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Sep 1, 2022

यात्रा संस्मरणः गढ़ मुक्तेश्वर- गंगा मैया की आरती का अद्भुत नजारा

 - अंजू खरबंदा

गंगा जयंती के पावन अवसर पर गढ़ मुक्तेश्वर, जिसे गढ़ गंगा भी कहा जाता है, जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परमानन्द कालोनी के पास स्थित ढक्का गाँव से हर माह बस द्वारा किसी न किसी तीर्थ स्थान पर जाने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। सखी मुकेश के घर जाना हुआ, तो बातों ही बातों में पता चला कि वे लोग कल गढ़ गंगा जा रहे हैं। मेरे ये पूछने पर कि क्या कोई सीट खाली है, तो मुकेश मुझे अपने उन परिचित के घर लेकर गई, जिनके पास सीट की जानकारी थी। उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले ही किसी ने अपनी एक सीट कैंसिल की है। मुझे लगा मानो ये मेरे लिए गंगा मैया के बुलावे का ही संकेत था, मैंने झट उसी समय अपने लिए सीट बुक करा ली।

सारी संगत अगले दिन सुबह साढ़े नौ बजे ढक्का स्कूल के पास स्थित मदर डेयरी के पास एक घने वृक्ष के नीचे एकत्र हो गई ... काफ़ी इंतजार के बाद बस साढ़े दस बजे आई और लगभग पौने ग्यारह बजे हम लोग रवाना हुए। बस ‘कश्मीरी गेट’ बस अड्डे ,

अक्षरधाम से गाजियाबाद होती हुई सवा दो बजे जिला हापुड़ स्थित गढ़ मुक्ततेश्वर पहुँची । रास्ते भर संगत ने खूब भजन कीर्तन किया। कुछ महिलाओं को तो सैकड़ों भजन कंठस्थ थे। वे भजन गाने में इतनी रम जाती कि बस के छोटे से कॉरिडोर में ही मगन हो नाचने लगती। सभी भजनों के साथ ताली बजा आनंद में डूबे हुए थे। मेरे लिए इस तरह का ये पहला अवसर था... भजनों की लय ताल कानों में रस घोल रही थी।

जब हम गढ़ गंगा पहुँचें, मई की कड़कती धूप सिर पर थी, पर गंगा मैया के दर्शन की उमंग ने कड़ी धूप के अहसास को  हम पर बिलकुल भी भारी नहीं पड़ने दिया। बस वाले ने पार्किंग में बस रोकी, वहाँ से गढ़ गंगा की दूरी कम से कम पौन किलोमीटर होगी। संगत में लगभग हर उम्र की महिलाएँ थी - पच्चीस से लेकर सत्तर वर्ष तक की! सभी के चेहरे पर गंगा मैया के दर्शन का जोश साफ दिखलाई पड़ रहा था। पौना किलोमीटर रास्ता जैसे पल भर में कट गया... कइयों ने रिक्शा पर जाने की बात कीपरन्तु सभी को पैदल देख वे भी साथ हो लीं। बाजार से गुजरते हुए बैंड बाजे के साथ नाचते- गाते लोग दिखे, बाद में पता चला कि गंगा जयंती के अवसर पर गंगा तीरे रात आठ बजे होने वाले भव्य कार्यक्रम की तैयारी का ये एक हिस्सा है।

गंगा मैया के नजदीक पहुँचते ही सभी के चेहरे यूँ खिल गएमानो कोई खोया खजाना मिल गया हो। सभी ने वहाँ बिछे तख्तपोश पर सामान रखा... दो तीन महिलाओं को सामान की निगरानी का निर्देश दे बाकी महिलाएँ गंगा मैया की गोद में अठखेलियाँ करने को पूरे जोश- खरोश से दौड़ी।

सभी ने एक दूसरे का हाथ थाम खूब डुबकियाँ लगाईं। कुछ महिलाओं ने दस, कुछ ने बीस, कुछ ने पचास तो मुकेश तथा एक बुजुर्ग माँजी ने तो पूरी एक सौ आठ डुबकियाँ लगाई। एक बार स्नान कर मन नहीं भरा, तो डुबकियों का दूसरा दौर चला। काफ़ी देर तक गंगा मैया की गोदी में खेल एक- एक कर सभी घाट पर आए, कपड़े बदले। पहले कुछ महिलाएँ अपनी साड़ी या दुपट्टे से घेरा बना लेती और एक- एक कर बाकी महिलाएँ उस घेरे में कपड़े बदल लेतींलेकिन इस बार एक बढ़िया बदलाव देखने को मिला... वहाँ पर महिलाओं की सुविधा के लिए थोड़ी- थोड़ी दूरी पर एलम्युनियम के छोटे- छोटे बॉक्स बना दिए गए हैं, ताकि उन्हें कपड़े बदलने में कोई परेशानी न हो।

कपड़े बदल शृंगार कर सभी महिलाओं ने पंडित जी के पास बैठ पूजा अर्चना की, उन्हें दान दक्षिणा दी फिर सभी ने गंगा मैया में दीपक प्रवाहित कर घर-संसार के लिए सुख समृद्धि की कामना की।

सुबह से घर से निकले थे, अब पेट में चूहे भी दौड़ने लगे... घाट पर उपयुक्त जगह ढूँढ सभी ने इत्मीनान से बैठ घर से लाया भोजन किया। अब चाय की तलब जगी, तो बाजार की ओर चल दिए, एक टपरी पर बैठ गर्म- गर्म चाय का आनंद लिया और फिर बाजार की रौनक देखने चल दिए। आमने- सामने खूब सारी दुकानें सजी हुई थीं... चूड़ियाँ, मंगलसूत्र, सिंदूर, मोतियों की माला, मूर्तियाँ, खिलौने, लकड़ी से बना सामान, चाबी के छल्ले और भी जाने क्या- क्या! पूरा बाजार मनमोहक सामानों से अटा पड़ा था। महिलाएँ शॉपिंग न करेंतो बाजार बंद न हो जाएँ! सो सभी महिलाओं ने अपनी- अपनी पसंद के हिसाब से सामान खरीदा और वापिस घाट पर आ गईं।

समय देखा, अभी तो पाँच ही बजे थे। आरती शुरू होने में अभी डेढ़ घंटा बाकी था। कुछ महिलाएँ घाट की सीढ़ियों पर बैठ गपशप में मशगूल हो गईं, तो कुछ घाट पर रखे तख्तपोशों पर अधलेटी हो सुस्ताने लगीं। मैं और मुकेश घाट पर चहलकदमी करते हुए गंगा मैया को जीभर निहारती रहीं। छह बजने को थे... जहाँ हम सभी बैठे थे, वहाँ पीछे की ओर विशाल शामियाना लगा हुआ था, लाउडस्पीकर की तेज आवाज ने हमारा ध्यान उस ओर खींचा। हम लोग वहाँ गए, तो देखा खूब सारी कुर्सियाँ पड़ी थीं, बड़े बड़े कूलर चल रहे थे और पानी की फुहार फेंकने वाले विशाल पंखे ठंडी- ठंडी हवा दे रहे थे। सामने भव्य स्टेज सजाया जा रहा था और कुछ आर्टिस्ट एक विशाल मगरमच्छ को पेंट कर रहे थे, कुछ पल को समझ न पाई कि ऐसा क्यों किया जा रहा है, फिर मेरा ध्यान सामने लगे बड़े बोर्ड पर गया, जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में ‘माँ गंगा जन्मोत्सव समारोह’ लिखा हुआ था, बाईं ओर गंगा मैया मगरमच्छ पर विराजमान थी और दायीं ओर भोले भंडारी का चित्र बना हुआ था, तब पहली बार मुझे पता चला कि गंगा मैया की सवारी मगरमच्छ है।

मैं अभी इसी ध्यान में खोई थी कि तेज आवाज सुन आसमान की ओर ध्यान गया, तो क्या देखा कि एक पैराशूट द्वारा फूलों की वर्षा की जा रही है। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे देवता स्वयं पुष्प वर्षा कर रहे हों।

ऐसा सुंदर नजारा था कि शब्दों में बयान करना कठिन है... तभी सामने बने घंटाघर की घड़ी ने साढ़े छह बजाए और सभी आरती के लिए गंगा मैया की ओर दौड़े।

अद्भुत नजारा था, पल भर को लगा साक्षात् स्वर्ग के द्वार पर खड़ी हूँ, फूलों से सजा पंडाल, सामने गंगा मैया की तेज धाराओं का मधुर संगीत, पीतल के घंटे की कर्णप्रिय ध्वनि के बीच विशाल दीपों द्वारा आरती का भव्य नजारा... पलकें जैसे झपकना ही भूल गईं थीं...!

सम्पर्कः 207 द्वितीय तल, भाई परमानन्द कालोनी, दिल्ली 110009, फोन 9582404164

6 comments:

Anju Kharbanda said...

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुतिकरण
चित्रों की साज सज्जा से यात्रा संस्मरण जीवंत हो उठा
हृदयतल से आभार आ0

Anonymous said...

बहुत सुंदर सजीव चित्रण प्रस्तुत करता संस्मरण। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

Anju Kharbanda said...

हार्दिक आभार प्रिय दी 🌹

Anonymous said...

सुंदर ,सजीव चित्रण
एक पल को लगा मानो सब कुछ महसूस हो रहा है। जय गंगा मईया की🙏

Anonymous said...

बहुत खूबसूरत वर्णन, गंगा आरती जैसे जीवंत हो उठी।

प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' said...

अंजु ज़ी, 'बहुत सुंदर संस्मरण | मैं तो इस स्थान का नाम भी पहली बार सुनी। पढ कर जाने की इच्छा बलवती होने लगी।