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Jun 12, 2018

प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे

प्लास्टिक प्रदूषण
के खतरे 

 डॉ. रत्ना वर्मा

भारत इस साल विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान देश रहा और इस बार का विषय था 'प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करो 
इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों ने अपने अपने प्रदेश को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने का अलग- अलग समय निर्धारित किया है। तमिलनाडु सरकार ने जैविक रूप से नष्ट नहीं होने वाले पॉलीथिन बैग सहित प्लास्टिक की चीजों के इस्तेमाल पर जनवरी 2019 से प्रतिबंध लगाने की घोषणा की,तो महाराष्ट्र ने मंगलवार को कहा कि राज्य अगले एक साल में प्लास्टिक से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। झारखंड ने भी राज्य को अगले साल 5 जून तक प्लास्टिक मुक्त बनाने की घोषणा की है। नगालैंड में भी इस मौके पर राज्य को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कराने के लिए दिसंबर तक का समय तय किया है ,तो उत्तराखंड ने 31 जुलाई से पॉलीथिन को प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। हरियाणा सरकार ने भी एक ही बार इस्तेमाल किए जाने लायक प्लास्टिक के पानी की बोतल को राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों में प्रतिबंधित करने का फैसला किया है।
प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से हम सभी परिचित हैं और समय समय पर इसके प्रतिबंध की बात सभी राज्यों की सरकारें करती रहीं हैं। जैसे महाराष्ट्र सरकार ने 2006 में भी प्लास्टिक को पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन तब उनकी यह योजना पूरी तरह सफल नहीं हो पाई थी।
प्लास्टिक तो नष्ट होता है और ही सड़ता है। प्लास्टिक की थैलियाँ जब नालियों को जाम कर देती हैं , तो वह बारिश में बाढ़ जैसे भयानक मंजर खड़ा कर देती हैं। समुद्र में फेंके जाने वाले प्लास्टिक से समुद्री जीवों के लुप्त होते चले जाने का खतरा मंडरा रहा है। प्लास्टिक की थैलियों में खाने की वस्तु रख कर हम कूड़ेदान में डाल तो देते हैं पर खाने के लालच में हमारे गाय, बैल उसे प्लास्टिक सहित का जाते हैं, नतीजा वह प्लास्टिक जानवर के पेट में जमा होते जाता है और अंत में मौत ही है।
 आपको जानकर हैरानी होगी कि प्लास्टिक 500 से 700 साल बाद नष्ट होना शुरू होता है और पूरी तरह से डिग्रेड होने में उसे 1000 साल लग जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ , जितना भी प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है वह अब तक नष्ट नहीं हुआ है। प्लास्टिक हमारे लिए कितना खतरनाक है इसका अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि हर साल दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल होता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के  अनुसार ज्यादातर प्लास्टिक का सामान एक बार के उपयोग के बाद फेंक देने के लिए बनाया जाता है। आने वाले 10 से 15 साल में प्लास्टिक का उत्पादन और भी तेजी से बढ़ेगा बल्कि कचरे की मात्रा भी खतरनाक स्तर पर पहुँचेगी। 
अच्छी बात है कि इस साल विश्व पर्यावरण दिवस पर भारत के कई राज्यों ने अपने अपने प्रदेश को प्लास्टिक से मुक्त करने के लिए घोषणाएँ की हैं। जरूरी है घोषणाओं पर अमल करना। बेहतर होता कि केन्द्र सरकार पूरे देश के लिए एक नियम लागू करने का फरमान जारी करती, एक समय सीमा निधारित कर भारत को प्लास्टिक मुक्त करने का संकल्प लेती। देश भर में चल रहे नष्ट होने वाले प्लास्टिक के उद्योगों को बंद कर उसका विकल्प खोजती। रिसाइकिल होने वाले प्लास्टिक को बढ़ावा देती। घरेलू स्तर पर निकलने वाले प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करती।
 आज की दुनिया टीवी और मोबाइल की दुनिया हो गई है। महलों में रहने वाले से लेकर झोपड़ी में रहने वाले तक यहाँ तक कि फुटपाथ में रहने वाले के पास भी मोबाइल होता है। सोशल मीडिया इतना प्रभावशाली माध्यम है कि वह एक खबर को दुनिया भर में फैलाने में एक मिनट भी नहीं लगाता;तो क्यों इस मीडिया का फायदा उठाया जाए। प्लास्टिक के खिलाफ जंग में यह बहुत अच्छा हथियार हो सकता है।  
दूसरे देश इस दिशा में जो काम कर रहे हैं उनसे कुछ सीखना भी चाहिए- जैसे रवांडा और केन्या में इस पर पूरी तरह से बैन लगा दिया गया है, आयरलैंड  ने इसकी खरीद को महँगा कर दिया है , ताकि लोग खरीदने से पहले दो बार सोचें। कई ऐसे भी देश हैं जैसे ऑस्ट्रेलिया जहाँ कंपनियों ने ग्राहकों को दोबारा इस्तेमाल होने लायक बैग्स खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया है,  तो कई सरकारों जैसे रवांडा ने कंपनियों को प्लास्टिक से निपटने में भूमिका निभाने पर टैक्स में राहत भी दी है।
इतनी दूर जाने की भी जरूरत नहीं हमारे अपने देश के कई युवाओं ने इससे निपटने के लिए अनेक काम किए हैं ।उन पर ही अमल करके और उन्हें प्रोत्साहित करके इसे पूरे देश में लागू किया जाए... जैसे दिल्ली में सैकड़ों लोग यमुना में उतरकर सफाई करते हैं तो प्रकृति नाम की कंपनी के जरिये अमरदीप बर्धान जैसे लोग प्लास्टिक की जगह इस्तेमाल होने लायक सामान बनाते हैं। आदित्य मुखर्जी जैसे छात्र प्लास्टिक स्ट्रॉ के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं ,तो मुंबई के अफरोज शाह ने वर्सोवा बीच को साफ करके ही दम लिया। बेंगलुरु के अहमद खान ने प्लास्टिक से सड़कें बनानीं शुरू कर दीं तो हैदराबाद के नारायण पीसापति ने खाने वाले चम्मच इजाद करके नई सोच के रास्ते खोल दिए। देश और दुनिया में जाने ऐसे कितने  लोग हैं जो प्लास्टिक के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं।  क्यों इस जंग में हम भी शामिल हो जाएँ और अपने देश को प्लास्टिक मुक्त बनाने में भागीदार बनें।

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