आधुनिकता और परम्परा का संगम
- सुकांत दास
घर में समृद्धता के लिए गाँव के देव
स्थलों, घर
के पूजा स्थल, भंडार, रसोई और
जैसे पवित्र स्थानों पर मिट्टी के दीये जलाकर सुख समृद्धि की कामना आज भी की जाती
है और मिट्टी के दिए जलाना शुभ माना जाता है। परंतु दीपावली के हमारे प्रमुख पर्व
जिसमें चहुं ओर सिर्फ मिट्टी के दीये ही जलाए जाते थे वहां एक- दो दीपक अंधेरे में
झिलमिलाते नजर आते हैं। शहरों की तो बात ही निराली है वहां बिजली के झालरों और
मोमबत्तियों ने मिट्टी के दीपक के महत्ता ही खत्म कर
दी है।
आज स्थिति यह है कि मिट्टी के
बर्तनों को प्लास्टिक के बने सामानों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। जिन
स्थानों पर मिट्टी के बर्तन उपयोग में लाए जाते थे, आज वहां प्लास्टिक के बर्तन उपयोग हो रहे
हैं। मिट्टी के बर्तन में सबसे अधिक उपयोग चाय पीने के लिए और शादी विवाह जैसे
कार्यों में पानी पीने के लिए कुल्हड़ का ही अब तक प्रयोग होता चला आया था। लेकिन
पिछले कुछ वर्षों से पानी और चाय पीने के लिए प्लास्टिक के गिलासों के चलन ने इस
व्यवसाय को बिल्कुल नष्ट सा कर दिया है। तात्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद प्रसाद
यादव ने जब रेलवे स्टेशनों पर मिट्टी के कुल्हड़ में चाय बेचने की घोषणा की थी तब
कुम्हारों को एक बल मिला था कि हाथ से खिसकता पैतृक व्यवसाय बचा रहेगा। लेकिन उनका
आदेश मात्र छलावा ही बन कर रह गया।
ऐसा नहीं है कि कुम्हार अपने जीवन के
लिए संघर्ष नहीं कर रहा है, जमाने के साथ वह भी अपने व्यवसाय को आधुनिक
बना रहा है और लोगों की रुचि को देखते हुए पारंपरिक दीये के साथ- साथ विभिन्न
डिजाइनों के दिये खूबसूरत दिये बनाकर ग्राहकों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश कर रहा
है। जब उन्होंने देखा कि समय बदल रहा है और मंहगे होते तेल की कीमतों के कारण दिये
में तेल डालकर रौशनी करना संभव नहीं रह गया है तो उन्होंने भी बाजार की नब्ज को
समझा और अपनी कला को परंपरा से जोड़े रखने के लिए खूबसूरत नक्काशीदार कैंडल स्टेंड
का निर्माण करना आरंभ कर दिया, ताकि लोग इन मिट्टी के कैंडल स्टैंड में
मोमबत्ती लगाकर अपनी दीवाली को रोशन करें। बस्तर के कारीगर जो मिट्टी में कलाकारी
करने के लिए जग- प्रसिद्ध हैं आजकल नए प्रयोग के साथ अपनी कला और व्यवसाय दोनों को
जिंदा रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं। काफी हद तक उन्हें सफलता भी मिली है। बस जरुरत
प्रोत्साहन और अच्छा बाजार देने की है। अफसोस तो तब होता है जब उनकी कला को मिट्टी
है कहकर मिट्टी के मोल की तरह आंका जाता है।
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