रायपुर में छत्तीसगढ़ी लोकधुन गाने वाला घंटाघर
- तेजपाल सिंह हंसपाल
- तेजपाल सिंह हंसपाल
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की नगर घड़ी इसलिए अनोखी है क्योंकि यह सिर्फ घंटा बजाकर समय नहीं बताती बल्कि हर घंटे छत्तीसगढ़ की एक लोकप्रिय लोकधुन बजाकर समय बताती है।
रायपुर की यह नगरघड़ी पूरे भारत की ऐसी पहली संरचना है जिसमें हर घंटे बजने वाली छत्तीसगढ़ी धुनों के कारण इसे लिमका बुक आफ रिकार्ड्स 2009 तथा इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स 2009 में शामिल किया गया है। हाल ही में इस नगरघड़ी के धुन की अवधि को बढ़ा कर एक मिनट कर दिया गया है। पहले नगरघड़ी में बजने वाली लोकधुनों की अवधि 25 से 32 सेकेण्ड हुआ करती थी। लिमका बुक के बीसवें संस्करण के मानव कथा अध्याय में नगरघड़ी को 'गाता हुआ घंटाघर' तथा अंग्रेजी संस्करण में 'सिंगिंग क्लॉक टॉवर' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। नगरघड़ी में 24 घंटे में 24 छत्तीसगढ़ी धुन बजने का यह एक ऐसा रिकार्ड है जो कभी नहीं टूट सकता।
दरअसल रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष एस.एस. बजाज और मुख्य कार्यपालन अधिकारी अमित कटारिया ने महसूस किया कि नगरघड़ी में बजने वाली लोकधुन की अवधि काफी कम है इसलिए नगरघड़ी की स्थापना करने वाली केरल की कंपनी को धुनों की अवधि बढ़ाने को कहा गया। चूंकि नगरघड़ी में लगने वाली इन्टीग्रेटेड चिप भारत में उपलब्ध नहीं थी इसलिए कंपनी ने इसे ताईवान से मंगाया और काफी समय तक धुनों के संयोजन और उसकी गुणवत्ता पर शोध कर तैयार किया।
19 दिसंबर 1995 को रायपुर के कलेक्टोरेट कार्यालय के सामने 50 फुट ऊंचे स्तंभ पर नगरघड़ी की स्थापना की गई थी। छह फुट व्यास वाले घड़ी के डायल के पीछे मैकेनिकल पद्धति से चलने वाली घड़ी में हर घंटा पूरा होने के बाद इसके बुर्ज में लगे पीतल के घंटे की आवाज गूंजती थी। इसमें दिन में एक बार चाबी भी भरनी पड़ती थी। मैकेनिकल घड़ी में बार- बार तकनीकी खराबी आने के कारण 26 जनवरी 2008 को रायपुर विकास प्राधिकरण ने एक नई इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगाई जो सेटेलाईट से संकेत प्राप्त कर जी.पी.एस. (ग्लोबल पोजीशिनिंग सिस्टम) प्रणाली से सही समय बताती है। रायपुर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री श्याम बैस ने तत्समय छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को लोकप्रिय बनाने के लिए नगरघड़ी में हर घंटे बजने वाले घंटे की आवाज के पहले छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को संयोजित करने का निर्णय लिया था ताकि इससे आम आदमी भी लोकधुनों से परिचित हो सके।
समय के मनोभावों के अनुरुप इन धुनों का चयन प्रदेश के लोक कलाकारों के विशेषज्ञ समिति के द्वारा किया गया था जिसमें लोक संगीत को पुरोधा माने जाने वाले श्री खुमानलाल साव, लोक गायिका श्रीमती ममता चन्द्राकर, छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्देशक श्री मोहन सुन्दरानी, लोक कला के ज्ञाता श्री शिव कुमार तिवारी और लोक कलाकार श्री राकेश तिवारी ने किया है। समिति की अनुशंसा के फलस्वरुप श्री राकेश तिवारी ने विशेष रुप से लोकधुनें तैयार की। सुबह चार बजे से हर घंटे के बाद लगभग 30 सेकेण्ड की यह धुनें नगरघड़ी में बजती हुई छत्तीसगढ़ की लोकधुनों से आम आदमी का परिचय कराती है।
26 जनवरी 2008 को नई घड़ी लगने के बाद से नगरघड़ी में हर दिन हर घंटे के बाद एक छत्तीसगढ़ी लोकधुन बजती है। चौबीस घंटे चौबीस धुनों में शामिल है- जसगीत, रामधुनी, भोजली, पंथी नाचा, ददरिया, देवार, करमा, भड़ौनी, सुआ गीत, भरथरी, डंडा नृत्य, फाग गीत , चंदैनी, पंडवानी, राऊत नाचा, गौरा, परब, आलहा, नाचा, कमार, सरहुल, बांसगीत, ढ़ोलामारू और सोहर गीत। अब जब भी आप इस नगरघड़ी के पास से गुजरें तो हर घंटे बजने वाली छत्तीसगढ़ी लोकधुन सुनकर उसका आनंद उठाएं।
रायपुर की यह नगरघड़ी पूरे भारत की ऐसी पहली संरचना है जिसमें हर घंटे बजने वाली छत्तीसगढ़ी धुनों के कारण इसे लिमका बुक आफ रिकार्ड्स 2009 तथा इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स 2009 में शामिल किया गया है। हाल ही में इस नगरघड़ी के धुन की अवधि को बढ़ा कर एक मिनट कर दिया गया है। पहले नगरघड़ी में बजने वाली लोकधुनों की अवधि 25 से 32 सेकेण्ड हुआ करती थी। लिमका बुक के बीसवें संस्करण के मानव कथा अध्याय में नगरघड़ी को 'गाता हुआ घंटाघर' तथा अंग्रेजी संस्करण में 'सिंगिंग क्लॉक टॉवर' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। नगरघड़ी में 24 घंटे में 24 छत्तीसगढ़ी धुन बजने का यह एक ऐसा रिकार्ड है जो कभी नहीं टूट सकता।
दरअसल रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष एस.एस. बजाज और मुख्य कार्यपालन अधिकारी अमित कटारिया ने महसूस किया कि नगरघड़ी में बजने वाली लोकधुन की अवधि काफी कम है इसलिए नगरघड़ी की स्थापना करने वाली केरल की कंपनी को धुनों की अवधि बढ़ाने को कहा गया। चूंकि नगरघड़ी में लगने वाली इन्टीग्रेटेड चिप भारत में उपलब्ध नहीं थी इसलिए कंपनी ने इसे ताईवान से मंगाया और काफी समय तक धुनों के संयोजन और उसकी गुणवत्ता पर शोध कर तैयार किया।
19 दिसंबर 1995 को रायपुर के कलेक्टोरेट कार्यालय के सामने 50 फुट ऊंचे स्तंभ पर नगरघड़ी की स्थापना की गई थी। छह फुट व्यास वाले घड़ी के डायल के पीछे मैकेनिकल पद्धति से चलने वाली घड़ी में हर घंटा पूरा होने के बाद इसके बुर्ज में लगे पीतल के घंटे की आवाज गूंजती थी। इसमें दिन में एक बार चाबी भी भरनी पड़ती थी। मैकेनिकल घड़ी में बार- बार तकनीकी खराबी आने के कारण 26 जनवरी 2008 को रायपुर विकास प्राधिकरण ने एक नई इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगाई जो सेटेलाईट से संकेत प्राप्त कर जी.पी.एस. (ग्लोबल पोजीशिनिंग सिस्टम) प्रणाली से सही समय बताती है। रायपुर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री श्याम बैस ने तत्समय छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को लोकप्रिय बनाने के लिए नगरघड़ी में हर घंटे बजने वाले घंटे की आवाज के पहले छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को संयोजित करने का निर्णय लिया था ताकि इससे आम आदमी भी लोकधुनों से परिचित हो सके।
समय के मनोभावों के अनुरुप इन धुनों का चयन प्रदेश के लोक कलाकारों के विशेषज्ञ समिति के द्वारा किया गया था जिसमें लोक संगीत को पुरोधा माने जाने वाले श्री खुमानलाल साव, लोक गायिका श्रीमती ममता चन्द्राकर, छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्देशक श्री मोहन सुन्दरानी, लोक कला के ज्ञाता श्री शिव कुमार तिवारी और लोक कलाकार श्री राकेश तिवारी ने किया है। समिति की अनुशंसा के फलस्वरुप श्री राकेश तिवारी ने विशेष रुप से लोकधुनें तैयार की। सुबह चार बजे से हर घंटे के बाद लगभग 30 सेकेण्ड की यह धुनें नगरघड़ी में बजती हुई छत्तीसगढ़ की लोकधुनों से आम आदमी का परिचय कराती है।
26 जनवरी 2008 को नई घड़ी लगने के बाद से नगरघड़ी में हर दिन हर घंटे के बाद एक छत्तीसगढ़ी लोकधुन बजती है। चौबीस घंटे चौबीस धुनों में शामिल है- जसगीत, रामधुनी, भोजली, पंथी नाचा, ददरिया, देवार, करमा, भड़ौनी, सुआ गीत, भरथरी, डंडा नृत्य, फाग गीत , चंदैनी, पंडवानी, राऊत नाचा, गौरा, परब, आलहा, नाचा, कमार, सरहुल, बांसगीत, ढ़ोलामारू और सोहर गीत। अब जब भी आप इस नगरघड़ी के पास से गुजरें तो हर घंटे बजने वाली छत्तीसगढ़ी लोकधुन सुनकर उसका आनंद उठाएं।
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