वंदना परगनिहा
उदंती.com का यह अंक वंदना परगनिहा के चित्रों से सज्जित है। रंग और उमंग से भरे फागुन के मौसम में चटख रंगों से सजे वंदना के ये चित्र एक ओर जहां उल्लास से भर देते हैं वहीं छत्तीसगढ़ की नारियों के विभिन्न रुपों को केन्द्र में रख कर बनाए गए चित्र मार्च माह में मनाए जाने वाले अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन को भी सार्थक करते हैं।
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से मास्टर आफ फाईन आर्टस की डिग्री लेने के बाद गुरुकुल पब्लिक स्कूल कवर्धा में आर्ट टीचर के रुप में कार्य करने वाली वंदना परगनिहा के चित्र नारी जीवन को संपूर्ण अभिव्यक्ति देते हैं। वंदना के चित्रों में एक ओर जहां छत्तीसगढ़ की माटी के रंग स्पष्ट नजर आते हैं, वहीं वे अपने चित्रों से जैसे हर नारी की कहानी कहती सी प्रतीत होती हैं।
वंदना के इस मां सीरीज को देखकर ही आभास हो जाता है कि मां का एक बेटी के साथ और बेटी का मां के साथ कितना गहरा नाता होता है। वह मां के साथ अपने आपको हर पल हर जगह पाती है। वह मां की कान की बालियों में, चुडिय़ों में, पायल में, चोटियों में, उसकी बाहों में खेलती हुई , झूलती हुई नजर आती है। मां बेटी की यह सीरीज एक कोमल रिश्ते की ऐसी गहरी अभिव्यक्ति है कि प्रत्योक बेटी और मां इन चित्रों में अपना अक्स देख सकती है।
इस सीरीज के अलावा वंदना ने छत्तीसगढ़ की महिलाओं के जीवनचर्या को तो बसूरती से अपने केनवास पर उतारा है साथ ही छत्तीसगढ़ की महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले जेवर भी वंदना के चित्रों का विषय है। उनके चित्र में छत्तीसगढ़ की महिला कहीं बच्चे को गोद में लिए हुए काम कर रही है तो कहीं वह शंकुंतला के रूप में नजर आती है। शकुंतला के इस रुप के बारे में वंदना का कहना है कि हर नारी के भीतर एक शंकुतला है।
वंदना के इन चित्रों को देखकर कोई भी छत्तीसगढ़ की महिलाओं के साज श्रृंगार और उनके जीवनचर्या के बारे में जान सकता है।
वंदना अमृता शेरगिल के चित्रों से प्रभावित हैं, वंदना का कहना है कि अमृता जब भारत आईं तो उन्होंने ग्रामीण जीवन को अपने चित्रों मे उतारा, यहां के लोगों का रहन सहन खेत खलिहान और यहां काम करने वाले किसान और यहां के स्त्रियों को उन्होंने प्रमुखता दी। मैं चूंकि छत्तीसगढ़ में पली बढ़ी हूं तो जाहिर है मेरे चित्रों में छत्तीसगढ़ की झलक मिलती है। छत्तीसगढ़ की मेहनतकश महिलाओं ने मुझे ज्यादा आकर्षित किया है। सीधी सरल जीवन गुजारने वाली यहां की ग्रामीण महिलाओं का सौंदर्य देखते ही बनता है, यहां के पारंपिरक जेवर में सजा उनका रूप तब और भी निखर आता है।
वंदना अपने को प्रकृति के करीब भी पाती हैं उन्होंने वाटर कलर में प्रकृति को भी अपनी तुलिका से उकेरा है। वंदना अब एक और नए सीरीज पर काम कर रहीं हैं इसमें भी नारी ही उनका प्रमुख पात्र हैं, पर यह नारी अबला या गांव की सीधी सरल नारी नहीं है जो अपने घर और परिवार की चाहरदीवारी में कैद है बल्कि जिस नारी को वंदना अब चित्रित करने वाली है उसमें वह सपनों की उड़ान भरने वाली नारी नजर आ रही है, जो कहीं पक्षी बनकर ऊंची उड़ान भरना चाहती है तो कहीं तितली की तरह पंख लगाकर अपने रंग- बिरंगे सपनों को पूरा करने की चाह रखती है। कुल मिलाकर इस सीरीज के माध्यम से वंदना एक स्वतंत्र, स्वावलंबी और महत्वाकांक्षी नारी को अपने केनवास में उतारने का प्रयास कर रही हैं।
वंदना बचपन में अपने नाना को पेंटिंग बनाते देखा करती थी, उन्हें ही देख- देख कर वह भी उल्टी सीधी रेखाएं खींचने लगी, और उसे चित्र बनाना रूचिकर लगने लगा। उसकी रूचि को देखकर माता- पिता और भाई ने उसे प्रोत्साहित किया और खैरागढ़ भेज दिया चित्रकला में माहरत हासिल करने के लिए। आर्ट टीचर की नौकरी के साथ जब भी वंदना को समय मिलता है वह रंग और ब्रश लेकर कैनवास में अपने सपनों को पूरा करने बैठ जाती है। वंदना की इच्छा है वह अभी और पढ़ाई करे और अपनी कला को और परिपक्व बनाए। (उदंती फीचर्स)
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वंदना परगनिहा
जन्म- 9 अगस्त 1984 में दुर्ग छत्तीसगढ़ में शिक्षा- बीएफए, एमएफए (पेटिंग)इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ आर्ट कैंप- मुज्जफर नगर, खैरागढ़, भोपाल, भुवनेश्वर ग्रुप शो- खैरागढ़, रायपुर, भिलाई एवं रविन्द्र भवन ललित कला अकादमी नई दिल्ली रूचि - पुस्तकें पढऩा, संगीत सुनना
संपर्क- 6/बी, 100 यूनिट, नंदिनी नगर, दुर्ग (छ.ग.) फोन:07821-2577234
E-mail : vandanaparganiha@yahoo.com
1 comment:
रत्ना जी वंदना से परिचय कराने के लिए आपको सौ-सौ सलाम। इतने अद्भुत चित्र मैंने पहली बार देखे हैं। खासकर चोटी में लिपटी बच्ची का देखकर मैं बेहद रोमांचित हूं। जैसा मैंने पिछली बार आपको लिखा था कि आप छत्तीसगढ़ की संस्कृति और कला पर सामग्री दें। इस अंक में आपने इसका ध्यान रखा है। धन्यवाद। वंदना के चित्रों ने पत्रिका में चार चांद लगा दिए हैं। वंदना को भी बधाई।
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