हिन्दी में हाइकु लेखन का प्रचलन पिछले दशक में
तेजी से बढ़ा है, यह न केवल छत्तीसगढ़ी अपितु अन्य राज्य
भाषाओं में भी दिखाई देता है। इधर हाइकु कविता में सिद्धहस्त छत्तीसगढ़ में बसना
शहर के लोकप्रिय कवि श्री रमेश कुमार सोनी नित नए - नए प्रयोगों के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनका नूतन प्रयोग अब ‘ताँका संग्रह’ के रूप में प्रस्तुत हुआ है,वह भी छत्तीसगढ़ी में।
श्री सोनी का यह संग्रह छत्तीसगढ़ी का प्रथम
‘ताँका संग्रह’ है। यह छत्तीसगढ़ की समृद्धि और उसके विस्तार के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
हाइकु में जहाँ 5-7-5 अक्षर विन्यास रहता है, वहीं ताँका में 5-7-5-7-7 अक्षर विन्यास का प्रयोग
होता है और कुल 31अक्षर पाँच लाइनों में होते हैं। यह हाइकु
का विस्तार ही है। कवि रमेश कुमार सोनी ने अपने इस संग्रह में न केवल काफिया
निभाना है अपितु पंक्तियों के मध्य अर्थ -समन्वय और भाव- प्रवीणता का साम्य भी
निभाया है। एक उदाहरण देखिए -
चल संगी/ खरसी मं
गाँजबो / पसीना जम्मो / बियारा ले बजार / कर्जा बांचेच हावे।
कवि श्री सोनी में अपने इस संग्रह में छत्तीसगढ़ की लोककला, संस्कृति, जनजीवन और विविध समस्याओं को उकेरा है।
छत्तीसगढ़ में व्याप्त समस्याओं विशेषकर गाँव-किसान की समस्याओं को संवेदना के साथ
प्रस्तुत किया है। बारीक से बारीक सांस्कृतिक प्रतीकों और ग्रामीण जन-जीवन की
विशेषताओं को चित्रित करना, वह भी एक खास अनुशासन में कोई
रमेश जी से सीखे-
जुआँ बीनय / ननंद के भउजी / किस्सा सुना के
/ भाँवर ल पारही / नोनी के सिक्छा पूरा ।
‘हरियर मड़वा’ में न केवल
समस्याएँ और लोक-संस्कार चित्रित होकर पाठकों को छत्तीसगढ़ को गहराई से
जानने-समझने में सहायता करते हैं अपितु शैक्षिक और सामाजिक संदेश भी देते हैं।
आपकी कविताओं में पहटिया अर्थात राउत राजा की तरह है, बाज़ार
में आ रही विसंगतियाँ हैं, छेरछेरा, होली,
बिहाव गीत हैं, तो साग-सब्जी, कपड़े-लत्ते और गाँव के खेल भी हैं। ऐसे ही गुम होती परंपराओं के प्रति
चिंता भी है।
खुसी के बेरा /
बरवाही कस हे / पाबे त जान/ जल्दी सिरा जाथे जी / जोर-जोर के रख।
नदांबथे जी / ढेंकी, जांता, नांगर / नवा
जांगर / नंगा लेथे विदेशी / मोर साँझ सोनहा।
इस तरह इस संग्रह में विषय वैविध्य तो है परंतु चारों ओर छत्तीसगढ़
ही-छत्तीसगढ़ की खुशबू है। इस नए प्रयोग को छत्तीसगढ़ तक लाने पहुँचाने, सजने-सँवारने और छत्तीसगढ़ी की संप्रेषणीयता के विविध आयाम खोलने के लिए
कवि श्री रमेश कुमार सोनी को बधाई -
डंगचगहा / भूख डोरी
नाचय / तमाशा बने / पईसा ल बलाय / चिल्हर सकेलथे।
पैरी, सोंढूर / महानदी में मिले / पापी ल तारे /
जीयत धान पाके / मरे हाड़ा सरोथें।
कवि ने पाठकों को उनकी अपनी छत्तीसगढ़ी में स्वयं को जानने समझने का पुनः
अवसर दिया है।
पुस्तक- हरियर
मड़वा - छत्तीसगढ़ी ताँका संग्रह, ताँकाकार- रमेश कुमार
सोनी, बसना , प्रकाशक-
वैभव प्रकाशन- रायपुर (छत्तीसगढ़) 2019, मूल्य- 200/-, पृष्ठ –
88
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