सेहत
वायु प्रदूषण से आँखें न चुराएँ
मोटर गाड़ियों, उद्योगों आदि से निकलने वाले बारीक कण
स्वास्थ के लिए हानिकारक हैं। पिछले पच्चीस सालों में वैज्ञानिकों ने यह सम्बंध
स्थापित किया है और उनकी कोशिशों से वायु प्रदूषण को रोकने के कानून सख्त हुए हैं।
विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि हर साल बाह्य वायु प्रदूषण से 42 लाख लोगों की मृत्यु होती है। लेकिन हाल ही में कई देशों
में वायु प्रदूषण को असमय मौतों से जोड़ने वाले अध्ययन हमले की चपेट में हैं।
जैसे अमेरिका में प्रशासन द्वारा विभिन्न पर्यावरणीय और स्वास्थ्य सम्बन्धी
नियमों को खत्म किया जा रहा है। वायु-गुणवत्ता मानकों
पर अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी को सलाह देने वाले एक विज्ञान पैनल में भी
वायु गुणवत्ता के मानकों और बारीक कणों के असमय मृत्यु से सम्बन्ध को लेकर मतभेद हो गए। यह कहा गया कि
बारीक कणों का असमय मृत्यु से सम्बन्ध संदिग्ध है।
फ्रांस, पोलैंड और भारत सहित अन्य देशों में भी
वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभाव की बात पर संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं।
जर्मनी में 140 फेफड़ा विशेषज्ञों
ने एक वक्तव्य में वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड्स तथा बारीक कणों के
स्वास्थ्य पर असर को लेकर शंका ज़ाहिर की है। वक्तव्य में इस बात से तो सहमति जताई
गई है कि उच्च प्रदूषण वाले इलाकों में
लोग दमा वगैरह से ज़्यादा मरते हैं; किंतु साथ ही यह
भी कहा गया है कि ज़रूरी नहीं कि इनके बीच कार्य-कारण सम्बन्ध हो।
अलबत्ता, पिछले महीने जर्मन राष्ट्रीय विज्ञान
अकादमी ने स्पष्ट कहा है कि नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स बीमारियों की दर में तो वृद्धि
करते ही हैं, बारीक कणों के निर्माण में भी योगदान
देते हैं। ये कण साँस और हृदय सम्बन्धी रोगों और फेफड़ों के कैंसर के कारण असमय मौत
का कारण बनते हैं।
ये निष्कर्ष दशकों में एकत्र किए गए साक्ष्य के आधार पर निकाले गए हैं। 1993 में हारवर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के
शोधकर्ताओं ने छह अमेरिकी शहरों में प्रदूषण के प्रभावों के संदर्भ में पाया था कि
साफ वायु में रहने वाले लोगों की तुलना में प्रदूषित वायु वाले शहरों के लोगों के
मरने की दर अधिक होती है जिसका मुख्य कारण वायु में बारीक कण की उपस्थिति है। 2017 में 6.1 करोड़ लोगों पर किए गए एक अध्ययन तथा बाद के कई अध्ययनों ने
भी यही दर्शाया है।
अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी को सलाह देने वाले एक विज्ञान पैनल के
अध्यक्ष टॉनीकॉक्स और अन्य संशयवादी अक्सर तर्क देते हैं कि महामारी विज्ञान के
प्रमाण यह साबित नहीं कर सकते कि वायु- प्रदूषण असमय
मौत का कारण है। लेकिन वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि इन सबूतों को अन्य प्रमाणों
के साथ देखने की ज़रूरत है।
वैज्ञानिकों ने उन प्रक्रियाओं की पहचान की है जिनके जरिए सूक्ष्म कण स्वास्थ्य
को प्रभावित करते हैं, और साथ ही उन्होंने प्रयोगशाला विधियों,
चूहों और मानव
अध्ययनों में इन प्रभावों का विश्लेषण भी किया है। नए-नए प्रमाणों के साथ कई देशों ने अपने प्रदूषण नियंत्रण
कानूनों में सुधार भी किए हैं।
आज दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक
आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जो डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित वायु-गुणवत्ता के दिशा- निर्देश सीमाओं को तोड़ते हैं। प्रदूषण अभी भी भारत और चीन
जैसे देशों में प्रमुख शहरों का दम घोंट रहा है। यह समय हवा को साफ करने के
प्रयासों को कम करने का या प्रदूषण से जुड़े निष्कर्षों पर सवाल उठाने का नहीं
बल्कि इनको मज़बूत करने का है। (स्रोत फीचर्स)
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