68 वर्ष की अनीमा नाग नियमित रूप से स्विमिंग पर जाती हैं और बैडमिंटन खेती हैं। वे अपने कूल्हे भी डिस्को की ता के साथ मटका सकती हैं और कुछ गा-वा भी ेती हैं। प्राथमिक शाा की सेवानिवृत्त प्राचार्या, सुश्री अनीमा नाग अपने जीवन की सांझ में, अपने पोते-पोतियों के प्रति अपने प्रेम के चते पाठ्येतर गतिविधियों में रुचि ेने गी हैं।
पिछे तीन साों में अपनी मां में आये परिवर्तन को ेकर मुक्ति की पुत्री शम्पा रक्षित याद करते हुए कहती हैं, च् मेरी मां का परिवार बांगदेश से शरणार्थी के बतौर बंगा आया था। मुझे अच्छे-से याद है कि वे काफी सख्ती बरतती थीं और हमेशा बुरे दिनों के एि बचा के रखती थीं। उन्होंने कभी भी मेरी बहन या मेरे साथ जरूरत से ज्यादा ाड़ नहीं जताया। ेकिन मेरी बेटी के साथ उनका व्यवहार एकदम अग है। मेरे ख्या से वे जानती हैं कि मेरे पति के एि पैसा कोई चिंता का विषय नहीं है, और मैं भी बृष्टि की हर सनक, हर जिद्द को पूरा करने में जरा भी नहीं हिचकती।ज् आई.टी. विशेषज्ञ रक्षित मुस्कराते हुए कहती हैं, च्वैसे भी बृष्टि के एि एक आया है इसएि मेरी मां के एि यह सब कभी थकाने वाा नहीं होता।ज्
परिवार के युवा सदस्यों के साथ कदम-से-कदम मिाने के हिाज से आज की दादियां च्फैशनेबज् और च्सुंदरज् दिखने के तमाम तरीके अपनाती हैं। च्मेरी 15 वर्षीय पोती, ओइंड्रिा च्अच्छी दिखनेज् को ेकर काफी सजग रहती है। जब मैं उसके साथ उसके दोस्तों के पास जाती हूं तो उसका आग्रह रहता है कि मैं स्कर्ट और टॉप या फिर कोई पाश्चात्य कपड़े पहनूं। मैंने तो आजक के बच्चों की पसंद पिज्जा, बर्गर, कोल्ड डिं्रक्स और मॉकटे के प्रति अपना स्वाद विकसित कर यिा है।ज् नाग हंसकर कहती हैंं।बढ़ती हुई कमाई के चते आज की दादी मां भी इस नयी दुनिया में हौे-हौे आती ची गईं हैं। दक्षिण कोकाता की बंदना मुखर्जी ने जब अपनी ढाई वर्षीय पोती आर्शी के नाम की कुरियर-डाक प्राप्त की तो वे भौचक्क रह गईं क्योंकि उस डाक में आईं 16 पुस्तकों की कीमत कोई 25,000 रुपये थी। इतने पैसे में तो उनके दोनों बच्चों की पूरी शिक्षा सम्पन्न हो गई थी।
ेकिन शुरूआती अचम्भा ढ जाने के बाद बंदना ही अब इन पुस्तकों का इस्तेमा सबसे ज्यादा करती हैं। च्अपनी पोती के संग इन पुस्तकों के बीहड़ से गुजरने के साथ-साथ मैं अपने ज्ञान में भी वृद्घि करती हूं। मेरी शादी के वक्त मैं अपने स्कू का अंतिम वर्ष ही पूरा कर पाई थी।ज् वे खुासा करती हैं।
दिनों की पारम्परिक गृहस्थिन अब दुनिया भर को पूरे विश्वास के साथ ांघ आती है। पर उसके एि यह संक्रमण खूब चुनौतियों भरा रहा होगा, जबकि उसके बच्चों के एि यह सब एक साधारण सी बात है।
जीवन के आठवें दशक में च रहीं बनता साय इसकी गवाह हैं। आखिरकार 26 सा पहे उनकी बेटी के जुड़वां बच्चे होने पर वे प. बंगा के उत्तर 24 परगना जिे के बरकपुर से यूएसए के न्यू जर्सी चीं गईं थीं। पुरानी यादें ताजा करते हुए वे कहती हैं, च्मैं अंग्रेजी का एक शब्द भी नहीं बो सकती थी। यूएसए की तो छोड़ो, महानगरीय जीवन कैसा होता है, यह ज्ञान भी मुझे रत्ती भर न था। पर मैंने सब सीखा। मेरे पहे अनुभवों में से एक अनुभव, थोड़े दिनों के एि भारत वापस आते वक्त रास्ते में, सिंगापुर के एक होट के अपने कमरे में रूम सर्विस को ेकर था। तब से मैं ये सारी चीजें सीखती गयी हूं।
पोते-पोतियों की खातिर सादे बंगाी भोजन से ेकर कॉन्टिनेंट, चाइनीज और इटायिन खाना बनाना भी मैंने सीखा।ज् साय चहक कर कहती हैं, च्आज वे अपने-अपने जीवन में ठीक-ठाक मुकाम हासि कर चुके हैं, और मैं बन गयी हूं अंगे्रजी में गिट-पिट करने वाी, दुनिया-जहान घूमने वाी एक आधुनिक दादी। तो अपने नये नवेे जीवन में कौन-सी चीज उन्हें सबसे अधिक भाती है! उनका फटाफट उत्तर होता है - च्हार्वर्ड स्नातक अपनी पोतियों सोनाी और पियाी द्वारा दुनिया के सबसे उम्दा रेस्तरां में दी गयी दावत।ज्
73 वर्षीय माधवी पिल्ई भी अपने पुत्र के बच्चों के प्रति प्यार रखती हैं। सा में दो बार, जब उनका बेटा और उनकी बहू अपने काम से छुट्टी पर होते हैं तो वे अपने पोते-पोती के साथ रहने के एि कोकाता से यूके की यात्रा करती हैं।
रेवे की एक रिटायर्ड अधिकारी सुश्री पिल्ई जब भी विदेश जाती हैं, अपने साथ एक अदना-सा भारत जरूर े जाती हैं और वहां बच्चों को यहां के जीवन की झकी देती हैं - गाय को चारा वगैरह कैसे खिाते हैं, घाघरा-चोी कैसे पहनते हैं, यहां तक कि भरतनाट्यम कैसे करें, आदि-आदि। च्मैं अपने बेटे के परिवार के साथ स्कॉटैण्ड, मेशिया, श्रींका वगैरह गयी हूं और अपने पोते-पोतियों को घुमाने-शुमाने भी े गयी हूं, जबकि उनके मां-बाप अपने व्यावसायिक कामों में भिड़े होते हैं। बदे में, उन ोगों ने मुझे ब्रिटिश हजे में अंग्रेजी बोना सिखाया।ज् कहते हुए एक स्मित मुस्कान उनके चेहरे पर निखर आती है।
पर उनका ये समर्पण बगैर शर्त नहीं होता, ये आजक की दादी मां अपनी शर्तों पर ही ये सब करने को तैयार होती हैं। मुक्ति मित्रा को ही ीजिये, वे अकसर अस्वस्थ रहने वो पति के बिना यात्रा करना कम ही मंजूर करती हैं। जबकि एक रिटायर्ड प्राचार्या रहीं आईं अनीमा नाग अपने पोते-पोतियों को पढ़ाने के काम से साफ इनकार कर देती हैं। उनका कहना है, च्पढ़ाना मां-बाप की जिम्मेदारी है।ज् डाक विभाग सेे सेवानिवृत्त हो चुके उनके पति अपने बगीचे में ही मस्त बने रहते हैं।
एक नया आधुनिक पहनावा, नये-नये स्वाद, सफर के एि हर-हमेशा तैयार सूटकेस और दोस्तों का दिन-ब-दिन बढ़ता-फैता दायरा - नये युग की इन दादी-मांओं ने अपने जोश और अपने नन्हे-मुन्नों के एि अपने प्यार के बूते पीढ़ी-अंतरा को पाट-सा दिया है। (विमेन्स फीचर सर्विस)
-------
इन पार्टियों में आने वाी युवा माताएं अकसर अपने बच्चों के साथ नाचती-गाती हैं। और मैं भी उनमें शामि होने में झिझकती नहीं। मैं नहीं चाहती कि मेरी पोती अपनी उम्र के किसी भी पड़ाव पर मुझे ेकर शर्मिंदा हो।
---------
रेवे की एक रिटायर्ड अधिकारी सुश्री पिल्ई जब भी विदेश जाती हैं, अपने साथ एक अदना-सा भारत जरूर े जाती हैं और वहां बच्चों को यहां के जीवन की झकी देती है।
-------------------
No comments:
Post a Comment