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Jun 1, 2023

पर्यावरण दिवसः बहुमंजिली इमारतों का जंगल ...

- रेखा श्रीवास्तव

   विश्व पर्यावरण दिवस की आवश्यकता संयुक्त राष्ट्र संघ ने महसूस की और इसीलिए प्रतिवर्ष 5 जून को इस दिवस को मनाने के लिए निश्चित किया गया । विश्व में लगभग 100 देश विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं। आज चारों ओर धरती पर हरियाली के स्थान पर बड़ी बड़ी बहुमंजिली इमारतें ही दिखाई दे रहीं हैं । इन इमारतों के जंगल में धरती की हरियाली कहीं खो चुकी है। 

 नेशनल हाईवे के निर्माण के नाम पर मीलों लंबे रास्ते तो दिखाई देते हैं पर राहगीर एक कतरा छाँव के लिए तरसता रह जाता है। पथिक पहले पैदल चलते हुए, पेड़ों के नीचे सुस्ताकर कुँए का शीतल जल पीकर आगे का रास्ता तय करते थे। पर अब तो कुछ भी शेष नहीं बचा। अगर हम धरती पर वृक्षों को नहीं रहने देंगे तो हमें कहाँ से और कैसे छाया मिल पाएगी?

मानव सुख की कीमत :

  दिन पर दिन आगे बढ़ रही  हमारी वैज्ञानिक प्रगति और नए संसाधनों से हम सुख तो उठा रहे हैं, लेकिन प्रगति के साथ अपने लिए पर्यावरण में विष भी घोलते चले जा रहे हैं।

पेड़ों - पौधे नहीं होंगे, नदी- तालाब नहीं होंगे तो जरा सोचिए पशु- पक्षी कहाँ शरण लेंगे। इस भयंकर गर्मी में वृक्षों के लगातार कम होने से पशु- पक्षी काल के गाल में समाते चले जा रहे हैं। गाँव के खेत, तालाब सब धीरे- धीरे खत्म होते चले जा रहे हैं। जमीन बंजर बनती चली जा रही है। 

   खेतों का व्यावसायिक प्रयोग होने लगा है कुछ क्षणों का सुख समझ कर हम अपनी ही साल दर साल आजीविका देने वाले खेतों को बेच कर शहर में बसने का सपना पूरा करने लगे हैं, क्योंकि शहर और गाँव से लगे हुए खेत और बाग़ कहीं हाईवे और सड़क बनाने के नाम पर तो कहीं अपार्टमेंट और फैक्टरी लगाने के लिए उजाड़े जाने लगे हैं। अगर उनका मालिक नहीं भी बेचना चाहता है तो भी  विभिन्न तरीकों से बेहतर जिंदगी का लालच देकर उन्हें अपना खेत अपनी जमीन बेचने को मजबूर कर दिया जाता है।  वे भी मुआवजा लेकर हमेशा के लिए अपनी रोजी-रोटी और अपनी धरती माँ से नाता तोड़ लेते हैं पर यह कितने दिन की खुशी है? आज का किसान अपनी धरती अपनी जमीन से बेदखल होकर मजदूर बनते चले जा रहा है। 

    जिन खेतों में लहलहाती फसलें ,

     अब उन पर इमारतें उग रही हैं ।

                                   - अज्ञात

     ये पंक्तियाँ हमें आईना दिखा रही हैं ।

इन ऊँची- ऊँची इमारतों और इनके प्रत्येक कमरे में एअर कंडीशनर लगे होते हैं।  गर्मी के कहर से बचने के लिए हम अब पंखा और कूलर को छोड़ कर एयर कंडीशनर की ओर बढ़ गए हैं। पर क्या आप जानते हैं आपको मिलने वाला ठंडक का यह सुख आपके पर्यावरण को कितना प्रदूषित कर रहा है, इससे उत्सर्जित होने वाली गैस दूर- दूर तक लगे पेड़ पौधों को सुखाने के लिए पर्याप्त है । 

 सरकार प्रकृति को बचाने के लिए अनेक कार्यक्रम बनाती तो है, पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए लम्बी चौड़ी योजनाएँ भी बनती है और फिर एक दिन वह सब फाइलों में दब कर दम तोड़ जाती है ।  हम सौदा करते है अपने फायदे के लिए, लेकिन ये भूल रहे है कि हम उसी पर्यावरण में  विष घोल रहे है, जिसमें उन्हें ही नहीं बल्कि हमें भी रहना है। 

मोबाइल टावर : 

हमारे वातावरण को प्रदूषित करने में इन ऊँची- ऊँची गगनचुम्बी मोबाइल टावरों का भी बहुत बड़ा हाथ है। इन टावरों ने खेतों, घरों की छतों और न जाने कहाँ-कहाँ कब्जा जमा लिया है। इन आधुनिक उपकरणों ने इंसान के जीवन को यदि सुगम बनाया है, तो नुकसान भी कम नहीं किया है। हम उससे मिलने वाले लाभ को देखते हैं, उससे हो रहे कई गुना अधिक नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं देते।  

चिकित्सकीय कचरा :

जैसे-जैसे बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं वैसे-वैसे शहरों में निजी चिकित्सालयों की संख्या भी बढ़ती चली जा रही है। आप किसी भी मोहल्ले, सड़क से गुजरिए आपको प्रत्येक गली में चिकित्सालय का बोर्ड दिखाई दे जाएगा। और उसके साथ -साथ उस चिकित्सालय के आजू- बाजू पर्यावरण को दूषित करने वाला जैविक चिकित्सकीय कचरा नजर आ जाएगा है । जिस तेजी से नर्सिंगहोम खुलते चले जा रहे है, उतना ही अधिक कचरे का निष्कासन बढ़ रहा है । उसके निस्तारण के प्रति कोई भी सजग नहीं है। ऐसे में यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि आखिर ये जीवन रक्षक केन्द्र है या बीमारी फैलाने के स्रोत? 

  हम औरों को दोष क्यों दें ? अगर हम बहुत बारीकी से देखें, तो पाएँगे कि हम ही अपने पर्यावरण को प्रदूषित करते चले जा रहे हैं। अब हमें  सोचना यही है कि इसे कैसे रोक सकते हैं ? तो मैं यही कहना चाहूँगी कि यह काम हम सिर्फ और सिर्फ अपने ही प्रयास से कर सकते हैं। क्योंकि अपना घर और अपने वातावरण को आप ही देखेंगे न, तो साफ- सुथरा भी आपको ही बनाए रखना होगा।  

तो आइए कुछ सामान्य सा प्रयास कर पर्यावरण दिवस को सार्थक बना लें। और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बेहतर वातावरण छोड़कर जाए-

* अगर हमारे घर के आस- पास खाली जगह है, तो वहाँ पेड़- पौधे अवश्य लगाएँ और यदि नहीं है, तो जहाँ पर खाली जमीन दिखे वहाँ पौधा रोपण करें और उनकी तब तक देखभाल करें जब तक वे वृक्ष न बन जाए। सरकार वृक्षारोपण के नाम पर करती तो बहुत कुछ है लेकिन वे सिर्फ खाना पूर्ति करते हैं उनका काम सिर्फ फाइलों में आँकड़े दिखाने के लिए होता है। पर हमारा और आपका कर्तव्य है कि उन वृक्षों को सुरक्षित रखने के का प्रयास करें।

*  प्लास्टिक के डिस्पोजल वस्तुओं का प्रयोग करने से बेहतर होगा कि पहले की तरह धातु के बर्तनों का प्रयोग किया जाए या फिर मिट्टी से बने पात्रों का, जो वास्तव में शुद्धता को कायम तो रखते ही हैं, पर्यावरण के लिए घातक भी नहीं होते।

* अगर संभव हो, तो सौर ऊर्जा का प्रयोग करने का प्रयास करें, जिससे हमारी जरूरत तो पूरी होगी साथ ही प्राकृतिक ऊर्जा का सदुपयोग भी होगा।

* फल और सब्जी के छिलकों को बाहर सड़कों पर सड़ने के लिए नहीं, छोड़े बल्कि उन्हें एक बर्तन में इकठ्ठा कर जानवरों को खिला दें। या फिर उनको एक बड़े गमले में मिट्टी के साथ डालती जाए कुछ दिनों में वह खाद बनकर हमारे पौधों को जीवन देने लगेगा। 

* गाड़ी जहाँ तक हो डीजल और पेट्रोल के साथ CNG और LPG से चलने के विकल्प वाली लें, ताकि कुछ प्रदूषण को रोका जा सके। अगर थोड़े दूर जाने के लिए पैदल या फिर सार्वजनिक साधनों का प्रयोग करें तो वह पर्यावरण के हित में होगा और आपके हित में भी। अब तो बैटरी से चलने वाली गाड़ियाँ भी आ चुकी हैं। 

* आपके घर के आस पास अगर पार्क हो, तो उसको हरा-भरा बनाये रखने में सहयोग दें, न कि उन्हें उजाड़ने में। पौधे सूख गए हों तो उनके स्थान पर आप नए पौधे लगा दें। सुबह शाम टहलने के साथ उनमें पानी भी डालने का काम कर सकते हैं, यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।

इस पर्यावरण दिवस को सार्थक बनाने के लिए आइए हम सब मिलकर थोड़ा- थोड़ा प्रयास करते चलें ताकि आने वाली पीढ़ी हमें यह न कहे कि आपने तो हमारे लिए न शुद्ध हवा रहने दी न शुद्ध पानी। 

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