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Sep 10, 2011

70 वर्ष पूर्व प्रकाशित: कुन्दन लाल सहगल से बातचीत

मैं देवदास जैसा नहीं हूँ
- उर्विश कोठारी
मेरे चाहने वाले सिनेमा फैन मुझे देखकर खुश होते है, इससे मुझे भी खुशी मिलती है लेकिन वह मुझे इस तरह से जानने लगें तो बेहद दु:ख नहीं होगा? मैं देवदास जैसा गया गुजरा नहीं हूं। परदे के देवदास की तरह मैं जिंदगी को जुआ मानकर नहीं चलता, ना ही उसकी तरह अनिश्चित और अस्थिर जिंदगी जीता हूं।
सहगल के सीने में देवदास का दर्द है। इसलिए वह देवदास का किरदार बखूबी निभा सके... अपनी जिंदगी में भी सहगल का खुद पे काबू नहीं था... यही वजह है कि देवदास को परदे पर जिंदा करने में वह कामयाब हुए। सहगल इस दुनिया में रहते हुए भी पारो और चंद्रा (चंद्रमुखी) की झांकी कर सके थे। इसलिए वह इत्मीनान से परदे पर अपना रोल अदा कर गए।
ऐसी कई कथाएं देवदास की सफलता के बाद सहगल के बारे में कही- सुनी गई। कुछेक दर्शक देवदास के सहगल की मिसाल लेकर खुद देवदास बन बैठे। तब से सहगल को मिलने की बेकरारी पैदा हुई थी। परदे के देवदास का दिल टटोलने की इच्छा भी वहीं से जागी थीं। आखिरकार वह मुझको खींच ले गई कलकत्ता के कलाधाम न्यू थियेटर्स तक-
- मैं आपके इंटरव्यू के लिए खास बम्बई से आया हूं और ...
0 वो तो सब ठीक है लेकिन मेरा पता आपने कहां से ढूंढा? कलकत्ता में रहने वाले को भी मेरा अता- पता मालूम नहीं और आप हैं कि बम्बई से सीधे मेरे घर पहुंच गए। मुझे सचमुच ताज्जुब होता है।
- ऐसी बात नहीं। सबसे पहले मैं स्टूडियो गया था और वहां पर मि. सोरेन सेन को मिला।
0 समझा। अब फरमाइए, आप जो भी पूछना चाहते हैं...
- आपके बारे में कई लोग सोचते हैं कि ...
0 ओ हो, लोग मेरे बारे में सोचते भी हैं? अच्छा, उनका क्या अभिप्राय है?
- कुछ लोग मानते हैं कि देवदास का किरदार आप इसलिए अच्छी तरह से कर सके क्योंकि...
0 मेरी योग्यता के सिवा और कोई कारण हो सकता है भला? लोगों ने कोई नया कारण ढूंढ निकाला है? वो भी बताइए मुझे।
- ... कि आप असल में देवदास की जिंदगी जी रहे हैं। इसलिए आप देवदास की भूमिका में तन्मय हो सके।
0 यानि लोग ऐसा मानते हैं कि मैं दूसरा देवदास हूं।
- हां, कुछ ऐसा ही समझिए।
0 भई, ये तो मेरे पर खुला आरोप है। मेरे चाहने वाले सिनेमा फैन मुझे देखकर खुश होते है, इससे मुझे भी खुशी मिलती है लेकिन वह मुझे इस तरह से जानने लगें तो बेहद दु:ख नहीं होगा? मैं देवदास जैसा गया गुजरा नहीं हूं। परदे के देवदास की तरह मैं जिंदगी को जुआ मानकर नहीं चलता, ना ही उसकी तरह अनिश्चित और अस्थिर जिंदगी जीता हूं। औरों की तरह मैं भी एक गृहस्थ हंू। अपनी बीवी और बाल बच्चों के साथ सुख चैन से जिंदगी बिताता हूं। स्टूडियो से बाहर निकलने के बाद और किसी चीज के बारे में सोचता नहीं। फिर भी लोग जब मुझ पे ऐसा इल्जाम लगाएं तो मुझे दु:ख नहीं होगा?
- सहगल की बात सुन कर मेरे मन में भी उनके लिए हमदर्दी पैदा हुई। मेरे सवाल से उनको दु:ख हुआ होगा, यह सोच मुझे पछतावा हुआ। फिर भी उनको बुरा लगा या नहीं, ये जानने के लिए मैंने उनसे पूछा, यह सवाल तो मैंने सिर्फ इण्टरव्यू को रसिक बनाने के लिए ही किया था। मुझे डर है कि आप कहीं इसका उलटा अर्थ न लगाएं।
0 नहीं दोस्त, यह तो ठीक ही हुआ कि एक तरह से बात साफ हो गई। इसके बाद लोग मुझे देवदास न समझें तो मुझे बड़ी खुशी होगी।
- अच्छा आपका पूरा नाम?
0 कुन्दल लाल सहगल
- आप इस दिशा में किस तरह आकर्षित हुए?
0 सच कहूं तो मुझे कभी इसका आकर्षण नहीं हुआ। मुझे घसीटा गया था, ऐसा भी कह सकता हूं। सन् 1930 में बतौर रिप्रजेन्टेटिव, रेमिंगटन टाइपराइटर कंपनी में कलकत्ते आया। उस वक्त मि. सरकार से मेरी ऐसे ही मुलाकात हुई। हम मिले तब वह एक फिल्म कंपनी निकालने की सोच रहे थे। मशीनरी के आर्डर दिए जा चुके थे। सिर्फ स्टूडियो तैयार नहीं हुआ था। एक दिन मि. हाफिज, मि. काजी और मि. पंकज मलिक संगीत की चर्चा कर रहे थे। मुझमें बचपन से गाने की लगन है, ऐसा कहना ठीक होगा। जब कभी फुर्सत मिले तो मेरी जुबां पे कोई गीत या कोई धुन रहती थी। मेरे ऐसे स्वभाव के बारे में लोग जानते थे। इसलिए चर्चा पूरी होने के बाद उन्होंने मुझे नई कंपनी में आने की आफर की। क्या मालूम क्यों लेकिन उस वक्त मैं उनकी कंपनी में बतौर एक्टर जाने के लिए राजी नहीं था। बाद में उन्होंने मुझको बहुत समझाया, अच्छे प्रास्पेक्ट्स के बारे में बड़ी- बड़ी बातें कीं। तब जाकर मैंने उनकी बात मानी। लेकिन शुरुआती दिनों में मुझे काफी कठिनाइयां झेलनी पड़ी क्योंकि मेरे माता- पिता बिल्कुल ही नहीं चाहते थे कि मैं फिल्मों में जाऊं। फिर भी मैं इस दिशा में दाखिल हो ही गया।
- इतना कहकर मि. सहगल सिगरेट पीने के लिए रुके। मैंने उनसे सवाल किया। आपने शास्त्रीय संगीत का अभ्यास किया है?
0 संगीत की तालीम तो मैंने ली ही नहीं। अपने हिसाब से मैंने गाना शुरु किया और गाने लगा। एक दिन दिलचस्प वाकया हुआ। उस्ताद फैयाज खां यहां आए थे। उन्होंने मुझे सूचित किया कि कोई उस्ताद तो रखना ही चाहिए। उस पर मैंने उन्हें कहा, आप ही मेरे उस्ताद बन जाइए। और मैंने उनको अपना उस्ताद मान लिया।
- आपकी पहली फिल्म कौन- सी थी?
0 मोहब्बत के आंसू
- आपको अपनी कौन- सी फिल्म सब से ज्यादा पसंद है?
0 यह तय करना मेरा काम नहीं, अपनी फिल्मों को मैं कभी क्रिटिसाइज नहीं करता। यही नहीं, मैं कभी अपनी फिल्म देखने के लिए भी नहीं जाता। आज तक अपनी सिर्फ एक ही फिल्म मैंने देखी है।
- स्टूडियो लाइफ के बारे में आपका क्या ख्याल है?
0 मुझे तो यह गे लाइफ लगती है। जो लोग निष्ठापूर्वक काम करने की प्रवृत्ति रखते हैं, उनको किसी भी प्रकार की नुक्ताचीनी करने की फुर्सत ही नहीं। जो लोग खुद पर काबू नहीं रख पाते वो (स्टूडियो) लाइफ के बारे में कुछ भी बोलते हैं। सच कहें तो कुछ लोग गंदी सोच के साथ ही सिनेमा की ओर जाते हैं। फिल्मी कंपनियां आगे नहीं बढ़ पातीं इसका कारण यही है। इसी वजह से अपना फिल्म उद्योग अधोगति की ओर जा रहा है।
- आपको कैसी भूमिका पसंद आती है?
0 यह बात ही मेरे लिए नई है। कुछ रोल मुझे पसंद हैं और कुछ नहीं, ऐसा मैंने कभी सोचा ही नहीं। अगर कोई यह कहता है कि फलां रोल सिर्फ मैं ही कर सकता हूं तो यह अहंकार है। मैं अहंकार में नहीं, सेवा भाव के साथ काम करता हूं। मैं हमेशा किसी भी प्रकार की भूमिका मिले, ऐसी अपेक्षा करता हूं।
- तब तो विद्यापति में सान्याल का रोल अगर आपको मिलता तो आप उसे ज्यादा इंसाफ दे सकते?
0 हां, अगर वह काम मेरे हिस्से में आया होता तो सान्याल की बराबरी करने में शायद मैं कामयाब हो सकता था।
- मि. बरुआ और मि. नितिन बोस- इन दोनों में से आपके हिसाब से कौन अच्छा डायरेक्टर है?
0 दोनों अच्छे हैं, दोनों के पास अपनी- अपनी श्रेष्ठता है। - आपको लीला देसाई का काम अभिनय की हैसियत से कैसा लगता है?
0 आशास्पद, प्रेसीडेन्ट और दुश्मन दोनों चित्रों में मैंने उनके साथ काम किया था। मुझे उनके काम से तसल्ली हुई।
- कुछ लोग मानते हैं कि दुश्मन में लीला देसाई की बजाए कानन देवी ने आपके साथ काम किया होता तो ज्यादा अच्छा होता। आप ऐसा मानते हैं?
0 मुझे लगता है कि आप अटपटे सवाल पूछने के आदी हैं। कुछ भी हो, मैं सवाल का जवाब इस तरह से दूंगा। कानन के साथ काम करना मुझे ज्यादा अच्छा लगता है। इसलिए शायद आप जो कहते हैं ऐसा हो सकता था लेकिन लीला देसाई के साथ काम करके मुझे असंतोष हुआ है, ऐसा कहने के लिए मैं तैयार नहीं।
- आपको कैसी फिल्में ज्यादा पसंद आती हैं?
0 मुझे सोशल पिक्चर ज्यादा पसंद हैं। स्टंट फिल्मों को मैं बिल्कुल ही पसंद नहीं करता। समाज की समस्याओं का अच्छा- सा हल निकालें, ऐसी फिल्में ज्यादा पसंद की जाएंगी, ऐसी मेरी मान्यता है। फिर भी जनता की रसवृत्ति (रूचि) के बारे में कुछ कहना कठिन है। कभी सामाजिक चित्रपट अच्छा लगता है तो दूसरी बार कोई और। उनको प्रभात फिल्म कंपनी के ऐतिहासिक चित्र भी पसंद आते हैं और न्यू थियेटर्स की सामाजिक फिल्में भी उनको चाहिए, लेकिन इतना तो मैं तय मानता हूं कि पुराणकालीन (पौराणिक) फिल्मों का जमाना नहीं रहा। अब तो सिर्फ संदेशात्मक फिल्मों की ही आवश्यकता है...
- काननबाला और शांता आप्टे में से आप किसको श्रेष्ठ हीरोइन मानते हैं?
0 ये कहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि अब तक मैंने शांता आप्टे के साथ कभी काम नहीं किया। हां इतना कह सकता हूं कि कुछ अभिनेत्रियां ज्यादा सेल्फिश होने के कारण पूरा फायदा अपने हिस्से में खींच लेती है। हीरो केरेक्टर के बारे में वह कभी नहीं सोचती। ऐसी अभिनेत्रियों के साथ करने में दिक्कत होगी। ये तो स्वाभाविक है।
- मुम्बई फिल्म कंपनियों के बारे में आपका क्या अभिप्राय है?
0 मेरा यह कम भाग्य (दुर्भाग्य) है कि मैं आपके सवाल का जवाब नहीं दे सकता। मेरी आंखें इतनी खराब है कि मैं फिल्म देख ही नहीं सकता। अगर मैं फिल्म हाउस में दो घंटे तक बैंठू तो मेरे सर में दर्द होगा। इसलिए आपके सवाल का मैं ठीक से जवाब नहीं दे सकता।
- मैं अगला सवाल पूछने ही वाला था कि उन्होंने बीच में मुझसे कहा...
0 मुझे लगता है कि आप ढेर सारे सवाल पूछने की ठान कर आए हैं। मुझे कोई दिक्कत नहीं लेकिन हम बीच में थोड़ी सी चाय पी लें तो आपको कोई एतराज तो नहीं होगा? (ऐसा कहकर मि.सहगल ने एक बंदे को चाय लाने का हुक्म दिया। )
- चाय पीते- पीते मैंने पूछा, अब तक के आपके किरदारों में से आपको सबसे ज्यादा कौन-सा किरदार पसंद है।
0 आप शायद ये मानते होंगे कि लोगों को मेरे रोल से जितना संतोष हुआ है उतना मुझे भी हुआ होगा लेकिन सच कहूं तो अब तक एक भी कैरेक्टर से मैं संतुष्ट नहीं हूं। मुझे जो चाहिए वो अब तक मिला नहीं। अपने वास्तविक जीवन की कुदरती छवि जब तक परदे पर नहीं आती, तब तक छायाचित्रों में क्या मजा, ऐसा मेरा मानना है। आज तक ऐसा वातावरण मेरे लिए दुर्लभ रहा है, इसीलिए मैं तो कहूंगा अब तक अपने काम में मैं सफल नहीं हूं।
- मि. बरुआ को आप अच्छा अभिनेता मान सकते हैं?
0 अभिनय तो उनके लिए सिर्फ हॉबी है। वह महान डायरेक्टर है, ऐसा मैं जरूर मानता हूं।
- आपकी पढ़ाई कहां तक हुई?
0 यह सवाल आपने ना ही पूछा होता तो अच्छा था क्योंकि कोई डिग्री पा सकूं, उतना अभ्यास मैंने किया ही नहीं। इतनी अंग्रेजी जानता हूं कि मेरा काम होता रहे। बाकी घर में अभ्यास कर के अंग्रेजी का ज्ञान बढ़ाने की खास कोशिश करता हूं। मेरे नाम आने वाले खतों में जब कभी बी.ए. लिखा हुआ देखता हूं तो मुझे ताज्जुब होता है।
- आपकी पैदाइश कलकत्ता में हुई थी?
0 नहीं, जम्मू (कश्मीर) में। बड़ा भी वहीं पर हुआ। लाहौर में थोड़ी बहुत पढ़ाई की।
- आप कौन- सी जाति से हैं?
0 हिन्दू क्षत्रिय।
- आपकी उम्र कितनी है?
0 35 साल
- शादीशुदा है?
0 वह तो मैंने पहले बताया। फिर भी यदि आप सुनना चाहें तो, मैं शादीशुदा हूं। ईश्वर कृपा से एक बच्ची और एक बच्चा है। मेरे पिताजी का देहान्त हो चुका है। मेरी माता जी मेरे साथ रहती है। इससे ज्यादा कुछ पूछना चाहें तो खुशी से पूछिए।
- फर्ज कीजिए कि अगर इस क्षेत्र में न होते तो आज आप क्या काम कर रहे होते?
0 तो आज मैं रेमिंगटन टाइपराइटर कंपनी के रिप्रजेन्टेटिव की हैसियत से कलकत्ते की सड़कों पर हाथ में बैग लिए घूमता नजर आता।
- अपनी हॉबीज के बारे में कुछ कहिए।
0 सुनिए, फिल्में तो मैं देखता नहीं, मुझे पढऩे का और घुड़सवारी का शौक है, इसलिए उन्हीं में मसरू$फ रहता हूं। इसके अलावा मुझे नहीं लगता कि मेरे कोई और शौक हैं।
- अधिकार फिल्म आपको कैसी लगी?
0 क्लासिक, लेकिन लोगों को शायद यह पसंद न आई हो क्योंकि उसके डायलाग जरा कठिन हैं। उनको समझने की कोशिश करनी चाहिए। जब तक डायलाग ठीक से समझ में नहीं आते, पिक्चर की असली खूबियां भी समझ नहीं सकते।
- स्टूडियो से बाहर निकलने के बाद किस तरह से आप अपना बाकी वक्त बिताते हैं?
0 घर में ही बैठा रहता हूं। पढ़ता हूं। अगर कुछ न सूझे तो सो जाता हूंं। लोग अक्सर दोपहर और रात को- दो बार सोते हैं लेकिन मैं तो तीन बार सोने का आदी हूं। सुबह मैं जल्दी उठ कर घुड़सवारी के लिए जाता हूं। वापस आ कर तीन घंटे सो जाता हूं। इसके बाद थोड़ा बहुत पढ़ के खाना खा लेता हूं और फिर सो जाता हूं। इस तरह शाम हो जाती है और मैं खाना खा कर फिर सो जाता हूं। मैं बहुत आलसी हूं, है ना ? आप के चेहरे पर से मैं देख सकता हूं कि जो पूछना था, वह सब कुछ आप पूछ चुके है कि नहीं?
- मैं भी थोड़ा हंस के मि. सहगल से सहमत हुआ।
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के एल सहगल का यह सम्भवत: एक मात्र प्रकाशित विशेष वार्तालाप है जो 23 अप्रैल 1939 के गुजराती साप्ताहिक 'बे घड़ी मोज' (संपादक: शयदा- गुजराती भाषा के गजलगों एवं उपन्यासकार) में प्रकाशित हुआ था। गुजराती के हास्य कथा लेखक ज्योतिन्द्र दवे (1901-1980) के जीवन एवं लेखन पर पिछले कई वर्षों से शोध कार्य में लिप्त उर्विश कोठारी (अहमदाबाद) को गुजराती भाषा में प्रकाशित बे घड़ी मोज के एक अंक में उपरोक्त साक्षात्कार पढऩे को मिला। मात्र 200 (लगभग) गीतों- भजनों के बल पर अमरता हासिल कर चुके सहगल साहब का देहान्त 18 जनवरी 1947 को जलन्धर में हो गया था। उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप 70 वर्ष पूर्व प्रकाशित उपरोक्त साक्षात्कार का उर्विश कोठारी द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद लिस्नर्स बुलेटिन (मासिक पत्रिका) हर मंदिर सिंह 'हमराज' के संपादन में फरवरी 2011 के अंक में प्रकाशित किया है।
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