉजिकल बैलेंस बना रहे। तितलियों कि संख्या सीधे तौर जैव विविधता कि पूरक है। जितनी ज्यादा तितलियाँ हमारे आस-पास होंगी उतना ही अच्छा और मजबूत हमारा पारिस्थितिक तंत्र होगा।
छत्तीसगढ़ में करीब किलोमीटर के दायरे में फैले कांगेर वैली नेशनल पार्क में छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा तितली पार्क है, जिसे तितली जोन कहा जाता है। यहाँ की खासियत यह है कि बारह महीनों यहाँ अलग-अलग प्रजाति के रंग-बिरंगी तितलियों को देखा जा सकता है।
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