-ज़किया ज़ुबैरी
कब्र का मुनाफ़ा तेजेन्द्र शर्मा का नवीनतम कहानी संग्रह है जिसमें उनकी नई पुरानी तेरह कहानियां संग्रहीत हैं। कहानी संग्रह की भूमिका में ममता कालिया कहती हैं, 'तेजेन्द्र शर्मा की क़लम से कहानियां फुलझडिय़ों की तरह छूटती हैं, जि़न्दगी से ठसाठस भरी, घटनाओं की धकापेल के साथ भारत और परदेश के अनुभवों के ताने- बाने में बंधी और बुनी हुई हैं। इन कहानियों से रचनाकार की बेचैनी, बेबाकी और जि़न्दादिली तीनों का पता चलता है।'
संग्रह की सभी कहानियों में तेजेन्द्र के नारी पात्र एक विशेष पहचान बनाते हुए उभर कर आते हैं। कथाकार धीरेन्द्र अस्थाना ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के बारे में बहुत साल पहले कहा था, 'परकाया प्रवेश में तेजेन्द्र को दक्षता हासिल है। यानि कि तेजेन्द्र अपने नारी पात्रों के भीतर से ठीक वैसे ही बोलते हैं जैसे कि कोई महिला ही बोल रही हो।'
संग्रह की एक महत्वपूर्ण कहानी है टेलिफ़ोन लाइन। इस कहानी में लेखक ने संवाद शैली का बहुत ही चुटीला इस्तेमाल किया है। इस कहानी में दो महिला पात्र हैं सोफिय़ा और पिंकी। पिंकी अवतार की पत्नी है जो उसे छोड़ कर एक मुस्लिम पात्र के साथ घर बसा लेती है। और सोफिय़ा एक मुस्लिम पात्र है जो कि अपने पूर्व प्रेमी अवतार के जीवन में वापिस आना चाहती है मगर उसकी प्रेमिका के रूप में नहीं बल्कि उसकी सास के रूप में। आधुनिक बाज़ारवाद, रिश्तों में अर्थ के महत्व को प्रतिबिम्बित करती है सोफिय़ा। वह अपने स्कूली प्रेम का वास्ता देते हुए कहानी के अन्त में अवतार को कहती है ... तुम मेरे दोस्त हो... तुम तो मुझे प्यार भी करते थे। तुम आजकल हो भी अकेले, भला तुम... तुम ख़ुद ही मेरी बेटी से शादी क्यों नहीं कर लेते ? तुम्हारा घर भी बस जाएगा और मेरी बेटी की जि़न्दगी भी सेटल हो जाएगी। इस कहानी पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कथाकार कृष्णा सोबती ने कहा है कि, 'तेजेन्द्र की कहानियों का अन्त हमें मंटो की कहानियों की तरह झकझोर देता है।'
मलबे की मालकिन कहानी का शीर्षक पढ़कर मन में एक ऐसी कथा के स्वरुप ने आकार ले लिया जो की मोहन राकेश द्वारा रचित 'मलबे का मालिक' का बोध कराने वाला हो और मन में एक आशंका जागी कि कहीं यह भी भारत विभाजन के पश्चात छूटे और टूटे रिश्तों की पड़ताल का प्रयास तो नहीं। मगर यह कहानी शुरूआत से ही पाठक को बांध लेती है और नारी विमर्श को नये अर्थ प्रदान करती है। तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसी नारी की कहानी कहते हैं जिसे कि विश्वविद्यालय से निकाल कर विवाह कर दिया जाता है और बेटी पैदा करने के जुर्म में घर से निकाल भी दिया जाता है। अमिता की श्रीमती यादव बनने, घर से निकाले जाने और प्रियदर्शिनी के रूप में स्थापित पत्रकार संपादक बनने की यात्रा बिना किसी शोर शराबे के स्त्री विमर्श को नये आयाम देती है। प्रियदर्शिनी की समस्या यह है कि उसकी बेटी तो जवान हो गई है मगर वह स्वयं अभी भी बूढ़ी नहीं हुई है। वह समीर और अपनी पुत्री नीलिमा के भविष्य को लेकर सपने देखती है । अंत में समीर कहता है... 'मैं इस घर में रोज़- रोज़ आता हूं तो आपके लिए। नीलिमा के लिए नहीं। मुझे आपसे अच्छी पत्नी कहीं नहीं मिल सकती..मैं...मैं आपसे प्यार करता हूं प्रियदर्शिनी।' समीर के इस वाक्य से प्रियदर्शिनी के आसपास खड़ी दीवारों का अनचाहा मलबा इकट्ठा हो जाता है और पाठक को कुछ क्षणों के लिए असमंजस की स्थिति में डाल देता है।
तेजेन्द्र शर्मा की सर्वाधिक चर्चित कहानी क़ब्र का मुनाफ़ा में नादिरा और आबिदा के चरित्र एक दूसरे के विपरीत भी हैं और पूरक भी। इस कहानी में तेजेन्द्र शर्मा बाज़ारवाद के साथ जोड़ते हुए मौत के साथ एक खिलंदड़ेपन से तो पेश आते ही हैं; साथ ही साथ पश्चिमी समाज में पहली पीढ़ी के प्रवासी मुस्लिम परिवारों में महिलाओं के स्थान का भी ख़ूबसूरत चित्रण करते चलते हैं। नादिरा माक्र्सवाद से प्रभावित है मगर राजनीतिक स्तर पर नहीं। उसका आम आदमी से जुड़ाव सामाजिक स्तर पर है। उसका समर्थन सदा ही उपेक्षित और शोषितों के साथ रहता है। आबिदा भी अपने पति के चरित्र से अच्छी तरह वाकि$फ है किन्तु उसने अपने चेहरे पर एक मुखौटा डाल रखा है और मुंबइया फि़ल्मों और सितारों के साथ जुड़ कर समय बिता रही है। उसने तय कर लिया है, 'यदि उसके पति की मृत्यु उससे पहले हो गई तो उसकी क़ब्र दुनिया के सबसे गऱीब क़ब्रिस्तान में बनवाएगी।' नादिरा सीधे- सीधे अपने पति की बुर्जुआ सोच के साथ भिड़ जाती है और न केवल पांच सितारा कब्रों की बुकिंग कैंसिल करवाने की ज़िद कर बैठती है, बल्कि आगे बढ़ कर कैंसिल करवा भी देती है। उसका अपने पति और उसके मित्र के साथ नीतिगत टकराव है। यह कहानी सच में अद्भुत कहानी है।
एक बार होली की नजमा, छूता फिसलता जीवन की मंदीप, मुट्ठी भर रोशनी की सीमा, देह की कीमत की पम्मी कुछ अनूठे नारी पात्र हैं जो कि परंपरागत नहीं हैं मगर स्त्री विमर्श का झण्डा उठा कर नारे भी नहीं लगाते। यह सभी चरित्र जीवंत हैं। तेजेन्द्र शर्मा इन चरित्रों की माध्यम से आज की नारी का सटीक चित्रण करते हैं, फिर चाहे वह नारी भारत में रह रही हो या परदेस में। राजेन्द्र यादव सही कहते हैं कि, 'तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ नैरेशन की गहरी समझ है। वह बखूबी जानते हैं कि स्थितियों को, व्यक्ति के अंतद्र्वंद्वों, संबंधों की जटिलताओं को कैसे कहानी में रूपांतरित किया जाता है। तेजेन्द्र की कहानियां परिपक्व दिमाग की कहानियां हैं।'
कब्र का मुनाफा (कहानी संग्रह), लेखक- तेजेन्द्र शर्मा, पृष्ठ संख्या-160, मूल्य: 250 रू. प्रकाशक- सामयिक प्रकाशन, नेताजी सुभाष मार्ग, दरिया गंज, नई दिल्ली-110 002, प्रथम संस्करण: 2010
संपर्क- 115 The Reddings Mill Hill, London NW7 4JP
Tel: 00-44-7957353390, Email: akiiaz@gmail.com
संग्रह की सभी कहानियों में तेजेन्द्र के नारी पात्र एक विशेष पहचान बनाते हुए उभर कर आते हैं। कथाकार धीरेन्द्र अस्थाना ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के बारे में बहुत साल पहले कहा था, 'परकाया प्रवेश में तेजेन्द्र को दक्षता हासिल है। यानि कि तेजेन्द्र अपने नारी पात्रों के भीतर से ठीक वैसे ही बोलते हैं जैसे कि कोई महिला ही बोल रही हो।'
संग्रह की एक महत्वपूर्ण कहानी है टेलिफ़ोन लाइन। इस कहानी में लेखक ने संवाद शैली का बहुत ही चुटीला इस्तेमाल किया है। इस कहानी में दो महिला पात्र हैं सोफिय़ा और पिंकी। पिंकी अवतार की पत्नी है जो उसे छोड़ कर एक मुस्लिम पात्र के साथ घर बसा लेती है। और सोफिय़ा एक मुस्लिम पात्र है जो कि अपने पूर्व प्रेमी अवतार के जीवन में वापिस आना चाहती है मगर उसकी प्रेमिका के रूप में नहीं बल्कि उसकी सास के रूप में। आधुनिक बाज़ारवाद, रिश्तों में अर्थ के महत्व को प्रतिबिम्बित करती है सोफिय़ा। वह अपने स्कूली प्रेम का वास्ता देते हुए कहानी के अन्त में अवतार को कहती है ... तुम मेरे दोस्त हो... तुम तो मुझे प्यार भी करते थे। तुम आजकल हो भी अकेले, भला तुम... तुम ख़ुद ही मेरी बेटी से शादी क्यों नहीं कर लेते ? तुम्हारा घर भी बस जाएगा और मेरी बेटी की जि़न्दगी भी सेटल हो जाएगी। इस कहानी पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कथाकार कृष्णा सोबती ने कहा है कि, 'तेजेन्द्र की कहानियों का अन्त हमें मंटो की कहानियों की तरह झकझोर देता है।'
मलबे की मालकिन कहानी का शीर्षक पढ़कर मन में एक ऐसी कथा के स्वरुप ने आकार ले लिया जो की मोहन राकेश द्वारा रचित 'मलबे का मालिक' का बोध कराने वाला हो और मन में एक आशंका जागी कि कहीं यह भी भारत विभाजन के पश्चात छूटे और टूटे रिश्तों की पड़ताल का प्रयास तो नहीं। मगर यह कहानी शुरूआत से ही पाठक को बांध लेती है और नारी विमर्श को नये अर्थ प्रदान करती है। तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसी नारी की कहानी कहते हैं जिसे कि विश्वविद्यालय से निकाल कर विवाह कर दिया जाता है और बेटी पैदा करने के जुर्म में घर से निकाल भी दिया जाता है। अमिता की श्रीमती यादव बनने, घर से निकाले जाने और प्रियदर्शिनी के रूप में स्थापित पत्रकार संपादक बनने की यात्रा बिना किसी शोर शराबे के स्त्री विमर्श को नये आयाम देती है। प्रियदर्शिनी की समस्या यह है कि उसकी बेटी तो जवान हो गई है मगर वह स्वयं अभी भी बूढ़ी नहीं हुई है। वह समीर और अपनी पुत्री नीलिमा के भविष्य को लेकर सपने देखती है । अंत में समीर कहता है... 'मैं इस घर में रोज़- रोज़ आता हूं तो आपके लिए। नीलिमा के लिए नहीं। मुझे आपसे अच्छी पत्नी कहीं नहीं मिल सकती..मैं...मैं आपसे प्यार करता हूं प्रियदर्शिनी।' समीर के इस वाक्य से प्रियदर्शिनी के आसपास खड़ी दीवारों का अनचाहा मलबा इकट्ठा हो जाता है और पाठक को कुछ क्षणों के लिए असमंजस की स्थिति में डाल देता है।
तेजेन्द्र शर्मा की सर्वाधिक चर्चित कहानी क़ब्र का मुनाफ़ा में नादिरा और आबिदा के चरित्र एक दूसरे के विपरीत भी हैं और पूरक भी। इस कहानी में तेजेन्द्र शर्मा बाज़ारवाद के साथ जोड़ते हुए मौत के साथ एक खिलंदड़ेपन से तो पेश आते ही हैं; साथ ही साथ पश्चिमी समाज में पहली पीढ़ी के प्रवासी मुस्लिम परिवारों में महिलाओं के स्थान का भी ख़ूबसूरत चित्रण करते चलते हैं। नादिरा माक्र्सवाद से प्रभावित है मगर राजनीतिक स्तर पर नहीं। उसका आम आदमी से जुड़ाव सामाजिक स्तर पर है। उसका समर्थन सदा ही उपेक्षित और शोषितों के साथ रहता है। आबिदा भी अपने पति के चरित्र से अच्छी तरह वाकि$फ है किन्तु उसने अपने चेहरे पर एक मुखौटा डाल रखा है और मुंबइया फि़ल्मों और सितारों के साथ जुड़ कर समय बिता रही है। उसने तय कर लिया है, 'यदि उसके पति की मृत्यु उससे पहले हो गई तो उसकी क़ब्र दुनिया के सबसे गऱीब क़ब्रिस्तान में बनवाएगी।' नादिरा सीधे- सीधे अपने पति की बुर्जुआ सोच के साथ भिड़ जाती है और न केवल पांच सितारा कब्रों की बुकिंग कैंसिल करवाने की ज़िद कर बैठती है, बल्कि आगे बढ़ कर कैंसिल करवा भी देती है। उसका अपने पति और उसके मित्र के साथ नीतिगत टकराव है। यह कहानी सच में अद्भुत कहानी है।
एक बार होली की नजमा, छूता फिसलता जीवन की मंदीप, मुट्ठी भर रोशनी की सीमा, देह की कीमत की पम्मी कुछ अनूठे नारी पात्र हैं जो कि परंपरागत नहीं हैं मगर स्त्री विमर्श का झण्डा उठा कर नारे भी नहीं लगाते। यह सभी चरित्र जीवंत हैं। तेजेन्द्र शर्मा इन चरित्रों की माध्यम से आज की नारी का सटीक चित्रण करते हैं, फिर चाहे वह नारी भारत में रह रही हो या परदेस में। राजेन्द्र यादव सही कहते हैं कि, 'तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ नैरेशन की गहरी समझ है। वह बखूबी जानते हैं कि स्थितियों को, व्यक्ति के अंतद्र्वंद्वों, संबंधों की जटिलताओं को कैसे कहानी में रूपांतरित किया जाता है। तेजेन्द्र की कहानियां परिपक्व दिमाग की कहानियां हैं।'
कब्र का मुनाफा (कहानी संग्रह), लेखक- तेजेन्द्र शर्मा, पृष्ठ संख्या-160, मूल्य: 250 रू. प्रकाशक- सामयिक प्रकाशन, नेताजी सुभाष मार्ग, दरिया गंज, नई दिल्ली-110 002, प्रथम संस्करण: 2010
संपर्क- 115 The Reddings Mill Hill, London NW7 4JP
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