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दक्षिण अमरीका की सबसे ऊंची और लम्बी पर्वत श्रंृखला 'एंदेस (हिमालय के बाद यही पृथ्वी पर सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है) उस महाद्वीप के उत्तर से दक्षिण तक लगभग 7000 किलोमीटर लम्बी है। इसी पर्वत के ऊपर दुनिया का सबसे ऊँचाई में स्थित (समुद्र तल से 3810 मीटर- 12580 फीट) नौचालन योग्य झील 'टिटिकाका' भी है जो लगभग 180 किलोमीटर लम्बा है। इस झील का बड़ा हिस्सा पेरू में समाहित है जबकि एक हिस्सा बोलीविया के अन्र्तगत भी आता है। 13 वीं से लेकर 16 वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र में 'इनका' सभ्यता फल फूल रही थी।
इस झील में एक विस्मयकारी बात जो दिखाई देती है वह है वहां के तैरते हुए टापू। उस इलाके में एक जनजाति 'उरो' हुआ करती थी जो इन्काओं से भी पहले की थी। बाहरी आक्रमण से अपने आपको बचाने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका ढूँढ निकाला। इसके लिए सहायक हुई वहां झील के किनारे उगने वाली एक जलीय वनस्पति (रीड-मुश्कबेंत) avsscv अंग्रेजी में Scirpus totora कहा गया है। एक प्रकार से यह हमारे भर्रू वाला पौधा ही है जो लगभग 8/10 फीट तक ऊंचा होता है। अन्दर से पोला। समझने के लिए कह सकते हैं कि पतला सा बांस जिसे बेंत सरीखे मोड़ा भी जा सकता हो। इन लोगों ने इस तोतोरा को काट- काट कर एक के ऊपर एक जमाया जिससे एक बहुत ही मोटी परत या प्लेटफोर्म बन जाए। आपस में उन्हें जोड़ कर वाँछित लम्बा चौड़ा भी बना दिया। यह पानी पर तैरने लगी। इसे इतना बड़ा बना दिया कि उस पर अपनी एक झोपड़ी भी बना सकें। अब उनकी झोपड़ी पानी पर तैरने लगी। तोतोरा की एक खूबी यह भी है कि पानी में रहते हुए उनकी जड़ें निकल कर आपस में एक दूसरे को गूँथ भी लेती हैं। जब नीचे का भाग सडऩे लग जाता तो ऊपर से एक और परत तोतोरा की बिछा दी जाती। इस तरह यह प्लेटफोर्म कम से कम 30 वर्षों तक काम में आता है। वैसे वे लोग इन झोपडिय़ों में किनारे ही रहा करते थे और अपने प्लेटफोर्म को किनारे से बांधे रखते थे परन्तु जब भी उन्हें बाहरी लोगों के आक्रमण का डर सताता तो वे किनारा छोड़ कर झील में आगे निकल जाते थे जैसे हम अपनी नावों को करते हैं। हाँ ये लोग तोतोरा की डंठलों से अपने नाव का भी निर्माण करते हैं। समुद्र में जाने योग्य बड़े- बड़े नाव इस तोतोरा से बनाये जाने का भी उल्लेख मिलता है। तोतोरा केवल उरो लोगों की ही नहीं बल्कि झील के किनारे रहने वालों के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिस प्रकार बांस से हम दैनिक उपयोग की वस्तुएं, कलात्मक सामग्रियां आदि बनाते हैं, वैसे ही तोतोरा का भी प्रयोग होता है।
मूलत: उरो लोग तो बड़े ही शर्मीले प्रकृति के रहे हैं परन्तु आज जो उनके वंशज तितिकाका के बड़े- बड़े द्वीपों जैसे तोरानिपाता, हुआका, हुअकानि, सांता मारिया आदि में रह रहे हैं वे वास्तव में एकदम आधुनिक हैं। आलू और बार्ली की खेती करते है, मछलियों और पक्षियों का शिकार भी करते हैं। उन्हें मालूम है कि कैसे उनकी जीवन शैली को देखने के लिए बाहरी लोगों को जुटाया जाए। उन्होंने अपने द्वीपों में पर्यटकों के रहने के लिए भी कमरे बना र
खे हैं। सर्वसुविधायुक्त। उनके स्वयं के घरों में भी सभी आधुनिक संसाधन उपलब्ध हैं जैसे फ्रीज, डिश टीवी वगैरह। बिजली के लिए इन्होंने सौर ऊर्जा के संयंत्र लगा रखे हैं। पर्यटक वहां रहें, उनके साथ नाचे गाएं, उनका खाना खाएं। लेकिन एवज में अपनी गाँठ भी ढीली करें।
इन लोगों की तैरती बस्तियों तक पहुँचने के लिए हमें पूनो जाना होगा जिसे टिटिकाका का प्रवेश द्वार कहते हैं। यहाँ से मोटर बोट मिलते हैं जिनमें आगे की यात्रा की जाती है। पूनो जाने के लिए पेरू की राजधानी लीमा से नियमित उड़ाने उपलब्ध हैं। पूनो के पास वाला हवाई अड्डा जुलियाका कहलाता है। अब जब पेरू जा ही रहे हैं तो वहां 'माचू पिच्चु' भी देख आना चाहिए। पहाड़ों पर 'इनका' लोगों के द्वारा बसाया गया प्राचीन नगर जो विश्व के सात नए आश्चर्यों में से एक है। यदि ऐसा कार्यक्रम बनता है तो लीमा से 'कुज्को' की उड़ान भरनी होगी। कुज्को से रेलगाड़ी चलती है और पूनो तक आती भी है। इस तरह एक पंथ दो काज। माचू पिच्चु भी देख लेंगे। आप धोखे में न रहे। हम यहाँ कभी नहीं गए परन्तु सपना तो देख ही सकते हैं।
संपर्क: 23, यशोदा परिसर, कोलार रोड, भोपाल (मप्र) मो. 09303106753
इस झील में एक विस्मयकारी बात जो दिखाई देती है वह है वहां के तैरते हुए टापू। उस इलाके में एक जनजाति 'उरो' हुआ करती थी जो इन्काओं से भी पहले की थी। बाहरी आक्रमण से अपने आपको बचाने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका ढूँढ निकाला। इसके लिए सहायक हुई वहां झील के किनारे उगने वाली एक जलीय वनस्पति (रीड-मुश्कबेंत) avsscv अंग्रेजी में Scirpus totora कहा गया है। एक प्रकार से यह हमारे भर्रू वाला पौधा ही है जो लगभग 8/10 फीट तक ऊंचा होता है। अन्दर से पोला। समझने के लिए कह सकते हैं कि पतला सा बांस जिसे बेंत सरीखे मोड़ा भी जा सकता हो। इन लोगों ने इस तोतोरा को काट- काट कर एक के ऊपर एक जमाया जिससे एक बहुत ही मोटी परत या प्लेटफोर्म बन जाए। आपस में उन्हें जोड़ कर वाँछित लम्बा चौड़ा भी बना दिया। यह पानी पर तैरने लगी। इसे इतना बड़ा बना दिया कि उस पर अपनी एक झोपड़ी भी बना सकें। अब उनकी झोपड़ी पानी पर तैरने लगी। तोतोरा की एक खूबी यह भी है कि पानी में रहते हुए उनकी जड़ें निकल कर आपस में एक दूसरे को गूँथ भी लेती हैं। जब नीचे का भाग सडऩे लग जाता तो ऊपर से एक और परत तोतोरा की बिछा दी जाती। इस तरह यह प्लेटफोर्म कम से कम 30 वर्षों तक काम में आता है। वैसे वे लोग इन झोपडिय़ों में किनारे ही रहा करते थे और अपने प्लेटफोर्म को किनारे से बांधे रखते थे परन्तु जब भी उन्हें बाहरी लोगों के आक्रमण का डर सताता तो वे किनारा छोड़ कर झील में आगे निकल जाते थे जैसे हम अपनी नावों को करते हैं। हाँ ये लोग तोतोरा की डंठलों से अपने नाव का भी निर्माण करते हैं। समुद्र में जाने योग्य बड़े- बड़े नाव इस तोतोरा से बनाये जाने का भी उल्लेख मिलता है। तोतोरा केवल उरो लोगों की ही नहीं बल्कि झील के किनारे रहने वालों के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिस प्रकार बांस से हम दैनिक उपयोग की वस्तुएं, कलात्मक सामग्रियां आदि बनाते हैं, वैसे ही तोतोरा का भी प्रयोग होता है।
तोतोरा की एक खूबी यह भी है कि पानी में रहते हुए उनकी जड़ें निकल कर आपस में एक दूसरे को गूँथ भी लेती हैं। जब नीचे का भाग सडऩे लग जाता तो ऊपर से एक और परत तोतोरा की बिछा दी जाती।
इसी तकनीक को आधार बनाकर टिटिकाका झील में बड़े- बड़े द्वीप बना दिए गए हैं जिनमें कई झोंपडिय़ाँ बनी हुई हैं। उरो जनजाति के तो लगभग 1000 लोग ही जीवित हैं परन्तु इन द्वीपों में बसने वाले उनमें से आधे ही हैं। कहा जाता है कि उरो जनजाति के लोगों का खून काला होता था (शायद हमारे काले गुलाब की तरह) जो उन्हें वहां उस जानलेवा ठंडे पानी के ऊपर जीने के लिए सहायक हुआ करता था। शुद्ध उरो मूल की अंतिम महिला का निधन 1959 में हो गया था और आज जो वहां बसते हैं वे 'ऐमारा' और 'इनका' से मिश्रित वर्ण के हैं। फिर भी वे उरो परंपरा को संजोये हुए हैं। उनकी भाषा भी अब बदल कर ऐमारा लोगों की हो गयी है।
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इन लोगों की तैरती बस्तियों तक पहुँचने के लिए हमें पूनो जाना होगा जिसे टिटिकाका का प्रवेश द्वार कहते हैं। यहाँ से मोटर बोट मिलते हैं जिनमें आगे की यात्रा की जाती है। पूनो जाने के लिए पेरू की राजधानी लीमा से नियमित उड़ाने उपलब्ध हैं। पूनो के पास वाला हवाई अड्डा जुलियाका कहलाता है। अब जब पेरू जा ही रहे हैं तो वहां 'माचू पिच्चु' भी देख आना चाहिए। पहाड़ों पर 'इनका' लोगों के द्वारा बसाया गया प्राचीन नगर जो विश्व के सात नए आश्चर्यों में से एक है। यदि ऐसा कार्यक्रम बनता है तो लीमा से 'कुज्को' की उड़ान भरनी होगी। कुज्को से रेलगाड़ी चलती है और पूनो तक आती भी है। इस तरह एक पंथ दो काज। माचू पिच्चु भी देख लेंगे। आप धोखे में न रहे। हम यहाँ कभी नहीं गए परन्तु सपना तो देख ही सकते हैं।
संपर्क: 23, यशोदा परिसर, कोलार रोड, भोपाल (मप्र) मो. 09303106753
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