चंदखुरी
कौशल्या का मायका था छत्तीसगढ़

भगवान श्री राम ने दक्षिण कोशल के उत्तर
तथा पूर्व भू-भागों से होते हुए दण्डाकारण्य में प्रवेश किया था। उन्होंने वनवास
की कुछ अवधि इस क्षेत्र में बिताई थी। महाभारत में भी पांडवों के युद्ध अभियान प्रसंग
में दक्षिण-कोसल का विवरण है। प्रचलित किंवदतियाँ ,
दन्तकथाएँ, पौराणिक साक्ष्य इन सब बातों की अधिक पुष्टि करते हैं ।
छत्तीसगढ़ में यह प्रचलित मान्यता है कि
माता कौशल्या इसी प्रदेश (कोशल) की रहने वाली थीं,
इसीलिए इसे
रामचन्द्र जी का ननिहाल माना जाता है। वानरराज सुग्रीव ने अपने साथियों को इसी दण्डकारण्य
क्षेत्र में सीताजी का पता लगाने भेजा था।
महाभारत काल में इसी पर्वत पर परशुराम का
आश्रम होने का भी उल्लेख है। जनश्रुति है इसी पर्वत में जाकर दानवीर कर्ण ने उनसे
शिक्षा पाई थी। रतनपुर,
आरंग एवं सिरपुर तीनों
महाभारत कालीन नगर हैं। इसी तरह रामायण के पात्रों के नाम पर ग्राम एवं बस्तियाँ पहचानी गई हैं जैसे - रामपुर, लक्ष्मणपुर, भरतपुर,
जनकपुर, सीतापुर आदि। रायगढ़ एवं बिलासपुर जिले के सीमा पर कोसीर ग्राम में
तथा आरंग के निकट ग्राम बोरसी में भी महारानी कौशल्या का प्राचीन मन्दिर मिलता है। इस प्रकार कौशल्या माता के मन्दिर केवल छत्तीसगढ़ में ही अनेक स्थानों पर देखने को
मिलते हैं।
प्राचीन धर्मग्रंथों से यह ज्ञात होता है
कि छत्तीसगढ़ के राजा महाकोशल की पुत्री होने के कारण राममाता को कौशल्या नाम से
संबोधित किया जाता था (कोशलात्मजा कौशल्या मातु राम जननी)। इसी वजह से यह क्षेत्र
महाकोशल अथवा कोशल क्षेत्र कहलाया। वाल्मीकि रामायण में भी इक्षवाकु वंश राजा दशरथ
और कोशल देश की राजकन्या कौशल्या के विवाह- प्रसंग का विशद वर्णन है। इस विवाह के
अवसर पर कोशल नरेश महाकोशल ने अपनी पुत्री को स्त्रीधन के रूप में दस हजार गाँव दान में दिए थे।
ऋषिमुनि कह गए हैं कि -
क्रियाशक्तिश्च कैकेयी वेटो दशरथो नृप:
जगत पिता परमात्मा जिनके घर अवतरित हुए
हों ,उन भाग्यशाली जगन्माता के विषय में कोई कह ही क्या सकता है, पूर्वजन्म में जो मनुशतरूपा थे ,वे ही इस जन्म में दशरथ के रूप में
अवतरित हुए। महारानी कौशल्या कोशल नरेश भानुमन्त की पुत्री थी। पुराणों में ऐसी एक
कथा का भी उल्लेख है - रावण को यह पता था कि
मुझे मारने वाले राम कौशल्या के गर्भ से ही उत्पन्न होंगे। अत: विवाह के पूर्व ही
गिरिजा पूजन करने गई कौशल्या का उन्होंने अपहरण कर लिया था।
प्राप्त साक्ष्य के अनुसार विनत वंश में
कोशल नामक एक महाप्रतापी राजा हुए थे ,उनके ही नाम पर इस क्षेत्र का कोशल नामकरण
हुआ। उनकी राजधानी बिलासपुर के मल्हार के निकट कोशल नगर में थी। कोशल वंश में आगे
चलकर भानुमान हुए ,जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है।
रायपुर से सराईपाली जाने वाले राष्ट्रीय
राजमार्ग पर रायपुर से 15 किमी दूर मन्दिर हसौद स्थित है,
यहाँ से बाईं ओर 11
किमी दूर मन्दिर हसौद से पक्की सड़क पर बैद चंदखुरी स्थित है।
चंदखुरी गाँव में पटेल पारा में सोमवंशी
नरेशों द्वारा बनाया गया 9वीं सदी में निर्मित भव्य शिवमन्दिर है। जिसे पुरातत्त्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है।
चंदखुरी ग्राम में मोहदी ग्राम जाने के
रास्ते में भरनी तालाब के पहले एक खलिहान के बाहर बाईं ओर लगभग चार फीट ऊँचा
शिवलिंग स्थापित है; जिसके ऊपर का हिस्सा गोलाकार तथा नीचे का आधा भाग चौकोर
वर्गाकार है। इस शिवलिंग की बनावट आरंग के शिवलिंग के समान है। यह शिवलिंग सोमवंशी
शासनकाल की है। इसी प्रकार भरनी तालाब के किनारे पीपल की जड़ में ऐसी ही प्राचीन
छोटी आकृति का शिवलिंग स्थापित है।
चंदखुरी पचेड़ा मार्ग में बलसेन तालाब के
बीच एक टीला है जो बारह मास जल से घिरा रहता है। इसी टिले में स्थित मन्दिर में प्राचीन कौशल्या देवी की प्रतिमा स्थापित
है। वर्तमान मन्दिर का निर्माण गाँव वालों ने 1916
में करवाया था। इस मन्दिर
में राम लक्ष्मण की प्रतिमा स्थापित है।
राम मन्दिर के सामने हनुमान मन्दिर है तथा दाहिने पार्श्व में शिव परिवार का मन्दिर
है। शिव मन्दिर को देखने से यह पता चलता है कि इसका अनेक बार
जीर्णोद्धार किया गया है ; जिसके कारण उसका मूल स्वरूप विकृत हो गया है। कौशल्या मन्दिर
के आसपास बड़ी संख्या में प्राचीन मन्दिरों
के अवशेष बिखरे मिले थे। इससे अनुमान लगाया जाता है कि किसी समय वहाँ भव्य मन्दिर था। पिछले दिनों पर्यटन विभाग ने चंदखुरी के इस
क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने हेतु योजना तैयार की है।विश्वास है कि शीघ्र ही यह गाँव पर्यटन के मानचित्र पर नजर आने लगेगा।
जहाँ कभी 126 तालाब थे

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