उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

May 10, 2016

दमऊ दहरा

जहाँ रचा गया था
सीताहरण का षडयंत्र
  - प्रो. अश्विनी केशरवानी
मैकल पहाड़ की शृंखला छत्तीसगढ़ को प्रकृति की देन है जो पूर्व में उड़ीसा तक और उत्तर पश्चिम में
अमरकंटक तक फैलकर अनुपम सौंदर्य प्रदान करती है। इसकी हरियाली मन को लुभाने वाली होती है। वैज्ञानिकों ने तो इसके गर्भ में बाक्साइड, कोयला, चूना और हीरा के भंडार को पा लिया है। इसी कारण यह क्षेत्र कदाचित् औद्योगिक नक्शे में आ गया है। विश्व प्रसिद्ध विद्युत नगरी कोरबा, बाल्को और भिलाई छत्तीसगढ़ के प्रमुख औद्योगिक नगर हैं। यही नहीं कोरबा और चिरमिरी में कोयला के बहुत बड़े खदान है। इसके अलावा अनेक इस्पात सयंत्र, सीमेंट फैक्टरियाँ यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही हैं और प्रकृति प्रदत्त हरियाली को प्रदूषित कर रही है। छत्तीसगढ़ का शांत माहौल अब औद्यौगिक प्रतिष्ठानों की गर्जनाओं से कंपित और प्रदूषित होता जा रहा है। यहाँ के सुरम्य वादियों की चर्चा पुराणों, रामायण और महाभारत कालीन ग्रंथों में मिलती है जिसके अनुसार यहाँ की नदियाँ गंगा के समान पवित्र, मोक्षदायी है। उसी प्रकार पहाड़ों की हरियाली और मनोरम दृश्य देवी देवताओं को यहाँ वास करने के लिए बाध्य करता रहा है। यही कारण है कि यहाँ ऋषि मुनियों ने देवताओं की एक झलक पाने के लिए अपना डेरा यहाँ जमाते रहे लिया हैं। इन जंगलों और पहाड़ों में गुफाएँ आज भी देखने को मिल जायेंगी, जो उस काल के ऋषि मुनियों की याद दिलाते हैं। मैकल पर्वत शृंखला का एक अंश दमऊ दहराहै जहाँ प्रकृति की अनुपम छटाएँ हैं और पहाड़ों से गिरती जल की धारा जो पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त हैं। अत: कालेज के विद्यार्थियों ने इस बार पिकनिक जाने के लिए दमऊ दहरा को चुना।
दमऊ दहरा छत्तीसगढ़ की तत्कालीन सबसे छोटी रियासत और जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत दक्षिण पूर्वी रेल्वे के सक्ती स्टेशन से 15 कि.मी., औद्यौगिक नगरी कोरबा से 35 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ बस, जीप और कार से जाया जा सकता है। यहाँ रूकने के लिए एक धर्मशाला भी है। सक्ती, चांपा और कोरबा में लॉज और लोक निर्माण विभाग का विश्रामगृह भी है जहाँ रुका जा सकता है। यहाँ सितंबर-अक्टूबर से जनवरी तक मौसम बड़ा अच्छा रहता है। सार्वजनिक छुट्टियों और रविवार के दिन पर्यटकों की अच्छी भीड़ होती है।
दमऊ दहरा पिकनिक जाने का प्रोग्राम तय हुआ नहीं कि मैं अपना कैमरा लोड करके वहाँ के मनोरम दृश्यों को कैमरे में कैद करने के लिए तैयार हो गया। मेरे मित्रों ने मुझे यहाँ के बारे में बहुत सी जानकारी दी जो मेरे लिए बहुत उपयोगी थी। दमऊ दहरा का प्राचीन नाम 'गुंजी' है। छत्तीसगढ़ के पुरातत्वविद् और साहित्यकार पंडित लोचनप्रसाद पांडेय के सत्प्रयास से इसे ॠषभतीर्थ नाम मिला। यहाँ पहाड़ों से घिरा एक गहरा कुंड है जिसमें पहाड़ से निरंतर पानी गिरते रहता है। स्थानीय भाषा में गहरे कुंड को दहराकहा जाता है। मान्यता है कि इस दहरा में सक्ती रियासत के संस्थापक राजा आते थे। दहरा का पानी कुछ खारा होता है जो संभवत: पहाड़ से बहकर आने के कारण है। इस पानी को पीने से पेट रोग से मुक्ति मिलती है। यह ग्राम प्राचीन काल में उन्नत सांस्कृतिक केंद्रों में से एक है। यहाँ की पहाड़ी में साधु संतों के रहने के लिए गुफा है और दहरा के पास की पहाड़ी में एक लेख खुदा है जो सातवाहन कालीन है। उस काल का अन्य शिलालेख कोरबा और अड़भार में भी है। इस क्षेत्र में रामायण कालीन अनेक अवशेष मिलते हैं जिससे प्रतीत होता है कि श्रीरामचंद्र जी वनवास काल में यहाँ आये होंगे ?


बहरहाल, हम बस से दमऊ दहरा पहुँचे। सबके पास अपना अपना टिफिन था अत: खाना बनाने का झंझट ही नहीं था। यहाँ की हरियाली और मनोरम दृश्य को देखकर हमारा मन प्रफुल्लित हो उठा। सबका मन जैसे गाना गाने को कर रहा था। विद्यार्थियों की जिज्ञसा को जब तक मैं शांत करता, सब बस से उतरकर एक जगह अपना सामान आदि रखकर इधर उधर चल दिये। कुछ लोग जब कुंड में हाथ मुँह धोने लगे तो कुछ लोग श्री राम लक्ष्मण जानकी और भगवान ऋषभदेव मंदिर चले गये तो कुछ लोग पहाड़ में चढ़कर गुफाओं और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने लगे। मेरी उँगलियाँ जल्दी जल्दी इस सौंदर्य को अपने कैमरे में कैद करने लगी। हम लोगों ने देखा कि पहाड़ से पानी नीचे गिर रहा है। यहाँ एक गहरा कुंड है और कदाचित् इसी कारण इस स्थान को दमऊ दहराकहा जाता है। वैसे चारों ओर से पहाड़ों से घिरे इस निर्जन वन में जंगली जानवरों की अधिकता रही होगी? स्थानीय कवि श्री कुंजबिहारी शुक्ल के शब्दों में:
दमऊ दहरा का गहरा कुंड, हाथियों का झुंड
सूंड़ से उठाकर जहाँ करता  जल विहार।
डॉ.लोचनप्रसाद शुक्ल ने अपने खंड काव्य 'ऋषभतीर्थमें इस कुंड को गुप्त गोदावरी बताते हुए लिखा है-
तीन पर्वत संधियों से अनवरत जल बह रहा
गुप्त गोदवरी निरंतर नीर निर्मल नव भरा।
इससे यहाँ की छटा बड़ा मनोहर होता है। देखिये कवि की एक बानगी-
गोदावरी विमल भूत अजस्र धारा,
देखो छटा जल प्रपात नितान्त रम्या।
है वाह्म रूप उभकुंड उमंगिता से,
धारामयी सलिल माचित मुग्धकारी।।
कोई भी पथिक इधर से गुजरते समय यहाँ की हरियाली और अनुपम सौंदर्य को देखकर पेड़ों के छाँव तले थोड़ी देर विश्राम करने के लिए विवश हो जाता था। पथिक कुंड में हाथ मुँह धोकर अपनी प्यास बुझाकर विश्राम करते थे। ऐसे में मन में जल करने की इच्छा होना स्वाभाविक है मगर जलपान के लिए उनके पास कुछ नहीं होता था। लेकिन आश्चर्य किंतु सत्य, पथिक के मन मुताबिक जलपान एक थाली में सजकर उसके सम्मुख आ जाता था। पथिक कुछ समझ पाता तभी आकाशवाणी होती पथिक ! ये तुम्हारी क्षुधा शांत करने के लिए है, मजे से ग्रहण करोपथिक उसे ग्रहण करके थाली को धोकर उस कुंड में रख देता था। ऐसा पता नहीं कब से होता था मगर एक पथिक की नियत खराब हो गयी और वह उस थाली को लेकर अपने घर चला गया। लेकिन घर पहुँचकर मर गया। हालांकि उसके परिवार वालों ने उस थाली को वापस उस कुंड में डाल दिया मगर तब से थाली का निकलना बंद हो गया...। मुझे लगा कि हमें भी ऐसा कुछ खाने को मिल जाता? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बाद में मुझे मदनपुरगढ़ के नाला, दल्हा पहाड़ के तालाब और भोरमदेव मंदिर के तालाब से ऐसे जादुई थाली निकलने और पथिकों के भूख को शांत करने की जानकारी मिली। छत्तीसगढ़ के ऐसे अनेक किंवदंतियों में से यह भी कोई किंवदंती हो सकती है ?
यहाँ हमने श्रीराम लक्ष्मण और जानकी मंदिर में उनके दर्शन किये। उनके अलावा हमें भगवान ऋषभदेव और वीर हनुमान के दर्शन हुए। मंदिर के बाहर बंदरों के दर्शन किसी सजीव हनुमान से कम नहीं था जो हमारे हाथ से नारियल छीनकर खा गया। पुजारी जी ने हमें बताया कि भगवान ऋषभदेव की यही प्राचीन काल में तपोभूमि थी। कवि भी यही कहता है-
तपोभूमि यह ऋषभदेव की महिमा अमित बखान।
योगी यति मुनि देव निरंतर शाश्वत शांत प्रदान।।
मेरा लेखक मन जैसे सब कुछ समेट लेना चाहता था। घड़ी भी जैसे दौड़ रही थी और हमारे पेट में चूहे उछल कूद कर रहे थे। सभी अपने अपने ग्रुप के साथ कोई पहाड़ी में तो कोई कुंड के समीप खाना खाने लगा। खाना खाकर गाना बजाना चलता रहा। तभी हमने कुछ नंगे बदन व्यक्तियों को पहाडिय़ों में चढ़ते देखा। मैंने उनके बारे में इस पहाड़ी की तराई में रहने वाले लोगों के बारे में जानना चाहा। पहले तो वे हिचके, फिर थोड़ी देर बाद बताने लगे- 'हमारे पूर्वज यहाँ बरसों से निवास करते थे। उस पहाड़ी के तराई में हमारी 8-10 घर की बस्ती है। सब्जी-भाजी उगाकर, कुछ खेती करके और लकड़ी बेचकर हम अपनी जीविका चलाते हैं। सक्ती के राजा ने हमारी बस्ती में बिजली लगवा दी है। मुझे पहाड़ी में कोई बिजली की तार नहीं दिखा। तब मुझे याद आया कि वनों और पहाड़ों में सोलर लाइट लगा होगा।
मेरी उत्सुकता बढ़ी और मैं इतिहास के पन्ने उलटने लगा। अभिलेखों से पता चलता है कि यहाँ देवताओं के दिव्य स्थल ऋषभाश्रम, ऋषभकुंड, ऋषभ सरोवर सीताकुंड, लक्ष्मणकुंड, और पंचवटी के अवशेष मिलते हैं। ऋषभतीर्थ से तीन मील की दूरी पर उत्तर दिशा में एक आश्रम है। इसके ईशान कोण पर जटायु आश्रम है। जिसके कारण इस पहाड़ को गिधवार पहाड़कहते हैं। आग्नेय दिशा में राम झरोखा, राम शिला, लक्ष्मण शिला है। वायव्य दिशा में आधा मील की दूरी पर उमा महेश्वर और कुंभज ऋषि का आश्रम है। इसी कारण यहाँ के एक पहाड़ को कुम्हारा पहाड़कहते हैं। पश्चिम दिशा में तीन मील की दूरी पर सीता खोलियतथा 10 मील की दूरी पर शूर्पणखा का स्थल था। उसके पास में कबंध राक्षस का स्थल (कोरबा) और खर दूषण की नगरी (खरौद) है। पश्चिम दिशा में ही आधा मील की दूरी पर मारीच खोलहै। ऐसी मान्यता है कि यहीं पर रावण ने मारीच के साथ मिलकर सीता हरण का षडयंत्र रचा था। यह स्थान रैनखोल कहलाता है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में अनेक रामायण कालीन अवशेष मिलते हैं। इससे इस क्षेत्र की प्राचीनता का बोध होता है।
अब शाम होने को आयी और हम सब वापसी के लिए बस में बैठ चुके थे। बस चली तो मन में राहत थी कि हरियाली के बीच जैसे कोई तीर्थयात्रा कर लिये हो ? कवि की एक बानगी पेश है-
तीर्थ सरिता नीर से सम्पर्क साधन कर लिया।
मानुष तन पाकर जिन्होंने सुकृत सब कुछ कर लिया।।
सम्पर्क: 'राघव' डागा कालोनी, चांपा- 495671(छ.ग.), ashwinikesharwani@gmail.com

No comments: