अभियानः
अनुपयोगी जमीन पर उगाए जाएँगे पेड़
जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए केंद्र सरकार पेड़ उगाने की एक नई योजना लाने जा रही है। प्रस्तावित 'जलवायु निवेश योजना’ के तहत बेकार पड़ी जमीन पर बेशकीमती लकड़ी देने वाले पेड़ों को उगाने की अनुमति दी जाएगी।
इस लकड़ी का इस्तेमाल फर्नीचर में हो सकेगा। योजना का लक्ष्य बड़े पैमाने पर पेड़ उगाकर 2030 तक 2.5
अरब टन कार्बन डाईआक्साइड को सोखना है। योजना सार्वजनिक उपक्रमों और किसानों की आय में भी इजाफा भी करेगी।
'ट्री कवर’ एरिया बढाने का लक्ष्य
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण सचिव सी. के. मिश्रा ने बताया कि कार्बन सोखने के लिए वनों का विस्तार किया जाना है। वन क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए प्रयास हो रहे हैं। लेकिन उसमें संभावनाएँ सीमित हैं। इसलिए 'ट्री कवर’ बढ़ाने की योजना तैयार की जा रही है।
पेड़ उगाना जंगल बसाने की तुलना में कहीं आसान है और इससे लोगों की आय भी बढ़ाई जा सकती है क्योंकि देश में बड़े पैमाने पर ऐसी कृषि भूमि है जिसमें खेती नहीं होती है। इस भूमि का इस्तेमाल हम फर्नीचर में इस्तेमाल होने वाले ऐसे पेड़ उगाने के लिए कर सकेंगे जिसकी देश में बड़ी मांग है।
एक अनुमान के अनुसार देश में फर्नीचर के लिए प्रतिवर्ष 45 हजार करोड़ रुपये की लकड़ी आयात होती है। इसकी वजह यह है कि वनों को काटने की मनाही है। इसके अलावा फर्नीचर के लिए उपयुक्त प्रजातियों की उपलब्धता देश में कम है।
10 लाख एकड़ सरकारी जमीन का उपयोग नहीं
सरकारी महकमे और सार्वजनिक उपक्रमों की 10 लाख एकड़ से भी ज्यादा जमीन बेकार पड़ी है। देश में कुल भूभाग का 60 फीसदी हिस्सा कृषि भूमि है। लेकिन इसमें से 88 फीसदी हिस्से का ही खेती के लिए इस्तेमाल होता है। बाकी बेकार पड़ी रहती है। करीब 22 फीसदी भाग में वन हैं जिन्हें 33 फीसदी करने का लक्ष्य वन नीति में है लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद इस दिशा में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी है।
किसानों को अतिरिक्त आय
पर्वतीय क्षेत्रों के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी लोग खेती-बाड़ी छोड़ रहे हैं क्योंकि परंपरागत फसलों को उगाने में लागत नहीं निकल पाती है। जबकि पेड़ों से किसानों को अच्छी आय हो सकती है। जलवायु निवेश योजना के तहत सार्वजनिक उपकरणों, सरकारी महकमों, किसानों को अनुपयुक्त पड़ी जमीन पर कीमती लकड़ी देने वाले पेड़ों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके तहत जो पेड़ उगेंगे उन्हें काटने की अनुमति होगी। ताकि उन्हें बेचने के बाद किसान फिर से उनकी खेती कर सकें। इससे जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में भी मदद मिलेगी। पेड़ कार्बन सोखते हैं। पेड़ उगेंगे और कटते रहेंगे। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहगी
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