ख़लील जिब्रान की तीन लघुकथाएँ
अनुवाद- सुकेश साहनी
1-प्लूटोक्रेट
मैंने भ्रमण के दौरान एक द्वीप पर आदमी के चेहरे
और लोहे के खुरों वाला भीमकाय प्राणी देखा, जो लगातार धरती को खाने और
समुद्र को पीने में लगा हुआ था। मैं बड़ी देर तक उसे देखता, फिर नज़दीक जाकर पूछा, 'क्या तुम्हारे लिए इतना
काफी नहीं है? क्या तुम्हारी भूख प्यास कभी शान्त नहीं होती?’
उसने जवाब दिया, 'मेरी भूख-प्यास तो शान्त
है। मैं इस खाने- पीने से भी ऊब चुका हूँ, पर डरता हूँ कि कहीं कल
मेरे खाने के लिए धरती और पीने के लिए समुद्र नहीं बचा तो क्या होगा?’
2-कोरा कागज़
बर्फ से सफेद कागज़ ने कहा, 'इसी शुद्ध सफेद रूप में मेरा निर्माण हुआ था और मैं सदैव सफेद ही रहना
चाहूँगा। स्याही अथवा कोई और रंग मेरे पास आकर मुझे गंदा करे इससे तो मैं जलकर
सफेद राख में बदल जाना पसन्द करूँगा।’
स्याही से भरी दवात ने कागज़ की बात सुनी तो मन
ही मन हँसी, फिर उसने कभी उस कागज़ के नज़दीक जाने की हिम्मत
नहीं की। कागज़ की बात सुनने के बाद रंगीन पेन्सिल भी कभी उसके पास नहीं आई।
बर्फ सा सफेद कागज़ शुद्ध और कोरा ही बना
रहा....शुद्ध कोरा...और रिक्त।
दार्शनिक ने गली के सफाईकर्मी से कहा, 'मुझे तुम पर दया आती है, तुम्हारा काम बहुत ही गंदा
है।’
मेहतर ने कहा, 'शुक्रिया जनाब, लेकिन आप क्या करते हैं?’
प्रत्युत्तर में दार्शनिक ने कहा, 'मैं मनुष्य के मस्तिष्क उसके कर्मो और चाहतों का अध्ययन करता हूँ।’
तब मेहतर ने गली की सफाई जारी रखते हुए
मुस्कराकर कहा, 'मुझे भी आप पर तरस आता है।’
सम्पर्क: सुकेश साहनी 185,उत्सव,महानगर पार्ट–2
बरेली–243122 (उ.प्र.), Email- sahnisukesh@gmail.com
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