संकल्प लेने का समय
– डॉ. रत्ना वर्मा
चुनावी महापर्व खत्म हो गया और अब गर्मी अपना प्रचंड रूप दिखा रही है। तापमान 50 डिग्री के पार चले जाने का मतलब हम सब जानते हैं। हमरे देश
में विकास की बातें करने वाले और देश की जनता का भविष्य सँवाँरने के लिए बड़े- बड़े वादे करने वाले हमारे जनप्रतिनिधि, काश पर्यावरण और प्रदूषण को भी अपने
चुनावी एजेंडे में शामिल करते, तो देश और देश के
लोगों के प्रति की जा रही उनकी चिंता में कुछ गंभीरता दिखाई देती। अफसोस कि प्रकृति, जिसकी वजह से हम सबका वजूद है के प्रति
चिंता करने की जिम्मेदारी कुछ वैज्ञानिकों और कुछ संस्थाओं के हवाले करके पूरी
दुनिया के राजनीतिज्ञ अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं।
ग्लोबलवॉर्मिंग के चलते बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, चक्रवात, धरती पर दिन- ब- दिन बढ़ती गर्मी
से दुनिया भर का पर्यावरण बिगड़ गया है। दुःखद है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन
करते हुए विकास का डंका बजाने वाले दुनिया के भर के देश अपने को सर्वश्रेष्ट साबित
करने की होड़ में लगे हुए हैं, सबको पता हैं कि
इन सबका परिणाम विनाश ही है फिर भी पर्यावरण और प्रदूषण गरीबी तथा बेरोजगारी की
समस्या की तरह मुख्य मुद्दा कभी भी नहीं बन पाता।
पर्यावरण पर होने वाले वैश्विक शिखर सम्मेलनों में भी दुनिया भर में एक देश दूसरे
देश पर दोषारोपण करके बात खत्म कर देते हैं, हल किसी के पास नहीं होता क्योंकि सबके अपने- अपने अलग अलग स्वार्थ हैं। ग्लोबलवॉर्मिंग का जिम्मेदार
विकसित देश विकासशील देश को और विकासशील देश विकसित देशों को ठहराते हैं। यह सारी
दुनिया के लिए खतरनाक है। तब से अब तक के सालों में ये खतरे और अधिक बढ़ रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भारत को सबसे ज्यादा जोखिम
वाले देशों में रखा गया है।
प्रदूषित होती धरती के पीछे मानव निर्मित ऐसे स्वार्थ हैं, जो वे पीढ़ी दर पीढ़ी हम करते चले जा रहे हैं। सिमटते जंगल, नाले के रूप में तब्दील होती नदियाँ,
विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन ये
सब हमारी आगामी पीढ़ी के लिए अभिशाप है? दुखद यह है कि यह सब, सबको पता है लेकिन कोई इस पर गंभीर नहीं
होता। जनता भी चुपचाप सब देखती रह जाती है। शायद यही कारण है कि देश के किसी भी
राजनैतिक दल के अहम मुद्दों में ऐसे विषय शामिल ही नहीं होते।
पानी की समस्या भी और अधिक विकारल होती जा रही है। हमारे देश के किसान जो पानी
के लिए मौसम पर ही निर्भर हैं, उनकी समस्या का
निपटारे की क्या तैयारी हैं? वर्षा जल के संचय
के लिए कोई ठोस योजना आज तक नहीं बन पाई है देश के सभी मकानों में हारवेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य किया गया है; पर स्वयं शासकीय भवनों में यह लागू नहीं हो सका है, तो आम जनता कैसे इसका पालन करेगी। कुएँ, तालाब, पोखर के लिए अब जब गाँव में जगह नहीं बच रही है, तो शहरों का कौन पूछे। गर्मी के मौसम में पीने के पानी की
समस्या ने तो विकराल रूप धारण कर लिया है, क्या भविष्य में इसका कोई हल निकल पाएगा? पर्यावरण असंतुलन
से हिमखण्ड पिघल रहे हैं। पृथ्वी पर 150 लाख वर्ग कि.मी. में करीब 10
प्रतिशतहिमखंड ही
बचे हैं।
अब भी हम नहीं चेते ,तो बहुत देर हो
जाएगी। हमें अब तो जागरूक होना ही होगा और यह सवाल उठाने ही होंगे कि हमारी सरकार
ने देश के विकास के नाम पर ,जो वादे किए हैं, क्या वेपर्यावरण के लिए सही है?
औद्योगीकरण से
लेकर यातायात से होने वाले प्रदूषण को घटाने के लिए हमारी सरकार ने क्या योजना
बनाई है? मेट्रो शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही
है; इस पर नियंत्रण के लिए क्या तैयारी है? देश की राजधानी दिल्ली टोक्यो और शंघाई
के बाद दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है, प्रदूषण के चलते लोग दिल्ली छोड़कर जाना चाहते हैं। बेरोजगारी से मजबूर होकर लोगों को पलायन करते
तो देखा है पर प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य के चलते अपना घर छोड़ना पड़े ,यह पहली बार हो रहा है। सेहत से जुड़ी तमाम नई-नई परेशानियाँभी मौसमी बदलावों की ही
देन हैं। इस संकट से निपटने के लिए कौन सी योजना उनके पास है?
दुनिया भर के विकसित और विकासशील देशों में इसको लेकर अब जाकर कुछ चिन्ता जरूर
देखी जा रही है॥ इसका ताज़ा उदाहरण
है -फीलीपींस जहाँ की सरकार ने पर्यावरण
बचाने के लिए ये अनोखा कानून लागू किया है कि प्रत्येक छात्र कम से कम 10
पेड़ लगाएँगे,तभी उनको विश्वविद्यालयों की तरफ से स्नातक की डिग्री दी
जाएगी। फिलीपींस की सरकार ने यह कानून इसलिए लागू किया है,
क्योंकि भारी
मात्रा में वनों की कटाई से देश का कुल वन आवरण 70 फीसदी से घटकर 20
फीसदी पर आ गया
है। इस कानून के तहत सरकार ने देश में एक साल में 175 मिलियन से अधिक
पेड़ लगाने, उनका पोषण करने और उन्हें विकसित करने
का लक्ष्य रखा है। हर छात्र को अपने स्नातक की डिग्री पाने के लिए कम से कम 10
पेड़ लगाना
अनिवार्य है। इस कानून को ‘ग्रेजुएशनलीगेसीफॉर द इन्वायरन्मेंटएक्ट’
नाम दिया है,
जिसे फिलीपींस की
संसद में सर्वसम्मति से पास किया गया। यह कानून कॉलेजों,
प्राथमिक स्तर के
स्कूलों और हाई स्कूल के छात्रों के लिए भी लागू होगा। सरकार ने वो इलाके भी चुन
लिये हैं, जहाँ पेड़ लगाए जाएँगे। चयनित क्षेत्रों में
मैनग्रोववनक्षेत्र, सैन्य अड्डे और शहरी क्षेत्र के इलाके
शामिल हैं। स्थानीय सरकारी एजेंसियों को इन पेड़ों की निगरानी की जिम्मेदारी दी गई
है। फीलीपींस की यह योजना प्रशंसनीय और अपनाने योग्य है। प्रश्न उठता है कि क्या
भारत सरकार इस तरह की कोई योजना पास कर सकती है; जो देश की बिगड़ते प्रर्यावरण को सुधारने में सहायक बने?
कुल मिलाकर सवाल यही है कि इंसानी लापरवाही से तबाह होती जा रही धरती को बचाने
के लिए, जीवनदायी जंगल, पहाड़, नदियाँ,
कुएँ , तालाब और पोखरों को पुनर्जीवित करने के लिए हम सबको
एकजुट होना होगा; अन्यथा वह दिन
दूर नहीं है जब हम अपने ही बनाए, आग उगलते
क्रांक्रीट के इस जंगल में जल कर भस्म हो जाएँगे।
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