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Oct 24, 2009

अनकही

तमसो मा ज्योर्तिगमय...
कमरतोड़ मंहगाई, सूखा और अब सैकड़ों की जान लेकर लाखों को बेघर बनाने वाली अनावृष्टि और बाढ़ जैसी आपदाओं और नक्सलवादी बर्बरता से उपजे निराशा और अवसाद का वातावरण देश पर लंबे समय से एक भयावह काली रात की तरह छाया हुआ है। जनमानस की चाहत है कि यह दीपावली आशा और विश्वास के प्रेरणा दायक दीपकों के प्रकाश से इस त्रासद काली रात से मुक्ति दिलाये।
ऐसे में हमने कुछ ऐसे प्रेरणादायक दीपक चुने हैं जो हमारे मन से निराशा और अवसाद के अंधेरे को मिटा कर मानव मन को प्रेरणा और उत्साह से पल्लवित कर उल्लास की किरणों से जगमगा सकते हैं।
प्रथम प्रेरणादायक प्रकाश स्तंभ है भारतीय मूल के वैज्ञानिक वेंकटरमन रामकृष्णन जिन्हें इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार, रसायन शास्त्र में शोध के लिए दो अन्य प्रोफेसरों के साथ मिला है। भारतीय मेधा के इस जगमगाते सितारे का जन्म तो तमिलनाडू में हुआ परंतु प्रारंभ से कालेज तक की शिक्षा गुजरात में हुई। इन्हें प्यार से सब लोग वेन्की कहते हैं। वेन्की के विलक्षण प्रतिभा के धनी होने का प्रमाण इसी से मिलता है कि मेडिकल कालेज में दाखिले के लिए चुन लिए जाने के बावजूद उन्होंने बी.एस.सी (हानर्स) भौतिक शास्त्र तथा एम.एस.सी. और पी.एच.डी. भी उसी विषय में करने के बाद शोध रसायन शास्त्र में किया। आजकल वेन्की कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी, इंग्लैंड में शोध कार्य में संलग्न हंै। इनकी शोध एंटीबायोटिक औषधियों को और अधिक प्रभावशाली बनाएगा जिससे लाखों मनुष्यों की प्राण रक्षा की जा सकेगी। प्रो. रामकृष्णन के जीवन का एकमात्र सरोकार है वैज्ञानिक अध्ययन और शोध। विश्व में भारतीय मेधा की पताका फहराने वाले इस प्रोफेसर का जीवन कितनी सादगी का है, इसका पता इसी तथ्य से लग जाएगा कि न तो इनके पास कार है न मोबाइल फोन। वेन्की घर से प्रयोगशाला तक साइकिल से आते जाते हैं। अमेरिका की नागरिकता ग्रहण कर चुके इस विश्वप्रसिद्ध बुद्धिजीवी का हृदय भारत में ही बसता है। वेन्की न सिर्फ अपने गुजराती मित्रों से संपर्क बनाए रखते हैं बल्कि इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस बैंगलोर के फेलो बने रहते हुए वहां भाषण देने भी निरंतर आते रहते हैं। वेंकटरमण रामकृष्णन का जीवन और कृतित्व एक ओर तो इस तथ्य को रेखांकित करता हैं कि उचित सुविधाएं और माहौल दिए जाने पर हमारे वैज्ञानिक भारत में ही चमत्कारिक उपलब्धियों कर सकते हंै, साथ ही सादगी का नाटक करने वाले हमारे नेताओं को भी जीवन में वास्तविक सादगी का अर्थ और महत्व समझने में सहायक हो सकते है।
दूसरा प्रेरणादायक दीपक की भांति जगमगाता व्यक्तित्व है राजस्थान के मनीराम का, जो बचपन में ही पूर्णतया बहरे हो जाने के बावजूद अडिग लगन से अपने जीवन का उद्देश्य हासिल करने में सफल हुए। अलवर जिले के बदनगढ़ी गांव में निर्धन मजदूर और निरक्षर माता- पिता की संतान मनीराम के मन में कलेक्टर बनने का सपना था। घर से 5 किलोमीटर दूर पैदल चल कर पढऩे जाने वाले मनीराम के दोनों कान कम उम्र में ही रोगग्रस्त हो गए थे। निर्धन माता-पिता इलाज कराने में असमर्थ थे अत: एक वर्ष की अवस्था में ही मनीराम की दोनों कानों से  सुनने की शक्ति पूर्णतया समाप्त हो गई। फिर भी मनीराम मेहनत से पढ़ते रहे और राजस्थान के हाईस्कूल और इंटरमिडियट की परीक्षाओं में मेरिट लिस्ट में क्रमश: पांचवा और सातवां स्थान प्राप्त किया। इसके बाद सरकारी कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करते हुए मनीराम ने एम.ए. राजनीति विज्ञान में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद क्लर्की से इस्तीफा देकर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए पीएच.डी. कर ली। इसी के साथ राजस्थान प्रादेशिक, प्रशासनिक सेवा में भी सफलता प्राप्त की।  प्रादेशिक प्रशासनिक सेवा में रहते हुए 1995 से आइ.ए.एस. की परीक्षा देने लगे। इस परीक्षा में वे 2005, 2006, 2009 में सफल भी हुए। पर 2006 में उन्हें बताया गया कि वे पूर्णतया बहरे हैं अत: उन्हें आइ.ए.एस. में नहीं लिया जा सकता, हां उन्हें डाक तार विभाग दिया जा सकता है। मनीराम को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने बिना हताश हुए डॉक्टरों से संपर्क किया और एक बड़े खर्चे पर अपने कानों का जटिल ऑपरेशन करवाया और अंतिम मौखिक परीक्षा में परीक्षकों के प्रश्न अपने कानों से सुनकर उनके संतोषजनक उत्तर दिए। इस प्रकार वे आइ.ए.एस. में नियुक्ति- पत्र पाने में सफल हुए। मनीराम का जीवन और उपलब्धि हमारे युवा वर्ग के लिए प्रेरणा है, कि लगन से मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
तीसरा है हर सुनने, पढऩे वाले के मन में दीपावली जैसा आल्हाद उत्पन्न करने वाला चमत्कार। जिससे एक बार फिर साबित होता है कि जाको राखे साइयां मारे सके ना कोय। 6-7 अक्टूबर को 32 वर्षीय गर्भवती रिकूं देवी राय अपने 2 वर्षीया पुत्री और पति के साथ टाटानगर से छपरा एक्सप्रेस में देर रात सवार हुई। आधी रात को रिंकू शौचालय के लिए गई। शौचालय की सीट पर बैठते ही रिंकू को प्रसव हो गया और शिशु मल विर्सजन के लिए बने छेद से टे्रन के पहियों के बीच कंकड़ों पर जा गिरा। इसी के साथ रिंकू के तन-मन में अदम्य ममता का ऐसा उफान उठा कि वह तेजी से शौचालय से बाहर निकली और बाहर कूद पड़ी। सहयात्रियों को लगा कि रिंकू ने आत्महत्या करने के लिए छलांग लगाई है। जंजीर खींचने पर टे्रन एक किलोमीटर आगे जाकर रूकी। जब यात्री टे्रन से उतरकर उसे ढूंढने निकले तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा कि रिंकू अपने नवजात पुत्र को आंचल में छुपाए बैठी है। इतना ही नहीं इस दुर्घटना के बावजूद नवजात और रिंकू पूर्णतया स्वस्थ हैं।
उपरोक्त कुछ उदाहरण हैं भारत माता की असीमित सृजन शक्ति के, जो वेंकटरमन रामकृष्णन और मनीराम जैसे मेधावी, अटूट लगन वाले तथा रिंकू और नवजात शिशु की अपराजय जिजीविषा वाली संतान पैदा करती है। हमें विश्वास है कि भारत माता अपने आशीर्वाद से हमें आपदाओं और संकटों से निपटने की शक्ति देती हुई
दीपावली को हर्ष और उल्लास से मनाने  में सक्षम बनाती रहेगी।
सभी पाठकों को दीपावली पर सुख,स्वास्थ्य और समृद्धि की शुभकामनाएं।
 - डॉ रत्ना वर्मा

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