फ़िल्मों में राखी का त्योहार
अब के बरस भेज भैया को बाबुल...
गोवर्धन यादव
अब के बरस भेज भैया को बाबुल...
गोवर्धन यादव
भारत में राखी का त्योहार पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधते हुए बहनें कामनाएँ करती है कि वह उसकी इज्जत-आबरू की रक्षा करेगा, संकट की घड़ी में दीवार बनकर खड़ा हो जाएगा और जब जरूरत पड़ेगी तो दौड़ा चला आएगा।
यह भाव-प्रवण पर्व हर वर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पर्व को मनाए जाने का सिलसिला कब से प्रारंभ हुआ, इसकी जानकारी लेते चलें। इस व्रत के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है: प्राचीन काल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर-संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं का पराभव हुआ और असुरों ने स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया। दुखी, पराजित और चिन्तित इन्द्र देवगुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि इस समय न तो मैं यहाँ ही सुरक्षित हूँ और न ही यहाँ से कहीं निकल सकता हूँ। ऐसी दशा में मेरा युद्ध करना अनिवार्य है, जबकि अब तक युद्ध में हमारा ही पराभव हुआ है। इस वार्तालाप को इन्द्राणी भी सुन रही थीं। उन्होंने कहा कि कल श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा है, मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूँगी, उसे आप स्वस्ति-वाचनपूर्वक ब्राह्मणॊं से बँधवा लीजिएगा। इससे आप अवश्य विजयी होंगे। रक्षा सूत्र बाँधते हुए ब्राहमणॊं ने निम्नलिखित मन्त्र पढ़ा था।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल.
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)
दूसरे दिन इन्द्र ने रक्षाविधान और स्वस्तिवाचनपूर्वक रक्षाबन्धन कराया। जिसके प्रभाव से उनकी विजय हुई। तबसे यह पर्व मनाया जाने लगा है। इस दिन बहनें भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र बाँधती है।
फ़िल्में हमारी सामाजिक चेतना को बनाए रखने के लिए एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है। उसने जीवन की हर उस छोटी-बड़ी घटनाओं को, त्योहार और पर्वों को सेलुलाइड के पर्दे पर प्रस्तुत करते हुए उसे जीवन्त बनाने की दिशा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उसका अपना एक अनोखा संसार है, जिसने बाल-वृद्धों को अपने सम्मोहन में बाँध रखा है। जीवन का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा रहा हो जिसे फ़िल्मों में न फ़िल्माया गया हो. रक्षाबंधन भी उसमें एक है. पटकथा लिखने वालों ने, गीतकारों ने इस पर्व पर एक से बढ़कर एक गीत लिखे और संगीतकारों ने उन तमाम गीतों को संगीतबद्ध करते हुए एक नया वितान रच डाला. आइए...हम इन सदाबहार गीतों की दुनिया में चलते हैं।
सन 1962 में एक फ़िल्म आई थी जिसका नाम ‘राखी’ था। इसमें उस जमाने के सुपरस्टार अशोककुमार के साथ वहीदा रहमान, प्रदीपकुमार और अमिताजी अभिनय कर रहे थे। जाने माने गीतकार राजेन्द्र कृष्ण जी ने गीत लिखा था- ‘राखी धागों का त्योहार, बँधा हुआ इक बहन का-एक धागे में भाई’। इस गीत को सुनकर हमें सामाजिकता का बोध होता है, अपने कर्तव्य परायणता का बोध होने लगता है। बहन के प्रति स्नेह और प्यार उमड़ने लगता है। इसी तरह 1959 में एक फ़िल्म आयी ‘छोटी बहन’ इस फ़िल्म में एक सदाबहार गीत था-‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’। इस गीत के अन्तिम अंतरे पर आपका ध्यान जरूर जाना चाहिए। वह इस प्रकार है- ‘ शायद वो सावन भी आए, जो बहना का रंग ना लाए, बहन पराए देश बसी हो’ बहन की मनोदशा को बखूबी बयान कर देनी वाले बोल दिल और दिमाग में हलचल मचा देता है। इस गीत के गीतकार थे श्री शैलेन्द्र जी, जो अपने छोटे-छोटे वाक्यों में जादू जगा देते थे।
सन 1963 में एक फ़िल्म आयी थी जिसका नाम था ‘बंदिनी’। इस फ़िल्म में शैलेन्द्र जी की कलम का जादू देखिए-अंतरा कुछ इस प्रकार से है-’ बैरन जवानी ने छीने खिलौने और मेरी गुड़िया चुराई, बाबुल जी मैं तेरे नाजों से पाली, फ़िर क्यों हुई पराई...बीते से जग कोई चिठिया ना पाती, ना कोई नैहर से आए रे...अब के बरस भेज भैया को बाबुल...सावन में लीजो बुलाए रे.....इसे सुनते हुए आँखों से आँसू झर-झर कर बहने लगते है।
‘हरे रामा हरे कृष्णा’ फ़िल्म भाई-बहन के प्यार पर आधारित थी। इस फ़िल्म में सदाबहार हीरो थे देवानन्द और जीवन अमान। राह भटकी बहन को उसका भाई इस गीत को गाते हुए अपने पवित्र रिश्ते की याद दिलाता है। ‘फ़ूलों का तारों का कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है’।
शैलेन्द्र का लिखा गीत जिसे शंकर जयकिशन ने संगीतबद्ध किया था और सुमन कल्याणपुर जी ने गाया था, फ़िल्म थी ‘रेशन की डोर’, जो सन 1974 में आई थी। इस गाने को पिक्चराइज किया था अभिनेत्री कुमुद छुगानी पर ,जो अपने भाई धर्मेन्द्र के लिए गाती है-’ बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाँधा है, प्यार के दो तार से संसार बाँधा है।
‘चंबल की कसम’ फ़िल्म का गाना ‘चंदा रे मेरे भइया से कहना, बहना तेरी याद करे’ कर्णप्रिय गीतों की श्रेणी में आता है।
इसी तरह फ़िल्म ‘अनपढ़’ में स्वर-सम्राज्ञी लताजी का गाया एक गीत है- ‘रंग बिरंगी राखी लेकर आई बहना, राखी बँधवा ले मेरे वीर।
फ़िल्म ‘काजल’ में तब के हीमैन धर्मेद्र जी और मीनाकुमारी जी ने काम किया था। मीनाजी का भाई जो धर्मेन्द्र का मित्र था, नदी में डूबकर जिसका प्राणांत हो गया था, अपने भाई के लौट आने के लिए मंगल कामनाएँ करते हुए गीत गाती है-’ मेरे भइया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ’। दिल को छू देने वाला गीत बन गया, जिसे सुनते हुए आँखें नम हो जाती हैं।
शैलेन्द्र का लिखा गीत जिसे शंकर जयकिशन ने संगीतबद्ध किया था और सुमन कल्याणपुर जी ने गाया था, फ़िल्म थी ‘ रेशन की डोर’। इस गाने को पिक्चराइज किया था अभिनेत्री कुमुद छुगानी जो अपने भाई धर्मेन्द्र के लिए गाती है-’ बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाँधा है, प्यार के दो तार से संसार बाँधा है।
खैयाम के संगीत में सजा और साहिर लुधियानवी का लिखा एक मार्मिक गीत जिसमें एक बहन चाँद के माध्यम से अपने भाई को संदेशा भिजवाते हुए कहती है.बहना याद करे....क्या बताऊँ कैसा है वो, बिल्कुल तेरे जैसा है वो, तू उसको पहचान ही लेगा, देखेगा तो जान ही लेगा,, तू सारे संसार में चमके, हर बस्ती हर गाँव में दमके, कहना, अब घर वापस आ जा, तू है घर का गहना, बहना याद करे. फ़िल्म.’ दीदी’ सन १९८० में आयी थी और इस फ़िल्म के निर्देशक थे राम माहेश्वरी जी।
मनोज कुमार और नाजिमा पर फ़िल्मायी गई फ़िल्म ‘बेईमान’ का एक गीत है जिसे मलिक वर्मा जी ने लिखा था। गीत के बोल थे-ये राखी बंधन है ऎसा, जैसे चंदा और किरण का, जैसे बदरी और पवन का, जैसे धरती और गगन का, ये राखी बंधन है ऐसा। इसी तरह एक गीत आता है फ़िल्म ‘मजबूर’ में जिसमें एक भाई अपनी बहन को अपाहिज देखकर दुखी होता हुआ गीत गाता है—’ देख सकता हूँ मैं कुछ भी होते हुए, नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए’। इस फ़िल्म में आज के सुपर-डुपर अभिनेता अमिताभ बच्चन भाई के रोल में थे और बहन बनी थी फ़रीदा जलाल।
राखी शीर्षक को लेकर कुछ दिलचस्प फ़िल्में बनीं। जैसे राखी और हथकड़ी, राखी और रायफ़ल, रक्षाबन्धन आदि थीं।
राखी के गीतों की बात हो और आकाशवाणी के योगदान को भुला दिया जाए, यह कैसे संभव है? आकाशवाणी पर बजते गीतों को सुनकर ही तो लगता है कि सावन का शुभागमन होने जा रहा है….दीपावली आ रही है और आ रहा है रंग-बिरंगा रंगों का त्योहार। केवल ये ही नहीं, अपितु और भी कई त्योहार है जो आकाशवाणी की धरती पर पहले आते हैं और फिर वहाँ से चलकर समाज के बीच आते हैं। अतः हम सब, जन-जन की वाणी, आकाशवाणी के शुक्रगुजार हैं जिसके बदौलत एक नया जीवन जीने के लिए प्रतिबद्ध होते है। हम उसके सदैव ही ऋणी रहेंगे।
राखी का यह पावन पर्व कुछ ही दिनों पश्चात आने वाला है। पर्व आए, उससे काफ़ी पहले से आकाशवाणी पर इन सदाबहार गीतों की शृंखला गूँजने लगती है। इन गीतों को सुनकर हम वैसे नहीं रह जाते जैसे की वर्तमान में जी रहे होते हैं। भाई-बहनों के मन में समर्पण की भावनाएँ आकार लेने लगती हैं। भाई को अपनी बहन की और बहन को अपने भाई की याद सताने लगती है..प्यार उमड़-घुमड़कर मन में हिलोरें लेने लगता है।
साठ से लेकर अस्सी के दशक में राखी जैसे पावन पर्व को लेकर अनेकानेक फ़िल्में बनाई गईं, उनमें खूबसूरत-सदाबहार गीत भी लिखे गए और फ़िल्माए भी गए, लेकिन आज के इस चकाचौंध वाले समय में, जिसमें एक भाई का अपनी बहन के प्रति, एक बहन का अपने भाई के प्रति प्यार-दुलार से लबरेज शायद ही कोई फ़िल्म बनी हो, जिसे याद रखा जा सके। फ़िल्में तो हजारों की संख्या में आज बनाई जा रही हैं ; लेकिन उसमें गाँव नहीं है, गाँव का कोई बुजुर्ग नहीं है, न तो उसमें कोई किसान है और न ही कन्हईया लाल जैसा कोई दुष्ट बनिया है और न ही भाई है और न बहन है ,जो राखी जैसे पवित्र त्योहार पर एक दूसरे को याद करते देखे जा सकते हैं। इन फ़िल्मों में अब वे पेड़ भी नहीं होते, जिन पर कभी झूले बाँधे जाते थे और कजरी गाई जाती थी। अब केवल और केवल फ़ुहड़पन के इर्द-गिर्द फ़िल्मों का निर्माण धड़ल्ले से हो रहा है और करोड़ों का व्यापार फल-फूल रहा है। आज की इन तथाकथित फ़िल्मों में न तो कोई कर्णप्रिय गीत लिखे जा रहे हैं और न ही वह मधुर संगीत रचा जा रहा है जो दशकों पहले हुआ करता था। मात्र एक आधुनिक युवती के इर्द-गिर्द नाचते नायक को देखा जा सकता है। हीरो की तड़क-भड़क और कहानी के मांग पर फूहड़पन कपड़ों में लिपटी नायिका को देखा जा सकता है। इन फ़िल्मों से क्या उम्मीद की जा सकती है कि समाज का इनसे कुछ भला हो सकेगा?
सम्पर्कः 103, कावेरी नगर छिन्दवाडा (मप्र.)
E-mail- goverdhanyadav44@gmail.com
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