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Oct 3, 2021

कहानी- टूटे सपने

- विनय कुमार पाठक

टीं......... डोरबेल की आवाज सुन बालकेश्वर प्रसाद उठे लगता है कमलेश बाबू आ गए, कहते हुए वे उल्लासपूर्वक दरवाजे की ओर बढ़े आखिर पुराने परिचित, बल्कि मित्र से मुलाकात होने वाली थी उनकी

दरवाजा खोला तो देखा, कमलेश बाबू नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े खड़े हैं बालकेश्वर जी ने भी दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया फिर बड़े प्यार से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें ड्राइंग़ रूम के अंदर लाए बालकेश्वर जी की पत्नी ललिताजी ने भी उनका हाथ जोड़कर अभिनंदन किया- “नमस्ते भाई साहब

“नमस्ते! भाभी जी, नमस्ते!”

“और भाभीजी बच्चे कैसे हैं ललिताजी ने पूछा

“ठीक हैं सभी कमलेशजी ने कहा

“और बताइए कैसे हैं कमलेश बाबू, कैसा चल रहा है बालकेश्वर जी ने पूछा ललिता जी ने दोनों को बातों में मशगूल देखा तो रसोई की ओर बढ़ गईं  कमलेश बाबू के लिए कुछ मीठा-नमकीन-चाय आदि का प्रबंध करने

“बिल्कुल ठीक ठाक चल रहा है काफी दिनों के बाद इधर आने का मौका मिला तो सोचा सभी परिचितों से मिल लूँ मुझे तो आपके यहाँ मिलने की उम्मीद न थी इसलिए फोन कर आपसे पूछ लिया अकि आप कहाँ हैं

“उम्मीद क्यों नहीं थी, हमे कहाँ जाना है?”- दोनों हाथों से ट्रे पकड़े ललिताजी रसोई से वापस आईं और पानी का गिलास तथा बिस्किट का प्लेट टेबल पर रखा

“आप लोगों ने तो मुंबई में अपने बेटे के साथ रहने की योजना बना रखी थी न? आशीष तो शायद वहीं रह रहा है अपने फ्लैट में?”

“हम छोटे शहरों में रहने वाले हैं मुंबई में हमारा मन कहाँ लगेगा!”- बालकेश्वर जी ने हँसते हुए कहा

“हाँ! बात तो सही है, बड़े शहरों में अलग ही जीवनशैली है लोगों की किसी को किसी के लिए समय नहीं है पर आपने ही बताया था कि आपका एक ही लड़का है इसलिए आप कहीं और घर न बना कर सेवानिवृत्ति के बाद अपने बेटे के साथ ही रहेंगे इसलिए पूछा था

“समय के साथ योजना बदलती भी तो रहती है- बालकेश्वरजी ने ठहाका लगाते हुए कहा- “हम यहीं छोटे-से शहर में किराये के मकान में ही ठीक हैं मियाँ बीवी मिल-जुलकर काम कर लेते है और समय आराम से बीत जाता है

“कभी पोते को देखने की इच्छा नहीं होती? मैं तो अपने पोते के बिना रह ही नहीं पाता कमलेश जी ने कहा

“इच्छा होती है तो साल में एक दो दिनों के लिए चले जाते हैं यह कौन सी बड़ी बात है, वे भी पर्व त्योहार में कभी- कभार दो चार दिनों के लिए आ जाते हैं

इस प्रकार काफी दिनों के बाद मिले दो परिचितों के बीच तरह-तरह की बातें होती रहीं थोड़ी देर बाद कमलेश जी उठकर चले गए

“क्या जवाब देता कमलेश बाबू के सवाल का? सोचा तो सचमूच हमने यही था कि बेटे के साथ रह लेंगे रहने की कोशिश भी की पर किस्मत में ऐसा नहीं लिखा था बालकेश्वर प्रसाद ने बड़े उदास स्वर में पत्नी से कहा

“बहू का जो रवैया है उसे देख बेटे के साथ हमारा रह पाना नामुमकिन है हम ऐसे ही सही हैं”- ललिताजी ने टेबल से गिलास प्लेट वगैरह समेटते हुए ठंढी उच्छास के साथ कहा

सिंक में बरतन धोते हुए उनके मानसपटल पर उनकी पूरी जिंदगी एक एक कर घूमने लगी

 एक बेटा और एक बेटी तथा पति- पत्नी बस चार लोग थे परिवार में बेटी को शादी के बाद अपने घर चले जाना था ऐसे में उन्होंने बेटे के साथ ही रहने का मन बनाया था बेटा एमबीए करने के बाद मुंबई में एक निजी कंपनी में काम करता था और अच्छा वेतन-भत्ता पाता था बड़े अरमान से दोनों ने बेटे की शादी की थी बहू अपने माता पिता की बड़ी लाडली थी कुछ इतनी लाडली कि उसके माता पिता ने उसे हर प्रकार की छूट दे रखी थी कब सोना है कब जगना है इसकी कोई बंदिश नहीं थी इसी प्रकार खाना बनाना उसके लिए शौक था अनिवार्य नहीं शुरु-शुरु में ललिताजी काफी टोका- टाकी करती थीं पर बहू पर उनकी बातों का कोई असर नहीं पड़ता था बहू का सुबह काफी देरी से जगना बालकेश्ववरजी को भी बिल्कुल नहीं सुहाता था यह उनके रहन- सहन और सोच के बिल्कुल विपरीत था बहू के देरी तक सोए रहने के कारण कई बार उन्होंने मेन स्वीच ऑफ कर दिया था ताकि पंखा रुकने पर बहूरानी की नींद खुल जाए पर बहूरानी पंखा बंद होने पर भी अपनी जिद में देर तक सोई रहती

बाद में बहू जब बेटे के साथ मुंबई चली गई तो वहाँ भी उसका वही रवैया चालू रहा बेटे को आठ बजे ऑफिस के लिए निकलना पड़ता था बहू चूंकि सोई रहती अतः वह खुद हल्का फुल्का कुछ खा कर ऑफिस के लिए निकल जाता था कुछ दिनों के लिए ललिताजी और बालकेश्वरजी मुंबई गए तो बहू का रवैया और बेटे की बदकिस्मती देख उन्हें बड़ा दुख हुआकई बार छुट्टियों के दिनों में बेटा और बहू शाम को घूमने निकलते तो बाहर से ही खा पी कर लौटते उसके बाद रात का खाना बनाने की जरूरत बहू को महसूस नहीं होती थी ललिता जी को मन मारकर इस उम्र में भी खाना बनाना पड़ता था कहाँ उन्होंने सोच रखा था कि बेटे बहू के साथ ही वे रहेंगे कहाँ दो चार दिन उनके साथ बिताना भारी पड़ रहा था वापस आने पर बहू के माता- पिता से जब इसकी चर्चा की गई तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि उनकी बेटी नाजो में पली है और यह उसका स्वभाव हो गया है उन्होंने ऐसा व्यवहार किया मानो यह कोई बड़ी बात नहीं है

ग्लास प्लेट धोने के बाद उसे करीने से सजाने के बाद ललिताजी ड्राइंग रूम में आईं बालकेश्वरजी से कहा- “लगता है, कमलेश जी के बेटे- बहू उनका काफी खयाल रखते हैं बड़े नसीब वाले हैं वे

बालकेश्वर जी ने पत्नी को ओर देखा वे समझ सकते थे पत्नी की व्यथा और पत्नी की ही क्यों, यह उनकी अपनी भी व्यथा थी चुपचाप टेबल पर रखी पत्रिका को उठाकर यूँ ही उसके पन्ने पलटने लगे

सम्पर्कः 605, सेम-ए, शिप्रा सृष्टि, इंदिरापुरम, गाजियाबाद -201014, मोबा. 9001895412, 9425083335

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