जहां कन्याओं का होता है सम्मान
-निरूपमा दत्त
गुरदासपुर व अमृतसर जिलों में, जिनकी सीमा पाकिस्तान से मिलती है, ग्रामीण लड़कियों के लिए यह विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में विलक्षण प्रयोग है। महिलाओं की शिक्षा व सशक्तिकरण में इसके दूरगामी प्रभाव इस बात से प्रकट होते हैं कि यह विद्यालय उस राज्य में आधारित है जहां कन्या भ्रूण हत्या का बोलबाला है और जहां यौन अनुपात- प्रति हजार पुरूषों के पीछे स्त्रियों की संख्या देश में सबसे कम है।
पंजाब के गुरदासपुर जिले के उडोवल गांव की हरप्रीत कौर उम्र 18 वर्ष, ने पहले बाबा आया सिंह रेरकी कॉलेज तुगलवाला के बारे में अपने चचेरी बहिन से सुना था। हरप्रीत याद करती है- 'मेरी चचेरी बहिन, जिसने वहां पढ़ा है, वहां के सुखी व सरल जीवन- शिक्षा के माध्यम से सीखे गए उच्च मान्यताओं के बारे बताती रहती है। इसलिए मेरी भी वहां जाने की इच्छा हुई।'
हरप्र्रीत ने दसवीं के बाद इस स्कूल में प्रवेश ले लिया और अभी वह ग्रेजुएशन कर रही है। हरप्र्रीत एक उत्साही छात्रा है जो अपनी कक्षा की सचिव भी है, वह कहती है- 'मैं बी.ए. फिर अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. के बाद यहां एक अध्यापिका के रूप में रहना चाहूंगी।
गुरदासपुर व अमृतसर जिलों में, जिनकी सीमा पाकिस्तान से मिलती है, ग्रामीण लड़कियों के लिए यह विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में विलक्षण प्रयोग है। महिलाओं की शिक्षा व सशक्तिकरण में इसके दूरगामी प्रभाव इस बात से प्रकट होतेे हैं कि यह विद्यालय उस राज्य में आधारित है जहां कन्या भ्रूण हत्या का बोलबाला है और जहां यौन अनुपात (प्रति हजार पुरूषों के पीछे स्त्रियों की संख्या) देश में सबसे कम है। यह कॉलेज जो एक ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, 1934 से आरम्भ हुआ जब बाबा आया सिंह नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने तुगलवाला मे 'पुत्री पाठशाला' (गल्र्स स्कूल) की स्थापना की। उन्होंने एस.के.डी. हाई स्कूल को भी 1939 में स्थापित किया। कॉलेज ने वस्तुत:, अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष 1975 से काम करना प्रारम्भ किया।
प्रधानाचार्य 64 वर्ष के स्वर्ण सिंह विर्क, याद करते हुए कहते हैं कि ऐसे समाज में जो अपनी बेटियों को शिक्षा देने में आना- कानी करता है कॉलेज ने कई प्रारम्भिक चुनौतियों को झेला हैं। 'लड़कियों के लिए शिक्षा के महत्व पर गांव- गांव अभियान चलाने के बाद, मुझे 34 छात्राओं का आश्वासन मिला जिसमें से 20 छात्राएं आश्वासन से पलट गईं बाकी रह गई 14 छात्राओं से हमने इसे आरम्भ किया। इन लड़कियों ने प्रेप (ग्यारहवीं के बराबर) व ज्ञानी (पंजाबी भाषा की परीक्षा) की परीक्षा दी व सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त किया।
आज स्कूल के पास आवश्यक संख्या में अध्यापक हैं तथा यह विद्यालय पंजाब माध्यमिक शिक्षा परिषद सेे सम्बद्ध है। कॉलेज के छात्र स्नातक व उत्तर- स्नातक परीक्षा के लिए निजी रूप से बैठते हैं। सब मिलाकर, यहां 3, 500 लड़कियों (निवास तथा केवल दिन में पढऩे हेतु) को कक्षा छ: से उत्तर-स्नातक स्तर तक अध्ययन के लिए प्रवेश मिला है।'
यह रूचिपूर्ण है कि शिक्षा शुल्क मात्र रू. 800 सालाना है। खाने व रहने का खर्च सालाना रू. 5,500 है। किसी अनुदान के अभाव में, कॉलेज ने अपने सीमित साधनों व स्वत: चलाने के तरीकों के प्रबन्धन में उत्कृष्ट कौशल का प्रदर्शन किया है। विद्यार्थियों के बैठने के लिए घर मे बुने कम्बल या दरी का प्रयोग किया जाता है। डेस्क व बैंच का प्र्रयोग परीक्षा में किया जाता है। कॉलेज में छ: अध्यापक हं, जो वरिष्ठ कक्षाओं को पढ़ाते हैं। शेष कक्षाओं को वरिष्ठ छात्र 'हर एक' 'एक छात्र' की विचार धारा से पढ़ाता हैं। इससे दूसरे अध्यापक को रखने के खर्च में ही कमी नहीं आती बल्कि विद्यार्थी- प्र्राध्यापक में जिम्मेदारी व विश्वास की भावना पनपती है।
विर्क बताते हैं, 'हम बिना सहायता के काम चलाएंगे। हम सूरज के प्रकाश का उपयोग करके बिजली की बचत करते हैं। हमारा ईंधन का कोई खर्च नहीं है क्योंकि हमारा अपना बायो-गैस प्लान्ट है।' कॉलेज में लिखने की सामग्री का सहकारी भण्डार व जनरल स्टोर विद्यार्थियों को लगभग 50 प्रतिशत तक की छूट देता है तथा लगभग रू. 150,000 की बचत कर पाता है। इस बचत का उपयोग कॉलेज में पढ़ रहे 150 अनाथ बच्चों को सहारा देने में होता है।
सभी शिष्यों को श्रम की महिमा व परिसर की सफाई से लेकर 12 के दलों में खाना पकाने व भोजनालय वाटिका के काम करना होता है। सभी विद्यार्थियों को उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य के लाभ के बारे में बताया जाता है। यह सभी काम विद्यार्थी स्वयं ही संभालते हैं।
आप कभी तुगलवाला जाइए, आप देखेंगे कि सैकड़ों युवा लड़कियां अपनी सफेद पोशाक में हर किसी काम को आसानी से कर लेती हैंं। संस्थान के विशाल द्वार पर दो छात्राएं तैनात हैं, जो आगंतुकों का नाम व पता लिखती हैं। छात्राओं का एक दल दिन का भोजन तैयार कर रहा है। सुखमीत कौर 18 वर्ष बी.ए. अंतिम वर्ष व अपनी कक्षा की सचिव, विस्तार से बताती है- 'आज दिन के भोजन में करी है। लड़कियां ही सहमति से भोजन की सूची तैयार करती हैं। हम अधिकांश वही सब्जियां व दाल प्रयोग करती हैं जो विद्यालय के 8 एकड़ के फार्म में उगाया जाता है।' लड़कियों को पूर्ण भोजन दिया जाता है व उनका दिन स्कूल की अपनी डेरी से प्राप्त चाय पत्ती के साथ उबले भैंस के दूध के पूरे गिलास से आरम्भ होता है।
उत्कृष्टता का ऊंचा स्तर उनकी पढ़ाई में भी है। कॉलेज को अपने छात्रों के परीक्षा में बेदाग परीक्षाफल के इतिहास पर गर्व है, क्योंकि यहां नकल करने का एक भी मामला नहीं है। हरशरन सिंह परीक्षक कहते हैं-'परीक्षक व नकल जांचकर्ताओं को यहां तैनात किया जाता है, लेकिन उनके पास प्रश्न पत्र बांटने के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं होता।' विद्यालय ने परीक्षकों के लिए रू. 21,000 की नकद पुरस्कार राशि नकल पकडऩे के लिए रखी है। हर वर्ष इस इनाम को लेने वाला कोई नहीं होता। तथापि कॉलेज के लिए वास्तविक इनाम उनके परीक्षार्थियों का लगभग 100 प्रतिशत उत्तीर्ण होने का इतिहास है, इनमें से कम से कम 50 प्रतिशत परीक्षार्थी तो प्रथम श्रेणी प्राप्त करती हैं।
एक ऐसा राज्य जिसका हॉकी में लगाव है, सबसे उत्साहजनक सूचना इसके परिसर में हॉकी का मैदान है। विर्क बताते हैं- 'हम लड़कियों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी की खेल प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करेंगे।'
धर्म का अध्ययन, सिख धर्म पाठ्यक्रम का अंग है, बच्चों को सभी धर्मों का सम्मान करने की शिक्षा दी जाती है और स्कूल के गलियारे विविध पुराणों के आदर्श वाक्यों से भरे हैं। अभी यह संस्था केवल कला विज्ञान के विषयों को पढ़ाती है लेकिन आने वाले समय में अन्य विधाओं को भी शामिल करेगी। विर्क कहते हैं कि- 'हम अपनी शाखाओं को अपने प्रयास से बढ़ाऐंगे, यदि कर सके। सम्बद्धता से अधिक धन, सहायता तो मिलेगी लेकिन इससे हम धन को सर्वोपरि मानने वाले संस्थाओं में शामिल हो जाएंगे, जो हम होना नहीं चाहते,'। अभी कॉलेज गुरू नानक देव विश्वविद्यालय (जी.एन.डी.यू.) के न्यायाधिकार में आता है लेकिन इससे सम्बद्ध नहीं है, क्योंकि यह नियमित संस्था नहीं है। परीक्षार्थी इस विश्वविद्यालय की परीक्षा देने के लिए निजी आवेदन करते हैं।
दोपहर बाद का समय- छात्राएं कॉलेज परिसर में फैले खो- खो (पारम्परिक भारतीय टीम खेल) खेल रही हैं, खुशी से चारों ओर दौड़ रही हैं, या लोक संगीत गा रही हैं। कुछ विविध अन्तर- कक्षा संगीत, पेन्टिंग, व सार्वजनिक भाषण प्रतियोगिता का अभ्यास कर रही हैं, अन्य हाथ से चार्ट व विभिन्न उत्सवों के लिए निमंत्रण पत्र तैयार करने में व्यस्त हैं। यह उत्सव स्कूल में होते हैं व प्राय: अन्तर- विद्यालय होते हैं। तुगलवाला कॉलेज की लड़कियां बाहर अन्तर- विद्यालय उत्सवों के लिए जाती हैं।
विद्यालय का परिसर विश्वास व खुशी के प्रचुर भाव फैलाता प्रतीत होता है, सभी विद्यार्थी-निवासी या दैनिक छात्र जो अपने गांव या शहर से बस में यहां आते हैं- विद्यालय के कार्यक्रमों में पूरे दिल से भाग लेते प्रतीत होते हैं।
सुखमीत कौर बौपुरिया उम्र18 वर्ष जो बी.ए. अंतिम वर्ष की छात्रा है व्यक्त करती है- 'हाल ही में मनप्रीत कौर ने एक प्रसिद्घ राष्ट्रीय समाचार चैनल के फिल्मिंग सदस्यों से बताया कि उसने नकल करने की आदत, जो वह पिछले विद्यालय में किया करती थी छोड़ दी है। जब समाचार के प्रस्तुतकर्ता ने उसे फटकार लगाई कि कैमरे के सामने नकल करने की धोखाबाजी की बात करते हुए उसको शर्म आनी चाहिए, मनप्रीत ने तुरन्त उत्तर दिया, 'जब मैं नकल कर रही थी तब मुझे शर्म आनी चाहिए थी, न कि अब जब मैं अपनी गलती स्वीकार करके उसको सुधार रही हूं'। विश्वास व्यक्त करने का तुगलवाला तरीका है।
विद्यालय की सराहना केवल इसके विद्यार्थी ही नहीं वरन वरिष्ठ शिक्षाविद भी करते हैं। जैसे जय रूप सिंह, जी.एन.डी.यू. के कुलपति, अपनी परख बताते हैं, 'तुगलवाला कॉलेज में आना मेरे लिए एक नवीन व अनूठा अनुभव रहा है। यहां विद्यार्थी पढऩे के साथ- साथ काम भी करते हैं। दूसरी संस्थाओं को इससे शिक्षा लेनी चाहिए।'
(विमेन्स फीचर सर्विस)
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