- नवनीत कुमार गुप्ता
लेकिन आज पृथ्वी पर विभिन्न जीवन- सहायक कारकों का संतुलन बिगड़ रहा है और ओजोन आवरण भी झीना होता जा रहा है। ओजोन आवरण के पतले होने के कारण पृथ्वी पर हानिकारक पराबैंगनी विकिरण की अधिक मात्रा पहुंच सकती है। इसके परिणामस्वरूप त्वचा रोग एवं कैंसर जैसी विकृतियों में वृद्धि होने की संभावना है।
असल में ओजोन आवरण के झीनेपन का सम्बंध वायुमंडल में हाइड्रोक्लोराफ्लोरो कार्बन व अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा में वृद्धि से है। इन तत्त्वों का रिसाव रेफ्रिजरेटर, एयरकंडीशनर, स्प्रे व कुछ औद्योगिक कार्यों से होता है। वैज्ञानिकों को सत्तर के दशक में ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए 1985 में संपूर्ण विश्व ने इस समस्या से निपटने के प्रयत्न आरंभ किए। यह ऐतिहासिक पहल वियना संधि के नाम से मशहूर है। इसके बाद मॉन्टियल संधि हुई। 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्टियल संधि की स्मृति में 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस घोषित किया। इस साल ओजोन दिवस का ध्येय वाक्य 'हाइड्रो क्लोराफ्लोराकार्बन हटाने का अद्वितीय अवसर' है। संयुक्त राष्ट्र की अपील में पूरी दुनिया से ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए पहल करने को कहा गया है। वैज्ञानिकों से उम्मीद है कि वे ओजोन आवरण एवं जलवायु परिवर्तन के सम्बंधों पर और ध्यान देंगे।
जहां एक ओर ओजोन गैस ऊपरी वायुमंडल में ओजोन आवरण के रूप में जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है वहीं धरती की सतह पर वायुमंडल में इसकी अधिक मात्रा हानिकारक हो सकती है। ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) ने देश में, विशेषकर राजधानी दिल्ली में बढ़ते ओजोन के स्तर के बारे में आगाह किया है। टेरी को 2010 में भारत के कुछ बड़े शहरों में हवा की गुणवत्ता सम्बंधी आंकड़ों के अध्ययन से ये परिणाम मिले हैं। टेरी ने चिंता जाहिर की है कि यदि 2030 तक ऐसा ही चलता रहा तो ओजोन और कण पदार्थ, दोनों ही उच्च स्तर तक पहुंच जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण मोटर गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं है। इस बात से यह तो साफ है कि प्रकृति में प्रत्येक कारक का अपना- अपना स्थान निश्चित है जिसके चलते वह लाभकारी और हानिकारक हो सकता है। लेकिन प्रकृति ने मानव को ऐसा दिमाग दिया है जिसके बल पर हानिकारक तत्त्वों को पहचान सकता है और उनका उपयोग सीमित करके उनसे होने वाले नुकसान से निजात पा सकता है। इसलिए आम जनता को ओजोन आवरण को बचाने के लिए ऐसे उत्पादों का प्रयोग सीमित करने का प्रयास करना चाहिए जो ओजोन गैस के विघटन के लिए जिम्मेदार तत्त्वों से बने होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल में विभिन्न गैसों का संतुलन महत्त्वपूर्ण है। अन्य गैसों के समान ओजोन भी जीवन की गतिशीलता में आवश्यक भूमिका निभाती है। ओजोन गैस पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में एक ऐसा आवरण बनाती है जिससे अंतरिक्ष से पृथ्वी की सतह की ओर आने वाला हानिकारक पराबैंगनी विकिरण ऊपरी वायुमंडल में ही रुक जाता है। इस प्रकार धरती के जीव- जंतु हानिकारक पराबैंगनी विकिरण के कुप्रभाव से बचे रहते हैं।आम जनता को ओजोन आवरण को बचाने के लिए ऐसे उत्पादों का प्रयोग सीमित करने का प्रयास करना चाहिए जो ओजोन गैस के विघटन के लिए जिम्मेदार तत्त्वों से बने होते हैं।
लेकिन आज पृथ्वी पर विभिन्न जीवन- सहायक कारकों का संतुलन बिगड़ रहा है और ओजोन आवरण भी झीना होता जा रहा है। ओजोन आवरण के पतले होने के कारण पृथ्वी पर हानिकारक पराबैंगनी विकिरण की अधिक मात्रा पहुंच सकती है। इसके परिणामस्वरूप त्वचा रोग एवं कैंसर जैसी विकृतियों में वृद्धि होने की संभावना है।
असल में ओजोन आवरण के झीनेपन का सम्बंध वायुमंडल में हाइड्रोक्लोराफ्लोरो कार्बन व अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा में वृद्धि से है। इन तत्त्वों का रिसाव रेफ्रिजरेटर, एयरकंडीशनर, स्प्रे व कुछ औद्योगिक कार्यों से होता है। वैज्ञानिकों को सत्तर के दशक में ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए 1985 में संपूर्ण विश्व ने इस समस्या से निपटने के प्रयत्न आरंभ किए। यह ऐतिहासिक पहल वियना संधि के नाम से मशहूर है। इसके बाद मॉन्टियल संधि हुई। 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्टियल संधि की स्मृति में 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस घोषित किया। इस साल ओजोन दिवस का ध्येय वाक्य 'हाइड्रो क्लोराफ्लोराकार्बन हटाने का अद्वितीय अवसर' है। संयुक्त राष्ट्र की अपील में पूरी दुनिया से ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए पहल करने को कहा गया है। वैज्ञानिकों से उम्मीद है कि वे ओजोन आवरण एवं जलवायु परिवर्तन के सम्बंधों पर और ध्यान देंगे।
जहां एक ओर ओजोन गैस ऊपरी वायुमंडल में ओजोन आवरण के रूप में जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है वहीं धरती की सतह पर वायुमंडल में इसकी अधिक मात्रा हानिकारक हो सकती है। ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) ने देश में, विशेषकर राजधानी दिल्ली में बढ़ते ओजोन के स्तर के बारे में आगाह किया है। टेरी को 2010 में भारत के कुछ बड़े शहरों में हवा की गुणवत्ता सम्बंधी आंकड़ों के अध्ययन से ये परिणाम मिले हैं। टेरी ने चिंता जाहिर की है कि यदि 2030 तक ऐसा ही चलता रहा तो ओजोन और कण पदार्थ, दोनों ही उच्च स्तर तक पहुंच जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण मोटर गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं है। इस बात से यह तो साफ है कि प्रकृति में प्रत्येक कारक का अपना- अपना स्थान निश्चित है जिसके चलते वह लाभकारी और हानिकारक हो सकता है। लेकिन प्रकृति ने मानव को ऐसा दिमाग दिया है जिसके बल पर हानिकारक तत्त्वों को पहचान सकता है और उनका उपयोग सीमित करके उनसे होने वाले नुकसान से निजात पा सकता है। इसलिए आम जनता को ओजोन आवरण को बचाने के लिए ऐसे उत्पादों का प्रयोग सीमित करने का प्रयास करना चाहिए जो ओजोन गैस के विघटन के लिए जिम्मेदार तत्त्वों से बने होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
No comments:
Post a Comment