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Oct 3, 2021

पर्यटन- छत्तीसगढ़ की पावन धरती पर 'राम वन गमन पर्यटन परिपथ'

-उदंती फीचर्स

14 साल के वनवास के दौरान श्री राम के छत्तीसगढ़ राज्य में प्रवेश यात्रा को लेकर ‘राम वन गमन पर्यटन परिपथ’ तैयार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नवरात्रि के पावन पर्व पर इस परियोजना के शुभारंभ का जश्न का बड़े धूम-धाम से 7 अक्‍टूबर 2021 को मनाने जा रही है।

छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कौसल और दण्डकारण्य के रूप में विख्यात है। दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है। स्थानीय मान्यता के  अनुसार  दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है। विभिन्न शोध से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ के अनेक दुर्गम स्थलों को अपना ठिकाना बनाया था। छत्तीसगढ़ की लोककथाओं और लोकगीतों में राम भगवान सीता मैया और लक्ष्मण की कथाएँ यहाँ के समुदायों में पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ सुनाए और गाए जाते हैं तथा यहाँ के भित्ति- चित्रों में राम- सीता और लक्ष्मण के वनवास के समय की अनेक चित्र परिलक्षित होते हैं ।

भारतीय जनमानस में भगवान श्रीराम सबके हृदय में बसे हुए हैं। उत्तरप्रदेश अयोध्या से आरंभ हुआ उनका 14 वर्ष का वनवास मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु होते हुए अंत में श्रीलंका पहुँचकर समाप्त हुआ था।  भारत सरकार और श्रीलंका की सरकार तथा विभिन्न प्रदेशों की सरकारें राम वनगमन के इन स्थलों के विकास के लिए लम्बे समय से प्रयासरत हैं और इन स्थानों पर काफी काम हुआ भी है। । इसी कड़ी को और आगे बढ़ाते हुए  छत्तीसगढ़ सरकार ने भी गत वर्ष छत्तीसगढ़ के राम वनगमन मार्ग को चिह्नांकित कर उन स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की वृहद योजना बनाई है।

ऐसे समय में जबकि हम सब जानते हैं श्रीराम वनगमन के चिह्नांकित दूसरे प्रदेशों के अनेक स्थान पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुके हैं या विकास की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि छत्तसीगढ़ के राम- वनगमन मार्ग को जल्दी से जल्दी न  सिर्फ चिह्नांकित किया जाए,  बल्कि पर्यटन की दृष्टि से विकसित भी किया जाए। राज्य का लक्ष्य चयनित स्थलों को विकसित एवं सुशोभित कर उन्हें विश्व स्तर के पर्यटन स्थल में तबदील करना है,  जिससे दुनियाभर से लोग यहाँ आ सकें। इस दृष्टि से राज्य पर्यटन बोर्ड ने सरकार की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना को आने वाले समय में वार्षिक कार्यक्रम की तरह विकसित करने की योजना पर भी काम करना आरंभ कर दिया है,  ताकि पर्यटन के नक्शे में छत्तीसगढ़ का विशेष स्थान बन सके।

यह सर्वविदित है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 25 किमी दूर आरंग तहसील का चंदखुरी गाँव है। पुरातन काल से छत्तीसगढ़ में राम लोगों के मानसपटल पर भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। राम का ननिहाल होने के कारण भी राम छत्तीसगढ़ के लोगों की जीवन-शैली और दिनचर्या में इस कदर रचे-बसे हैं कि छत्तीसगढ़वासियों के दिन का शुभारंभ  एक-दूसरे से राम-राम के  अभिवादन से शुरू होता है। छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति में आज भी मामा अपने भानजे को राम के रूप में देखता हैं और आस्था से उसके पैर छूता है।

‘राम वन गमन पर्यटन परिपथ’ का शुभारंभ इसी चंदखुरी गाँव में स्थित प्राचीन कौशल्या माता मंदिर, से किया जा रहा है। इस अवसर पर पर्यटकों के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जहाँ  भगवान राम के वनवास औऱ वन गमन पथ की कहानी को लाइट और साउंड के माध्यम से रंग-बिरंगी रौशनियों के ज़रिए बताया जाएगा।

इस परियोजना को लेकर छत्तसीगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने बहुत सुंदर बात कही है-  अयोध्या से वनवास के दौरान प्रभु श्री राम ने अपना अधिकांश समय छत्तीसगढ़ में बिताया। हमारा प्रयास है कि हम भगवान राम और माता कौशल्या से जुड़ी यादों को सँजो सकें, यही वजह  है कि सरकार ने राम- वनगमन पर्यटन परिपथ परियोजना की कल्पना की जहाँ भक्त और पर्यटक अपने हर कदम के साथ देवत्व के सार को महसूस कर सकेंगे।  

विभिन्न शोध, शोध प्रकाशनों एवं प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर देखें तो विभिन्न राज्यों में मिले स्मारक, गुफाएँ, भित्तिचित्र एवं उनके जीवन से जुड़ी घटनाएँ इस बात को प्रमाणित करती हैं कि प्रभु राम ने अनके मार्गों से होते हुए कई महत्त्वपूर्ण स्थानों पर रुककर 14 साल का अपना वनवास काटा था। वनवास के इस कालखंड के दौरान उनका छत्तीसगढ़ में प्रवास इस प्रदेश के लिए गौरव की बात है। प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया था । जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहाँ श्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था।  यहाँ की नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में श्रीराम के रहने के के अनेक सबूत प्राप्त हुए हैं।

राम वनगमन पथ पर शोध का कार्य राज्य में स्थित संस्थानछत्तीसगढ़ अस्मिता प्रतिष्ठान, रायपुरके द्वारा किया गया है। इसमें मन्नू लाल यदु के द्वारादण्डकारण्य रामायणतथा हेमु यदु के द्वारा छत्तीसगढ़ पर्यटन में राम- वनगमन- पथके नाम से पुस्तक का प्रकाशन किया गया है।

फिलहाल राम- वनगमन स्थलों के प्रथम चरण में आठ स्थानों को पर्यटन की दृष्टि से चुना गया-

1. सीतामढ़ी हरचौका

भगवान श्रीराम ने सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में मवाई नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सीतामढ़ी-हरचैका नामक स्थान से प्रवेश किया था। राम के वनवास काल का पहला पड़ाव कोरिया जिले का सीतामढ़ी हरचौका को माना जाता है। यह नदी के किनारे स्थित, यहाँ की गुफाओं में 17 कक्ष हैं। इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है।


2, रामगढ़ की पहाड़ी

सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी में तीन कक्षों वाली सीताबेंगरा गुफा है। इसे देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला माना जाता है। कहा जाता है वनवास काल में राम यहाँ पहुँचे थे, यहाँ सीता का कमरा था। कालिदास ने मेघदूतम् की रचना यहीं की थी।


3. शिवरीनारायण

जांजगीर चांपा जिले के इस स्थान पर रुककर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। इस स्थान पर नर-नारायण और शबरी का मंदिर भी है। यहाँ जोक, महानदी और शिवनाथ नदी का संगम है। मंदिर के पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके दोने के आकार में पत्ते हैं।


4. तुरतुरिया

बलौदाबाजार भाटापारा जिले के इस स्थान को लेकर जनश्रुति है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं था। तुरतुरिया को ही लव-कुश की जन्मस्थली माना जाता है। बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से निकलता है, इसलिए तुरतुर की ध्वनि निकलती है,  जिससे इस स्थान का नाम तुरतुरिया नाम पड़ा।


5. चंदखुरी

चंदखुरी को माता कौशल्या की जन्मस्थली माना जाता है। रायपुर जिले के 126 तालाब वाले इस गाँव में जलसेन तालाब के बीच में माता कौशल्या माता का मंदिर है, कहा जाता है कौशल्या माता का दुनिया में यह एकमात्र मंदिर है।


6. राजिम

गरियाबंद जिले राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है, जहाँ सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम है। कहा जाता है कि वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा की थी, यहाँ का कुलेश्वर महाराज का मंदिर इस बात का साक्षी है।


7. सिहावा
 (सप्त ऋषि आश्रम)

धमतरी जिले के सिहावा की विभिन्न् पहाड़ियों में मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, शृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि आश्रम हैं। राम ने दण्डकारण्य के आश्रम में ऋषियों से भेंट कर कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था।


8. जगदलपुर

बस्तर जिले का यह मुख्यालय है। चारों ओर वन से घिरा हुआ है। यह कहा जाता है कि वनवास काल में राम जगदलपुर क्षेत्र से गुजरे थे, क्योंकि यहाँ से चित्रकोट का रास्ता जाता है। जगदलपुर को पाण्डुओं के वंशज काकतिया राजा ने अपनी अंतिम राजधानी बनाई थी।

दूसरे चरण जिन क्षेत्रों को चुना गया है उनके नाम इस प्रकार हैं-

कोरिया - सीतामढ़ी घाघरा, कोटाडोल, सीमामढ़ी छतौड़ा (सिद्ध बाबा आश्रम), देवसील, रामगढ़ (सोनहट), अमृतधारा, सरगुजा - देवगढ़, महेशपुर, बंदरकोट (अंबिकापुर से दरिमा मार्ग), मैनपाट, , मंगरेलगढ़, पम्पापुर, जशपुर-किलकिला (बिलद्वार गुफा), सारासोर, रकसगण्डा, जांजगीर चांपा-चंद्रपुर, खरौद, जांजगीर, बिलासपुर-मल्हार, बलौदाबाजार भाटापारा - धमनी, पलारी, नारायणपुर (कसडोल), महासमुंद-सिरपुर, रायपुर-आरंग, चंपारण्य, गरियाबंद-फिंगेश्वर, धमतरी - मधुबन (राकाडीह), अतरमरा (अतरपुर), सीतानदी, कांकेर-कांकेर (कंक ऋषि आश्रम), कोंडागांव - गढ़धनोरा (केशकाल), जटायुशीला (फरसगाँव), नारायणपुर - नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगर, दंतेवाड़ा- बारसूर, दंतेवाड़ा, गीदम, बस्तर- चित्रकोटनारायणपाल, तीरथगढ़,  सुकमा - रामाराम, इंजरम, कोंटा।

विश्वास है राम वनगमन पर्यटन परिपथ नाम से इस नई परियोजना से छत्तीसगढ़ में पर्यटन के नए रास्ते खुलेंगे और प्रदेश के अन्य और भी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों को विकसित करने की दिशा में पहल की जाएगी, क्योंकि छत्तीसगढ़ में हजारों पुरातात्विक महत्त्व के स्थल हैं, जहाँ पर्याप्त सुविधा के अभाव में पर्यटक पहुँच नहीं पाते। आवागमन की सुविधाओं के साथ- साथ ठहरने और भोजन की अच्छी सुविधा के साथ साथ इन स्थानों के रख-रखाव की ओर भी गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। 

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