एक देश था। उसमें बहुत सारे लोग रहते थे। उन बहुत सारे लोगों में से भी बहुत सारे लोग गरीब थे और उन बहुत सारे लोगों में कुछ कम लोग बहुत अमीर थे।
तो हुआ यूँ कि उन बहुत सारे गरीब लोगों में से
एक गरीब आदमी ने किसी तरह से अक्षर ज्ञान कर लिया। अब वह जब कभी फुर्सत में होता
(वैसे वह हर समय फुर्सत में ही होता था) इस अक्षर ज्ञान को परखने के लिए और उन छपे
हुए अक्षरों का सही अर्थ जाँचने के लिए आस- पास बिखरे कागजों, अखबारों की कतरनों और कहीं भी छपे अक्षर देख कर धीरे- धीरे हिज्जे करके
पढ़ने की कोशिश करता। इस अक्षर ज्ञान के बलबूते पर वह समझता था कि वह कुछ कुछ
सयाना हो रहा है।
एक बार की बात, उसने
यूँ ही छपा हुआ एक काग़ज बाँचते हुए पढ़ा कि पैसा पैसे को खींचता है। ये इबारत
उसने कई बार पढ़ी। जब उसे समझ आ गई तो उसकी आँखों में चमक आ गई – अरे वाह, ये तो बहुत अच्छी बात लिखी है। पैसा पैसे को खींचता है। अगर मेरे पास भी
कहीं से एक पैसा आ जाए, तो उसके बल पर मैं दूसरों के पैसों
को अपनी तरफ खींच सकता हूँ। फिर मेरे पास जब ज्य़ादा पैसे हो जाएँगे, तो मैं उस पैसों से और ज्य़ादा पैसे खींच सकता हूँ। तब मैं बहुत पैसे
वाला हो जाऊँगा।
बस जी, उस दिन से वह
एक पैसा जुटाने की जुगत में लग गया। आखिर वह एक पैसे वाला हो गया। अब उसकी तलाश
शुरू हुई किसी ऐसी तिजोरी की जिसके सारे पैसे वह खींच सके।
उसे याद आया कि राशन वाले लाला की तिजोरी में
दिन भर इतने पैसे आते रहते हैं कि उसे अपनी तिजोरी बंद करने का मौका ही नहीं
मिलता। गरीब आदमी ने सोचा – यहीं से शुरुआत की जाए।
वह जाकर लाला की दुकान के आगे लगी भीड़ में खड़ा
हो गया और मौका देख कर अपना पैसा उस तिजोरी की तरफ उछाल दिया। एक पैसा ज्य़ादा
पैसों में मिल गया। वह बहुत खुश हुआ और एक किनारे खड़ा हो कर इंतज़ार करने लगा कि
कब उसका पैसा तिजोरी के सारे पैसों को खींचकर लाता है।
दिन ढल गया, शाम हो गई,
सारे ग्राहक चले गए, लेकिन उसके पैसे ने कोई
करामात न दिखाई। वह परेशान होने लगा।
लाला देख रहा था कि एक गरीब आदमी तब से परेशान
हाल उसकी दुकान के आसपास मँडरा रहा है। दुकान बंद करने का समय हुआ, तो गरीब की हालत खराब हो गई। लाला ने उसकी ये हालत देखी, तो पास बुलाया और उसकी परेशानी की वजह पूछी।
गरीब ने रोते हुए पूरा किस्सा बयान किया। सुनकर
लाला हँसने लगा – तूने ठीक पढ़ा था, लेकिन आधी ही
बात पढ़ी थी।
तब लाला ने गरीब आदमी को समझाया कि तूने पढ़ा कि
पैसा पैसे को खींचता है, तो तू देख ही रहा है कि पैसों
ने पैसे को खींच लिया है। बस, तूने ये ही नहीं पढ़ा था कि ज्य़ादा
पैसे कम पैसों को खींचते हैं। अब तू घर जा। अँधेरा हो रहा है। कहीं तुझे साँप-
बिच्छु न काट लें।
डिस्क्लेमर: ये विशुद्ध बोध कथा है। इसके पात्र
पूरी तरह से काल्पनिक हैं। इस कथा का उस देश से कोई संबंध नहीं है जहाँ बहुत सारे
गरीबों के थोड़े से भी पैसे बहुत थोड़े से अमीरों की बहुत बड़ी तिजोरी में अपने आप
पहुँच जाते हैं और इस बीच अँधेरा हो जाता है।
मो. नं. 9930991424,
kathaakar@gmail.com
4 comments:
बहुत सशक्त कटाक्ष।
बहुत बढ़िया!
बहुत बढ़िया। सुदर्शन रत्नाकर
बढ़िया
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