सावन तो फिर भी परेशान करता है जी
- आलोक पुराणिक
सावन और मेघों के प्रति सुन्दरियों में सम्मान का भाव नहीं रहा। कई सुन्दरियां आपस में इस तरह की चर्चा करती हैं कि बारिश में मेकअप कितना मुश्किल हो जाता है। कितनी महंगी लिपिस्टिक बारिश में ऐसे ही धुल जाती है। बारिश में सच में बहुत प्रॉब्लम हो जाती है।
बैड, वैरी बैड, यू सी, पता है कुछ, बारिश में कितना लोकन टे्रन कैंसल हो गया, अभी ऑफिस कैसे जाइंगा। एक कैजुअल जाइंगा ना। इकट्ठा कैजुएल रहता, तो इयर एण्ड पर अपुन महाबलेश्वर जाता। सावन-बिवन बौत गड़बड़ करता है- मिस बाटलीवाला एकदम से सावन विरोधी हो गयीं।- आलोक पुराणिक
सावन और मेघों के प्रति सुन्दरियों में सम्मान का भाव नहीं रहा। कई सुन्दरियां आपस में इस तरह की चर्चा करती हैं कि बारिश में मेकअप कितना मुश्किल हो जाता है। कितनी महंगी लिपिस्टिक बारिश में ऐसे ही धुल जाती है। बारिश में सच में बहुत प्रॉब्लम हो जाती है।
पर मिस बाटलीवाला, पुराने टाइम में तो सावन में सुंदरियां अपने साजन को या सम्भावित साजन को याद करती थीं। साजन से सावन चर्चा करती थीं। अब सावन में यह क्यों नहीं होता- मैंने मिसेज बाटलीवाला के सामने फिर जिज्ञासा रखी।
ओह, नो व्हाई। मेरी बायफ्रेंड तो रोज मिलता है, मेरे दफ्तर में ही काम करता है। कायकू याद करना। बौत खडूस है रे वो। अब्बी से मुझ पर रौब जमाता है। कल बोल रहा था कि शादी भले ही दो साल बाद करो, पर नये फ्लैट की आधी किश्त मुझे अभी से देनी पड़ेगी। टुडे इवनिंग इसी पर फाइट करनी है। सावन-बिवन क्या है, मैं तो इस लफड़े से परेशान है। ओह नो, फिर बादल आंगया रे, कैजुएल जायेगा ही।
सावन की बहुत दुर्गति हो गयी है, कैजुएल की चिंता में सावन को कोसा जा रहा है। कैजुएल के हाथों पिटता सावन बहुत दयनीय लग रहा है।
अब कालिदास मेघदूत लिखते, तो उसमें मेघ यह कह रहा होता, हे कालिदास! मुझे तुम कहीं मत भेजो। हे कालिदास! इधर कैसे निष्ठुर बायफ्रेंड हो गये हैं, प्रेमिकाओं को गिफ्ट देने के बजाय उनकी सैलरी में फ्लैट की किश्त धराते हैं। हे कालिदास! क्या जमाना था, जब मुझे देखकर नवयुवक और नवयुवतियां कहीं भ्रमण या पिकनिक का प्रोग्राम बनाते थे। अब सुन्दरियां मुझे देखकर बिग फाइट की सोचती हैं।
हे कालिदास! बारिश, सावन और मेघों के प्रति सुन्दरियों में सम्मान का भाव नहीं रहा। कई सुन्दरियां आपस में इस तरह की चर्चा करती हैं कि बारिश में मेकअप कितना मुश्किल हो जाता है। कितनी महंगी लिपिस्टिक बारिश में ऐसे ही धुल जाती है। बारिश में सच में बहुत प्रॉब्लम हो जाती है। अब जमाने गये पुराने वाले, जब सुन्दरियां मेरा स्वागत करती थीं। अब तो मुझे देखते ही तमाम सुंदरियां नाना प्रकार की गालियां देने लगती हैं।
ऐसा लगता था कि तमाम सुंदरियों के पास पूरे साल दो ही काम रहते थे। या तो सावन में गाना गाना या फिर गैर-सावनी मौसम में सावन का इंतजार करना। पूरा साल दो भागों में बंट जाता था- सावन का मौसम, सावन के इंतजार का मौसम। पहले बात यह थी कि साजन फुरसत में होते थे। अब देखो, तो सारे कायदे के साजन बहुत बिजी रहते हैं, और क्यों न रहें।
साजन पुरानी कार के कर्जे की किश्त से निपटता भी नहीं है कि नयीं कारें बाजार में आ जाती हैं। इतने तरह के कर्जे हैं, इतनी तरह की किश्तें देनी पड़ती हैं, कि कई साजन दिनभर की नौकरी में बिजी रहने के बाद शाम को भी पार्ट-टाइम नौकरियां तलाशते हैं, हर मौसम में- सावन हो चाहे, बसन्त।
फिर पुराने टाइम के साजन सावन और सुन्दरियों पर कायदे से फोकस रखते थे। था भी पुराने साजनों का काम इतने भर से चल जाता था। एक अनुभवी साजन ने बताया-सारे सीजन एक से हैं, क्या सावन क्या बसन्त। कार, मकान, सोफे, सीडी प्लेयर, फारेन टूर के लोन की किश्तें तो बारहों महीने देनी पड़ती हैं। सावन में क्या खास है जी। क्या सावन में किश्तें नहीं देनी पड़तीं। अगर सावन में किश्तें न देनी पड़ें, तो हम मानें कि सावन सावन है। प्राचीनकाल के साजनों के लिए सावन विशिष्ट तब ही हो पाता था, जब वह किश्त-मुक्त होता था।
और पुराने ग्रंथ पढ़ो, कालिदास, भवभूति, जयदेव के जमाने के, तो...और पुराने ग्रंथ पढ़ो, कालिदास, भवभूति, जयदेव के जमाने के, तो ऐसा लगता है कि उस दौर की तमाम सुन्दरियां भी बहुत फुरसत में होती थीं। इधन सावन आया, उधर वो गाती हुई निकलीं। इधर मामला अलग हो गया है। एक षोडशी सुन्दरी से मैंने पूछा- सुन्दरी सावन के बारे में आपके क्या विचार हैं? उसने जवाब दिया-अभी ट्वेल्थ क्लास के रिजल्ट के बाद परेशान हूं। किसी ढंग के कालेज में एडमीशन नहीं मिला, तो क्या होगा। यू सी, मैं बहुत कनफ्यूज्ड हूं। फैशन डिजाइनिंग करूं के कम्प्यूटर कोर्स।
षोडशी सुन्दरी ने पूछा वैसे, ये सावन-वावन क्या है। हू इज दिस? क्या किसी मंत्री का पीए है। क्या एडमीशन में मेरी हेल्प कर सकता है। क्या सावन कोई कोरियोग्राफर है, जो मेरी हेल्प कर सकता है। नेक्स्ट वीक मुझे उस फैशन शो में कैटवाक करना है। वैसे नाम बहुत फनी है-सावन। बड़ा इथनिक सा नेम है।
एक तीस वर्षीया सुन्दरी से मैंने पूछा कि सावन के बारे में आपके क्या विचार है, तो वह उखड़ गयी। बोली- इधर पूरी दुनिया के बारे में विचार बहुत खराब हैं। मेरा प्रमोशन ड्यू हो गया है, और ये वाला बॉस नहीं दे रहा है। क्या सावन की इस बॉस से कोई सेटिंग है, अगर है, तो सावन के बारे में मेरे बहुत अच्छे विचार हो सकते हैं। बट हू इज दिस सावन। पहले कभी नहीं सुना। अपने दफ्तर में तो नहीं है। पर आप मुझसे सावन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं। मैं खाली- पीली में क्यों बताऊं। कल को ये मेरा बॉस बनकर आ गया तो। नो, जी हम तो सेफ चलते है। खराब तो हम उसी को बताते हैं, जिसका पत्ता हमारा ऑफिस से या इस दुनिया से ही साफ हो चुका है। ऐसे किसी से खाली-पीली में क्यों पंगा लेना। पहले सावन के बैकग्राउण्ड के बारे में पूरी जानकारी दो, तब उसके बारे में विचार दूंगी।
हे कालिदास! बारिश, सावन और मेघों के प्रति सुन्दरियों में सम्मान का भाव नहीं रहा। कई सुन्दरियां आपस में इस तरह की चर्चा करती हैं कि बारिश में मेकअप कितना मुश्किल हो जाता है। कितनी महंगी लिपिस्टिक बारिश में ऐसे ही धुल जाती है। बारिश में सच में बहुत प्रॉब्लम हो जाती है। अब जमाने गये पुराने वाले, जब सुन्दरियां मेरा स्वागत करती थीं। अब तो मुझे देखते ही तमाम सुंदरियां नाना प्रकार की गालियां देने लगती हैं।
ऐसा लगता था कि तमाम सुंदरियों के पास पूरे साल दो ही काम रहते थे। या तो सावन में गाना गाना या फिर गैर-सावनी मौसम में सावन का इंतजार करना। पूरा साल दो भागों में बंट जाता था- सावन का मौसम, सावन के इंतजार का मौसम। पहले बात यह थी कि साजन फुरसत में होते थे। अब देखो, तो सारे कायदे के साजन बहुत बिजी रहते हैं, और क्यों न रहें।
साजन पुरानी कार के कर्जे की किश्त से निपटता भी नहीं है कि नयीं कारें बाजार में आ जाती हैं। इतने तरह के कर्जे हैं, इतनी तरह की किश्तें देनी पड़ती हैं, कि कई साजन दिनभर की नौकरी में बिजी रहने के बाद शाम को भी पार्ट-टाइम नौकरियां तलाशते हैं, हर मौसम में- सावन हो चाहे, बसन्त।
फिर पुराने टाइम के साजन सावन और सुन्दरियों पर कायदे से फोकस रखते थे। था भी पुराने साजनों का काम इतने भर से चल जाता था। एक अनुभवी साजन ने बताया-सारे सीजन एक से हैं, क्या सावन क्या बसन्त। कार, मकान, सोफे, सीडी प्लेयर, फारेन टूर के लोन की किश्तें तो बारहों महीने देनी पड़ती हैं। सावन में क्या खास है जी। क्या सावन में किश्तें नहीं देनी पड़तीं। अगर सावन में किश्तें न देनी पड़ें, तो हम मानें कि सावन सावन है। प्राचीनकाल के साजनों के लिए सावन विशिष्ट तब ही हो पाता था, जब वह किश्त-मुक्त होता था।
और पुराने ग्रंथ पढ़ो, कालिदास, भवभूति, जयदेव के जमाने के, तो...और पुराने ग्रंथ पढ़ो, कालिदास, भवभूति, जयदेव के जमाने के, तो ऐसा लगता है कि उस दौर की तमाम सुन्दरियां भी बहुत फुरसत में होती थीं। इधन सावन आया, उधर वो गाती हुई निकलीं। इधर मामला अलग हो गया है। एक षोडशी सुन्दरी से मैंने पूछा- सुन्दरी सावन के बारे में आपके क्या विचार हैं? उसने जवाब दिया-अभी ट्वेल्थ क्लास के रिजल्ट के बाद परेशान हूं। किसी ढंग के कालेज में एडमीशन नहीं मिला, तो क्या होगा। यू सी, मैं बहुत कनफ्यूज्ड हूं। फैशन डिजाइनिंग करूं के कम्प्यूटर कोर्स।
षोडशी सुन्दरी ने पूछा वैसे, ये सावन-वावन क्या है। हू इज दिस? क्या किसी मंत्री का पीए है। क्या एडमीशन में मेरी हेल्प कर सकता है। क्या सावन कोई कोरियोग्राफर है, जो मेरी हेल्प कर सकता है। नेक्स्ट वीक मुझे उस फैशन शो में कैटवाक करना है। वैसे नाम बहुत फनी है-सावन। बड़ा इथनिक सा नेम है।
एक तीस वर्षीया सुन्दरी से मैंने पूछा कि सावन के बारे में आपके क्या विचार है, तो वह उखड़ गयी। बोली- इधर पूरी दुनिया के बारे में विचार बहुत खराब हैं। मेरा प्रमोशन ड्यू हो गया है, और ये वाला बॉस नहीं दे रहा है। क्या सावन की इस बॉस से कोई सेटिंग है, अगर है, तो सावन के बारे में मेरे बहुत अच्छे विचार हो सकते हैं। बट हू इज दिस सावन। पहले कभी नहीं सुना। अपने दफ्तर में तो नहीं है। पर आप मुझसे सावन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं। मैं खाली- पीली में क्यों बताऊं। कल को ये मेरा बॉस बनकर आ गया तो। नो, जी हम तो सेफ चलते है। खराब तो हम उसी को बताते हैं, जिसका पत्ता हमारा ऑफिस से या इस दुनिया से ही साफ हो चुका है। ऐसे किसी से खाली-पीली में क्यों पंगा लेना। पहले सावन के बैकग्राउण्ड के बारे में पूरी जानकारी दो, तब उसके बारे में विचार दूंगी।
एक चालीस वर्षीया खुर्राट लेखिका से मैंने पूछा कि सावन के बारे में आपके क्या विचार है? उन्होंने पूछा- किस गुट का है। अपने गुट का है, तो कहू्गी- सधा हुआ लेखक। विरोधी गुट का है, तो कहूंगी- गधा लेखक और अगर गुट में नहीं है तो, यही कहूंगी कि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, क्या पता अपने गुट में आ ही जाये। सावन अगर कोई समीक्षक या सम्पादक है, तो फिर निश्चय ही वो महान है। इसमें पूछने वाली क्या बात है। ये मेरी नयी कविताएं ले जाइए, उसे दे दीजिए।
सावन के बारे में आपके क्या विचार है? अबकी बार मैंने एक थानेदारनी से पूछा। सावन क्या नया एसपी लगा है, इनके जिले में। कैसा है। खाता है या नहीं। कितना ईमानदार है। इनको वहां के ट्रांसफर तो नहीं कर देगा। भाई साहब बहुत मुश्किल से ये पोस्टिंग मिली है। ऊपर से कहकर पांच लाख खर्च करके यहां आये हैं। अब ये तो सावन की नाइंसाफी ही होगी, जो इन्हें हटा दे।
नहीं, मैं पूछ रहा हूं, सावन के मौसम के बारे में आपके क्या विचार हैं?
देखिए, जी हमारे तो दो ही मौसम हैं। एक, जब बहुत चकचक कमाई होती है। दूसरा मौसम, जब कमाई ढीली हो जाती है। आजकल कमाई कुछ ढीली-सी है। सो मैं तो इसको खराब ही कहूंगी।
सावन के बारे में आपके क्या विचार हैं- मैंने एक ठेकेदार की पत्नी से पूछा।
बहुत खराब, इन दिनों इनकी इमेज चौपट हो जाती है। तमाम अखबार वाले छापते हैं कि फलां ठेकेदार द्वारा बनायी गयी सड़क एक बारिश में गायब। इनके द्वारा बनाया गया पुल दो बारिश में उखड़ा। सावन तो जी हमारा दुश्मन है जैसे। सारे अखबार वाले इनके पीछे पड़ जाते हैं। सच्ची सावन तो हमें परेशान करता है जी। बाहर पानी जोर से बरस रहा है, पर नहीं ये बारिश नहीं है। सावन अपनी इंसल्ट पर रो रहा है।
व्यंग्यकार के बारे में ...
व्यंग्य की पंक्ति में खड़े आलोक पुराणिक चीन्हे जा सकने वालों में फिलहाल अंतिम नाम हैं, और लाइन ना तोड़ते हुए वे पूरी मर्यादा में खड़ें हैं। उनके बाद और भी लोग इस पंक्ति में खड़ें हैं पर उनकी पहचान अभी नहीं बनी है। आलोक पुराणिक की सक्रियता और पहचान को उनकी पत्रकारिता का भी समर्थन मिला है। वे पत्रकारिता की उत्तर आधुनिक परम्परा में खड़े हैं जहां इलेक्ट्रानिक जर्नलिजम और वेब साइट हैं, ब्लाग राइटिंग है जिनमें उनकी संलग्नता उन्हें विशिष्ट स्थान देती है। इन माध्यमों से मुखरित होने वाले और मीडिया विमर्श पर भी कलम चलाने वाले वे फिलहाल अकेले व्यंग्यकार हैं। यह व्यंग्यकार मनोहर श्याम जोशी और सुधीश पचौरी की विरासत है। आलोक पुराणिक की व्यंग्य की भाषा में इन बड़े लेखकों के प्रभाव को देखा जा सकता है पर वे इनके अनुकरण करने के इन्कारी हैं। आलोक विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में एक साथ लेखन कर रहे हैं। वे टी वी चैनलों से भी जुड़े हैं। उनकी रचनाएं छोटी पर जनरंजक होती हैं। वे युवा हैं और उनकी लेखनी उनके युवकोचित उत्साह से तरबतर हैं। यहां पाठकगण उनकी प्रस्तुत रचना 'सावन तो फिर भी परेशान करता है जी में ऐसी ही कुछ तरावट महसूस कर सकते हैं। यह रचना सावन के अन्धों को राह दिखाने का काम भी करती है।
- विनोद साव
संपर्क- आलोक पुराणिक, फ्लैट नंबर एफ-1 प्लाट नंबर बी-39,
रामप्रस्थ गाजियाबाद- 201011 , www.alokpuranik.com,
मोबाइल: 09810018799, Email- puranika@gmail.com
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1 comment:
udanti ko dekhana aur oose parhana sukhad avubhooti se bhar deta hai. vaise net se jyada sundar print mey nazar aatee hai. aakhir mai thahaera print wala.itani sundar patriaka kaash kuchh saal pahale shuru hui hoti...khair, der aayad, durust aayd....ratna ke hatho me keemati ratna hai-udanti. patrka chanati rahe, shubhkamanaye..girish pankaj
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