एक ही परिवार के तीन सदस्य
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
किसी भी व्यक्ति के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिलना कई पीढिय़ों को सम्मानित करने वाला सम्मान होता है। और जब एक ही परिवार की दो पीढिय़ां लगातार देश के इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजी जा चुकी हों तो फिर कहना ही क्या। छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह बहुत गौरव की बात है कि जांजगीर जिले के चंद्रपुर ग्राम के बुनकर परिवार के तीन- तीन सदस्यों को कोसा कपड़े में कलाकारी करने और उसकी रंगाई में वनस्पति का उपयोग करने के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस परिवार की दोनों पीढिय़ां आज भी अपनी इस परंपरागत कला की सेवा कर रही हैं।
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
किसी भी व्यक्ति के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिलना कई पीढिय़ों को सम्मानित करने वाला सम्मान होता है। और जब एक ही परिवार की दो पीढिय़ां लगातार देश के इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजी जा चुकी हों तो फिर कहना ही क्या। छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह बहुत गौरव की बात है कि जांजगीर जिले के चंद्रपुर ग्राम के बुनकर परिवार के तीन- तीन सदस्यों को कोसा कपड़े में कलाकारी करने और उसकी रंगाई में वनस्पति का उपयोग करने के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस परिवार की दोनों पीढिय़ां आज भी अपनी इस परंपरागत कला की सेवा कर रही हैं।
पहली बार यह राष्ट्रीय पुरस्कार परिवार के मुखिया सुखराम देवांगन को इंद्रधनुषी साड़ी बनाने के लिए सन् 1988 में प्रदान किया गया था। इसके बाद उनके बड़े बेटे नीलांबर प्रसाद देवांगन को 1992 में कोसा सिल्क साड़ी में विशेष कलाकारी करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अगले ही वर्ष 1993 में कोसा मयूरी साड़ी बनाने के लिए परिवार के ही छोटे बेटे पूरनलाल देवांगन को भी राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया गया। ऐसे सम्मान पाले वाले परिवार पर भला किसे गर्व नहीं होगा।
पिता घासीदास से विरासत में मिली कला को सुखराम ने आगे बढ़ाया तो उनके पुत्र नीलाम्बर और पूरन भी पीछे नहीं रहे उन्होंने भी अपने दादा व पिता से मिली इस परंपरागत कला में कुछ और नया करते हुए इस कला में अपने हुनर की छाप छोड़ी। दोनों मिलकर कोसा कपड़े पर आज भी नए- नए प्रयोग कर रहे हैं और प्रदेश का नाम रोशन कर सफलता की ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहे हैं। वास्तव में छत्तीसगढ़ को इस परिवार पर गर्व है।
नीलाम्बर और पूरन ने मिलकर कोसा सिल्क साड़ी पर बस्तर के जीवन को जीवंत करने वाली कारीगरी की। नीलाम्बर का मानना है कि उनका झुकाव परंपरागत कलाओं की ओर पहले से ही था। इस दिशा में कार्य करते हुए ही उन्होंने एक नया प्रयोग करने की ठानी और कोंडागांव के लौह शिल्प की कला को साडिय़ों पर जीवंत कर दिखाया।
छत्तीसगढ़ में इस तरह का यह पहला और अनूठा प्रयास था। उनके इस प्रयास को पूरे देश में सराहा गया। हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारे प्रदेश के एक परिवार ने भारतीय शिल्पकला की प्राचीन परंपराओं को जागृत रखा। श्रेष्ठ शिल्पी के लिए नीलाम्बर देवांगन को यह राष्ट्रीय पुरस्कार 12 दिसंबर 2005 को दिल्ली में राष्ट्रपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया। वितरण समारोह में इस विधा में पुरस्कार पाने वाले वे सबसे कम उम्र के युवा थे। (उदंती फीचर्स)
पिता घासीदास से विरासत में मिली कला को सुखराम ने आगे बढ़ाया तो उनके पुत्र नीलाम्बर और पूरन भी पीछे नहीं रहे उन्होंने भी अपने दादा व पिता से मिली इस परंपरागत कला में कुछ और नया करते हुए इस कला में अपने हुनर की छाप छोड़ी। दोनों मिलकर कोसा कपड़े पर आज भी नए- नए प्रयोग कर रहे हैं और प्रदेश का नाम रोशन कर सफलता की ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहे हैं। वास्तव में छत्तीसगढ़ को इस परिवार पर गर्व है।
नीलाम्बर और पूरन ने मिलकर कोसा सिल्क साड़ी पर बस्तर के जीवन को जीवंत करने वाली कारीगरी की। नीलाम्बर का मानना है कि उनका झुकाव परंपरागत कलाओं की ओर पहले से ही था। इस दिशा में कार्य करते हुए ही उन्होंने एक नया प्रयोग करने की ठानी और कोंडागांव के लौह शिल्प की कला को साडिय़ों पर जीवंत कर दिखाया।
छत्तीसगढ़ में इस तरह का यह पहला और अनूठा प्रयास था। उनके इस प्रयास को पूरे देश में सराहा गया। हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारे प्रदेश के एक परिवार ने भारतीय शिल्पकला की प्राचीन परंपराओं को जागृत रखा। श्रेष्ठ शिल्पी के लिए नीलाम्बर देवांगन को यह राष्ट्रीय पुरस्कार 12 दिसंबर 2005 को दिल्ली में राष्ट्रपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया। वितरण समारोह में इस विधा में पुरस्कार पाने वाले वे सबसे कम उम्र के युवा थे। (उदंती फीचर्स)
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