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Dec 18, 2015

जार्ज पंचम की नाक

कहानी कला के उस्ताद कमलेश्वर
  कथाकार कमलेश्वर की कहानी जार्ज पंचम की नाक हिन्दी कहानी संसार की अद्भुत प्रस्तुति मानी जाती है। जार्ज पंचम की मूर्ति की टूटी हुई नाक के बहाने कहानीकार ने स्वतंत्र देश के लिए लडऩे वाले महापुरुषों और आजाद देश के बच्चों को जिस तरह याद किया है उससे कहानी में कई दिशाओं की यात्राओं का प्रस्थान बिन्दु पाठक पाता है। आजाद देश के परतंत्र मानस के प्रतिनिधियों की खाल उधेडऩे का करिश्मा भी कमलेश्वर ने इस कहानी में काफी पहले कर दिखाया था। कहानी कला के उस्ताद कमलेश्वर की यह कहानी उनकी सैकड़ों कहानियों में से एक है। कमलेश्वर नई कहानी त्रयी के विलक्षण प्रतिनिधि थे। मध्यमवर्गीय जीवन के अमर शिल्पी कमेश्वर ने मानवीय संबंधों के खोखलेपन पर अपनी कहानियों में बखूबी कटाक्ष भी किया है।
छत्तीसगढ़ से कमलेश्वर को विशेष लगाव था। पं. माधवराव सप्रे की कहानी एक टोकरी भर मिट्टीको हिन्दी की पहली कहानी के रूप में उन्होंने स्थापित किया। साहित्य अकादमी की पहल पर किताबघर से प्रकाशित चार खंडों के ऐतिहासिक दस्तावेज में यह कहानी के रूप में ससम्मान दर्ज है। प्रस्तुत है कथा शिल्पी कमलेश्वर की अद्भुत कहानी जार्ज पंचम की नाक


        जार्ज पंचम की नाक
यह बात उस समय की है जब इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिन्दुस्तान पधारने वाली थी। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज लंदन के अखबारों से खबरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए कैसी- कैसी तैयारियां हो रही हैं। रानी एलिजाबेथ का दर्जी परेशान था कि हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर रानी कब क्या पहनेंगी? उनका सेक्रेटरी और शायद जासूस भी उनके पहले ही इस महाद्वीप का तूफानी दौरा करनेवाला था। आखिर कोई मजाक तो था नहीं, जमाना चूंकि नया था, फौज- फाटे के साथ निकलने के दिन बीत चुके थे, इसलिए फोटोग्राफरों की फौज तैयार हो रही थी।
इंग्लैंड के अखबारों की कतरनें हिन्दुस्तानी अखबारों में दूसरे दिन चिपकी नजर आती थीं- कि रानी ने एक ऐसा हल्के रंग का सूट बनवाया है जिसका रेशमी कपड़ा हिन्दुस्तान से मंगाया गया है कि करीब चार सौ पौंड खर्चा उस सूट पर आया है।
रानी एलिजाबेथ की जन्मपत्री भी छपी। प्रिंस फिलिप के कारनामे छपे और तो और उनके नौकरों, बावर्चियों, खानसामों, अंगरक्षकों की पूरी की पूरी जीवनियां देखने में आयीं। शाही महल में रहने और पलनेवाले कुत्तों तक की तस्वीरें अखबारों में छप गयीं...
बड़ी धूम थी, बड़ा शोर- शराबा था, शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूँज हिन्दुस्तान में आ रही थी।
इन अखबारों से हिन्दुस्तान में सनसनी फैल रही थी... राजधानी में तहलका मचा हुआ था। जो रानी पांच हजार रुपए का रेशमी सूट पहनकर पालम के हवाई अड्डे पर उतरेगी, उसके लिए कुछ तो होना ही चाहिए। कुछ क्या, बहुत कुछ होना चाहिए। जिसके बावर्ची पहले महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान- शौकत के क्या कहने... और वही रानी दिल्ली आ रही है...
नई दिल्ली ने अपनी तरफ देखा और बेसाख्ता मुंह से निकल गया- वह आये हमारे घर, खुदा की रहमत... कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं, और देखते- देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा।
और करिश्मा तो यह था कि किसी ने किसी से नहीं कहा, किसी ने किसी को नहीं देखा, पर सड़कें जवान हो गयीं, बुढ़ापे की धूल साफ हो गयी। इमारतों ने नाज़नीनों की तरह शृंगार किया।
लेकिन एक बड़ी मुश्किल पेश थी... वह थी जॉर्ज पंचम की नाक।... नई दिल्ली में सब कुछ था, सब कुछ होता जा रहा थासब कुछ हो जाने की उम्मीद थी, पर जॉर्ज पंचम की नाक की बड़ी मुसीबत थी। नई दिल्ली में सब कुछ था... सिर्फ नाक नहीं थी।
इस नाक की भी एक लम्बी दास्तान है। इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे किसी वक्त। आंदोलन हुए थे। राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए थे। चंदा जमा किया था। कुछ नेताओं ने भाषण भी दिए थे, गर्मागर्म बहसें भी हुई थीं। अखबारों के पन्ने रंग गए थे। बहस इस बात पर थी कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए। और जैसा कि हर राजनीतिक आंदोलन में होता है- कुछ पक्ष में थे, कुछ विपक्ष में थे और ज्यादातर लोग खामोश थे। खामोश रहने वालों की ताकत दोनों तरफ थी...।
यह आंदोलन चल रहा था। जॉर्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे... क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुंच जाए। हिन्दुस्तान में जगह- जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं और जिन तक लोगों के हाथ पहुंच गए उन्हें शानो- शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुंचा दिया गया। शाही लाटों की नाकों के लिए गुरिल्ला युद्ध होता रहा।
उसी जमाने में यह हादसा हुआ। इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट की नाक एकाएक गायब हो गयी। हथियार बंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे, गश्त लगाते रहे... और लाट की नाक चली गई।
रानी आये और नाक न हो। ... एकाएक यह परेशानी बढ़ी। बड़ी सरगर्मी शुरु हुई। देश के खैरख्वाहों की एक मीटिंग बुलायी गयी और मसला पेश किया गया कि क्या किया जाए? ... वहां सभी एकमत से इस बात पर सहमत थे कि अगर यह नाक नहीं है, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी...।
उच्च स्तर पर मशविरे हुए। दिमाग खरोंचे गये और यह तय किया गया कि हर हालत में नाक का होना बहुत जरूरी है। यह तय होते ही एक मूर्तिकार को हुक्म दिया गया कि वह फौरन दिल्ली में हाजिर हो।
मूर्तिकार यों तो कलाकार था, पर जरा पैसे से लाचार था, आते ही उसने हुक्कामों के चेहरे देखे... अजीब परेशानी थी उन चेहरों पर - कुछ लटके हुए थे, कुछ उदास थे और कुछ बदहवास थे, उनकी हालत देखकर लाचार कलाकार की आंखों में आंसू आ गये...। तभी एक आवाज सुनाई दी-  मूर्तिकार। जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है।
मूर्तिकार ने सुना और जवाब  दिया- नाक लग जाएगी, पर मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहां बनी थी? इस लाट के लिए पत्थर कहां से लाया गया था?’
सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ ताका... एक की नजर ने दूसरे से कहा कि यह बताना  तुम्हारी जिम्मेदारी है। खैर, मसला हल हुआ, एक क्लर्क  को फोन किया गया और इस बात की पूरी छानबीन करने का काम सुपुर्द कर दिया गया पर कुछ भी पता नहीं चला, क्लर्क ने लौटकर कमेटी के सामने कांपते हुए, बयान किया- सर। मेरी खता माफ हो, फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।
हुक्कामों के चेहरे पर उदासी के बादल छा गये। एक खास कमेटी बनायी गयी और उसके जिम्मे यह काम दे दिया गया कि जैसे भी हो यह काम होना है और इस नाक का दारोमदार आप पर है। आखिर मूर्तिकार को फिर बुलाया गया... उसने मसला हल किया दिया। वह बोला - पत्थर की किस्म का ठीक पता नहीं चलता तो परेशान मत होइए... मैं हिन्दुस्तान के हर पहाड़ पर जाऊंगा और ऐसा ही पत्थर खोजकर लाउंगा।कमेटी के सदस्यों की जान में जान आई। सभापति ने चलते- चलते गर्व से कहा- ऐसी क्या चीज है जो अपने हिन्दुस्तान में मिलती नहीं, हर चीज इस देश के गर्भ में छिपी है ... जरूरत खोज करने की है... खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी। आने वाला जमाना खुशहाल होगा।
वह छोटा सा भाषण फौरन अखबारों में छप गया। मूर्तिकार हिन्दुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल पड़े। कुछ दिन बाद वह हताश लौटे। उनके चेहरे पर लानत बरस रही थी।
उन्होंने सिर लटकाकर खबर दी - हिन्दुस्तान का चप्पा- चप्पा खोज डाला, पर इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है।
सभापति ने तैश में आकर कहा- लानत है आपकी अक्ल पर। विदेशों की सारी चीज हम अपना चुके हैं... दिल- दिमाग, तौर- तरीके और रहन- सहन... जब हिन्दुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता।
मूर्तिकार चुप खड़ा था। सहसा उसकी आंखों में चमक आ गयी। उसके कहा, ‘एक बात मैं कहना चाहूंगा, लेकिन इस शर्त पर कि यह बात अखबारवालों तक न पहुंचे...
सभापति की आंखों में भी चमक आई। चपरासी को हुक्म हुआ और कमरे के सब दरवाजे बंद कर दिए गए। तब मूर्तिकार ने कहा- देश में अपने नेताओं की मूर्तियां भी हैं... अगर इजाजत हो... अगर आप लोग ठीक समझें, तो मेरा मतलब है, तो जिसकी नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे उतार लाया जाए...
सबने सबकी तरफ देखा, सबकी आंखों में एक क्षण की बदहवासी के बाद खुशी तैरने लगी। सभापति ने धीमे से कहा  लेकिन बड़ी होशियारी से।
और मूर्तिकार फिर देश- दौरे पर निकल पड़ा, जॉर्ज पंचम की खोयी हुई नाक का नाप उसके पास था। दिल्ली से वह मुम्बई पहुँचा... दादा भाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी कावस जी, जहांगीर... सबकी नाके उसने टटोली, नापीं और गुजरात की ओर भागा- गांधीजी, सरदार पटेल, विट्ठलभाई पटेल, महादेव देसाई की मूर्तियां को परखा और बंगाल की ओर चला। गुरु रविन्द्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय आदि को भी देखा, नाप-जोख की और बिहार की तरफ चला, बिहार होता हुआ उत्तरप्रदेश की ओर आया- चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय की लाटों के पास गया... घबराहट में मद्रास भी पहुंचा, सत्यमूर्ति को भी देखा और मैसूर- केरल आदि सभी प्रदेशों का दौरा करता हुआ पंजाब पहुंचा। लाला लाजपतराय और भगत सिंह की लाटों से भी सामना हुआ। आखिर दिल्ली पहुंचा और अपनी मुश्किल बयान की- पूरे हिन्दुस्तान की मूर्तियाँ की परिक्रमा कर आया, सबकी नाकों का नाप लिया, पर जॉर्ज पंचम की इस नाक से सब बड़ी निकलीं।
सुनकर सब हताश हो गए और झुंझलाने लगे, मूर्तिकार ने ढांढस बंधाते हुए आगे कहा, सुना था कि बिहार सेक्रेटेरियट के सामने सन बयालीस में शहीद होने वाले तीन बच्चों की मूर्तियां स्थापित हैं। शायद बच्चों की नाक ही फिट बैठ जाए, यह सोचकर वहां भी पहुंचा... पर उन तीनों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं, अब बताइए, मैं क्या करूं?
... राजधानी में सब तैयारियाँ थीं। जार्ज पंचम की लाट को मल- मलकर नहलाया गया था। रोगन लगाया था। सब कुछ था, सिर्फ नाक नहीं थी।
बात फिर बड़े हुक्कामों तक पहुंची। बड़ी खलबली मची-  अगर जार्ज पंचम के नाक न लग पायी तो फिर रानी का स्वागत करने का मतलब? यह तो अपनी नाक कटानेवाली बात हुई।
लेकिन मूर्तिकार पैसे ले लाचार था... यानी हार माननेवाला कलाकार नहीं था। एक हैरतअंगेज खयाल उसके दिमाग में कौंधा और उसने पहली शर्त दुहराई। जिस कमरे में कमेटी बैठी हुई थी, उसके दरवाजे फिर बंद हुए और मूर्तिकार ने अपनी नयी योजना पेश की - चूंकि नाक लगना एकदम जरूरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए...
बात के साथ ही सन्नाटा छा गया। कुछ मिनटों की खामोशी के बाद सभापति ने सबकी तरफ देखा। सबको परेशान देखकर मूर्तिकार कुछ अचकचाया और धीरे से बोला आप लोग क्यों घबराते हैं? यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए... नाक चुनना मेरा काम है ... आपकी सिर्फ इजाजत चाहिए।
कानाफूसी हुई और मूर्तिकार की इजाजत दे दी गयी।
अखबारों में सिर्फ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जार्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।
नाक लगने के पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आस- पास का तालाब सुखाकर साफ किया गया। उसकी खाब निकाली गयी और ताजा पानी डाला गया, ताकि जो जिंदा नाक लगायी जाने वाली थी, वह सूखने न पाए, इस बात की खबर औरों को नहीं थी, ये सब तैयारियां भीतर- भीतर चल रही थीं, रानी के आने का दिन नजदीक आता जा रहा था। मूर्तिकार खुद अपने बताए हल से परेशान था। जिंदा नाक के लाने के लिए उसने कमेटीवालों से कुछ और मदद मांगी। वह उसे दी गयी, लेकिन हिदायत के साथ कि एक खास दिन हर हालत में नाक लग जाएगी।
और वह दिन आया।

जार्ज पंचम के नाक लग गयी।
सब अखबारों ने खबरें छापीं कि जार्ज पंचम के जिंदा नाक लगायी गयी है...यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती।
लेकिन उस दिन के अखबारों में एक बात गौर करने की थी। उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी। किसी ने कोई फीता नहीं काटा था। कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी। कहीं भी किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था। कोई मानपत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई थी। किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत समारोह नहीं हुआ था। किसी का ताजा चित्र नहीं छपा था।
सब अखबार खाली थे।
पता नहीं ऐसा क्यों हुआ था?
नाक तो सिर्फ एक चाहिेए थी, और वह भी बुत के लिए।

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